// माँ -- 8 //
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मात अष्टमी आज है रूप अनूप परोस ।
अंतस भाव पवित्र हो मिले परम संतोष।।
लड़ लड़ कर सब हारते नष्ट भ्रष्ट संसार।
परम शांति का चाहिए इस जग को उपहार।।
यह उपहार प्रदान कर यही जगत कल्याण।
तू ही जग की देह है और धड़कते प्राण ।।
दुख में जीने की कला सीख सकें जो लोग।
चलन चरित्र उत्तम रहे जीवन कटे निरोग ।।
धूप छाँव दोनों मिले जो प्रकृति के अंग ।
सभी रंगों पर हो चढ़ा प्रेम प्रीत का रंग।।
विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.
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