सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दयानन्द त्रिपाठी की नई कविता "भविष्य के सपनों संग, दु:ख बढ़ती जा रही...." क्लिक कर पूरी पढ़़ेें।

दयानन्द त्रिपाठी की नई कविता "भविष्य के  सपनों संग, दु:ख बढ़ती जा रही...."  क्लिक कर पूरी पढ़़ेें।


वर्तमान के  झरोखे संग
अब उम्र  बीती  जा रही
भविष्य  के  सपनों संग
व्यथा  बढ़ती   जा रही।

वर्ष   पुराने   ऐसे   निकले
जैसे ओस  बढ़ती  जा रही
धूंधली   सी   तस्वीरें  देखो
उस पार निकलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

जीवन   के   परिवर्तन   संग
नित नये चक्र चलती जा रही
उत्थान  पतन  तो  क्रम ही है
अपार  स्नेह  बढ़ती  जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

जब अंधियारों से डरते थे
मां संग हो चलती जा रही
आज अंधेरों संग ही देखो
किसलय खिलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

हंसी  और  अंश्रुओं  में  देखो
भीगते पलछिन बीती जा रही
वर्षों  को  देखो  दिन सा बीते
श्वासों  में  सब ढलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

    महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879