माॅं शारदे को नमन 🙏💐
🙏 *जीवन भोर*🙏
मंगल मंजुल नवल किरन से
रश्मि सुवर्णा उतर गगन से।
ज्योतिर्मय संसार बना कर
तम सिंधु सा वितान हटाकर।
मधु सजल निर्झर नवगीतों से
नित नव पल्लव प्रसून खिलाकर।
जग रवि उदित आलौक जगाया
अब बीती विभावरी भोर है छाया।
कुछ मुख मन से प्रफुल्लित हैं
कुछ पर विषाद भाव की छाया।
यदि उत्तम प्राणी भाव भंगिमा है
मुखरित प्रकृति ने अंक लगाया।
मिले सुकून की नींद उन्हें फिर
निज मानुष मन मुर्ख समझाया।
निष्ठा , नम्रता भूल गया यदि
निज पथ पर है शूल बिछाया।
गर कपट-कलुष से वृत्ति मुक्त है
अंतस सुरभित मकरंद समाया।
उर प्रज्वलित अखंडित दीपशिखा
फिर"मंजु"अनंत आनंद को पाया।
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स्वरचित उक्ति *मंजु तॅंवर*🙏
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