// माँ -- 2 //
------------------
माता तेरी गोद में मिले अनत विश्राम
तू ही धरणि धरा लगे तू ही चारो धाम।।
कृपा करो जगदम्बिके बढ़ा बहुत मन त्रास
जाने कब से नयन ने देखा नही प्रभास।।
केवल दुख संताप से भरा हुआ भव धार
माता विनय विनम्र है मुझको पार उतार।।
अंतस के सब पाप का दहन करो हे मात्
आच्छादित नभ पुण्य से नही अपितु अर्थात।।
आदि अंत तू ही जगत तू ही शक्ति स्वरूप
तेरे मुख देखे लगे खिली खिली ज्यों धूप।।
विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें