सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मार्कण्डेय त्रिपाठी

दो दिन के मेहमान

मोह पाश को तजकर बंदे,
अपने को पहचान ।
जगत् में दो दिन के मेहमान ।।

कहां से आया है, क्यों आया,
क्या है जग से नाता ।
क्यों सब छोड़, तुम्हें जाना है,
परम ज्ञान कब आता ।
कहां अंत में जाना होगा,
जब निकलेंगे प्रान ।। जगत् में

जो भी नजर तुम्हें आता है,
वह सब कुछ है माया ।
रज्जु सर्प दृष्टांत बताता,
नहीं सत्य,यह काया ।
कहता जो वेदांत जगत् हित,
करो ज़रा तुम ध्यान ।। जगत् में

कोई, कितना भी प्यारा हो,
अंत समय त्यागेगा ।
साथ न देंगे जग के रिश्ते ,
कब तक यूं भागेगा ।
कब, यह बात समझ आएगी,
झूठा हर अभिमान ।। जगत् में

जन्म कहां,किस कुल में पाया,
इसमें वश नहीं तेरा ।
पर, चरित्र और कर्मों से ही,
भव बंधन का फेरा ।
कभी तो ध्यान लगाकर सुन,
वंशीवाले की तान ।। जगत् में

जीवन का कुछ नहीं भरोसा,
कभी बुलाया आए ।
समय शेष है, अभी सुधर जा,
जीवन व्यर्थ न जाए ।
साधु,संत की संगति में रह,
कर मधुमय रस पान ।। जगत् में

मार्कण्डेय त्रिपाठी

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879

अवनीश त्रिवेदी अभय

*चादर उजली रहने दो* घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। तपते घोर मृगसिरा नभ में, कुछ तो बदली रहने दो। जीवन  के  कितने  ही  देखो, आयाम अनोखे होते। रूप  बदलती इस दुनिया में, विश्वासी  धोखे   होते। लेकिन इक ऐसा जन इसमें, जो सुख-दुःख साथ गुजारे। हार-जीत  सब  साथ सहे वो, अपना सब  मुझ पर वारे। चतुर  बनी  तो  खो जाएगी, उसको पगली रहने दो। घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। मंजिल अभी नहीं तय कोई, पथ केवल चलना जाने। तम कितना गहरा या कम है, वो केवल जलना जाने। कर्तव्यों  की झड़ी लगी है, अधिकारों  का  शोषण है। सुमनों  का  कोई  मूल्य नहीं, नागफ़नी का पोषण है। सरगम-साज नहीं है फिर भी, कर में ढफली रहने दो। घोर  तिमिर  है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। आगे  बढ़ने  की  जल्दी  में, पीछे सब कुछ छोड़ रहें। आभासी  दुनिया  अपनाकर, अपनों से मुँह मोड़ रहें। केवल लक्ष्य बड़े बनने का, कुछ भी हो पर बन जाएं। देखा  देखी...