जग में आने का उद्देश्य
मेरी वाणी में तनिक भी मिठास नही है
फिर भी विनय सुनाने आया हूं मैं
भगवान तुम्हारें चरणों में
मैं तुम्हें रिझाने आया हूं।
मैं हूं भिक्षुक और तुम हो दाता
ये संबंध बताने आया हूं
सेवा को कोई वस्तु नही है
फिर भी मेरा साहस तो देखों
रो रोकर आंसुओ का
मैं हार चढ़ाने आया हूं ।
इन आंखों के दोनों प्यालो में
कुछ भीख मांगने आया हूं
आपके चरण कमल को नौका बनाकर
भवसागर पार जाने को आया हूं।
न मुझमें बल है, न मुझमें है विद्या
न मुझमें भक्ति है, न मुझमें है शक्ति
ना कोई मेरा कुटुम्ब साथी है अटल
ना ही मेरा शरीर है साथी
तेरे स्वरूप का ध्यान लगाने
तेरे ही गुणों को गाने सदा
भक्त और भगवान का रिश्ता को
जग को बताने आया हूं मैं
मैं हूं भिक्षुक और तुम हो दाता
भवसागर पार जाने को आया हूं मैं।
नूतन लाल साहू
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