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दयानन्द त्रिपाठी की नई कविता "भविष्य के सपनों संग, दु:ख बढ़ती जा रही...." क्लिक कर पूरी पढ़़ेें।

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वर्तमान के  झरोखे संग
अब उम्र  बीती  जा रही
भविष्य  के  सपनों संग
व्यथा  बढ़ती   जा रही।

वर्ष   पुराने   ऐसे   निकले
जैसे ओस  बढ़ती  जा रही
धूंधली   सी   तस्वीरें  देखो
उस पार निकलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

जीवन   के   परिवर्तन   संग
नित नये चक्र चलती जा रही
उत्थान  पतन  तो  क्रम ही है
अपार  स्नेह  बढ़ती  जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

जब अंधियारों से डरते थे
मां संग हो चलती जा रही
आज अंधेरों संग ही देखो
किसलय खिलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

हंसी  और  अंश्रुओं  में  देखो
भीगते पलछिन बीती जा रही
वर्षों  को  देखो  दिन सा बीते
श्वासों  में  सब ढलती जा रही।

भविष्य के सपनों संग
व्यथा  बढ़ती  जा रही।

रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

    महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

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