सजल
जिसके दिल में प्यार भरा है।
उसका दिल उन्नत गहरा है।।
जिसके दिल में प्यार नहीं है।
वह कठोर गूँगा-बहरा है।।
कूट नीति जो रचता रहता।
उसके इर्द-गिर्द पहरा है।।
जिसको जीना कभी न आता।
वही अक्ल का सड़ा-मरा है।।
जो विद्या का घोर विरोधी।
वह मरियल इंसान जरा है।।
जिसे घृणा है मानवता से।
वह सबके चित से उतरा है।।
ईर्ष्या-द्वेष भरा है जिसमें।
जानो उसको अधम नरा है।।
जिसके दिल में प्रेम समंदर।
वह अति मोहक दिव्य स्वरा है।।
जो हिंसा का वृक्ष लगाता।
समझो दाद-खाज-खसरा है।।
सच्चाई को जो नकारता।
नक्कारा वह खुद खतरा है।।
जो सबको सम्मान दिलाता।
वह सम्मानित शिव छतरा है।।
जो सबका सहयोगी बनता।
वह पीपल का शुचि पतरा है
जिसके मन में देव भाव है।
वही जगत का प्रिय भतरा है।।
उकसावे में जो आ जाता।
बनता वह बलि का बकरा है।।
जो विचार का अति दरिद्र है।
उसका उर पतला-सकरा है।।
जिसकी शैली न्यायमार्गिनी।
वह सबके दिल का कतरा है।।
रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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