*समय निकल जायेगा*
विधा : कविता
दिल से दिल मिलाकर देखो।
जिंदगी की हकीकत जानकर देखो।
अपना तुपना करना भूल जाओगें।
अंत में एक ही पेड़ नीचे आओगें।
तब अपने आपको पहचान पाओगें।।
क्योंकि छोड़कर नसवार शरीर,
एक दिन सब को जान हैं।
जो भी कमाया धामाया
सब यही छोड़ जाना हैं।
फिर भी दौड़ता रहता है
तू यहाँ से वहाँ संसार में।
जिस माया के चक्कर में
वो तेरे साथ नहीं जायेगी।।
न खाता है न पीता है,
और न चैन से जीता है।
खुद तो परेशान रहता है
और घर वाले को भी..।
इसलिए संजय कहता है
कि कर ले कुछ अच्छे कर्म।
जिन्हें तेरे साथ अंत में जाना है।।
घुटन की जिंदगी जीने से तो,
अच्छा है आदि खा के जीओ।
एक साथ हिल मिलकर
अपने परिवार में रहो।
जो भाग्य में लिखा है तेरे
तुझे मेहनत से मिल जाएगा।
पर ज्यादा की लालच में पड़कर,
खुशी वाला समय निकल जायेगा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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