माँ का भजन
माँ का भजन कर माँ का भजन कर।
माँ का चरण धर माँ का रटन कर।।
माता रानी सबसे न्यारी।
सारे जग में मोहक प्यारी।।
माँ का नियमित पूजन करना।
माँ की शरण सदा नीत गहना।।
माँ का चरण धर रहना पकड़ कर।
माँ का भजन कर माँ का जतन कर।।
माँ में सभी देव रहते हैं।
हो प्रसन्न सब दुख हरते हैं।।
नौ रूपों में मात विराजत।
नौ रातर में जगत सजावत।।
माँ का भजन कर माँ का स्मरण कर।
माँ संग रहना माँ में रमण कर।।
सदा शैलजा अति गंभीरा।
ब्रह्मचारिणी अतुलित वीरा।।
उत्तम चन्द्रघण्ट कुष्मांडा।
माता -स्कंद सहज ब्रह्माण्डा।।
माँ का भजन कर माँ का भजन कर।
माँ का चरण धर माँ का रटन कर।।
षष्ठ रूप माँ प्रिय कात्यायिनि।
कालरात्रि सप्तम अविनाशिनि।।
गौरी महा विश्व कल्याणी।
सिद्धिदात्रि माँ देत सु-वाणी।।
माँ का भजन कर माँ का रटन कर।
माँ चरणों को पकड़-पकड़ कर।।
काली महा महा लक्ष्मी माँ।
महा सरस्वति त्रिगुणमयी माँ।।
जो माता का पूजन करता।
माँ का कृपा पात्र वह बनता।।
माँ का भजन कर माँ का भजन कर।
शीश झुकाकर माँ का चरण धर।।
रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
स्वर्णमुखी
प्रीति रंग अद्भुत चमक, बहुत मनोहर भाव।
प्रीति पेय मोहक मरम, मन चखता है स्वाद।
डूब रसायन में सदा, चाहत मधुरिम नाद।
प्रीति संग हर जीव का, बनता मधुर स्वभाव।
प्रीति प्यास बुझती नहीं, ढूढ़ इसे दिन-रैन।
अति दुर्लभ यह राह है, जड़ इसकी पाताल।
किंतु करो श्रम चल सदा, पकड़ो सात्विक चाल।
दर्शन इसका अति कठिन, सदा तरसते नैन।
प्रीति शब्द रहता हृदय, यह मन-भाव तरंग।
प्रीति भाव की राधिका,पर मोहित घनश्याम।
सीता जी की प्रीति पर, रीझे हैं श्री राम।
अति व्यापक मनहरण यह, दिव्य सुगन्धित रंग।
मस्तानी है चाल प्रीति की।
अलबेली यह सुघर गीतिकी।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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