ख्वाबों से चैन मिलता है
विधा : कविता
बहुत बेचैन रहकर के
जीआ हूँ अब तक मैं।
तन्हाईयों ने भी मेरा
दिया है साथ इसमें।
तभी तो अव्यवस्थित
बना रहा मेरा जीवन।
किसे मैं दोष दू इसका
नहीं कर सका फैसला।।
बहुत मायूस जब होता हूँ
तो चला जाता हूँ मदरालय।
की शायद भूल जाऊंगा
मैं गम और तन्हाईयां।
मगर ये भी मेरा एक
भ्रम सा ही साबित हुआ।
क्योंकि मेरी स्थित में तो
कोई परिवर्तन नहीं हुआ।।
बस अब तक जी सका हूँ
अपने ख्यावों के कारण।
जो सोने पर मेरे दिलमें
अक्सर आते जाते है।
फिर उन्हीं के सहारे अपनी
तन्हाईयां मिटा लेते है।
और दिन की बेचैनियों से
निजात ख्वाबों से पा लेते।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
20/06/2022
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