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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

जीवन की सार्थकता 
जीवन का उद्यान महकता,
कर्म-कुसुम जब खिलता है।
सुबह-शाम तक सौरभ-सौरभ,
रुचिर मधुर फल मिलता है।।

किया वरण जो कर्म-क्षेत्र का,
वह कर्मठ योगी सम है।
कर्म-साधना का वह साधक,
बहु त्यागी,भोगी कम है।
कष्ट पराया देख शीघ्र ही,
उसका हृदय पिघलता है।।
       जीवन का उद्यान महकता,
        कर्म-कुसुम जब खिलता है।।

कल की चिंता किए बिना वह,
वर्तमान में जीता है।
अपनी धुन का पक्का योगी,
कर्म-सृजित रस पीता है।
कष्ट-तिमिर को हरने वह नित,
दीपक बनकर जलता है।।
       जीवन का उद्यान महकता,
        कर्म-कुसुम जब खिलता है।।

दायित्वों को सदा निभाता,
श्रम-सेवी कहलाता है।
हिंसक राहों को वह तजकर,
शांति-मार्ग अपनाता है।
करे कर्म वह निष्ठा पूर्वक,
नहीं किसी को छलता है।।
       जीवन का उद्यान महकता,
        कर्म-कुसुम जब खिलता है।।

कर्मोपासक श्रम-बल-बूते,
कठिन कार्य कर लेता है।
वह अभाव से ग्रसित जनों को,
अर्थ-अन्न भी देता है।
उसके मन के हर कोने में,
स्वप्न सुनहरा पलता है।।
       जीवन का उद्यान महकता,
        कर्म-कुसुम जब खिलता है।।
                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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