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गीत - जिसके भाई पहलवानी कराया करें......

उससे हम क्यों भला दिल लगाया करें।  जिसके भाई  पहलवानी  कराया करें।।  उसका चेहरा भी चांद सा प्यारा लगे, पर भाई उसके हैं  जैसे अंगारा जले।  प्यार में पड़ गये तो जां चली जायेगी,   ऐसे  रिश्ते  से  बचके  किनारे  चलें।।   दिल को क्यों बेवजह तड़पाया करें? जिसके भाई पहलवानी कराया करें।   उस गली में कदम क्यों रखें हम कभी,   जिसके भाइय ने घूरा डरे हम सभी। हिम्मत तो थी पर थी जां भी तो प्यारी,    उसके भाई हैं अखाड़े के अधिकारी।   अपनी हड्डियां  क्यों  तुड़वाया करें? जिसके भाई पहलवानी कराया करें।।   प्यार में पड़ गये तो बड़ा रिस्क है  उसके भाई जमीं के खिसका डिस्क है।   फंस गये जो अगर तो गए काम से,   भाई उसके निपट लेंगे बड़े आराम से।   हम जवानी को यूं ही क्यों जाया करें,   जिसके भाई पहलवानी कराया करें।। उससे हम क्यों भला दिल लगाया करें।  जिसके भाई पहलवानी कराया करें।।         - दयानन्द त्रिप...

गीत- राम नाम की ज्योति जली है...... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- राम नाम की ज्योति जली है...... राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल मन में दीप जलाए। हर कोना अब गूंज उठा है, सिया-राम के गुण गाए।। धरा - धाम  पर  राम पधारे,  संग लिए  करुणा की सेना। न्याय खड़ा हर राजमार्ग पर,  प्रेम बना अब  धर्म सा सेना। शक्ति साधना  नारी रूपा,  हर  नारी  ही  दुर्गा  माने। सीता  की  मर्यादा  लेकर,  रावण से अब युद्ध हैं ठाने। शक्ति- प्रेम की ज्योति जली है, जग सारा आलोकित हो जाए। राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल मन में दीप जलाएं।। नवमी आई  राम-जन्म की,  पुण्य  पवन  हर  दिशा बहे। मन  के   रावण   को   मारो, ऐसा  हर  दिल  आज  कहे। चलो चलें फिर साथ सभी हम,  फिर  वो  अयोध्या   ले   आएं, जहां  न  कोई  भेद  रहे  अब,  जिससे  सबमें   राम  समाएं। हर नयनों में राम बसे हों, सबका मन मंगल ही गाए।   राम नाम की ज्योति जली है, व्याकुल ...

मन होता है घर जाने को...... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

  गीत - मन होता है घर जाने को...... (पलायन की पीड़ा पर आधारित गीत है। जो एक श्रमिक के अंतर्मन की व्यथा को व्यक्त करने का प्रयास है।) धूल भरे इस जीवन पथ पर, छाले  हैं  हर  पग  की  रेखा। शहर दिखा सपनों का सागर, पर निकली इक सूखी रेखा। आँखों में जल दिल में उम्मीदें, थोड़ी  सी  रोटी है  थोड़ा चैन। वो माँ की  गोदी  फिर  पुकारे, जो   दे   दे   जीवन  को   रैन। वो तुलसी चौरा बुलाता है, दीया फिर से जलाने को। व्याकुल मन है मत रोको, मन होता है घर जाने को।। माटी की खुशबू से बढ़कर, कोई  इत्र  नहीं  लगता है। शहरों  की  रौशनी  में  भी, गाँवों का चाँद चमकता है। बचपन की आहटें आज भी, कानों  में  गूँज  रचाती  हैं। नीम  की  ठंडी  छाँव  तले, स्मृतियाँ झूला - झुलाती हैं। पिता के हल की मूठ पकड़, फिर खेतों में जाने को। व्याकुल मन है मत रोको, मन होता है घर जाने को।। कल फिर लौटूँगा निर्माणों में, ईंटों  से   सपन  सजा...