क्यों राते जल्दी ढलती है
छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
सारे दिन अवसाद को ढोया
जीवन के अनगिन झमेले
रातें ही तो अपनी है जहाँ
पूरी शान्ति मिलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
एक आस लिए इंतज़ार करूँ
शशि संग पिय का दीदार करूँ
मिलन के क्षण आये तो पिया
सांसें डरती भी,मचलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
मद छलकाये उजली चाँदनी
ज्वार चढे चुप मन मंदाकिनी
भुजपाश बढ़ाये ताप सतत
देह पिया मेरी जलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
पलकों की छुअन में रजनी रीती
कैसे कहूँ मन पर क्या बीती
बातों में वक़्त बीत गया
लाज लगे मन कहे क्या करती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
कितनी भरी जाने मन में पीर
बक दे बैरी सब नयनन का नीर
पीव मिलन की अधूरी प्यास
धीर धरूँ कैसे जां निकलती है
क्यों राते जल्दी ढलती है
पटल के गुणवंतों को सविनय नमन संग
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