सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ब्रजेन्द्र मिश्रा ज्ञासु

ग़ज़ल 
212   212  212 212  2

जानकर  भी  अरे  हम  छले  आ रहे  हैं
मुहब्बत  में  तिरी  हम  जले  आ रहे  हैं

हम  सदा   ही  तुम्हें   चाहते  यूँ    रहेंगे
आपको  ही   लगाने   गले  आ   रहे  हैं

बेवफ़ा  या वफ़ा का नहीं है गिला कुछ
जिंदगी  हो   जताने   चले  आ   रहे  हैं

है अजब  ये कहानी  हमारी सनम जी
लोग बेकार  ही  हाथ  मले  आ रहे  हैं

वो  अरे  दो  दिनों  की  मुलाकात  थी 
क्यूँ  अधूरे  सपन  यूँ  पले  आ  रहे हैं

यार अपना समझ के बताया जिसे सब
छाति  पे  मूँग  वे  ही  दले  आ  रहे  हैं

पाल  झूठा  गुमाँ  जो  बड़े  मगरूर थे
ऊँठ  वे  अब  पहाडों  तले  आ  रहे हैं

आज कैसा  जमाना अरे  आ  गया है
आम्र तरु  पे निबोली फले  आ रहे  हैं

ज्ञासु विषधर हुये  थे बुरे  वक्त में जो
सम्हलना वे अभी बन भले आ रहे हैं

© ब्रजेन्द्र मिश्रा 'ज्ञासु' 
📱 07349284609
🏠 सिवनी, मध्यप्रदेश
🏠 बैंगलोर, कर्नाटक

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879