“भाटो अर दरद “का हिंदी अनुवाद :-
पत्थर और दर्द
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छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
दुनिया
सोचती होगी
क्या और कैसा रिश्ता
पत्थर और दर्द में
ये कैसा तालमेल.....
कितना ही सिर पटको
पत्थर पर
दर्द तो सिर पटकने वाले को ही होता
ठोकर लगे,
या फिर खुद इंसान भिड़े
पत्थर से
और तो और कभी
पत्थर स्वत: आ लगे
और फोड़ दे ललाट
मगर दर्द तब भी होता है इंसान को ही
क्योंकि
चैतन्य है इंसान
और बेचारा पत्थर
वो तो है जड़
वो क्या समझे
किसे कहते हैं दर्द....?
चेतना युक्त इंसान
रो लेता है अपने दर्द का रोना
मगर
ये गूँगा पत्थर
कहे तो किस से कहे..
कौन समझेगा मूक की भाषा
कौन समझेगा बेचारे का दर्द
पर हे मित्र...!
कभी सोचा है कि...?
वो भी कराहता होगा...जब
घिसटता होगा गाड़ियों के टायरों साथ
वो भी बिलबिलाता होगा...जब
ठोकरें खाता होगा जानवरों के पैरों की
दर्द तो उसको भी होता होगा
जब.....बेवजह लुढ़कता होगा
गलियों की बेरहम उठा पटक में
परंतु
इन्सान को क्या..?
वो कैसे समझेगा
दर्द दूसरों का
समय है भी उसके पास समझने को
वो व्यस्त है स्वार्थ सिद्धि में.....
पर
हल्की सी करूणा भी हो जहाँ
वो महसूस करेगा भी
और
जैसे कलम ने लिखा भी
कि
एक रिश्ता भी होता है
पत्थर और दर्द का....!!!
प्रबुद्ध पटल को नमन
फक्कड़
सरदारशहर / दिल्ली
सुप्रभात संग नये नये रंग :-
कैसी अड़चन...?
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वो जी रहा है
बस
अपने निजी सपनों के लिए
उसका
खुली और
बंद आँखों का सपना है
उसका अपना काम
क्यों कि
वो सोचता है
काम से न हो जो प्रेम
तो
कठिन हो जाती है
डगर सफलता की....
सफलता के सोपान चढ़ना हो तो
करो प्रेम काम से
जीओ काम के लिए
मरो भी तो काम के लिए
समझो इसे एक जूनून....
वो रखता है कदम
दो सीढ़ियाँ आगे
क्या आवश्यकता है
रिश्तों को जोड़ने की काम से
प्रथम है “वर्क”
उसका अपना “कैरियर”
काम के आगे
“सैकेंडरी” है रिश्ते...
सोचता है
वो
उलझ कर रिश्तों में
हुआ जो असफल
तो
क्या जी पायेगा
हारा हुआ चेहरा लेकर
मगर
उसे अहसास कहाँ कि
चाहने वाले
बस चाहते हैं
क्या लेना देना तुम्हारे काम से
पर
फिसल जाते हैं कदम
बिना वजह के अंर्तद्वंद्व में....
प्रबुद्ध पटल को नमन
फक्कड़
सरदारशहर / दिल्ली
परभात्यां नींवण सागै दरद रा रंग ;-
भाटो अर दरद
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छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
जग
सोचतो होवैला
भाटै अर दरद रो के रळो
किती ही खाल्यो
भजभेड़्यां भाटै स्यूं
दरद तो खावणिये रै ही उठै
ठोकर लागै,
चाहै मिनख खुद भचीड़ा
और तो और
जे भाटो आय खुद
फोड़ै पटपड़ो
तो भी पीड मिनख रै ही होवै
क्यूं क
मिनख है चेतन
अर
बापड़ो भाटो तो हुवै जड़
उण नै कांई समझ दरद सार....!
पण
मिनख तो रो लेवै
आप रै दरद रा रोणा
अर....ओ गूंगो भाटो
कुण नै कैवे
अर
कुण समझै उण रै मन री बात
कुण समझै बिचारै रो दरद
पण भायला..
कदैई सोच्यो के..?
स्यात
बो भी कुळमुळावंतो होसी
जद...ठरड़ीजै गाड्यां रै टायरां सागै
बो भी कसमसावंतो होसी
जद...रड़भड़ीजै डांगरा रै खुरां में
पीड तो होवंती होसी
जद..
रूड़तो होसी गळ्यां री उथळ पुथळ में..
पण
मिनख रो के
बो कद समझै
दरद औरां रो
बीं नै कठै बगत
निजु स्वारथ परवाण
भायला
माड़ी सी करूणा होसी तो
बो महसूस करसी
बीं दरद नै
जियां कलम करै अर मांडै
क...अेक रिस्तो भी होवै
भाटै अर दरद रो....!!!
फक्कड़
सरदारशहर / दिल्ली
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