*मधुमालती छंद*
*सम्यक*
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सम्यक सहज है पूर्णता ,
समझो सदा ही गूढ़ता ।
मानक यही है मानता ,
मापन नियम जो जानता।।
सम्यक मनुज का ज्ञान हो,
यह जैन जन संज्ञान हो ।
दर्शन व बौद्धिक साधना ,
उत्कृष्ट मानव कामना ।।
सम्यक बनाओ धीरता ,
अन्तर बसाओ वीरता ।
सौन्दर्य सूचक भावना ,
जब पूर्ण हो मन कामना ।।
शुचि शब्द संतों का वरद ,
परिदृश्य होता अति सुखद।
नव तेज मूलक दिव्यता ,
सम्यक बसे हिय सभ्यता ।।
सम्यक विधा सम्यक नियम ,
सम्यक विभा प्रिय अति परम।
समता सरस संधान हो ,
सम्यक नियम संज्ञान हो।।
सम्यक नियति आधार है ,
यह जैनियों का सार है ।
सम्यक सुखद मन वास हो ,
सम्यक मधुर विश्वास हो ।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*20/06/2022*
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