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चिंतन विषय पर नयी रचना प्रस्तुत है...चिंतन दिन रात करता हूँ....क्लिक कर पूरी रचना पढ़े।

चिंतन विषय पर नयी रचना प्रस्तुत है...चिंतन दिन रात करता हूँ.... चिंतन_दिन_रात_करता_हूँ...       मैं, स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ कभी - कभी किसी  विषय विशेष पर स्वयं ही गम्भीर वाद - प्रतिवाद करता हूँ हो गयी जो मूल का भूल  उन पर हमेशा पश्चताप करता हूँ।    मैं, स्वयं चिंतन दिन-रात करता हूँ।। मेरा साथी अपना  चिंतन और मैं ऐसी चुनौती को स्वीकार करता हूँ बनूँ अपनी आत्मा का दर्पण पारदर्शी हो मेरा चिंतन  ऐसा दूरदर्शी प्रयास करता हूँ।    मैं, स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।। कदाचित विचलित होऊँ समस्याओं के विलोम प्रभाव से इस हेतु बनाने को सम्बल बाती सा जलकर  प्रकाश फैलाने का स्वयं से वादाकार करता हूँ।    मैं, स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।। हासिल करो तुफानों को  जितने का हुनर जिन्दगी अजायबघर न बने भटकना न पड़े परिकल्पनाओं में अस्तित्वहीन न हो चिंतन कल्पनाओं में सजीव होऊँ नि:शब्द न बनूँ, नितांत बन व्याकुल हो निशांत सा दर्पण  बनने का प्रयास करता हूँ।  मैं, स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।। दयानन्द त्रिपाठी    व्याकुल लक्ष्मीपुर, महराजगंज,  उत्तर प्रदेश।

आधुनिक कवियों पर एक नई रचना व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत है..एक सच्चा कवि हूँ...

आधुनिक कवियों पर एक नई रचना व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत है..एक सच्चा कवि हूँ... एक सच्चा कवि हूँ.... एक सच्चा कवि हूँ खुशबू को छोड़ सभी हूँ गोबर जैसा पोताड़ा हूँ जंधिये का नाड़ा हूँ  कविता का बिगाड़ा हूँ  रवि की पकड़ से दूर का सभी हूँ एक सच्चा कवि हूँ।। झूठ बोलता नहीं  सच्चाई मेरा रास्ता नहीं  साहित्य से कोई वास्ता नहीं उट - पटांग कविताओं का जन्मदाता हूँ  प्रतिभा का समेशन कर बना कवि हूँ  बाथरूम से निकला अभी हूँ एक सच्चा कवि हूँ ।। बे पेदीं का लोटा हूँ टूटे हुए सोल का फटा हुआ जूता हूँ प्रत्येक कविता का सर्जरी कर  मार्ग से भटका देता हूँ  कविता - लिख सुनाने का चेष्टा करता हूँ  साहित्य का सफोकेटा हूँ - 2  ये मेरी पुरानी बिमारी है  मैं डाक्टरों के लिए परेशानी हूँ इस देश में पागल खाने हैं कम  पागल हैं ज्यादा  इसीलिए कविता करने पर हूँ आमादा काव्य - दंगल का कभी  न दूर होने वाला डिफेक्ट हूँ  आधुनिक कवि के  चरित्र में हमेशा परफेक्ट हूँ इस कारण  माइन्ड का दिल से कनेक्श नहीं प्रेम-पूजा, साहित्य सेवा  भक्ति - साधना से दूर ट

कोरोना काल में लाकडाउन पर रचना, इस युग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा, जीवन पर अब अभिमान हो रहा, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ.....क्लिक कर पढ़े।

कोरोना काल में लाकडाउन पर रचना, इस युग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा, जीवन पर अब अभिमान हो रहा, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ.....क्लिक कर पढ़े। घर में रह तूँ, घर में रह तूँ..... कलयुग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा,  जीवन पर अब अभिमान हो रहा ।  घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।। ना तेरा है ना मेरा है,  यहाँ सब अपना - अपना है ।  यह मिलता है और खोता है,  फिर काँहें को तूँ रोता है ।। इसकी सच्चाई जान के भी, क्यूँ आंखे खोल के सोता है ।  इसको ले लूँ उसका ले लूँ ,  पर तेरे बाद ये किसका है ।। इसको दे दूँ उसको दे दूँ ,  यह तेरा है ना उसका है ।  तूँ खो जाने पर रोता है ,  हंसता है मिल जाने पर तूँ।। घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।। यह भूल गया है तूँ शायद,  क्या जीवन को पाकर खोना है?  जब तेरा-मेरा जन्म हुआ जग में,  तो पैदा होकर रोया है ।। हाथों में तेरे कुछ ना था,  यह खाली था तेरे-मेरे तन जैसा ।  नाजुक सी तेरी काया थी ,  निर्मल , पवित्र तेरा-मेरा मन भी था ।। कोई तेरी-मेरी पहचान न थी,  पहचान बनी तेरे-मेरे कर्मों से ।।  भाषा का तुझको ज्ञान न था ,  अंजान था हर बातों से तूँ ।  घर मे

नई रचना "मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ.....क्लिक कर पढ़े।

नई रचना "मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ.....क्लिक कर पढ़े। मैं ,  स्वयं से संवाद करता हूँ  कभी - कभी किसी  विशेष मुद्दे पर  गम्भीर वाद - विवाद करता हूँ  हो गयी जो गलतियां अतीत में  उनका पश्चाताप करता हूँ           मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ ।  मेरा साथी अपना       बातें मैं इससे दिनरात करता हूँ  अपनी आत्मा का बनूँ दर्पण मैं पारदर्शी हो मेरा अस्तित्व ऐसा अडिग प्रयास करता हूँ          मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ ।  कदाचित विचलित होऊँ  समय के विलोम प्रभाव से  इस हेतु बनाने को सम्बल  अपने पौरूष का  स्वयं से वादाकार करता हूँ          मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ । जीवन, के ख़ौफ़ ने सड़कों को       वीरान कर दिया समय चक्र ने ज़िंदगी को       हैरान कर दिया सामाजिक विसंगतियों के  आतंक से "व्याकुल" स्वयं को दो-चार करता हूँ      मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ।   दयानन्द त्रिपाठी       व्याकुल   लक्ष्मीपुर - महराजगंज, उत्तर प्रदेश

नई रचना "हाँ आओ हम सब दिया जलायें, रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें"-क्लिक कर पढ़ें।

नई रचना " हाँ आओ हम सब दिया जलायें,  रश्मि  खोजें  तिमिर  में  फैलायें"-क्लिक कर पढ़ें। हाँ आओ हम सब दिया जलायें, रश्मि  खोजें  तिमिर  में  फैलायें।। नहीं अवस्था है इसकी न ही कोई आयु, मानो रूककर बहने लगी कोई रश्मि वायु। जो भावयुक्त अंधकारहीन आलम्बन का है आश्रय, इसकी गति विद्युत से आगे, न उद्धव न इसका है क्षय। जैसा वायु आश्रय पाता, वैसा यह रूप दिखाये, जो काल-समय के अँधियारे में, अपना स्वरूप दिखलाये। हाँ आओ हम सब दिया जलायें, रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें।। जीवन से बढ़कर मानो, इसका आकार निराला है, इसने ही सारे भावों को अपने अन्त: में पाला है। इसके सामर्थ्य की थाह नहीं, पत्थर को मोम बनाता है, मानों इसका आकार प्रेम, अंधकार के मौन को नई राह दिखाता है। जिसका आभोग नहीं कोई, न ही कोई बन्धक इसका दिखलाये, जो खेचर की श्रेणी का है, "व्याकुल" न कोई अवलम्बन से अँधियारा छाये। हाँ आओ हम सब दिया जलायें, रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें।।   दयानन्द त्रिपाठी     व्याकुल

कोरोना काल में एक नई रचना कोरोना शीर्षक से नई रचना क्या लिखूँ और क्या सुनाऊँ...

कोरोना काल में एक नई रचना कोरोना शीर्षक से नई रचना क्या लिखूँ और क्या सुनाऊँ... क्या लिखूँ...... क्या लिखूँ और क्या सुनाऊँ, देश की जनता का बखान करुँ, या प्रधानमंत्री के गुण गाऊँ। पीएम ने संवेदनशीलता दिखाई, देश की जनता को, कोरोना से बचने की अपील लगाई, 21दिन घर में रह सोशल दूरी को सुझाई, पर जनता ही जनता के प्रति, हृदयहीनता दे रही दिखाई। राजा प्रजा की तरह बन गया, सामान्य जन परिपक्व बनने से रह गया, ईश्वर से वह बुद्धि तो बहुत पाई, पर छोटे से हृदय को विशाल नहीं कर पाई। कोरोना क्रूरता से भरी पड़ी है, वह कोई परोक्ष वीर नहीं है भाई, कोरोना करता है चुपके से अमानवीय युद्ध, न थी कोई बदले की लड़ाई, न ही कोई आपसी रंजिश मेरे भाई। कोरोना का कहीं आतंक से सांठ-गांठ तो नहीं, व्याकुल कोरोना कर रहा मानवों का ह्रास ऐसे, अंतकाल ने तो मुँह खोल ही दिया है जैसे। दयानन्द त्रिपाठी     व्याकुल लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

कोरोनाकाल की रचना जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर, लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है-

कोरोनाकाल की रचना जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर,  लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है- जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर, लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है। प्रकृति दोहन से आखिर ज्वाला निकल गयी, महामारी मन से आखिर भेद निकल गयी। तो ! दिल्ली  यदि  दिल  वाली  होती , सड़कों पर भूख तड़पती जनता न होती। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर, लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है। गलियाँ - कूची छुपते - छुपाते निकल रहे, क्योंकि, सपनों का शहर मुँह फाड़ रही। हे! ईश्वर तुमने पेट का क्या खेल-खेला कुम्भकरणी नींद से किस्मत नहीं जाग रही। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर , लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है। सुना है धन की कमी नहीं है धरा पर , कर्म करो दोनों हाथ समेट लो सब। प्रिय! भूख के बदले, भूख  को  खाकर  गरीबी सड़कों पर भूखे चलती - सोती है। शहरों में धन के उपक्रम बहुत हैं पर, खाली  हाथ  निकल  चले  हम  सब। जालिम "कोरोना" के खतरों ने "व्याकुल" गरीबों की जलती चूल्हों को तुड़वा दी है। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि थी पर, लगी-लगाई रोजी-रोटी छुड़वा दी है।     दयानन्द त्रिपाठी        "व्याकुल" लक्ष्मीपुर, महराजगंज।

कोरोना काल में रचना क्या मैं जीवित हूँ...देखें और पढ़े

कोरोना काल में रचना क्या मैं जीवित हूँ...देखें और पढ़े क्या मैं जीवित हूँ ? क्यों जी, क्या मैं जीवित हूँ ? कोरोना साढ़ेसाती योग के प्रकोप जोरों पर, चीनी वुहान के विहान में रखा कदम, सुना शोरगुल शैय्या से उठते ही मैंने अपनी काया को कचोटकर देखा  क्या मैं जीवित हूँ? झटसे दर्पण में मुँह देखा सर के बाल अपने स्थान पर सकुशल थे, बाल उलझे जरूर थे पर घटे न थे, खिड़की से झाँककर देखा, लोग-बाग भाग रहे थे, कई आ रहे थे तो कई जा रहे थे, आश्चर्य, महान आश्चर्य ! कोरोना काल में मौत के ताडंव से चिल्ला रहे थे, कहीं स्वप्न तो नहीं है यह ? तभी सहसा पत्नी दिखी, पूछा क्यों जी, क्या मैं जीवित हूँ??? हाँ - हाँ तुम जीवित हो सब जीवित हैं, कोरोना काल में घर में हो सुरक्षित हो मर गये हम, कहानी करो खत्म। यह सुनते ही, आ गया दम में दम, मिट जायेगा कोरोना की लेन, निकल जायेगा वैश्विक महामारी की देन धैर्य रखें घर में रहें व्याकुल साढ़े साती निकल जायेगी, फिर सब कुछ पटरी पर आ जायेगी ।   दयानन्द त्रिपाठी         व्याकुल लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

परशुराम जयंती (अक्षय तृतीया) रविवार 26 अप्रैल हेतु प्रस्तुत के लिए शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को "अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान 2020" रचना के लिए मिला...हे! राम धरा पर मत आना, कपटी मानव की माया है.....क्लिक कर पढ़े।

परशुराम जयंती (अक्षय तृतीया) रविवार 26 अप्रैल हेतु प्रस्तुत के लिए शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को "अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान 2020" रचना के लिए मिला...हे! राम धरा  पर  मत आना, कपटी  मानव की  माया  है.....क्लिक कर पढ़े। हे! राम  धरा  पर  मत  आना कपटी  मानव  की   माया  है।। मर्यादा     को     अपना     कर मानव    श्रीराम    कहलाया   है भृगुवंशी   हो    जमदग्नि     पुत्र विष्णु अवतारी महेन्द्रगिरी की छाया है कपटी   मानव  की   माया  है।। चंद्रमौली  अराध्य  से  वर  पाकर परशुराम बन दुश्मन को थर्राया है त्रेता  औ  द्वापर  में    रामभद्र   ने रिपुओं को 21बार धरा पे चढ़ाया है कपटी   मानव    की    माया  है।। कश्यप को, जीत धरा का दान किया भीष्म, द्रोण, कर्ण   से   महारथी  को अपने    विज्ञानों   से    तार    दिया कामधेनु    को    मुक्त       कराकर कल्पभव का विष्णु से वरदान लिया चक्रसुदर्शन     दे     अचला      को व्याकुल    मानव   को    हर्षाया  है कपटी    मानव    की   माया   है।। रचना - दयानन्द त्रिपाठी            व्याकुल            लक्ष्मीपुर जन

जन्मदिन पर बधाई: धर्म कह रहा बोल-बोल कर, प्राण मिला है कुछ करने को

जन्मदिन पर बधाई धर्म  कह  रहा  बोल-बोल  कर, प्राण  मिला है  कुछ  करने को इस  जन्म को  सफल   बनाओ दे  दे  प्रेम  सब  जन   नर   को बढ़   रहा    दिन    जन्म   तेरा भ्रम,  सुनो,  चेत, अनुभव  करो दिन कछु  काल  खाता जा रहा यह  प्रेषित  नहीं  अंतिम  बधाई जन्मदिन   फिर    आ   रहा।।   रचना - दयानन्द_त्रिपाठी        व्याकुल जन्मदिन पर अनन्य शुभकामनाएं और ढेर सारी अशेष बधाई।💐💐💐💐💐🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂

विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल की कविता भूलो सभी को मगर, पुस्तक को भूलना नहीं। - देखें।

विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल की कविता  भूलो  सभी  को  मगर,  पुस्तक को भूलना नहीं। - देखें। विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल ======//======//===== भूलो  सभी  को  मगर पुस्तक को भूलना नहीं।। भूलो    सभी   को   मगर पुस्तक  को  भूलना  नहीं। परोपकार अगणित हैं इसके इस  ज्ञान  को  भूलना नहीं अमिय   पिलाती   है   हमें जग में कालकूट घोलना नहीं पुस्तक  को   भूलना    नहीं ।। श्री  कृष्ण  ने   गीता   दिया दिगदिगांत के लिए किया नहीं परिवर्तनों की प्रविधियाँ हो रही संदेह  की  गुंजाइश  दिया  नहीं  विद्वता की राह को प्रशस्त कर आत्मज्ञान  को  भूलना   नहीं पुस्तक   को   भूलना  नहीं ।। पूरे  करो  अरमान  अपने  क्षितिज सा दान भूलना नहीं लाखों   कमाते   हो    भले अभिज्ञान  को  भूलना  नहीं  ज्ञान   बिन   सब  राख  है इस  मद  में  फूलना   नहीं पुस्तक  को  भूलना  नहीं।। जैसी  करनी  वैसी  भरनी इसके न्याय को भूलना नहीं संस्कृति  का   आध्यात्म   है इसे   कभी   छोड़ना    नहीं कलम  का  सिपाही  बनाती इसके  मान  को  भूलना नहीं पुस्तक   को   भूलना  नहीं।। सरस्वती का चिरकाल तक वास इसमें "व्याकुल"  ज्ञान - वन्दना  भूलन

विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल के अवसर पर ग्रीन आइडल अवार्ड से सम्मानित हुए दयानन्द त्रिपाठी

विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल के अवसर पर ग्रीन आइडल अवार्ड से सम्मानित हुए दयानन्द त्रिपाठी -  विश्व पृथ्वी दिवस पर आयोजित डिजिटल अर्थ डे कार्यक्रम में दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को मिला सम्मान  महराजगंज। विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में रसकेंद्र गौतम को प्रतिभाग करने पर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है।  गौरतलब है कि श्रीमती द्रोपदी देवी मेमोरियल ट्रस्ट, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर धरती माता को बचाने और ग्रासरूट स्तर पर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ट्रस्ट के संयोजक डॉ धनञ्जय मणि त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि विज्ञान संचारक अमरेन्द्र शर्मा तथा मुख्य अतिथि महराजगंज जनपद के जिला विद्यालय निरीक्षक अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल अर्थ डे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस आयोजन में भारत के प्रत्येक प्रांत से प्रतिभागियों ने धरती को बचाने के लिए अपने प्रयासों के माध्यम से कविता, लेख, पोस्टर तथा नाटक भेजकर प्रतिभाग किया।  राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित डिजिटल अर्थ डे कार्यक्रम में कार्यक्रम संयोजक डॉ धनंजय मण

रक्तबीज कोरोना प्रतियोगिता में शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को मिला श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान

रक्तबीज कोरोना प्रतियोगिता में शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को मिला श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान महराजगंज टाइम्स ब्यूरो: महराजगंज जनपद में तैनात बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षक व साहित्यकार दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान मिला है। यह सम्मान उनके काव्य रंगोली रक्तबीज कोरोना के चलते मिली है। शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी ने कोरोना पर अपनी रचना को ऑनलाइन काव्य प्रतियोगिता में भेजा था। निर्णायक मंडल ने शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल के काव्य रंगोली रक्तबीज कोरोना को टॉप 11 में जगह दिया। उनकी रचना को ऑनलाइन पत्रियोगिता में  सातवां स्थान मिला है। शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी को मिले इस सम्मान की बदौलत साहित्य की दुनिया में महराजगंज जनपद के साथ बेसिक शिक्षा परिषद भी गौरवान्वित हुआ है। बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षक बैजनाथ सिंह, अखिलेश पाठक, केशवमणि त्रिपाठी, सत्येन्द्र कुमार मिश्र, राघवेंद्र पाण्डेय, मनौवर अंसारी, धनप्रकाश त्रिपाठी, विजय प्रकाश दूबे, गिरिजेश पाण्डेय, चन्द्रभान प्रसाद, हरिश्चंद्र चौधरी, राकेश दूबे आदि ने साहित्यकार शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को बधाई दिया है