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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नई कविता "सजल नयनों का छाप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ"...पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें।

नई कविता "सजल नयनों का छाप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ"...पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें। आज मैं चुप-चाप हूँ..... हृदय के पोर में कसक सा भरा तन - मन दोनों शिथिल सा परा बादलों की उमड़-घुमड़ छाप हूँ,             आज मैं चुप-चाप हूँ। रात भी दिन सा जला तम हृदय का हो भला प्रेम निश्छल विह्वल आप हूँ,         आज मैं चुप-चाप हूँ। विरह का अपना मजा है मिलन का  पल  सजा है सजल नयनों का छाप हूँ,     आज मैं चुप-चाप हूँ। रचना दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

नई कविता "यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ".....क्लिक कर पूरी कविता पढ़े।

नई कविता " यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ".....क्लिक कर पूरी कविता पढ़े। यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ..... जीवन में आपाधापी है संकट  है  मन  पापी है। बैठ घोर तम में सोचा करता हूँ मन  में  द्वंद  चलाया  करता हूँ यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ। शूल बड़े हैं जीवन की राहों में कंटक  हैं  प्रतिपल   बाहों  में। निर्मम  छाया  से  टकराता  हूँ नयनों  के  मृदुल  खारे जल से पावन   हो   जाया   करता   हूँ यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ। मैं  अकिंचन  जीवन  पथ में  प्राण निछावर करने आया हूँ। बीते पलछिन को भुलाया करता हूँ उर के घातों को समझाया करता हूँ यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ। रचना दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

अतंरराष्ट्रीय योग दिवस पर अंतरराष्ट्रीय योग प्रशिक्षिका कृष्णादेवी पाण्डेय जी नेपाल द्वारा काव्यरंगोली फेसबुक समूह पर आनलाइन योग प्रशिक्षण दिनांक 21 जून 2020 दिन रविवार प्रात: 6:30 से लाइव देखें।

अतंरराष्ट्रीय योग दिवस पर अंतरराष्ट्रीय योग प्रशिक्षिका कृष्णादेवी पाण्डेय जी नेपाल द्वारा काव्यरंगोली फेसबुक समूह पर आनलाइन योग प्रशिक्षण दिनांक 21 जून 2020 दिन रविवार प्रात: 6:30 से लाइव देखें। योग, भारत में योग का इतिहास बहुत पुराना है। शास्‍त्रों में भी योग का भरपूर जिक्र मिलता है। ऋग्‍वेद में भी योग की संपूर्ण व्‍याख्‍या की गई है।   27 सितंबर 2014 में संयुक्‍‍त राष्‍ट्र महासभा के भाषण में माननीय मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जी ने अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाए जाने की अपील की। इसके उपरांत अमेरिका ने 123 सदस्‍यों की बैठक में अंतर्राराष्‍ट्रीय योग दिवस का प्रस्‍ताव पास कर दिया। अमेरिका द्वारा अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस मनाए जाने की अपील करने के बाद, 90 दिनों के अंदर 177 देशों ने अंतर्राराष्‍ट्रीय योग दिवस का प्रस्‍ताव पारित कर दिया। 21 जून 2015 को पूरे विश्‍व में पहली बार अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया गया।    योग का उद्भव भारत से ही माना जाता है। भारत में योग का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना बताया गया है। भार‍त में स्‍वामी विवेकानंद ने योग की शुरुआत बहुत पहले कर दी थी। स्‍वामी जी ने अपने

भारत वीरों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि समर्पित, "सीमाएं जब जल उठती हैं, तो मानव का ही ह्रास होता है" पूरी कविता को क्लिक कर पढ़ेंं।

भारत वीरों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि समर्पित, "सीमाएं जब जल उठती हैं, तो मानव का ही ह्रास होता है" पूरी कविता को क्लिक कर पढ़ेंं। सीमाएं  जब  जल  उठती  हैं, तो मानव का ही ह्रास होता है एक दूसरे देशों के जनमानस में घोर   तनाव   बढ़   जाता   है। करने  दो  जो  वे  करते हैं अब सम्भव नहीं सुहाता है आँख   दिखाये   कोई   भी तो  चीर-फाड़  हो  जाता है। बीस जवानों के लहू के बदले कई सौ को मार गिराना होगा एक इंच भी सीमाएं खिसकाईं हैं तो किमी में सीमा बढ़ाना होगा। निर्धारित  सीमाओं  के  बदले युद्धों  में  आ  जाना ठीक नहीं देशों का अनाधिकृत चेष्ठा रखना जन जीवन  के  लिए ठीक  नहीं। जब सबकी सीमाएं निर्दिष्ट हैं तो रोज बिगुल क्यों बजाते हैं क्या सीमाएं जीवित मानव हैं जो  प्रतिदिन   खीसक  जाते  हैं। ऐसा   देशों   में   क्या   होता  है सीमाओं पर जवान मारे जाते हैं कुटिल देश ही जन को भ्रमित कर युद्ध  का  प्रदर्शन  कर दिखाते हैं। हम राम-कृष्ण सा जीवन जीने वाले हैं बढ़े आतंक से लंका जलाये जाते है यदि  फिर  भी  समझ नहीं पाते हो तो घुस लंका में रावण भी मारे जाते हैं।

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें।

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें। विश्व रक्तदान दिवस पर कविता  ==================== रक्तदान    के     भावों    को शब्दों  में  बताना  मुश्किल  है कुछ  भाव  रहे  होंगे  भावी के भावों को  बताना  मुश्किल  है। दानों   के    दान    रक्तदानी   के दावों   को   बताना   मुश्किल  है रक्तदान  से  जीवन परिभाषा की नई कहानी को बताना मुश्किल है। कितनों    के    गम    चले     गये महादान को समझाना मुश्किल है मानव   में    यदि    संवाद    नहीं तो  सम्मान   बनाना   मुश्किल  है। यदि   रक्तों   से   रक्त   सम्बंध  नहीं तो  क्या  भाव  बताना  मुश्किल  है पुण्यदान   काम    न     कर    सके जीवन  ज्योति  जलाना  मुश्किल है। रक्तदान के महा शिविरों में बस  पुण्य काम ही होते हैं, मृत्यु को वरण करने  वाले तेरे  ही  रक्तों  से  जीते  हैं। मौलिक रचना:- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

"ये जीवन लहर है, कुटिल हर डगर है" रामाशीष तिवारी शजर की पूरी रचना क्लिक कर पढ़ेंं।

"ये जीवन लहर है, कुटिल हर डगर है" रामाशीष तिवारी शजर की पूरी रचना क्लिक कर पढ़ेंं। ये जीवन लहर है     कुटिल हर डगर है         मग़र साथ हरदम,              मेरा हमसफर है। न इसकी खबर है      कि जाना किधर है          न है ख़ौफ़ इसका,             क़ि मुश्किल सफर है। कहीँ पर निशाना       कहीँ पर नज़र है            न घर है तुम्हारा,                 न  मेरा  ही दर है। उसी का करम है     उसी की उमर है,          क़लम है ये जिसकी               उसी  की  नज़र है। है मंज़िल को पाना      तो थकना मना है          जो रुकता नही है               वो निर्भर,निडर है। जो थकता नहीँ है       जो रुकता नहीँ है          जो थमता नही है               वही तो "शजर" है।                   वही तो "शजर" है।       मौलिक रचना:- रामाशीष तिवारी शजर सर्वाधिकार सुरक्षित@शजर

महराजगंज : पर्यावरण दिवस पर आयोजित काव्य गोष्ठी में दयानन्द त्रिपाठी को मिला सम्मान

महराजगंज : पर्यावरण दिवस पर आयोजित काव्य गोष्ठी में दयानन्द त्रिपाठी को मिला सम्मान  जनवादी पत्रकार संघ के तत्वाधान में जनवादी परिचर्यम साहित्य संघ मध्यप्रदेश के अंतर्गत विश्व पर्यावरण दिवस को आयोजित ऑनलाईन काव्यगोष्ठी कार्यक्रम के अंतर्गत 425 से अधिक साथियों/सदस्यों/रचनाकारों द्वारा प्रतिभागिता की गई जिसके अंतर्गत पर्यावरण पर आधारित रचना/विचार ऑडियो व लेखन के माध्यम से प्रेषित करने हेतु मंच द्वारा प्रशस्ति पत्र भेंट कर 94 रचनाकारों को सम्मानित किया जा रहा है इसी क्रम में  उत्तर प्रदेश महराजगंज से दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को प्रशस्ति पत्र देकर आज सम्मानित किया गया । सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं जिन्होंने इस आयोजन में अपनी सहभागिता देते हुए अपना बहुमुल्य समय निकाल कर इस आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया तथा मंच को गौरवान्वित किया। आयोजन का मुख्य उद्देश्य यह था कि; ◆हम सभी अपनी धरा को हमेशा स्वच्छ बनाये रखेंगे। ◆ हम अपनी धरा पर पानी का बचाव करेंगे व जल सुरक्षित करेंगे। ◆ हम अपनी धरा को प्रदूषित होने से बचाएंगे। ◆ हम सभी मिलकर वृक्षारोपण को बढ़ावा देंगे। कार्यक्रम सम्पादक व संचालन मण्

केरल की मानव को शर्मसार करने वाली घटना पर कविता जिसमें गर्भवती हथिनी को फल में पटाखा खिलाकर उसकी हत्या की गयी रचना प्रेषित है "हृदय द्रवित हो गया!" क्लिक कर पूरी रचना पढ़ें।

केरल की मानव को शर्मसार करने वाली घटना पर कविता जिसमें गर्भवती हथिनी को फल में पटाखा खिलाकर उसकी हत्या की गयी रचना प्रेषित है "हृदय  द्रवित  हो गया!" क्लिक कर पूरी रचना पढ़ें। मानवता    को   घोर   पी  गया, शर्मसार  हृदय  द्रवित  हो गया! इन हत्याओं की कब परिणति होगी जो  खड़ी  जून  में   जीवन  की  थी माँ   की   ममता   को   घोंट    दिया भूख के बदले उदर में पटाखा फोड़ दिया। क्या  अब   नरपिचाश   ऐसा   होगा जीवों पर  कुटिल  घात  करता होगा माँ की ममता  को  कलंकित  करता है अपने जन्मों पर प्रश्नचिन्ह करना होगा। वह   दर्द   से   आँसुओं   को  पी  गयी  बहती नदी के नीर में चिरनिद्रा में सो गयी तड़प कर अपने को विसर्जित कर दिया आँखों में लिये गर्भस्थ सपने घुट खो गयी। क्षमा   करना   सभी   को   हे!  प्रकृति, व्याकुल फफक कर रो पड़ा आँचल तेरा जन्म  से  पहले   ही  अजन्मा  सो  गया हत्या की नई परिभाषा गढ़ा पालक तेरा।   मौलिक रचना:- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज,  उत्तर प्रदेश।

साहित्यिक मित्र मण्डल जबलपुर मध्यप्रदेश के प्रतियोगिता 31 मई, 2020 के द्वारा प्रथम स्थान के साथ सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र मिला, क्लिक कर पूरी रचना पढ़े।

साहित्यिक मित्र मण्डल जबलपुर मध्यप्रदेश के प्रतियोगिता 31 मई, 2020 के द्वारा प्रथम स्थान के साथ सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र मिला, क्लिक कर पूरी रचना पढ़े।  """""""""""""""""""""""""""""""""""" शीर्षक-मन ठहरा मन बहता ==================== मन ठहरा मन बहता है,   मन ही मन में कुछ चलता है। मन के भावों से ही जीवन      बन सुन्दर और निखरता है। पल में यहाँ पल में वहाँ           मन ही मन में विचरता है। मन पंछी का उन्मुक्त गगन में,   चाहों की लम्बी उड़ान भरता है। मन में उठते पीड़ा को       मन ही जाने मन समझता है। हो द्रवित कष्ट हृदय जब    आखों से नीर लिये छलकता है। मन चंचल रुक जाये तो         जीवन संकट बन जाता है। जीतहार के चक्कर में व्याकुल       मानव मन ही पीस जाता है। रचना दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल       महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता "एक एक वृक्ष सभी लगा दें, तो सुन्दर होगा राहों में" प्रस्तुत है क्लिक कर पूरी कविता पढ़ेंं।

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता "एक एक वृक्ष सभी लगा दें, तो  सुन्दर  होगा  राहों  में" प्रस्तुत है क्लिक कर पूरी कविता पढ़ेंं। आया  है  मानसून  सुहाना  खड़ी   जून   के   भावों  में  एक एक वृक्ष सभी लगा दें तो  सुन्दर  होगा   राहों  में। आज   प्रकृति   जो  कूपित  है मानव   के   कुटिल   चालों  से पर्यावरण  को  दूषित  कर  रहा निजी  स्वार्थ  के  विकरालों  से। जल, थल, नभ को करें सुरक्षित भौतिकवादी      जंजालों      से दिव्यता     से    भरी    धरा    है अनुपम बगियों  के  घुघुरालों से। युद्धों    का    आगाज   सदा  करते   हरबा    हथियारों  से धरा   नहीं  न   मानव   होगा तो  क्या  करोगे  चौबारों  से। जीवन   साँस   तभी   तक  है जब प्रकृति  दे रहा ममत्व  हमें पर्यावरण    का    होगा   दोहन तो संकट का घेरेगा  घनत्व हमें। जब-जब प्रकृति  का  हुआ दोहन मानव  अस्तित्व  घिरा  संकट  में यदि अब प्रकृति को नहीं  समझे तो फिर कोई कोरोना होगा धरा में।     मौलिक रचना:- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

गंगा दशहरा के अवसर पर माँ गंगा को समर्पित कविता.."पावनी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ, राजा भगीरथ सा परमार्थी नभ को छुआ।"-दयानन्द त्रिपाठी की रचना को लिंक पर क्लिक कर पूरी पढ़े।

गंगा दशहरा के अवसर पर माँ गंगा को समर्पित कविता.."पावनी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ, राजा भगीरथ सा परमार्थी नभ को छुआ।"-दयानन्द त्रिपाठी की रचना को लिंक पर क्लिक कर पूरी पढ़े। यदि पुनीत हो लक्ष्य सभी का तो  नभ  भी  झुक  जाता  है। माँ    गंगा      का    अवतरण धरा    पर     हो    जाता   है। पावनी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ, राजा भगीरथ सा परमार्थी नभ को छुआ। अविरल, कोमल, निर्मल गंगा ब्रम्ह  कमंडल  से   प्रगट  भये रोकेगा    उनका   वेग    कौन यह सोच सभी जन सहम गये। अश्वमेध से महाविजय को सगर सुत निकले, श्रृषि अपमान के तपअग्नि से भस्म हो चले। भगीरथ  ने  की  घोर  तपस्या शिव  जी  का  आशीष  लिया शिव  ने  जानी  पुनीत मनोरथ जटा में गंगा के वेग रोक लिया। कपिल मुनि के शरणागत हो उपचार लिया, सुतों के उद्धार हेतु श्रृषि से मर्म जान लिया। राजा    भगीरथ   की   तपस्या   का फलीभूत  होने  का  अवसर  आया। माँ     गंगा     के     थमे     वेग   का, धरा पे अमृत बहने का अवसर आया। घोर तपस्या ब्रम्हा की सगर परपौत्र ने कर दिखाया, भगीरथ से प्रसन्न ब्रम्ह ने वरदान दे समुचित पथ दिखाया ।