रोज-रोज मेरा हाल पूछा न करो।
ये मुश्किल सा सवाल पूछा न करो।।
*
हम कैसे जी रहे थे हम खुद ही नहीं जानते।
ये अपनों का ही है कमाल पूछा न करो।।
*
इक गफलत सी बनी रही रिश्तों के दरम्यां।
निभाये गये थे ये बा-कमाल पूछा न करो।।
*
सुबह शुरू हो शाम को खत्म हो जाती है।
कुछ अजब थे ज़िन्दगी के कदम-ताल पूछा न करो।।
*
जमाने ने उठाई हर कदम पर अंगुलियां।
जो कुछ भी था फिलहाल पूछा न करो।।
*
आ गयी थी ज़िन्दगी की वो सुबह आखिरी।
कैसा गुजरा हुआ था साल पूछा न करो।।
*
अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें