नई कविता "सजल नयनों का छाप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ"...पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें। आज मैं चुप-चाप हूँ..... हृदय के पोर में कसक सा भरा तन - मन दोनों शिथिल सा परा बादलों की उमड़-घुमड़ छाप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ। रात भी दिन सा जला तम हृदय का हो भला प्रेम निश्छल विह्वल आप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ। विरह का अपना मजा है मिलन का पल सजा है सजल नयनों का छाप हूँ, आज मैं चुप-चाप हूँ। रचना दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।