विषय: वाणी
दिनांक: 14 मार्च , 2023
दिवा : मंगलवार
वाणी में ही भोर है ,
वाणी में ही शाम ।
यश अपयश मिले ,
वाणी तेरे ही नाम ।।
वाणी ही आयाम है ,
वाणी ही है विराम ।
मानवता के शोध में ,
चलता है अविराम ।।
वाणी प्रेम जगावत ,
वाणी प्रेम भगाता है ।
वाणी अनल जगाता ,
वाणी अनल बुझाता है।।
वाणी न बाड़ी उपजे ,
वाणी न हाट बिकाय ।
वाणी भाव समझ ले ,
शीश स्वयं लेता नाय ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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