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गीत- राम नाम की ज्योति जली है...... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- राम नाम की ज्योति जली है......

राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल मन में दीप जलाए।
हर कोना अब गूंज उठा है, सिया-राम के गुण गाए।।

धरा - धाम  पर  राम पधारे, 
संग लिए  करुणा की सेना।
न्याय खड़ा हर राजमार्ग पर, 
प्रेम बना अब  धर्म सा सेना।
शक्ति साधना  नारी रूपा, 
हर  नारी  ही  दुर्गा  माने।
सीता  की  मर्यादा  लेकर, 
रावण से अब युद्ध हैं ठाने।
शक्ति- प्रेम की ज्योति जली है, जग सारा आलोकित हो जाए।
राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल मन में दीप जलाएं।।

नवमी आई  राम-जन्म की, 
पुण्य  पवन  हर  दिशा बहे।
मन  के   रावण   को   मारो,
ऐसा  हर  दिल  आज  कहे।
चलो चलें फिर साथ सभी हम, 
फिर  वो  अयोध्या   ले   आएं,
जहां  न  कोई  भेद  रहे  अब, 
जिससे  सबमें   राम  समाएं।
हर नयनों में राम बसे हों, सबका मन मंगल ही गाए।  
राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल मन में दीप जलाएं।।

शरणागत को आश्रय दें हम,
प्रेम  हो‌  पावन  गंगा   जैसा,  
हर पीड़ित का संबल बनें हम, 
अंजनी पुत्र के संकल्प जैसा।  
शबरी  जैसा  प्रेम  हो  अपना, 
निषाद - मित्र  सा  साथ   रहे,
हर बालक में  राम  दिखें फिर, 
हर   पल  प्रभु  के  चरण  रहें।
हर नयनों में राम बसे हों, राम का राज बहाल हो जाए।
राम नाम की ज्योति जली है,‌ व्याकुल मन में दीप जलाएं।।
    - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल 
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श्री रामनवमी को स्मरण का पर्व नहीं अपितु आत्मबोध का अवसर बनायें:-
जब समाज का दर्पण धुंधला होने लगे और जीवन की दौड़ में नैतिकता पिछड़ने लगे तथा जब धर्म केवल प्रदर्शन बन जाए और मूल्य केवल लाभ में सिमट जाएं—तब कोई एक आवाज़ ज़रूरी होती है, जो समय के कोलाहल में मौन की तरह गूंज सके। वह आवाज़ हैं—श्री राघवेन्द्र सरकार श्रीराम हैं।

श्रीराम केवल एक चरित्र नहीं हैं, वे चेतना हैं। वे वह आदर्श हैं जो हमेशा मनुष्य के भीतर रहे हैं, पर जब-जब हम उनसे दूर हुए हैं, तब-तब पतन के गर्त में जा गिरे हैं। श्रीराम का जीवन किसी उपदेश का संग्रह नहीं, बल्कि उन प्रश्नों का उत्तर है जो आज भी हमारे भीतर गूंजते हैं—कर्तव्य क्या है? मर्यादा किसे कहते हैं? और जीवन का उद्देश्य क्या है?

आज के समय में जब त्योहार अक्सर दिखावे और आडंबर का माध्यम बनते जा रहे हैं तो श्री रामनवमी को एक अवसर की तरह देखना चाहिए जो स्वयं को स्वयं से मिलने का, अपने भीतर के ‘राम’ को पहचानने का है। क्या हम उस ‘राम’ को जी पा रहे हैं जो अन्याय पर खड़े हो जाने का साहस रखते हैं, जो व्यक्तिगत पीड़ा के बावजूद लोक-कल्याण को प्राथमिकता देते हैं?

श्री राम ने कभी स्वार्थ की परवाह नहीं की। वे राजा होते हुए भी वनवास को स्वीकार करते हैं, अपने पिता के वचन की मर्यादा की खातिर अपना सुख त्याग देते हैं। आज जब हर रिश्ता एक सौदे जैसा बन गया है, तब राम हमें याद दिलाते हैं कि कर्तव्य ही सबसे बड़ा धर्म है।

श्री रामनवमी केवल श्री राम के जन्म की कथा नहीं है, यह हमारे भीतर मर्यादा, संयम, और सत्य की पुनर्जन्म की भी प्रतीक्षा है। यह पर्व हमसे सवाल करता है—क्या हम तैयार हैं उस मार्ग पर चलने के लिए, जहाँ मोह नहीं, मोह त्याग है? जहाँ अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व है?

श्रीराम किसी धर्म विशेष के नहीं, वे मानवता के प्रतीक हैं। उनके जीवन का हर अध्याय हमें यह सिखाता है कि मूल्य और सिद्धांत केवल ग्रंथों में नहीं, आचरण में जीवित रहते हैं।

इसलिए, इस श्रीरामनवमी पर चलन से ऊपर उठें। दीप जलाएं, लेकिन आंखों के बाहर नहीं, अंतःकरण में। प्रसाद बांटें, लेकिन मिठाई नहीं, सद्भाव का। पूजा करें, लेकिन केवल मूर्ति की नहीं, उस ‘रामत्व’ की जो हर मानव में संभव है।

श्रीराम को पूजने से पहले, श्रीराम को समझना होगा। और समझने से पहले, जीना होगा।

आप सभी को श्री रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं शुभकामनाएं और अम्बर भर बधाई—एक नवचेतना के साथ।

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