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डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर

आलेख

              भारतीय काल गणना और नव संवत्सर
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         भारतीय नववर्ष का आरम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। हेमाद्रि के ब्रह्म पुराण में मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का निर्माण  हुआ, अत: इसी दिन  से भारत वर्ष की काल गणना की थी। हिंदू समय चक्र सूर्य सिद्धांत पर आधारित है। नव संवत्सर के इतिहास की चर्चा करें तो 'इसका आरम्भ शकारि महाराज विक्रमादित्य ने किया। भारतीय नववर्ष चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होता है। हेमाद्रि के ब्रह्म पुराण में इसी तिथि को पृथ्वी की रचना का वर्णन है। अत: यही तिथि काल गणना हेतु उचित मानी गयी। इस नव संवत्सर को भारतीय वर्ष भी कहा जाता है। महाराज विक्रमादित्य द्वारा  आरम्भ क्या गया था तो इन्हीं के नाम पर विक्रम संवत कहा गया। भारतीय काल गणना पंचाग पर आधारित है। इसके पांच अंग तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग होते हैं।
    भारतीय काल गणना अनुसार, नव दिवस,  नव तिथि का आरम्भ सूर्योदय काल से माना जाता है। 
       यथा-     *सूर्योदयप्रमाणेन अह: प्रमाणिको भवेत्।* 
                   *अर्धरात्रि प्रमाणेन प्रपश्यन्तितरे जना: ।।* 
        इस कालखण्ड को मापने के हेतु मानव ने जिस विधा अथवा मंत्र का आविष्कार किया, उसे हम काल निर्णय  काल निर्देशिका एवं कैलेण्डर कहते हैं। दुनिया का प्राचीनतम कैलेण्डर भारतीय है। इसे *सृष्टि संवत* कहा जाता है। यह संवत एक अरब सत्तानवे करोड़ उनतीस लाख उनचास हजार एक सौ दस वर्ष प्राचीन है। वैदिक काल में साहित्य में ऋतुओं पर आधारित काल खण्ड विभाजन का उल्लेख प्राप्य है। तत्पश्चात नक्षत्रों की गति, स्थिति, दशा और दिशा से वातावरण तथा मानवीय प्रभावों के अध्ययन के आधार पर काल निर्देशिकाएं बनायी गयीं। खगोल शास्त्रियों ने ब्रह्मांड को 360 डिग्री को 27 बराबर भागों में विभाजित कर क्रमशः आश्विनी, भरणी, कृतिका इत्यादि 27 नक्षत्रों का निर्धारण किया। इन्हीं सत्ताइस  नक्षत्रों में से बारह मासों का नामकरण इन्हीं नक्षत्रों में से  किया गया। यथा-(चंद्रमा की स्थिति के आधार पर (१, ३, ५, ८, १०, १२, १४, १८, २०, २२, २५ वां नक्षत्र) चैत्र, वैशाख ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मृगशिरा , पौष, माघ, तथा फाल्गुन ।
      भारतीय नववर्ष की प्रारम्भ चैत्र से ही क्यों ?......वृहद नारदीय पुराण के अनुसार  ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल  प्रतिपदा का प्रमाण दृष्टव्य है-तो
            *"चैत्रमासि जगत ब्रह्मससजप्रिथमेsइति।"*

हमारे ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक गणना तथा सूर्य के महत्व को  आत्मसात करते हुए उन्हें वारों निरुपित किया। उन्होंने अविष्कार करके सूर्य, चन्द्र, शनि, गुरु तथा मंगल ग्रहों को सुनिश्चित किया। उन्हें सात दिनों के नामों के लिए उपयुक्त पाया। निश्चित अवधि पर इन ग्रहों के आधार पर ही सप्त दिवसों के नाम रखे गए। रविवार को प्रथम दिन क्रमश:सोम, मंगल बुध , वृहस्पति (गुरु),शुक्र और अंतिम दिन शनिवार माना।इसके समुच्य का सप्ताह कहा गया। ज्योतिष गणित की भाषा में रातदिन को अहोरात्रि कहा जाता है। एक घंटा को *घेरा* कहा गया है। समय की सबसे छोटी इकाई नितेश और सबसे बड़ी इकाई कल्प है।अभी तक प्रचलित संवत्सर निम्न है- 
        (क) सप्तर्षि संवत्सर
        (ख) कलियुग संवत्सर
        (म) विक्रम संवत (57 ई. पू. से)
        (घ) शक संवत    (57 ई. से)
          समस्त संसार में काल गणना केसौर चक्र एवं चन्द्र चक्र   आधार है। सौर चक्र के अनुसार पृथ्वी को सूर्य परिक्रमा में 365 दिन और लगभग छह घंटे लगते हैं। इस प्रकार काल गणना की जाए तो सौर वर्ष पर आधारित कैलेंडर में वर्ष पर्यंत 365 दिन होंगे। जबकि चन्द्र चक्र पर आधारित कैलेण्डर में 354 दिन होते हैं।
       *शक संवत् एवं विक्रम संवत् में अंतर*
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          शक संवत को सरकार रूप से अपनाने के पीछे का तर्क यह  है कि प्राचीन लेखों, शिला लेखों में इसका वर्णन मिला है। दूसरे विक्रम संवत्सर शक संवत के पश्चात आरम्भ हुआ है। 
  *विक्रम संवत्*- 
          कहा जाता है कि विक्रम संवत महाराज विक्रमादित्य ने आरम्भ किया था। उनके कालखण्ड में तत्कालीन सबसे महान खगोल शास्त्री आचार्य वराहमिहिर  (जन्मस्थान-काम्पिल्य तथा  कार्यक्षेत्र - उज्जयिनी) थे। जिनकी सहायता से विक्रम संवत्सर  के प्रसार में वृद्धि हुई। यह अंग्रेजी कैलेण्डर से 57 वर्ष आगे है, (2022+57= 2079 विक्रम संवत् चल रहा है।) भारत में अनेक कैलेण्डर प्रचलित हैं, किन्तु विक्रम संवत्सर  और शक संवत प्रमुख हैं।
    डॉ श्रीप्रकाश मिश्र के अनुसार सर्वस्पर्शी एवं सर्वग्राही संस्कृति के दृष्टा , मनीषियों एवं प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्रियों के सूक्ष्म चिन्तन-मनन के आधार पर की गयी कालगणना से यह नव-संवत्सर पूर्णतः वैज्ञानिक व प्रकृति सम्मत है।
    नव संवत्सर हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक  ऐतिहासिक धरोहर को पुष्ट करने का पुण्य दिवस है। यह भी माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग का आरम्भ हुआ था। आध्यात्मिक दृष्टि से यह दिवस महत्वपूर्ण है। इसी दिन से बासंतिक नवरात्रि (पराशक्ति के आराधन,उपासना,  व्रत पारायण) का प्रारम्भ होता है। शारीरिक तथा मानसिक ऊर्जा का नव संचार होता है। क्षीण शक्तियाँ सम्पुष्टि होती है। संचेतना करवट ले चरम उत्कर्ष को शुद्ध करती है। समाज को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना हेतु इसी दिवस का चयन किया। आज से 2079 वर्ष पूर्व राष्ट्रनायक सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांताओं शकों हूणों को भारत भूमि से खदेड़ा था। 
    समग्रतः भारतीय सौर काल गणना  हमारे सनातनी परिपेक्ष्य में पूर्णत: सहज और स्वभाविक है। हमारे सभी तीज- त्योहार, मांगलिक कार्य, आध्यात्मिक अनुष्ठान ,यज्ञदि तथा वास्तु मुहूर्त निर्धारण का केन्द्र नवसंवत्सर उपयोगी ही नहीं वरन् संवर्धनीय एवं पुष्ट है। जब तक हम आंग्ल कलैण्डर के चश्मे से नवसंवत्सर के तिथि ,वार आधारित तीज त्योहारों का आकलन करेंगे तब तक विभ्रम की स्थिति बनी रहेगी। मकर संक्रति वैदिक कालगणना का निर्धारण है न कि आंग्ल गुणा भाग का परिणाम । आइए हम अपनी पुरातन विरासत को स्वयं आत्मसात करके आगत पीढ़ी को यथावत सौंप दें।

                    (इति)'

आलेख-
       *डॉ  रघुनंदन प्रसाद दीक्षित 'प्रखर'*
       *फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)*
       *सम्पर्क - 9044393081*

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