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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मातृ-भूमि*(भारत)
भारत माता के वीर सपूतों,
अपनी धरती का कर लो नमन।
ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी-
कर लो टीका समझ इसको चंदन।।
                  ऐसी माटी तुम्हें.........।।
इसके उत्तर में गिरिवर हिमालय,
जो प्रहरी है इसका अहर्निश।
चाँदनी की धवलिमा लिए-
दक्षिणोदधि करे पाद-सिंचन।।
               ऐसी माटी तुम्हें............।।
इसकी प्राची दिशा में सुशोभित,
गारो-खासी-मेघालय-अरुणाचल।
इसके पश्चिम निरंतर प्रवाहित-
सिंधु सरिता व धारा अदन।।
              ऐसी माटी तुम्हें..............।।
शीश कश्मीर ऐसे सुशोभित,
स्वर्ग-नगरी हो जैसे अवनि पर।
गंगा-कावेरी-जल-उर्मियों से-
देवता नित करें आचमन।।
              ऐसी माटी तुम्हें.............।
पुष्प अगणित खिलें उपवनों में,
मृग कुलाँचे भरें नित वनों में।
वर्ष-पर्यंत ऋतुरागमन है-
लोरी गाए चतुर्दिक पवन।।
            ऐसी माटी तुम्हें...............।।
अपनी धरती का गौरव रामायण,
सारगर्भित वचन भगवद्गीता।
मार्ग-दर्शन कराएँ अजानें-
वेद-बाइबिल का अद्भुत मिलन।।
          ऐसी माटी तुम्हें.................।।
इसकी गोदी में खेले शिवाजी,
राणा-गाँधी-जवाहर-भगत सिंह।
चंद्रशेखर-अटल की ज़मीं ये-
बाल गंगा तिलक का वतन।।
   ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी,कर लो टीका समझ इसको चंदन.....भारत माता के वीर सपूतों.....।।
           ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
           9919446372

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