कोरोना काल में रचना क्या मैं जीवित हूँ...देखें और पढ़े
क्या मैं जीवित हूँ ?
क्यों जी,
क्या मैं जीवित हूँ ?
कोरोना साढ़ेसाती योग के प्रकोप जोरों पर,
चीनी वुहान के विहान में रखा कदम,
सुना शोरगुल शैय्या से उठते ही
मैंने अपनी काया को कचोटकर देखा
क्या मैं जीवित हूँ?
झटसे दर्पण में मुँह देखा
सर के बाल अपने स्थान पर सकुशल थे,
बाल उलझे जरूर थे पर घटे न थे,
खिड़की से झाँककर देखा,
लोग-बाग भाग रहे थे,
कई आ रहे थे तो कई जा रहे थे,
आश्चर्य, महान आश्चर्य !
कोरोना काल में मौत के ताडंव से चिल्ला रहे थे,
कहीं स्वप्न तो नहीं है यह ?
तभी सहसा पत्नी दिखी, पूछा
क्यों जी, क्या मैं जीवित हूँ???
हाँ - हाँ तुम जीवित हो
सब जीवित हैं,
कोरोना काल में घर में हो सुरक्षित हो
मर गये हम, कहानी करो खत्म।
यह सुनते ही,
आ गया दम में दम,
मिट जायेगा कोरोना की लेन,
निकल जायेगा वैश्विक महामारी की देन
धैर्य रखें घर में रहें व्याकुल
साढ़े साती निकल जायेगी,
फिर सब कुछ पटरी पर आ जायेगी ।
दयानन्द त्रिपाठी
व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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