साहित्यिक मित्र मण्डल जबलपुर मध्यप्रदेश के प्रतियोगिता 31 मई, 2020 के द्वारा प्रथम स्थान के साथ सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र मिला, क्लिक कर पूरी रचना पढ़े।
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शीर्षक-मन ठहरा मन बहता
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मन ठहरा मन बहता है,
मन ही मन में कुछ चलता है।
मन के भावों से ही जीवन
बन सुन्दर और निखरता है।
पल में यहाँ पल में वहाँ
मन ही मन में विचरता है।
मन पंछी का उन्मुक्त गगन में,
चाहों की लम्बी उड़ान भरता है।
मन में उठते पीड़ा को
मन ही जाने मन समझता है।
हो द्रवित कष्ट हृदय जब
आखों से नीर लिये छलकता है।
मन चंचल रुक जाये तो
जीवन संकट बन जाता है।
जीतहार के चक्कर में व्याकुल
मानव मन ही पीस जाता है।
रचना दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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