212 212 212 212
चाँदनी रात में इश्क कर इश्क कर।
खूब जज्बात में इश्क कर इश्क कर।
बन गया है नियम प्रेम- परिणय का भी,
अब किसी जात में इश्क कर इश्क कर।
छा गए मेघ आकर यहाँ प्रीति के,
भीग बरसात में इश्क कर इश्क कर।
कह दिया जो निभाना उसी को सदा,
एक रह बात में इश्क़ कर इश्क कर।
आग है तू तो पानी उसे भी समझ,
रह के औकात में इश्क कर इश्क कर।
प्रीति में काश कान्हा तुझे भी मिले,
सोच खैरात में इश्क कर इश्क कर।
✒️ आलोक मिश्र मुकुन्द
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