सरस्वती वंदना
वीणा पाणी माँ शारदे, मुझको ज्ञान दिजिए।
स्वेत वस्त्र धारणी कमल
पुष्प विराजती हाथ ग्रंथ साज कर,
मैं अनपढ़ अज्ञानी, ज्ञान का भंडार भर दिजिए।
पुजा अर्चना कुछ न जानूं, मैं नादान बालक तेरा।
माँ कृपालु कुछ तो मुझ पर,अहसान कर दिजिए।।
भर दो झोली माँ मेरी, शब्द ज्ञान की बरसात मुझपे भी कर दिजिए।
आजाऊँ किसी के काम, माँ क़लम में ओज सारे भर दिजिए।
बुद्धि विद्या दायिनी माँ, कृतार्थ से मुझको भरो।
मोह माया जंजाल से, मुक्त कर हृदय मेरे भक्ति भर दिजिए।।
पुष्पा निर्मल, बेतिया बिहार
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