सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अतिवीर जैन पराग

बैरन भई हम कान्हा बिना 

उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
हम ही जानत विरह है क्या l
हम सब हैं कान्हा की दासी , 
कान्हा दर्शन की अभिलाषी ll

कान्हा हमसे प्रेम बढ़ाया ,
चोरी छिपके माखन खाया l
मटकी फोड़ी , वासन चुराए ,
अपने मोह  जाल में फंसाये ll

 बंसी धुन पर ,हमें नचाया ,
 हम सबन संग रास रचाया l
 एक अकेला कान्हा, देखो ,
 सब गोपियन के दिल चुराया ll

हमने सच्चा ,प्रेम है किना ,
कान्हा दूरी , सुख चैन छीना l
तू क्या समझे विरह की पीड़ा ,
कान्हा हमरा दिल है छीना ll

उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
निर्गुण हमीं ,समझ ना आवे l
हमने छोड़ा खाना पीना ,
बैरन भई हम, कान्हा बिना ll 

अतिवीर जैन पराग
पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय 
कवि, लेखक , व्यंग्यकार एवं  
साहित्यकार,स्वतंत्र टिप्पणीकार 
मोबाइल 94569 66722

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879