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मन रे छोड़ दे भटकन बच्चों को पढ़ाना है... तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है... दयानन्द त्रिपाठी मुंतज़िर

गीत- मन रे छोड़ दे भटकन बच्चों को पढ़ाना है.....
         (तर्ज - सजन रे झूठ मत बोलो.....)

 मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है...
 तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है...

दिनकर तरस खाओ मौसम को सुहाना कर
निष्ठुर भले हो तुम जाना बच्चों के है घर-घर
जाना बच्चों के है घर-घर सभी जन को जगाना है
मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है.....

बच्चों आ भी जाना तुम सरकारी सुविधा संग पढ़ाते हैं
बड़े   निष्ठुर   हैं   ये  मास्टर   मिड  जून   बुलाते  हैं
मास्टर मिड जून बुलाते हैं कहते भविष्य बनाना है
मन  रे   छोड़  दे  भटकन   बच्चों  को   पढ़ाना  है...

ज्ञान बल को बढ़ा करके तिमिर उर का मिटा जाओ
पढ़ों बढ़ों सरकारी से तुम प्राइवेट से ना छल जाओ
प्राइवेट से ना  छल जाओ  ना  बहकावे  में  आना है
मन  रे   छोड़  दे  भटकन   बच्चों  को   पढ़ाना  है...

ट्रांसफर की खबर आतीं खबर खबरें ही रह जातीं
तपन खबरों की सुन-सुन कर बीबी भी पक जातीं
बीबी भी पक जातीं मुंतज़िर आदेश कब आना है?
मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है.....
तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है.....
मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है.....

        दयानन्द त्रिपाठी मुंतज़िर
           गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

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