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डाॅ० निधि त्रिपाठी

*यामिनी ने करवट में काटी* 

यामिनी ने करवट में काटी, 
अम्बर तल पर निशा सगरी, 
झुरमुट तारों के बीच बैठ, 
रही देखती विरहा बदरी ।

स्निग्ध चन्द्र धुधला सा गया, 
हिय पीर समा पराई गई। 
अति कौतुक भौरा चूम गया, 
प्रसून कली शरमाई गई।

झन झन झींगुर झनकार रहे, 
तट तरनी किरनें नाच रहीं। 
इठलाय चली धारा नद की, 
पिय राह मिलन की आस वहीं।

शशि भाल सुशोभित हैं नभ के, 
तारागण बिखरे स्वागत में। 
पिय योग वियोग,सुयोग नहीं, 
यामिनी जलती चाँदनी में।

यामिनी सजी शशि किरनों से, 
दिन सज्जित हुआ रवि रश्मि से,
दिन-रैन मिलन बस पल भर है,
हिय टीस मिटे न दोउ मन से।

स्वरचित- 
डाॅ०निधि त्रिपाठी ,
अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर ।

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