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निहार

नीहार के दोहे -

सच को दे सम्मान जो, वरण करे ईमान। 
बला टले हर हाल में, सारे रोग-निदान।। १।।

लालच भी शैतान है, पाप-सना है स्वार्थ। 
झूठ-सने सुख त्यागकर त्वरित साध परमार्थ।। २।।

सबसे सरल उपाय यह, दिल के परदे खोल। 
ऐहिक वैभव-कामना-कीच निकल सच बोल।। ३।।

भली भलाई लोक की, इतर तिमिरमय शोक। 
बिछुड़ी आली कोक की, ओषधि है आलोक।। ४।।

बुरे जनों की प्रीति का घातक पाप-प्रसाद। 
चातक ज्यों रट 'पीउ' भी मिटे नहीं अवसाद।। ५।।

सच ही जिसका धर्म हो, सत्य-सनी हर साँस। 
उसे न कोई भूख है, उसे न कोई प्यास।। ६।।

सच का माथा क्यों झुके, सच का सच्चा प्यार। 
मानो सच भगवान है, भवसागर-पतवार।। ७।।

जिस पाखण्डी ने ठगा बनकर खेवनहार। 
डूबेगा मँझधार वह, सत्य कहे नीहार।। ८।।

[ नीहार-नौसई-अमलदार नीहार]

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