// माँ -- 4 //
---------------------
तेरी छवि नयनन बसे और हृदय में प्रीत
अर्चन वंदन नित करूं गाउं तेरे गीत।।
मेरे स्वर मे तू बसे बहे अमिय रसधार
जनम जनम मुझ पर रहे माता का उपकार।
दुख हर लूं मैं दीन के पोछूं अँखियन नीर
दुष्टों के छाती चले सदा समर शमशीर।।
न्याय और अन्याय का समझे भेद जहान
कटुक भाव से मुक्त हो इस जग में इंसान।।
अन्न हीन जन नहि रहें रहे क्षुधा नहि देह।
सब घटता हो तो घटे अंतस घटे न नेह।।
विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें