सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विजय मेहंदी

" होली के रंग भाईचारे के संग "

होली  आयी - होली   आयी,
ले अबीर  की  झोली  आयी।
आज  न   कोई   राजा  रानी,
आज न कोई  पंडित अज्ञानी।
आज   न   कोई   शत्रु - मित्र,
आज न  कोई  सौम्य  गुमानी।
मिलजुल कर सब खेले होली,
है  आपस मे  सब  भाई-भाई।
होली   आयी    होली   आयी,
ले  अबीर  की  झोली  आयी।
आज   न    कोई    धनी   रंक,
आज  न  कोई  भिक्षुक  दानी।
आज  न   कोई  अग्रज  अनुज,
आज  न   कोई   चोर - इमानी।
आज  न  कोई  अपना  पराया,
आज  न  कोई  गैर  खानदानी।
आज न कोई जाति  विजातीय,
आज न कोई मजहब की बानी।
हिन्दू  मुस्लिम   सिक्ख  इसाई,
आपस   मे   सब   भाई - भाई।
होली   आयी     होली    आयी,
ले  अबीर   की   झोली   आयी।
आज   न    कोई    ऊच   नीच,
आज न कोई  बड़प्पन  नादानी।
आज   न   कोई   पक्ष - विपक्ष,
आज न कोई राजनीतिक बानी।
आज   न   कोई   छूत - अछूत,
आज न कोई पाखण्डी विज्ञानी।
जन - जन   में   मदमस्ती छाई,
तन  - मन   में   है   रंग  समाई।
होली   आयी     होली    आयी,
ले  अबीर   की    झोली  आयी।

कलमकार-विजय मेहंदी ( कवि शिक्षक ) जौनपुर (उoप्रदेश)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

💐🙏🌞 सुप्रभातम्🌞🙏💐 दिनांकः ३०-१२-२०२१ दिवस: गुरुवार विधाः दोहा विषय: कल्याण शीताकुल कम्पित वदन,नमन ईश करबद्ध।  मातु पिता गुरु चरण में,भक्ति प्रीति आबद्ध।।  नया सबेरा शुभ किरण,नव विकास संकेत।  हर्षित मन चहुँ प्रगति से,नवजीवन अनिकेत॥  हरित भरित खुशियाँ मुदित,खिले शान्ति मुस्कान।  देशभक्ति स्नेहिल हृदय,राष्ट्र गान सम्मान।।  खिले चमन माँ भारती,महके सुरभि विकास।  धनी दीन के भेद बिन,मीत प्रीत विश्वास॥  सबका हो कल्याण जग,हो सबका सम्मान।  पौरुष हो परमार्थ में, मिले ईश वरदान॥  कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित)  नई दिल्ली

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें।

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें। विश्व रक्तदान दिवस पर कविता  ==================== रक्तदान    के     भावों    को शब्दों  में  बताना  मुश्किल  है कुछ  भाव  रहे  होंगे  भावी के भावों को  बताना  मुश्किल  है। दानों   के    दान    रक्तदानी   के दावों   को   बताना   मुश्किल  है रक्तदान  से  जीवन परिभाषा की नई कहानी को बताना मुश्किल है। कितनों    के    गम    चले     गये महादान को समझाना मुश्किल है मानव   में    यदि    संवाद    नहीं तो  सम्मान   बनाना   मुश्किल  है। यदि   रक्तों   से   रक्त   सम्बंध  नहीं तो  क्या...

अवनीश त्रिवेदी अभय

*चादर उजली रहने दो* घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। तपते घोर मृगसिरा नभ में, कुछ तो बदली रहने दो। जीवन  के  कितने  ही  देखो, आयाम अनोखे होते। रूप  बदलती इस दुनिया में, विश्वासी  धोखे   होते। लेकिन इक ऐसा जन इसमें, जो सुख-दुःख साथ गुजारे। हार-जीत  सब  साथ सहे वो, अपना सब  मुझ पर वारे। चतुर  बनी  तो  खो जाएगी, उसको पगली रहने दो। घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। मंजिल अभी नहीं तय कोई, पथ केवल चलना जाने। तम कितना गहरा या कम है, वो केवल जलना जाने। कर्तव्यों  की झड़ी लगी है, अधिकारों  का  शोषण है। सुमनों  का  कोई  मूल्य नहीं, नागफ़नी का पोषण है। सरगम-साज नहीं है फिर भी, कर में ढफली रहने दो। घोर  तिमिर  है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। आगे  बढ़ने  की  जल्दी  में, पीछे सब कुछ छोड़ रहें। आभासी  दुनिया  अपनाकर, अपनों से मुँह मोड़ रहें। केवल लक्ष्य बड़े बनने का, कुछ भी हो पर बन जाएं। देखा  देखी...