कविता-बिहार की दुर्दशा|
सबका है भंडार बिहार में, मैं मान रहा हूँ|
दुनिया की है सभ्य संस्कृति, जान रहा हूँ||
शूर-शहीदों वीरों का प्यारी धरती है|
सभी धर्मों के ममता का सागर महती है||
क्राँति वीर नारायण विट्रिश शासक संहारक थे|
जरासंध शूरवीर बलशाली सब उत्पादक थे||
लोकतंत्र की जननी यही तो धरती है|
गौतमबुद्ध के दिव्य ज्ञान की महती है||
महावीर गोविन्द जन्म गुरु दाता है|
मुगलों से सब विजय किए सब भ्राता है||
कुँवर शूर जननायक सच्चिदा जन्म लिए |
विजय कीर्ति यश गान देश को खूब दिए||
तक्षशिला नालंदा का अवशेष यहाँ|
लेता दुनिया ज्ञान मूल अधिकार यहाँ||
माँ सीता के जन्म भूमि की धरती है|
इस बिहार की कीर्ति अमर जग बहती है||
राजगीर पबई पहाड़ भी वन स्थित |
शूर वीर शेरों दहाड़ से खल कंपित ||
उमगा देव दुलार सूर्य मंदिर स्थित है|
बहे प्रेम की धार यहाँ भी सीमित है||
गया फाल्गु में पिंडदान से पूर्वज तरते|
सभी वीर चाणक्य दान धारी रहते||
कवियों का भंडार रहा इस धरती पर|
साहित्यों की नदी बहाए जगती पर||
विश्व जगत की अनुपम धरती यह बिहार है|
भाईचारा प्रेम नदी बहती बिहार है||
फिर क्यों जंगल राज उदय होता बिहार में|
बार-बार पाला बदला जाता बिहार में||
घोटालों का शुरुआत भी इसी बिहार में|
भैसों का चारा खाया है यह बिहार ने|
घोटालों पर घोटाला होता बिहार में|
न्याय कचहरी का चक्कर काटें बिहार में||
सजा भोगते लौट लौटकर आते जाते|
फिर वो पाक साफ अपने को बतलाते||
करतें है बदनाम बिहारी जन जनता को|
फिर क्यों निजी ममत्व उडेले वो सत्ता को||
मारपीट का चले सिलासिला क्यों होता है|
तमिल महा मुम्बई नगर में क्यों रोता है||
सब कुछ है उपलब्ध बिहार जन क्या करती |
दिखे नहीं वो आँख व्यथा में क्यों मरती ||
कवि भी हैं उपदेशक मग न पकडाएं|
इन सबके रहते भी जनता दुख पाए||
दे सबको रोजगार रहें वो अपने घर पर|
हो बिहार का नाम धरा के विश्व पटल पर||
अमरनाथ सोनी अमर,
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