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नूतन लाल साहू

क्यों रूठ गये है प्रभु जी

क्या मैं बताऊं,क्या मैं सुनाऊं
नैनो में आंसू उठे न कदम है
दुःख ऐसा नही है कोई,जिसे मैं मन में छिपाऊं
क्या तुम परीक्षा ले रहे हो हमारी
क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे।
पानी पीकर प्यास बुझाऊं
नैनन को कैसे समझाऊं
तेरे बिन आवे न मुझकों निंदिया
बरस रही है नैनों से झड़ियां
दीनो के नाथ क्यों निष्ठुर बना है
क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे।
क्या मुझसे दोष हुआ है
हुआ है क्या गुनाह मुझसे
संकट में है आज वो धरती
जिस पर तूने जन्म लिया था।
देख रहे हो,मेरे दुःखडे सारे
कब दर्शन दोगे, छुटै अब तो दम है
क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे।
मैं ढूंढ रहा हूं तुमकों प्रभु जी
कुंजन कुंजन जमुना तट पर
मैं तो अर्जी कर सकता हूं
आगे मर्जी है तेरी
बीच मंझधार में,मैं पड़ा हूं
तेरी आशा लिए,मैं खड़ा हूं
रास्ता ना सुझें, मुझको प्रभु जी
कहां जाएं मुसीबत के मारे
क्या मैं बताऊं, क्या मैं सुनाऊं
क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे।

नूतन लाल साहू

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