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संदेश

जून, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अजय आवारा

जा जा रे कागा, पिया का संदेशा ले आ रे, हाल मेरा तू उन्हें बता आ रहे। कटे न रात बैरन ये मेरी, दुपहरी भरी कैसे गुजारुं मैं। तू दूर जा बैठा इतना मुझसे, रह रह कर तुझे पुकारूं में। तड़प दिल की उसे बता आ रे जा जा रे कागा.... वो कर के गया था वादा मुझसे, भरोसा उसका मैंने क्यों किया। बीत गया सावन तो रो रो कर, जाने ना वो, रत जगा क्यों किया। मेरी पीड़़ तू  उसे सुना आ रे, जा जा रे कागा...... बिछौना भी बैरी पूछे मुझसे, कौन गांव तेरा साजन गया। मांग भरूं मैं उसके नाम की, जीवन मेरा क्यों सब सून भया। आखिरी सही, पाती एक ले आ रे जा जा रे कागा.....  अजय "आवारा"

विजय कल्याणी तिवारी

" काटों की सेज " ------------------------ बड़ भागी तन यह मिला रख मन इसे सहेज जो भूला हरि नाम को जग कांटों की सेज । सुख दुख बिकते हर जगह ले ले इस संसार सुख नगदी बिकता यहाँ पर दुख बिके उधार। इस उधार के फेर ने बदला मन को मीत कटुता कलह पनप रहा घटा हृदय से प्रीत। अपनों से मुख मोड़ कर निज सुख रहा तलाश भूल रहा संसार मे सबका अटल प्रवास । इस तन का रख मान तू यह ईश्वर की भेंट मूढ़ समझने है लगा जीवन को आखेट । सुख निज हेत वरण करे बांटे दुख दिन रात जाने कौन कुचक्र मे फंसा हुआ है तात् । अंतिम गति संसार मे सबकी एक समान सबसे पहले भूलता यही बात इंसान। इसी भूल के दण्ड से करे नरक मे वास मूरख चुनता है सदा निज का कठिन प्रवास। विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

एस के कपूर श्री हंस

विषय।।विश्व योग दिवस।।* *(21        06          2022)* *शीर्षक।।योग भगाये रोग।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 योग से   बनता    है   मानव शरीर   स्वस्थ आकार। योग एक  है   जीवन      की पद्धति स्वास्थ्यआधार।। योग से निर्मित होता तन मन और  मस्तिष्क   सुदृढ़। तभी तो   हम कर   सकते  हैं हर जीवन स्वप्न साकार।। 2 भोग नहीं योग आज  की बन गया एक.    जरूरत. है।    रोग प्रतिरोधक क्षमता  से  ही जीवन बचने की सूरत है।। सात वर्ष पूर्व सम्पूर्ण विश्व को  भारत ने दिखाया  रास्ता। आज तो पूरी दुनिया में भारत बन गया योग की मूरत है।। 3 नित प्रति  दिन व्यायाम  ही तो योग का एक  रूप    है। व्यवस्थित हो  जाती  दिनचर्या बदलता    स्वरूप     है।। निरोगी काया आर्थिक  स्थिति भी होती योग  से सुदृढ़। योग तो सारांश में तन मन की सुंदरता का प्रतिरूप है।। *रचयिता।।एस के कपूर"श्री हंस"* योग दिवस पर विशेष।।* *।। 21 06  2022 ।।* *।।करो योग रहो निरोग।।* *।।विधा।।हाइकु।।* 1 योग से   काया मनुष्य हो     निरोगी स्वास्थ्य ये लाया 2 योग करता दृढ़ता    है     बढ़ती रोग हटता 3 योग आहार शुद्ध   होते विचार स्वस्थ आकार 4 अक्षय ऊर्जा योग   

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *सम्यक* ----------------------- सम्यक सहज है पूर्णता , समझो सदा ही गूढ़ता । मानक यही है मानता , मापन नियम जो जानता।। सम्यक मनुज का ज्ञान हो, यह जैन जन संज्ञान हो । दर्शन व बौद्धिक साधना , उत्कृष्ट मानव कामना ।। सम्यक बनाओ धीरता , अन्तर बसाओ वीरता । सौन्दर्य सूचक भावना , जब पूर्ण हो मन कामना ।। शुचि शब्द संतों का वरद , परिदृश्य होता अति सुखद। नव तेज मूलक दिव्यता , सम्यक बसे हिय सभ्यता ।। सम्यक विधा सम्यक नियम , सम्यक विभा  प्रिय अति परम। समता सरस संधान हो , सम्यक नियम संज्ञान हो।। सम्यक नियति आधार है , यह जैनियों का सार है । सम्यक सुखद मन वास हो , सम्यक मधुर विश्वास हो ।। * मधु शंखधर 'स्वतंत्र' * *प्रयागराज* *20/06/2022*

रामनाथ साहू ननकी

*हाँ मैं भारत हूँ* --- 18/06/2022 आधार -- *थेथी छंद* ( मात्रिक ) आदि त्रिकल  (14/10 ) , पदांत - 112 ध्यान ज्ञान चरमावस्था , तुरिय तथागत हूँ । कर्म काण्ड मंत्र प्रणेता , हाँ मैं भारत हूँ ।। स्त्रोत अनगिनत हर संभव , नवयुग प्रेक्षक मैं । मान मिला मुझको जग में , नव अंकेक्षक मैं ।। चार वेद पढ़कर देखो , पथ आध्यात्मिक हैं । मंत्र सूक्त पवित्र स्तुतियाँ , याज्ञिक आत्मिक हैं ।। सामवेद यजुर्वेद ये , मंत्र संकलित हैं । शिष्ट अथर्व वेद द्रष्टा , ऋग्वेद फलित हैं ।। ऋचा सूक्त से ये सज्जित , अष्टक मण्डल हैं । आर्ष ग्रंथ के उद्घाटक , सहस कमल दल हैं ।। हस्तलिखित इन प्रतियों में , अद्भुत ओजस है । बद्ध संहिता व्यास रचित , जग हित औरस है ।। पुरुष जन्य नहीं वरन यह , नारी शामिल है । पूर्वकाल से ही मादा , नर के काबिल है ।। यज्ञ भूमि का प्रिय सर्जक , कुशल क्रमागत हूँ ।। चित्य सदा मेरे हर गुण , हाँ मैं भारत हूँ ।।              ----- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                           *मुरलीडीह* !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

कुण्डलिया(वर्षा) होती जब बरसात है, नाचे  वन  में  मोर, उमड़-घुमड़ नभ चपल घन, बरसें चारो-ओर। बरसें चारो-ओर,दामिनी तड़-तड़ तड़के, दादुर का हो शोर,विरहिणी का उर दहके। कहें मिसिर हरिनाथ,दिखे भी चपला-ज्योती, रहता  अन्नाभाव, नहीं  यदि  वर्षा  होती।। मिलती वर्षा से खुशी,कम हो गर्मी-ताप, रिम-झिम बूँदें ही बनें,सुख-गृह अपनेआप। सुख-गृह अपनेआप,कृषक खेतों में जाते, मन में रख विश्वास,नई नित फसल उगाते। कहें मिसिर हरिनाथ,कली आशा की खिलती, जब होती बरसात,प्रसन्नता अतिशय मिलती।।             © डॉ0हरि नाथ मिश्र                  9919446372

नूतन लाल साहू

ये कैसी विवशता है सब प्राणियों में श्रेष्ठ है मानव ज्ञान भी बड़ा विशाल है फिर भी आत्महत्या क्यों करते है जबकि दुसरे प्राणियों को नही देखा है ये कैसी विवशता है। ज्ञान मिला भगवान मिला जीवन में अचानक सब कुछ मिला पर ऐसी कौन सी शक्ति है जिसके कारण हम,आत्महत्या की ओर खींचे चले आते है ये कैसी विवशता है। कर्मो की खेती में हमनें न जाने क्या क्या बोया था पिछले जन्मों को भूलाकर सुख के झरनों को बहाया है इस देह से करो सबकी सेवा तू क्यों भया अज्ञानी ये कैसी विवशता है। तोड़ दें मोह माया के बंधन छोड़ दें झूठे धंधे चला जा प्रभु जी के शरण में जिन चरणों में सुख ही सुख है सुर दुर्लभ मानव तन पाकर दृष्टा बनो जगत का। सब प्राणियों में श्रेष्ठ है मानव ज्ञान भी बड़ा विशाल है फिर भी आत्महत्या क्यों करते है ये कैसी विवशता है। नूतन लाल साहू

मार्कण्डेय त्रिपाठी

भिखारिन लोकल ट्रेन के डिब्बे में वह , अक्सर हमको दिख जाती है । उम्र नहीं ज्यादा है उसकी , मौन बहुत कुछ लिख जाती है ।। नंगे पांव घूमती रहती , गोदी में बच्चा लटकाए । कुछ पैसों को बजा बजाकर, सदा मांगती मुंह लटकाए ।। यह बच्चा क्या इसका ही है, या यह भी है एक तरीका । ऐसे प्रश्न उठते मन में , फिर भी किया न इस पर टीका ।। गमछे में से नन्हा बच्चा , टुकुर, टुकुर सब देख रहा था । कभी सरक जाता था उससे , क्रूर नियति का लेख सहा था ।। क्या सचमुच ये दीन बहुत हैं, या सब कुछ इनका है नाटक । सबकी अपनी सोच अलग है , बंद करो चिंतन का फाटक ।। क्या लेना, देना है तुमको , जाओ, तुमको जहां है जाना । इनके चक्कर में मत पड़ना , बड़ा भ्रमित,इनका अफसाना ।। द्वंद्व छिड़ गया मन के भीतर, वह पीड़ा कैसे बतलाऊं । क्या यह भारत का भविष्य है, इसको कैसे चलन सिखाऊं ।। एक नए भारत का सपना , देख रही है जनता सारी । जिसमें सबको मिलेगी रोटी , नहीं रहेगा कोई भिखारी ।। पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक सच में, पहुंचेगी जीवन की सुविधा । संकल्पित जन मानस हो तो, मिट जाती है सारी दुविधा ।। दिल में जितना करुण भाव है, पाकेट में उतने ना पैसे । मध्यमवर्ग

संजय जैन बीना

ख्वाबों से चैन मिलता है विधा : कविता बहुत बेचैन रहकर के जीआ हूँ अब तक मैं।  तन्हाईयों ने भी मेरा दिया है साथ इसमें।  तभी तो अव्यवस्थित बना रहा मेरा जीवन।  किसे मैं दोष दू इसका नहीं कर सका फैसला।।  बहुत मायूस जब होता हूँ तो चला जाता हूँ मदरालय।  की शायद भूल जाऊंगा  मैं गम और तन्हाईयां।  मगर ये भी मेरा एक  भ्रम सा ही साबित हुआ।  क्योंकि मेरी स्थित में तो कोई परिवर्तन नहीं हुआ।।  बस अब तक जी सका हूँ अपने ख्यावों के कारण।  जो सोने पर मेरे दिलमें  अक्सर आते जाते है।  फिर उन्हीं के सहारे अपनी तन्हाईयां मिटा लेते है।  और दिन की बेचैनियों से निजात ख्वाबों से पा लेते।।  जय जिनेंद्र संजय जैन "बीना" मुंबई 20/06/2022

मन रे छोड़ दे भटकन बच्चों को पढ़ाना है... तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है... दयानन्द त्रिपाठी मुंतज़िर

गीत- मन रे छोड़ दे भटकन बच्चों को पढ़ाना है.....          (तर्ज - सजन रे झूठ मत बोलो.....)   मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है...  तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है... दिनकर तरस खाओ मौसम को सुहाना कर निष्ठुर भले हो तुम जाना बच्चों के है घर-घर जाना बच्चों के है घर-घर सभी जन को जगाना है मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है..... बच्चों आ भी जाना तुम सरकारी सुविधा संग पढ़ाते हैं बड़े   निष्ठुर   हैं   ये  मास्टर   मिड  जून   बुलाते  हैं मास्टर मिड जून बुलाते हैं कहते भविष्य बनाना है मन  रे   छोड़  दे  भटकन   बच्चों  को   पढ़ाना  है... ज्ञान बल को बढ़ा करके तिमिर उर का मिटा जाओ पढ़ों बढ़ों सरकारी से तुम प्राइवेट से ना छल जाओ प्राइवेट से ना  छल जाओ  ना  बहकावे  में  आना है मन  रे   छोड़  दे  भटकन   बच्चों  को   पढ़ाना  है... ट्रांसफर की खबर आतीं खबर खबरें ही रह जातीं तपन खबरों की सुन-सुन कर बीबी भी पक जातीं बीबी भी पक जातीं मुंतज़िर आदेश कब आना है? मन  रे  छोड़  दे  भटकन  बच्चों  को  पढ़ाना  है..... तपन कितनी भी बढ़ जाए स्कूल खुलने वाला है..... मन  रे  छोड़  दे