मुहब्बत की फिर से जरा शुरुआत तो कीजिए।
अजी एक बार हमसे मुलाकात तो कीजिए।।
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दरम्यां क्यों हो गये हैं इतने से फासले।
जरा अपने आप से तहकीकात तो कीजिए।।
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सूखा पड़ा था कबसे मेरे दिल के दरीचे मे।
थोड़ी सी चाहतों की बरसात तो कीजिए।।
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कितने सावन आये और आकर बरस गये।
जाना आके ज़िन्दगी मे कुछ करामात तो कीजिए।।
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नाकाबिल समझ कर हरदम तुम दूर ही रहे।
काबिलियत पर मेरे इतने न सवालात तो कीजिए।।
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आया हूं तेरे शहर मे बनकर के मुसाफिर।
अपना न सही गैर ही समझकर कुछ बात तो कीजिए।।
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अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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