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मार्कण्डेय त्रिपाठी

न्यूक्लियर फैमिली

मेरे बंधू, न्यूक्लियर फैमिली का,
अब जमाना है ।
न कोई साथ में रहता ,
पृथक् सबका ठिकाना है ।।

मियां, बीवी और बच्चों तक ही,
अब परिवार है सिमटा ।
वृद्धाश्रम में पड़े माता पिता,
हैं आज बस चिमटा ।।

हुए हैं दूर हमसे,देख लो ,
अब ख़ून के रिश्ते ।
कहूं क्या, जानते हैं सब ,
लगें सम्बन्ध अब सस्ते ।।

बहन भाई, चाचा चाची ,
के रिश्ते नाम के हैं अब ।
मामा मामी,बुआ फूफा को,
लगभग भूलते हैं सब ।।

क्या होते मौसा और मौसी ,
नहीं है याद बच्चों को ।
बिखरते जा रहे रिश्ते ,
बताएं कैसे चच्चों को ।।

दादा दादी,नाना नानी की,
कोई बात ना करता ।
वे सिमटे हैं किताबों तक ,
कोई परवाह ना करता ।।

गुरु और शिष्य के सम्बन्ध भी,
ऐसे ही हैं प्यारे ।
नहीं पहचान आपस में ,
चला करती हैं तकरारें ।।

थोड़ा रिश्ता बचा है आज ,
तो ससुराल का है बस ।
वहां भी स्वार्थ है छाया ,
कहीं पकड़े न कोई नस ।।

बड़ी दारुण व्यथा है आज,
हिन्दू कुल का क्या होगा ।
संयुक्त परिवार ख़तरे में ,
चलें ऐसे कि जस घोंघा ।।

जमाना याद है हमको ,
कि जब हम साथ रहते थे ।
बहुत था प्रेम तब उर में ,
सुख, दुख साथ सहते थे ।।

कहां अब कौन रहता है ,
पता हमको नहीं होता ।
बढ़ी हैं दूरियां इतनी कि,
हम सब बन गये तोता ।।

मार्कण्डेय त्रिपाठी

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