सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नव संवत्सर (स्वागत)

आ गया वर्ष नूतन सभी हों मगन,
सूर्य लेकर नई रौशनी आ गया।
अभी अलविदा बीती रजनी को कह-
हर दिशा में अनूठा नशा छा गया।।

बाग में जो कली अधखिली सी रही,
खिल गई देख मस्ती नए  वर्ष  की।
हुआ मन मगन सुन भ्रमर गीत-गुंजन-
हो गई  दिव्य  वर्षा   परम्  हर्ष  की।।

खेत की सब फसल भी सुनहरी दिखें,
रूप  जैसे  अवनि  का  सँवारा  लगे।
मस्त खशबू  फ़िज़ा को सुगंधित करे-
भाव  मन  में  सुकोमल- दुलारा  जगे।।

सतत धारा सरिता की कल-कल बहे,
नीर  निर्मल  सरोवर  कमल-दल सजे।
 कोपलों से गए सज सभी वन-विटप-
गीत-संगीत  खग-कुल  निरंतर  बजे।।

जिस तरफ़ देखिए नव सृजन ही सृजन,
हो  वनों - उपवनों - पर्वतों  पे  सभी।
प्रकृति का सुहाना सफ़र दिव्यतम यह-
रहे  जग  में  क़ायम, है  जैसा  अभी।।
            © डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                9919446372

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879