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अतिवीर जैन पराग

बैरन भई हम कान्हा बिना 

उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
हम ही जानत विरह है क्या l
हम सब हैं कान्हा की दासी , 
कान्हा दर्शन की अभिलाषी ll

कान्हा हमसे प्रेम बढ़ाया ,
चोरी छिपके माखन खाया l
मटकी फोड़ी , वासन चुराए ,
अपने मोह  जाल में फंसाये ll

 बंसी धुन पर ,हमें नचाया ,
 हम सबन संग रास रचाया l
 एक अकेला कान्हा, देखो ,
 सब गोपियन के दिल चुराया ll

हमने सच्चा ,प्रेम है किना ,
कान्हा दूरी , सुख चैन छीना l
तू क्या समझे विरह की पीड़ा ,
कान्हा हमरा दिल है छीना ll

उद्बो ,मत हमें उपदेश सुना ,
निर्गुण हमीं ,समझ ना आवे l
हमने छोड़ा खाना पीना ,
बैरन भई हम, कान्हा बिना ll 

अतिवीर जैन पराग
पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय 
कवि, लेखक , व्यंग्यकार एवं  
साहित्यकार,स्वतंत्र टिप्पणीकार 
मोबाइल 94569 66722

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