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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नौवाँ-3
क्रमशः.....*नौवाँ अध्याय*(गीता-सार)
पर त्रय बेदन्ह बिधि अनुसारा।
करैं सकाम करम जे सारा।।
     पियत सोमरस भइ अघमुक्ता।
     स्वर्ग सकल सुख चह संजुक्ता।।
पूजहिं मोंहि जग्य करि लोगा।
भोगहिं दिब्य सुरन्ह कहँ भोगा।।
     भोगि सकल सुख स्वर्गय लोका।
     पुन्य छीन जब हो परलोका।।
आवहिं पुनः मृत्यु-जग सरना।
बंधन बँधहिं जनमना-मरना।।
    पर जे करहिं करम निष्कामा।
    भजहिं निरंतर मोरइ नामा।।
भाव अनन्यइ स्थित मों मा।
एकीभाव गाइ मम महिमा।।
     योग-छेम मैं तिन्हकर करऊँ।
     तिनहिं भगत मैं आपुन कहहूँ।।
भक्त सकामी जदपि कि पूजहिं।
मोंहि औरु जे देवन्ह दूजहिं।।
      पर ते मूढ़ औरु अग्यानी।
      पूजन-बिधि ते कबहुँ न जानी।।
जानैं नहिं अधिजग्य स्वरूपा।
मैं परमेस्वर तत्त्व अनूपा।।
      पुनर्जन्म पावैं यहि कारन।
      जनमहिं-मरहिं जथा साधारन।।
देव पूजि नर पावहिं देवा।
पितर पूजि पितरन जन लेवा।।
दोहा-भूत पूजि लहँ भूतहीं,मोंहि पूजि मों पाहिं।
        मुक्त होंहिं भव-बंधनहिं,पुनर्जन्म नहिं ताहिं।।
        मम पूजा हे पार्थ सुनु,परम सुगम हर ठाउँ।
        पत्र-पुष्प-फल-जल सभें,सगुण प्रकटि मैं खाउँ।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372      क्रमशः........

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