बैरन भई हम कान्हा बिना
उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
हम ही जानत विरह है क्या l
हम सब हैं कान्हा की दासी ,
कान्हा दर्शन की अभिलाषी ll
कान्हा हमसे प्रेम बढ़ाया ,
चोरी छिपके माखन खाया l
मटकी फोड़ी , वासन चुराए ,
अपने मोह जाल में फंसाये ll
बंसी धुन पर ,हमें नचाया ,
हम सबन संग रास रचाया l
एक अकेला कान्हा, देखो ,
सब गोपियन के दिल चुराया ll
हमने सच्चा ,प्रेम है किना ,
कान्हा दूरी , सुख चैन छीना l
तू क्या समझे विरह की पीड़ा ,
कान्हा हमरा दिल है छीना ll
उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
निर्गुण हमीं ,समझ ना आवे l
हमने छोड़ा खाना पीना ,
बैरन भई हम, कान्हा बिना ll
अतिवीर जैन पराग
पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय
कवि, लेखक , व्यंग्यकार एवं
साहित्यकार,स्वतंत्र टिप्पणीकार
मोबाइल 94569 66722
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