*बेटियाँ होती हैं*
विधा: कविता
ओस कि एक बूँद सी
होती हैं बेटियाँ।
स्पर्श खुरदरा हो तो
रोती हैं बेटियाँ।
रोशन करेगा बेटा तो
एक ही कुल को।
दो दो कुल कि लाज
होती हैं बेटियाँ।।
कोई नहीं है दोस्तों
एक दूसरे से कम।
हीरा अगर है बेटा तो
मोती हैं बेटियाँ।
काँटों कि राह पे
ये खुद ही चलती रहेंगी।
औरो के लिए फूल
बोती है बेटियाँ।।
विधि का विधान हैं यही और
समाज कि है परम्परा।
अपने प्रियो को छोड़,
पिया के घर जाती है बेटियाँ।
बेटी धन पराया होती है,
यही सुनते आजतक आये है।
दर्द विदाई का क्या,
आज समझ में हमें आया है।।
गम और ख़ुशी का रिश्ता कैसा
यह बड़ा ही अजीब है भाई।
हमारी परछाई हम से
ले रही है अब विदाई ……।
करके बेटी का कन्या दान,
मानो सब कुछ अब पा लिया।
और अपने जीवन का एक
सत्य आज से ही जान लिया।।
बेटियाँ तो होती है
दो कुलो कि शान।
जन्म लेकर पलती बड़ी होती
माँ बाप के आँगन में।
तभी तो वो कहलाती है
माँ बाप कि जान।
शादी के बाद हो जाती है
पिया कि जान।
और व्यवहार से समाज में
पहचान बनाकर।
रोशन कर देती है
दो कुलो कर नाम।
इसलिए संजय कहता है
कि बेटियाँ होती है।
हर परिवार कि शान
और सम्मान की प्रतीक।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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