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छत्र छाजेड़ फक्कड़

विषय :  नव वर्ष

और  नया  साल  आ  गया
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छत्र छाजेड़ “ फक्कड़”

मैं सोया था
नींद के आग़ोश में
और
पता ही नहीं चला कि
कब नया साल आ गया.....

पूर्व में प्राची की लाली से
कलियाँ ऐंठी
मखमली घास पर
ओस की बूँदों का
साम्राज्य फिर से छा गया.....
जाने कब नया साल आ गया....

झर झर झरता निर्मल जल
सात सुरों में करता कल कल
गिरा गिरीवर से
पावन कोमल जल
गंगा बन
सब के मन को भा गया....
जाने कब नया साल आ गया....

ज्वार उठा शांत सिंधु में
चंदा मुस्काया नीले नभ में
गहन रात ने ली अँगड़ाई
मादकता से भरा भरा
वायु वेग से डरा डरा
दीप शिखाओं का समूह
दसों दिशाओं में
यौवन सा छलका गया....
जाने कब नया साल आ गया....

उन्मत तप्त अधर छू अधर
ज़ुल्फ़ों के अंधेरों में छिप कर
नयनों से मिले अधखुले नयन
कभी दूर कभी पास
मदन वेग के प्रबल प्रहार से
मन शर्माता होले से
अधीर मन को सहला गया....
जाने कब नया साल आ गया....

कहीं बचपन बीता
कहीं यौवन चढ़ा
चालाक मगर ये क्रूर समय
सपनों का ढेर लगा गया
जीवन यापन के बीहड़ पथ पर
गिरते पड़ते
शिथिल क़दम धरते
वक़्त सारा यूँ ही गुज़र गया.....
किसे पता था कि
बुढ़ापा आ गया....
जाने कब नया साल आ गया....

देने को मुबारकवाद किसने
टनटनायी घंटी फ़ोन की
बिखर गये सपने सारे
यथार्थ धरा पर ला पटका
फिर भी
करता हूँ धन्यवाद उनका
नींद से लबालब उनींदा मन
कर बंद पलकें
फिर सोने के प्रयास में
बिना किसी प्रसव वेदना के
रचना का जन्म करा गया...
उकेर पन्नों में
फिर एक बार सो गया
मीठे सपनों में खो गया....
और
पता ही नहीं चला कि
कब नया साल आ गया....
कब नया साल आ गया....

पटल को नव संवत्सर की शुभ कामनाओं सह

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