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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनिल गर्ग कानपुर

*कहानी* *ढोल* एक बार राजस्थान के एक छोटे से गांव में एक गरीब औरत अपने परिवार के साथ रहती थी, उस गरीब औरत के एक बेटा था, वह बड़े घरों में काम करके अपना गुजारा करती थी, वह अपने बच्चे के लिए कभी खिलौना नही ला सकी। एक दिन उसे काम के बदले अनाज मिला। वह अनाज को हाट में बेचने जाती है और जाते समय उसने बेटे से पूछा, बोल, बेटे तेरे लिए हाट से क्या लेकर आऊं?"  बेटे ने झट जवाब दिया, ढोल, मेरे लिए एक ढोल ले आना मां।' मां जानती थी कि उसके पास कभी इतने पैसे नहीं होंगे कि वह बेटे के लिए ढोल खरीद सके। वह हाट गई, वहां अनाज बेचा और उन पैसों से कुछ बेसन और नमक ख़रीदा।  उसे दुख था कि वह बेटे के लिए कुछ नहीं ला पाई। वापस आते हुए रास्ते में उसे लकड़ी का एक प्यारा-सा टुकड़ा दिखा। उसने उसे उठा लिया और आकर बेटे को दे दिया। बेटे की कुछ समझ में नहीं आया कि उसका वह क्या करे। दिन के समय वह खेलने के लिए गया, तो उस टुकड़े को अपने साथ ले गया। एक बुढ़िया अम्मा चूल्हे में उपले(गोबर से बने हुए) जलाने की कोशिश कर रही थीं, पर सीले उपलों ने आग नहीं पकड़ी।  चारों तरफ़ धुआं ही धुआं हो गया। धुए से अम्मा की आंखों में

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) खेतों से खलिहानों तक अब, स्वर्ण फसल की बाली है। जिन्हें देखकर हर किसान के, मन में अति ख़ुशहाली है।। देख फसल की बाली लटकी, आशाओं के दीप जलें। लक्ष्मी जी का हुआ आगमन, अब तो मंज़िल सभी मिलें। मन-विहंग उड़ नभ से कहता, बिखरी छटा निराली है।।     मन में अति खुशहाली है।। क़ुदरत का यह रूप निराला, सबके मन को भाता है। हरे-भरे पौधों की बाली, निरख हृदय लहराता है। भर जाए भंडार शीघ्र ही, अब तो जो भी खाली है।।      मन में अति खुशहाली है।। अथक परिश्रम से मिलती हैं, शुभ फसलों की सौगातें। काम खेत में करता रहता, हर किसान भी दिन-रातें। होता मुदित देख कर बाली, करे सतत रखवाली है।।   मन में अति खुशहाली है।। सूनी-सूनी सीवानों में, सुख का आलम छाया है। जिधर देखिए उधर दिखाई, पड़े प्रकृति की माया है। कृपा प्रकृति की बनी रहे तो, जीवन में हरियाली है।।     मन में अति खुशहाली है।।          © डॉ0हरि नाथ मिश्र             9919446372

अमरनाथ सोनी अमर

दोहा- माँ!  माँ ममता की मूर्ति है, करती बाल उराव!  हसती बालक संग मे, देती आंँचल छाँव!!  भूँखी रहकर मात ने, लालन दिया खिलाय!  लेकर लालन साथ मे, लोरी गाय सुलाय!!  माता से बढ़कर नहीं, कोई जग भगवान!  उनके बत्सल प्रेम से, कोई नहिं अनजान!!  सब तीरथ माँ के चरण, कर लो तुम विश्वास!  चरण कमल जो पूजता, उनको जन्नत पास!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

अनूप दीक्षित राही

मै बेवफा के दिल मे वफा खोजता हूँ।  काफिरों के दिल मे खुदा खोजता हूँ।। * मेरे कदम रवां थे मंजिल के वास्ते। मयस्सर हो मुझे मै ऐसा समां खोजता हूँ।। * भूल जाने को उनको हम करेंगे कोशिशें। मै आग मे भी बर्फ का निशां खोजता हूँ।। * हर सिम्त फैला गम का अंधेरा जगह-जगह  करे रोशनी मै अपनी मजार का वो दिया खोजता हूँ।। * फिर से आबाद हो जाये मेरा वीरान चमन। ऐसी बहारें नजारें वो फिजां खोजता हूँ।। * मै "राही हूँ मुझे कोई हमसफर न मिला। मै हर दश्त इश्क का इक जहां खोजता हूँ।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

नूतन लाल साहू

आंखे खुली रखो जब तुम पथ पर चलते हो तो खुली रखो पैरो की आंखे किसी पट्टी पर जब फिसलते हो तो खुली रखो हथेलियों की आंखे कर्मेंद्रिया और ज्ञानेंद्रिया हर पल तेरे साथ है तभी मंजिल पाओगे। कागज पर, कलम चलाते वक्त खुली रखो अपनी उंगलियों के शिकंजो की आंखे गाड़ी ड्राइव करते वक्त खुली रखो पैर के पंजे की आंखे यही तो सावधानियां है। जब बुराइयां होती है तो खुली रखो कान की आंखे अपमान की संभावना हो तो खुली रखो अपनी साख की आंखे यही तो इंसानियत है। अगर ज्ञान की कामना हो तो खुली रखो हृदय के अंदर की,पुस्तक की आंखे फिर देखना मेहनत निष्फल नही जायेगा। नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*               *उजाला* हुआ उजाला देखकर , जाग रहे हैं लोग । उदित सूर्य को देखने , का दुर्लभ संयोग । का दुर्लभ संयोग , आधुनिक मानव सारे । भाव पुरातन भूल , सभ्यता किए किनारे । कह स्वतंत्र यह बात , सभी दे यही हवाला । हो प्रभात लो जान , यहाँ है हुआ उजाला ।। वही उजाले से डरे , जिसके मन हो चोर । सर्प देखता पास जो , टोंट मारता मोर । टोंट मारता मोर , मार कर खा वह जाता । रहा विषैला सर्प , मगर विष काम न आता । कह स्वतंत्र यह बात , झूमते पी कर हाला । धरे नियंत्रण मनुज , देखते वही उजाला ।। मात्र उजाला ही बने , जीवन का संदेश । व्यथित ह्रदय व्याकुल करे , मन का बने कलेश ।। मन का बने कलेश , सोच से ही सुख पाए । नव आशा विश्वास , भाव मानव मन भाए । कह स्वतंत्र यह बात ,  मनुज बस वही निराला । उत्तम जिसकी सोच , सत्यता मात्र उजाला ।। मधु शंखधर 'स्वतंत्र प्रयागराज

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली ---- 29/11/2021                    ------ शपथ ----- माई री , माधव का वरण करूँगी ।      मुरली मनोहर लक्ष्य बनाया ,                 सारे पथ शूल सहूँगी ।। बनकर जोगन इस जीवन पर           निज पग परिशोध धरूँगी । अंतस मंदिर रोज बुहारूँ ,       बनकर नित ज्योति जलूँगी ।। प्रीतमपुर का दर्शन करके ,           ये नयन सफल कर लूँगी । पिया चरण रज भरकर चुटकी ,              ये खाली माँग भरूँगी ।। युगों युगों की कड़ी प्रतीक्षा ,             अब मैं उत्तीर्ण करूँगी । जीना है अब उनकी खातिर ,              उनके ही संग मरूँगी ।। अपनाये या मत अपनाये ।               मैं उनकी बनी रहूँगी । सुधि सेवा ननकी सब अर्पण ,            छाया बन संग चलूँगी ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

/ कुहासा घना है / --------------------------------- रखो सावधानी कुहासा घना है तू प्रात से ही क्यों फिर तना है । सोकर उठा है नही जागता है सच है कि सारा शहर अनमना है। किनारे पड़ा है दुखी भाव लेकर सदा से दुखों का दुलारा बना है। कठिन आँसुओं को पीकर गुजारा किसे दुख सुनाएं कुटिल वर्जना है। मनुज का मनुज से रिश्ता निराला विधाता तेरी यह कठिन सर्जना है । मनाते रहे हम सदा से उन्हें ही अपितु आजकल अपना उनसे ठना है। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग. /  रात रात भर जगते हैं  / ----------------------------------------- आँखें हैं कि रात रात भर जगते हैं किसे बताउं अंतस अगन सुलगते हैं। प्रेम - प्रीत का बिरवा काटा जड़ से बात बात पर लड़ते और झगड़ते हैं। बहुत सहेज सींच कर रख्खा उपवन को फिर भी जाने अनगिन पत्ते झड़ते हैं । आने वाला समय साधना मुश्किल है प्रकृति के अवयव ये बातें कहते हैं । जिनका सब कुछ वे निर्वासन भोगें शीश महल मे युवा तुर्क अब रहते हैं। अपने दिये वचन से फिरना आम बात है कदम कदम पर छलिया बनकर छलते हैं। अधोपतन के पथ पर चलने वाले हैं जो ऐसे दुर्जन फिर कब कहाँ सम्हलते हैं । विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सरयू       *सरयू-महिमा*(16/15,आल्हा-वीर छंद) परम पवित्र यह सरिता सरयू,बहे अयोध्या उत्तर दिशि, निर्मल नीर सदा रह इसका,सब जन करते रोज नहान। साधु-संत चहुँ दिशि से आकर,करें आचमन,इसका पान, करते दर्शन रघुवर जी का,प्रमुदित मन देकर सम्मान।  घाट सभी जो सरयू-तट पर,सभी स्वच्छ-निर्मल रहते, संत- भक्त जन,सब जन जाकर,सरयू-दर्शन लें अभिराम। करके पूजन-अर्चन सब जन,नगर-भ्रमण का करें प्रयाण, पुनि सब जाकर मंदिर-मंदिर,करें प्रार्थना प्रभु श्री राम।। परम पवित्र यह अति रमणीया,नगरी नाम अयोध्या धाम, सरयू-तट पर स्थित यह है,जन्म-भूमि यह रामलला। चारो भ्राता-क्रीड़ा-नगरी,विमल-सुखद है आबो-हवा- सरयू-जल की नित-प्रति डुबकी,करे नाश हर दर्द-बला।। औषधि सम है सरयू-नीरा,विष्णु-अश्रु की यह जल-धार, यह सरिता है पाप-विनाशन,इसका गौरव जगत महान। आदि-काल से सतत प्रवाही,प्राण-दायिनी जीवन यह- यह है सरिता रामलला की,करे विश्व का नित कल्याण।। राम की पैड़ी सुंदर-अनुपम,सरयू-नीर बहे पुरजोर, यहाँ सभी हैं रोज नहाते,यहीं पे करते हैं विश्राम। शाम आरती मिलकर करते,भक्ति-भाव से चित-मन-गात- पुनि सब जाकर करते पूजन,जन्म-भूमि प्रभु ललित-ललाम।।          

मार्कण्डेय त्रिपाठी

नसीहत जल्दी सोना, जल्दी जगना , सब कहते अच्छा रहता है । सेहत, समृद्धि, बुद्धि बढ़ती , मन हरदम बच्चा रहता है ।। पर आज जमाना बदल गया, जन देर रात तक जगते हैं । संडे स्पेशल होता है , डिस्टर्ब न करना, कहते हैं ।। मुझमें आदत पड़ गई बुरी , जल्दी उठ जाया करता हूं । कर खटर, पटर की आवाजें, नित चैन नींद की हरता हूं ।। खट-पट हो जाती अलस्सुबह, सब मुंह फुलाए उठते हैं । मैं भार रूप अपने घर में , सब बेमतलब ही रुठते हैं ।। कुछ लोग रात भर जगते हैं, दिन भर खर्राटे लेते हैं । गांवों, शहरों की दशा एक, जागृति संदेश वे देते हैं ।। सिरहाने रख कर मोबाइल, नित नींद सहज आ जाती है । घंटी बजती रहती, फिर भी दिनकर किरणें कब भातीं हैं ।। जो जितनी देर से जगता है, उतना ही श्रेष्ठ कहाता है । वह महापुरुष है इस जग में, सच में निज भाग्य विधाता है ।। दिनचर्या बदल गई देखो , दिन, रात में अब कुछ फ़र्क नहीं । है पृथक्, पृथक् जीवन शैली, करता मैं इस पर तर्क नहीं ।। मैं भी चुप रहता सोच समझ, धीरे से खोलता दरवाजा । चल पड़ता करने सुबह सैर, कहता प्रभुवर अब तो आ जा ।। जीवन में हे मेरे प्रियवर , समझौते होते हैं अनेक । यह सफल जीवन का मूल म

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 23/11/2021_ विधा-निश्चल छंद   *सृजन शब्द-मेरे राम दशरथ नंदन राजा सुन लो,मेरे राम । आई विपदा दूर करो अब , हो सब काम ।। कोई नहीं जगत में तुम बिन, प्रातः शाम । भजती तुझको प्रेमा तेरी ,आठो याम ।।1!! सत्य राह मैं चलती रहती , थामो हाथ । तेरे चरणों में झुकता है, देखो माथ ।। तुम ही तो बने संसार के , प्रभु पतवार । अंत समय में मोक्ष दिलाते, तारणहार ।।2!! श्री राम नाम से जीवन में, जग उजियार । मनभावन है लगता मेरा, अब संसार ।। कहती प्रेमा हो तुम मेरे, प्रभु रखवार । पार करो नैया मेरी दो, कृपा अपार ।।3!! --- योगिता चौरसिया " प्रेमा "     -----मंडला म.प्र.

पूज्य हैं श्रीराम जितने, भाव मन्थरा के कम नहीं....... दयानन्द त्रिपाठी निराला

शीर्षक - पूज्य हैं श्रीराम जितने, भाव मन्थरा के कम नहीं....... राम  ही  श्रीराम  हैं, पर  मन्थरा  भी  कम  नहीं। पूज्य हैं श्रीराम जितने, भाव मन्थरा के कम नहीं।। जब-जब संकल्प सृजन का होगा, श्रीराम     धरा      पर      आयेंगे। तब  -  तब    कोई    मन्थरा    ही, नित    नई    दिशा   दिखलायेंगे।। जब सर्वस्व समर्पण के भाव सदा, तब निज   मानव   कल्याण सधा। प्रेम    सहित    पथ    शूल   बिछा, है   राम   रूप   निज  धर्म  बंधा।। जननी  तो   बस   जननी   है, वह सुत स्वरूप ही देख सकी। मन्थरा  के  उर  नयनों  ने  ही, विष्णु  तेज   को  देख  सकी।। पल एक नहीं जाया उसने, झट निर्णय लेने में थी कम नहीं। पूज्य  हैं  श्रीराम  जितने, भाव मन्थरा के कम नहीं।। राम  स्वयं  श्रीराम  नहीं  हो  सकते, जब तक वह निज राजदरबार रहेंगे। दुष्टों  से  धरा  कांपती   रह  जायेगी, यदि      राम     युवराज      बनेंगे।। निर्ममता,  दुष्ट   निडर   होकर  ही, धरा   पर   पांव  पसारती  जायेगी। होंगें ऋषि-मुनि  सब  त्रस्त  जहां में, जग से सज्जनता ही मिट जायेगी।। अविरल  नीर  बहाते  सब  जन, सदा  मोक्ष  से  रहेंगे  तिरोभाव। यज्ञ, दान, सब   मंत्

श्रीकांत त्रिवेदी प्राञ्जल

*"एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल"* नाकाबिले एतबार ये , सांसे हैं बेवफ़ा! लाखों उठाओ नाज़ पर, करती ही हैं जफ़ा ! जब तक हैं पास तेरे, तू एहतराम कर, जाने कहां ये छोड़ दें   , हो जाएं कब खफ़ा !! फितरत नहीं है इनकी, जो साथ दें सदा ही, थम जायें चलते चलते, इनका है फ़लसफ़ा!! मालूम है सभी को, दस्तूर ए दगा इनका, रखतीं मुगालतों में, लगतीं हैं बा- वफ़ा !! सांसें जो चल रही हैं, चलती रहे कलम भी, संग संग रुकें ये दोनों, बस एक ही दफ़ा !! श्रीकांत त्रिवेदी "प्राञ्जल "

अनूप दीक्षित राही

अफसोस ताउम्र रहा हमको इस बात का। जवाब हमको न मिला खुद के सवालात का।। * रिश्तों मे जद्दोजहद थी अपने थे अजनबी। हम मोहरा बन के रह गये शतरंज की बिसात का।। * खामोशियों की चादरें कुछ इस तरह से ओढ ली। बस हश्र देखते रहें दम टूटते जज्बात का।। * सियासत की भेंट चढ़ गयी मेरे इश्क की दास्ताँ।  कुछ मायने ही समझ न सके हम मुहब्बत के तिलिस्मात का।। * जुगनुओं की मानिन्द ही हम करते रहे रोशनी। दिन का सूरज ढल गया अब सामना है रात का।। * ऐ ज़िन्दगी तू ही हमे अब आजमाना छोड़ दे। वक्त गुजर गया देखो अब मुकर्रर मुकालात का।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

ऊषा जैन उर्वशी

*कृष्ण कन्हाई* प्यारे कृष्ण कन्हाई प्यारे कृष्ण कन्हाई याद तेरी आई मेरी आँख भर आई।  मोर पंख माथे सोहे मोहिनी सुरतिया  देख तेरी बाट कान्हा आँख पथराई।।  तेरे बिन कान्हा मेरी बात न बने है मोह माया का बंधन बाँध के रखे है।  कौन विधि कान्हा मैं अब तुझे पाऊँ दुनिया मुझे अब तेरी जोगन कहे है।।  🙏🌹 सुप्रभात 🌹🙏 * ऊषा जैन*     *उर्वशी*

विजय कल्याणी तिवारी

/ आना - जाना / ---------------------------- आना जाना सहज रीत है फिर भी यह मन दुखता है अश्रु तरलता बढ़ जाती है बिना रूके वह बहता है । नियति नटी बन नित्य नचाता और विवष हम नाच रहे दीन हीन अपनी हांडी को नियमित देते आंच रहे प्रात पुंज सुख छीन रहा है स्वर्णिम आभा डहता है अश्रु तरलता बढ़ जाती है बिना रूके वह बहता है । प्रश्नों का घनघोर समर है उत्तर अंतरिक्ष मे भटके हम जैसे अस्तित्व हीन ही बन त्रिशंकु नभ मंडल अटके सृष्टि को आभा मय करने उनका अंतस जलता है अश्रु तरलता बढ़ जाती है बिना रूके वह बहता है। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 21/11/2021                    ------ असर ----- डस कर सारे नाग चले ।       जहरीली हवाओं का असर है ,                         पहले तो ये लगे भले ।। किस किस के नाम गिनाऊँ बोलो ,                       सभी मिले नहले दहले । दोहन कर गये समूचा जीवन ,                        प्रेमी बन आये पहले ।। मादकता का वो दौर गुजरता ,                   आज पड़े सब हाथ मले । देह शिथिलता अब व्याप्त हुआ है ,                 देख रहा कुछ जले - जले ।। मोम बने सबके हित हैं जलते ,                    देखो कितना आज गले । उदाहरण उद्घाटित जब होता ,                      नहीं मिले कोई विरले ।। जीवन की पटरी ही टूटी है ,                और कहाँ तक हम सँभले । एक नयी शुरुआत करें जब ,                    देखे हैं कुछ लोग चले ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मार्कण्डेय त्रिपाठी

लक्ष्मी आएंगी मन में हो उत्साह तो लक्ष्मी आएंगी । कुछ करने की चाह , तो लक्ष्मी आएंगी । मंत्र जाप करने से कुछ भी नहीं होता, छोड़ो निज आलस्य, तो लक्ष्मी आएंगी ।। कैसे कार्य किया जाता,यह विधि जानो , सही तरीका समझो, लक्ष्मी आएंगी , व्यसनों से परहेज़ करो, प्रिय बंधु मेरे , मन में हो शुचि भाव, तो लक्ष्मी आएंगी ।। बनो पराक्रमशील, कर्म पर ध्यान रखो, पौरुष पर विश्वास तो लक्ष्मी आएंगी  । रखो कृतज्ञता भाव, सहज होकर जीओ , मानो नित उपकार,तो लक्ष्मी आएंगी ।। अटल मित्रता भाव , सदा मन में रखो , करो मित्र सम्मान, लक्ष्मी आएंगी । सोच समझकर खर्च करो, प्रिय मीत मेरे, रखो मितव्ययी भाव, लक्ष्मी आएंगी ।। बूंद, बूंद से सागर बनता,यह जानों, रखो पैसे का मान, लक्ष्मी आएंगी । है चंचला स्वभाव, ध्यान इसका रक्खो, करो न तुम अभिमान, लक्ष्मी आएंगी ।। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, रखो कर्म सिद्धांत, लक्ष्मी आएंगी । लक्ष्मी आरती गा लेने से क्या होगा, मन में है शुचि भाव, तो लक्ष्मी आएंगी ।। कर्मों के प्रति पूज्य भाव,मन में रखना, नियति रखोगे साफ, तो लक्ष्मी आएंगी । कम से कम वह एक बार दस्तक देती, अगर रहे तैयार, तो लक्ष्मी

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,उनकी इबादत के लिये,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  चंद आँसू रख बचाकर, उस शहादत के लिये  जो हुए कुर्बान हँसकर, इस विरासत के लिये   .................................................    जोर तूफाँ का बहुत था, तेज़ आँधी थी मगर   ले मशालें चल पड़े थे, वो बगावत के  लिये   ...............................................   गोलियाँ सीने पे खाईं ,मान परचम  का  रखे   कर गये खुद को फ़ना सबकी हिफ़ाज़त के लिये  ................................................   रोक ना पायी फिरंगी लश्करें  उनके  कदम   बाँधकर निकले कफ़न जब वो ख़िलाफ़त के लिये  ...............................................   माँ की ममता, बाप का  जो आख़िरी उम्मीद थे  अब  दगा मत कीजिये, उनसे सियासत के लिये   ..............................................   लग रहे गुमनाम दौरे  गर्दिशों में आजकल   थे बहुत मशहूर वो भी, कल शराफत के लिये   ...............................................   छोड़ मस्जिद और मंदिर में खुदा, भगवान  को   सर झुकाना  सीख लें ,इनकी इबादत के लिये  .........................

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*               *तेवर* तेवर तृष्णा अरु तमस , परिवर्तन का सार । यह स्थिर मन विचलित करे , दृश्य रूप व्यवहार। दृश्य रूप व्यवहार ,  यही पारा चढ़वाए । घातक होता रूप , बुद्धि को भ्रष्ट कराए । कह स्वतंत्र यह बात , शांत मन सच्चा जेवर । श्रेष्ठ मनुज का ज्ञान , बदल देता है तेवर ।। तेवर मन का भाव है , बसा विचारों मूल । शांतिपूर्वक काज को ,  तेवर जाता भूल । तेवर जाता भूल , कमी को समझ न पाए । संबंधों को भूल  , अलग साम्राज्य बसाए । कह स्वतंत्र यह बात , वाह्य बस दिखे कलेवर । यही समाए रूप , ऊपरी होता तेवर ।। तेवर से भौं जब तने , क्रोध त्वरित यह रंग । धैर्य धारणा लुप्त हो , कार्य करे बेढंग । कार्य करे बेढंग , क्रोध यह काम बिगाड़े । आशा का कर नाश , निराशा मन को ताड़े । कह स्वतंत्र यह बात , मिठाई जैसे घेवर । मधु मिश्रित सम भाव , दूर कटुता अरु तेवर ।। *मधु शंखधर 'स्वतंत्र* *प्रयागराज*

संजय जैन बीना

*साँसे दे दूंगा* विधा: कविता दिल करता है मेरा, जिंदगी तुझे दे दू। जिंदगी की सारी  खुशी तुझे दे दू। दे दे अगर तू मुझे, भरोसा अपने दिलका। यकीन करले तू मेरा, दे दूंगा अपनी साँसे।। दिया है अब तक साथ, आगे भी उम्मीद रखता हूँ। तेरे जैसे दोस्त को,  अपने दिलमें रखता हूँ। और यकीनन दिलसे   तुम्हें प्यार मैं करता हूँ। इसलिए हमसफर अपना तुम्हें बनाना चाहता हूँ।। दिल की धड़कन में तुम ही तुम बसते हो। मेरी हर सांसो में अब तुम ही तुम धड़कते हो। मैं कैसे कहूँ तुम से मेरी साँसे तुम हो।  नहीं दिखोगें जिस दिन वो मेरा आखरी दिन होगा।। जय जिनेंद्र देव  संजय जैन " बीना" मुंबई 21/11/2021

अमरनाथ सोनी अमर

दोहा- माँ!  माँ ममता की मूर्ति है, करती बाल उराव!  हसती बालक संग मे, देती आंँचल छाँव!!  भूँखी रहकर मात ने, लालन दिया खिलाय!  लेकर लालन साथ मे, लोरी गाय सुलाय!!  माता से बढ़कर नहीं, कोई जग भगवान!  उनके बत्सल प्रेम से, कोई नहिं अनजान!!  सब तीरथ माँ के चरण, कर लो तुम विश्वास!  चरण कमल जो पूजता, उनको जन्नत पास!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

सीमा मिश्रा बिन्दकी

सिर्फ प्रीत चाहिए हार  चाहिए न  मातु  जीत  चाहिए, आपके हृदय की सिर्फ प्रीत चाहिए। खोल के नयन निहारिए तो एक बार, कालिमा से कलुषित धरा का आगार, चेतना विलुप्त खिलखिला रहा काल, मलय पवन संग फुफकारता है व्याल, मोती  चाहिए  न  मातु  रोटी  चाहिए, मुक्त  पाप से धरा  वो ज्योति चाहिए। मुस्कुराती   नागफनी  शूल  बो   रही, रातरानी   चुपके  से   मातु  रो   रही। राग  भूल   कुहू   कर्कश  है   बोलती, पथ   भूली  ऋतुएं   भी राह खोजती। मीत  चाहिए  न   मातु  गीत  चाहिए, जीवन  सतरंगी  हो  वो नीति चाहिए। मान के  नशे  में  झूमता  है हर मनुज, टांग  दूसरों की  खींचता  है हर मनुज, हर  गली  में साया खोजता शिकार है, कनक आज लेता विष का आकार है। कान्ति  चाहिए न  मातु क्रान्ति चाहिए, सांस  ले सके  मन वो  शान्ति चाहिए।। रचना - सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर (उ० प्र०) स्वरचित व सर्वाधिकार सुरक्षित

डॉ0 निर्मला शर्मा

क्रमांक-102    विषय  -"  कवि केसरी सिंह बारहठ  " सिंह के समान थे साहसी, राजस्थान के अनुपम वीर। चारण घराने के चतुर कवि, थे स्वभाव से धीर गम्भीर। कृष्ण सिंह के सपूत केसरी,अठारह सौ बहत्तर में जन्मे। शाहपुरा रियासत के देवपुरा में,चारण कुल में चरण पड़े।  बालपन से थे प्रतिभा के धनी, व्यक्तित्व गुणों की खान था। भाषा साहित्य खगोल ज्योतिष, इतिहास में गहन ध्यान था। बांग्ला मराठी संस्कृत गुजराती, हिंदी और राजस्थानी। विविध भाषाओं का ज्ञान था उनको, सारी दुनिया जानी। डिंगल-पिंगल में सृजन किया, अपनी थाती को मान दिया। स्वाभिमानी वह देशभक्त, जीवन वसुधा पर वार दिया।।     स्व पुत्र प्रताप भाई जोरावर संग, केसरिया बाना पहन लिया। वे अद्भुत अनुपम वीर कवि, जिसकी कलम की धार बड़ी। जब कलम चली बारहठ की, इतिहास में जोड़ी अमर कड़ी। माटी का मान बचाने को, राणा का स्वाभिमान जगाने को। की तेरह सोरठों की रचना,राजपूताने की आन बचाने को। पढ़कर महाराणा सजग हुए, पुरखों की आन में अडिग हुए। चेतावनी रा चुंगटया की बात खरी, राणा के दिल पर सीधी पड़ी। राजपूताना के अमर कवि, केसरी सिंह बारहठ की बात बड़ी। है नमन लेखनी को उनकी, देशभक

रामकेश एम.यादव

इंसान बना करो! खुदा  की  परछाई  मत बना  करो, आदमी  हो तुम, इंसान  बना करो। वक़्त की रफ़्तार बदल नहीं सकते, अपने गाँव की  पहचान बना  करो। हो  क्या तुम, एक साँस  का झोंका, मरुभूमि  का  गुलिस्तां  बना  करो। बेचकर खिजा तब वो खरीदा बहार, उसके  लक्ष्य की  कमान बना करो। कत्ल  न  करो  किसी  की  खूबियाँ, बल्कि विरासत की जुबान बना करो। लूटमार,  हत्या,  डकैती  ठीक  नहीं, बेहतर है सीमा पे जवान  बना करो। ख्वाबों के सहारे जीना  आसान नहीं, कभी किसी  का मेहमान  बना करो। लिबास  से  कद तय कर  रहे हैं लोग, फ़रिश्ते से बढ़कर  इंसान बना  करो। उतारते ही तिनका छप्पर रखते लोग, हो सके उनका  आसमान बना करो। परियाँ   आएँगी  नींद  के  आंगन  में, सिरहाने बच्चों की  दुकान रखा करो। कंगाल न करो जल-जंगल, पहाड़ को, राह  में  वृक्ष  का  वितान  बना  करो। रोज मयकदे जाने की जरुरत ही क्या, बस उसके घर का गुलदान बना करो। रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

रामकेश एम. यादव

ऐ! आसमां वाले ऐ!  आसमांवाले  कुछ तो अच्छा कर, अब खुशियों से सबकी झोली तो भर। आँसू  औ  गम  से  लोग  दबे  जा  रहे, उजड़ी हुई बस्ती की  बुनियाद तो भर। शहरों की  फिजायें हैं  उखड़ी -उखड़ी, जंगलों  के  जिस्म   में  साँस  तो  भर। ख्वाहिशों  को खौफ़  कब  तक सताए, ख्वाबों    के  पांव   में  जोश   तो  भर। मलाल   तो   बहुत  है   तेरे  संसार  से, वीरान   हुई  दुनिया  में  जान  तो  भर। कोई न भटके अपनी मंजिल से मालिक, इन  सबके  अंदर  वो  साहस  तो  भर। बुझे  दुनिया  में न जाने  कितने   चराग़, जिंदों में रहमत, नेमत, बरकत  तो भर। रिश्तों   की  धूप में   फिर चमकें  चेहरे, लोगों   में   जीने  की   आग  तो   भर। सूख  चुकी है  जो   साँसों   की  दरिया, उन   सूनी  मांगों   में   सिंदूर  तो  भर। तेरे   खजाने   में  कमी  ही   क्या  प्रभु, फिर  धरा  आसमां में  जवानी तो  भर। रामकेश एम. यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

डा. नीलम

*कलतारण गुरु नानक* दीन हीन सी दुनियां सारी कलजुग ने ही पंख पसारे कलतारण तद ले अवतरण गुरु नानक जी धरती ते आये चार दिशा दी चार उदासियां* मत लोगां दे बदले सी इक नाज*दी रोटी दे वी भेद उन्हानें दस्से सी अंधभक्त लोकां नू राह सिद्दी दिखाई सी/दूर देश विच पाणी पा के खेत किवें सींचण गे एह दस मत पुट्ठी* नूं बदली सी ओह नूर ए इलाही एहो जिया जिन्ने भेदभाव मिटाया सी बाबर दे कारागार विच वी रबाव ते सच्ची वाणी शबद गाया सी राक्षसी ताकता नूं दिखा के पंजा ताकत उन्हादी वखा पहाड़ी दे थल्ले कड पाणी बंदे दी प्यास बुझाई सी कौड़े* लोकां नूं वसन* दी ते भले लोकां नूं उजड़न दा वर दे सच्ची-सुलखनी दुनिया वसाण* दी सोच बणाई सी धर्म-कर्म दे भेद मिटावण बाबे नानक ने सी जन्म लिया विखा के अपणी रुहानी शक्ति फेर रुहानी आत्मा लेपरमात्मा दे श्रीचरणा चे जा बैठे। *उदासियां--यात्राएं *नाज--अनाज *मत पुट्ठी--मति भ्रष्ट *कौणे--गालियां देने वाले *वसन--बसने *वसाण--बसाने          डा. नीलम

रामकेश एम.यादव

जरुरत है! बिखरे  सपने  सजाने की  जरुरत है, नफरत जहां से मिटाने की जरुरत है। तहस- नहस किया  कोरोना  जिंदगी, कारोबार  फिर बढ़ाने  की जरुरत है। मत  भूलो अपने गाँव -घर का  पता, पतझड़ से उसे बचाने की जरुरत है। बहाओ न आँसू  जरा- सी ठेस पर तू, हवा में  समंदर उठाने  की जरुरत है। सभी लोग  तो हैं  इसी  मिट्टी से उगे, बस आईना  दिखाने  की  जरुरत है। बड़ा बनने  की  भूल  कभी न कर तू, कागजी-कश्ती चलाने की जरुरत है। टपकने  लगी  है  निगाहों   से  मस्ती, अब वो दरिया बचाने  की  जरुरत है। किसान बेचारे कितना सहें तकलीफ,  उनके अच्छे दिन आने की जरूरत है। पानी के  परिन्दे कब तक  उड़ेंगे नभ, हरियाली और  बढ़ाने की जरुरत है। खुशियाँ   संभाले  नहीं   संभल  रहीं, इसे औरों  पे  लुटाने  की  जरुरत  है। मरना तय  है  बचकर  जाओगे  कहाँ, पुण्य की  गँठरी बढ़ाने  की जरुरत है। आखिरी साँस तक महको इस जहां में, ईश्वर  से  लौ   लगाने   की  जरुरत  है। रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

नंदिनी लहेजा

शीर्षक:गुरु नानक साहिब का मानवता के लिये योगदान एक ओंकार की बाणी से, जग में अमृत का संचार किया। जाति-धर्म से ऊपर, दया और मानवता को मान दिया। प्रभू एक निरंकार परमपिता, जिनकी हम संतान हैं। ना कोई ऊँचा ना नीचे, हर मानव एक समान हैं। दया धर्म है सबसे बड़ा, ना किसी दीन-मूक के प्राण हरो। करो सदा नेकी की कमाई, किसी का भी हक़ ना मारो। मिल बाँट के खाओ तुम, आपस में सदा तुम रखो प्रेम अमृतवेले ध्याओ प्रभु अपना, पक्का करो अपना नितनेम। लोभ लालच में ना फंसा स्वयं को, सेवा करो दीन-दुखियों की। सब में देख तू ईश्वर को, ना रख भावना तू बैर की। अनेक उपदेश बाबा नानकदेव के, जिन्होंने जीवन का सार दिया। साक्षात निरंकार के स्वरुप , धन गुरु नानक देवजी ने, मानवता को मान दिया। नंदिनी लहेजा रायपुर(छत्तीसगढ़) स्वरचित मौलिक अप्रक्षित

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,तरबतर अश्क से,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  तरबतर अश्क से ज़िन्दगानी मेरी.। दर्दो ग़म से भरी है, कहानी मेरी  ।। ................................................  चूमती थी किनारों को जो प्यार से । खो गई उस लहर की  ऱवानी  मेरी ।। .................................................  जाँ लुटाती थी जो, मुझपे शामो सहर। है   ख़फा  आज़कल वो दीवानी मेरी ।। ................................................   ज़ख्म ताज़े हरे हैं ,खिजाँओं   में   भी । हसरतें अब   नहीं  हैं,  नूरानी    मेरी ।। .................................................   डस रही रात दिन मुझको  तन्हाइयाँ  । लग   रही बावरी  सी,  जवानी  मेरी ।। ...............................................   आ गये  बनके मेहमान,दुनियाँ के ग़म उनको  भाने   लगी ,मेज़बानी    मेरी ।। ................................................   दूर   साहिल ,उफनती   नदी वक्त   की  है  लहर   तेज़  ,कश्ती    पुरानी   मेरी ।। ................................................   शिवशंकर  तिवारी   । छत्तीसगढ़  । .....

डॉ. कवि कुमार निर्मल

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 🪔🪔🪔प्रकाशोत्सव २०२१🪔🪔🪔 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 सिखों के प्रथम ननकाना साहिब का प्रकाशोत्सव आया। ५५२ वर्ष पूर्व रायभोय तलवंडी का जन पद था  हर्षाया।। जन्मस्थली नानक की लाहौर से दक्षिण-पश्चिम योजन अवस्थित। उदारता का पथ दर्शन पूर्वोत्तर दक्षिण-पश्चिम सदेह हो उपस्थित।। संन्यासी बन गुरु नानक सत्य और प्रेम का पाठ पढ़ाये। अंधविश्वास-पाखण्ड का खण्डन कर धर्माचार फैलाये।। जातिवाद के शत्रु, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य के थे वे समर्थक। धार्मिक सदभाव स्थापनार्थ आजीवन बने संत सार्थक।। तीर्थाटन में हर जाति से धर्मिकों को अपना शिष्य बनाये। हिन्दू इस्लाम की मूल शिक्षा मिश्रण से नूतन पंथ बनाये।। प्रेम और समानता आधारित यही सिख धर्मश्रेष्ठ कहलाया। भारत में ज्योति जला मक्का मदीना तक प्रभाव दिखाया।। २५ वर्ष प्रचार कर कर्तारपुर में डेरा डाल उपदेश बरसाये। अमर वाणी आज हम ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संगृहीत पायें।। १६ साल आयु में बटाला कन्या सुलक्खनी के जीवन साथी हुये। २८ वर्ष की आयु, प्रथम पुत्र श्रीचन्द हुआ तो हर्षित नानक हुये। ३ साल छोटा द्वितीय पुत्र लक्ष्मीदास/लक्ष्मीचन्द किलकारी लाये।। तातश्री

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक  -  *रानी लक्ष्मीबाई* (शौर्य पराक्रम राष्ट्र गौरव की जीवंत अप्रतिम प्रतीक रानी झांसी की जन्म जयंती पर शत-शत नमन) मणिकर्णिका , मोरोपंत - भागीरथी की संतान अकेली थी कानपुर के नाना की मुॅ॑हबोली अलबेली बहन छबीली थी शैशव से ही जिसके नयनों में, चम चम चपला चमक रही थी मुख मंडल पर आभा प्रखर अरुण की,दम दम दमक रही थी बचपन से ही खड्ग, कृपाण, कटारी  उसकी बनी सहेली थी देश भक्ति ,साहस, शौर्य, पराक्रम की मूर्ति दुर्गा सी बनी नवेली थी झांसी की रानी जब दहाड़ रही थी, अंग्रेजी सेना होकर निरीह निहार रही थी समर क्षेत्र में जब गयी सिंहनी, गर्जना बम बम बम बम बोल रही थी  रुद्र देवता जय जय काली की हुॅ॑कारों से,जंघा अंग्रेजों की कांप रही थी स्वतंत्रता की चिंगारी जिसने पूरे भारत में,पावक पवन सी फैलायी थी  उसके अंतर्मन में प्रखर , प्रचंड अग्नि ज्वाल समायी थी झांसी से अंग्रेजों को खदेड़ कर बढ़ी कालपी आयी थी कालपी से पहुंच ग्वालियर, गोरी सेना की नींद भगायी थी अंग्रेजों के मित्र सिंधिया के असहयोग से, सिंहनी आहत बहुत हुयी थी यहां रानी का घोड़ा नया था, ह्यूम की सेना घेरे चारों ओर खड़ी थी फिर भी लक्ष्मीबाई ने  भार

विजय कल्याणी तिवारी

/ बहुत बढ़ रहा उनका छल है / ----------------------------------------------- जन मन अंतस आज अनल है बहुत बढ़ रहा उनका छल है । अंतस क्षुधा मिटे अब कैसै पास तुम्हारे कोई हल है । तुम पहचान नही पाए क्यों नयन नीर सम गंगा जल है । करनी को भरना ही होगा कर्म फलों का भोग अटल है। सतपथ का जो पथिक बना इस जीवन मे वही सफल है। पत्थर लेकर घूम रहे जो उनके ही तो शीश महल हैं। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

अनूप दीक्षित राही

अरमानों की चिता जला कर। अपनी हस्ती खुद ही मिटा कर।। * निकल पड़े हम होकर बेफिक्रे। यादें सभी हम दिल से मिटा कर।। * न जाने किस ओर जायेंगे। कदम मेरे कुछ यूँ लडखडा कर।। * ज़िन्दगी का हर एक फैसला। माना है हमने सिर को झुका कर। * कभी जला हूँ कभी बुझा हूँ। कभी रहा हूँ मुँह को छुपा कर।। * जालिम बहुत बडी दुनिया है। जीने न देगी ये सिर को उठा कर। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

डॉ. कवि कुमार निर्मल

🌼🌼🌼🌼🌼🌼।।देव दिवाली।।🌼🌼🌼🌼🌼 दीपावाली का अंतिम महोत्सव, देव दीवाली पौराणिक है। आतंकी त्रिपुरासुर से त्रिलोक में त्राहिमाम मचा, चर्चित है।। त्रिपुरासुर तात तारकासुर वध, कार्तिकेय ने आज किया है। प्रतिशोध की प्रचण्ड ज्वाला तारकासुर के पुत्रों ने झेली है।। कठिन तप कर ब्रह्मा से, अमर होने का वर उन्हें मिला है। ब्रह्मा तपस्वियों को अमरत्व न दे, वैकल्पिक वर दिया है।। कालांतर में शिव कार्तिक पूर्णिमा को, त्रिपुरासुर का वध किया है। आज हीं देवगण गंगा तीरे दीप जलाकर, "देव दिवाली" मनाते हैं।। चले काशी नगरी के घाटों की, दीपावाली का परम सुख पाते हैं। गुरुनानक जयंती हिन्दू सिक्ख धूमधाम से, ज्योतिपर्व मनाते हैं।। आज लक्ष्मी समुद्र मंथन में उभरी, विष्णु ४ माह योग निद्रा से जागे हैं। पौराणिक है, गंगा स्नान ध्यान से भक्तगण मोक्ष प्राप्त कर तर जाते है।। डॉ. कवि कुमार निर्मल

नीलम वन्दना

*काशी की संस्कृति और परंपरा* ये काशी की पावन संस्कृति  और प्राचीन परंपरा है, ध्यान और शांति पाने को मन सब का यहीं ठहरा है। आज है चांद की चांदनी कार्तिक पूर्णिमा की रात, माँ लक्ष्मी का मिलेगा प्यार देवताओं का आशीर्वाद आज के दिन गंगा में  स्नान कर डुबकी लगाते , मां करें उद्धार सब का दान कर सब पुण्य कमाते, गुरूद्वारों में हैं चलते लंगर घाटों पे बंटती खिचड़ी है भूखा नहीं यहां कोई रहता यह अन्नपूर्णा की नगरी है। रविदास से राजघाट तक सभी सजे हैं घाट यहां लाखों दीपक जगमग करते अमरावती से ठाठ यहां । झिलमिल करते लहरों पर  दीपक, कविताएं लिखते हैं हर प्रतिबिंब ॐ के जैसा दैविक अक्षर दिखते हैं। इन्हें देख यूं लगता जैसे धरती पर उतरा आकाश, देव भूमि को छोड़ देवता रखते हैं काशी की आस। आज गुरु नानक की जयंती सन्तों सा जीवन धारण हो मन पवित्र, आत्मा सर चित हो आनंदम पूरा पारण हो। हर-हर करती गंगा कहती, मैली कभी उसे मत  करना  भारत की  पहचान है गंगा, मृत्यु मोक्ष गंगा तट करना। गंगा शिव की जटा में भी है गंगा तट पर है श्मशान तीनों लोकों में ही करती  मां गंगा ही मोक्ष प्रदान। * नीलम वन्दना *

डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

*भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री* 19 नवंबर सन 1917 को एक चाँदनी चमकी। मोतीलाल नेहरू अधिवक्ता के घरमें ये चमकी। प्रयागराज की पुण्य धरा आनंदभवन में जन्मी। जवाहरलाल नेहरू एवं कमला नेहरू से जन्मी।  लालन पालन राजकुमारी जैसे इंदिरा ने पाया। पढ़ लिख के स्वतंत्रता संग्राम में कदम बढ़ाया। अंग्रेजों से लड़ने को बच्चों की टोली है बनाई। बानरीसेना में जान फूँक स्वयं की है अगुआई। इंदिरा जी का एक नाम है इंदिरा प्रियदर्शिनी। माँ-बाप की इकलौती पुत्री सुंदर प्रियदर्शिनी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में रहीहैं पदाधिकारी। तेज तर्रार प्रतिभाशाली  परिश्रमी सुंदर नारी। फिरोज गांधी से प्यार में लवमैरिज कर डारी। राजीव एवं संजय गांधी उनके उत्तराधिकारी। भारतीय इतिहास में इंदिरा हैं ऐसी पहली नारी। भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री थीं हैट्रिक मारी। 25जून1975 को भारत में आपातकाल लगाई। 21मार्च1977 तक 21 महीने इमरजेंसी चलाई। 1977के चुनाव में ये पार्टी कुर्सी से उतार दिया। इस इमरजेंसी ने इंदिरा को सत्तासे बाहर किया। 1980में एक आई फिर इंदिरा गांधी की आँधी। बड़ीजीत हुई प्रधानमंत्री पुनः बनी इंदिरा गांधी। 1980 से 84 तक इनके राजनै

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 20/11/2021                  ------  उलझन ---- मेरी उलझन सुलझा दो तुम आज ।      दीर्घकाल से भ्रमित भ्रमर मन ,                नहीं बदल पाया अपने अंदाज ।। तुम गतिमान त्वरित सब संभव ,            अपने सब करते पूरण प्रिय काज । मेरे पंख कटे सहमे से ,                क्यों रही अधूरी है हर परवाज ।। सर्व कला में सिद्धि निपुणता ,           सब करते हैं तुम पर ही क्यों नाज । तुम्हें खोजती सभी निगाहें ,                सब मंचों के बन बैठे सरताज ।। दुर्बलता मुझे बताओ ,            मैं भी कर पाऊँ कुछ पूर्व  रियाज । सम्मानित हो मेरा जीवन ,                  चले जमाने में मेरा भी राज ।। जीवनसाथी बनकर आओ ,          अब तुम रखना हर पल मेरी लाज । पूर्ण समर्पण करता हूँ अब ,          अब न गिरे ननकी कोई भी  गाज ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

ऊषा जैन कोलकाता

*मेरे श्याम साँवरे* मेरे श्याम साँवरे मेरे श्याम साँवरे याद तेरी आए कलेजे हूक उठे रे।  कान्हा तुझसे दूरी सही नहीं जाए तेरे  दर्शन को मेरा जिया भटके रे।  माखन मिश्री का कान्हा भोग मनाया बैठी हूँ  कबसे लेकिन कान्हा ना आया।  कान्हा मुझ में तो कोई भी गुण नहीं है तेरा ही  रूप कान्हा मेरे मन समाया।  आजा श्याम साँवरे आजा श्याम साँवरे अपने चरणों में रखलो अब मुझे साँवरे।  🙏🌹*सुप्रभात* 🌹🙏       ** ऊषा जैन कोलकाता *

नूतन लाल साहू

तारे जमीन पर एक ऊंची दीवार जो ओढ़ रखी है,तुमने और कैद कर लिया है अपने आप को,चारो ओर से। गीली मिट्टी सा उपजते है अनेक विचार मन,रह रहकर मचलता है सुबह की सुहानी शीतल सुवासित मलय अब गर्म हो चुकी है। अब कहां ढूंढ रहे हो उस बासंती बहार को रंग बिरंगी फूल के पौंधे और पेड़ लगाते चलो। कितना अच्छा लगता है सुबह सुबह हरी घास पर टहलना शबनम की बुंदे,पांवों को सहलायेगी ठंडी हवाओं के झोंको से तारे जमीन पर,नजर आयेगी। कौन कहता है रात,आज खामोश है अनगिनत तारें,आपस में कुछ फुसफुसाते हुए,टिमटिमाते से ताक रहे है, जमीं की ओर प्रकृति से खिलवाड़, न करें वो धीमें से ली है अंगड़ाई। अब कहां ढूंढ रहे हो उस बसंती बहार को मधुबन को,घर घर में सजा लें तारें जमीन पर नजर आयेगी। नूतन लाल साहू

मार्कण्डेय त्रिपाठी

सहज रूप में जीना सीखें स्वस्थ रहें और मस्त रहें  नित, चिंता है किस बात की । सहज रूप में जीना सीखें, फिक्र है क्यों दिन, रात की ।। चाहे कोई बहुत पढ़े हों , या रखते हों थोड़ा ज्ञान । वर्ष चालीस तक आते-आते, हो जाते हैं एक समान ।। रूप, कुरूप दोनों सम दिखते, उम्र हुई जब बन्धु पचास । चेहरे पर झुर्रियां दिख जातीं, पाउडर, क्रीम भले हों खास ।। भले कोई हो उच्च पदों पर, या हो निम्न पदों पर भ्रात । साठ वर्ष में सब सम होते , हिलने लग जाते हैं दांत ।। बहुत बड़े हों अथवा छोटे , घर लगते हैं एक समान । हड्डियां दुखती हैं सत्तर में, लगता निकल रहे हैं प्रान ।। अस्सी वर्ष की आयु में मित्रों, सम होते निर्धन, धनवान । कहां और कैसे खर्च करें धन, इसका तनिक न रहता ध्यान ।। नब्बे वर्ष तक गर जीएं तो, शयन, जागरण एक समान । याददाश्त ढीली पड़ जाती, टिकता नहीं कहीं पर ध्यान ।। बहुत कारुणिक दशा हो जाती, यदि कोई जीता है सौ वर्ष । यह जीवन की सच्चाई है, इसमें ही विषाद और हर्ष ।। मन भर सुनते हैं सब जन सच, टन भर देते हैं प्रवचन । कण भर ग्रहण स्वयं करते हैं, ऐसा ही है यह जीवन ।। चार रोटी,दो जोड़ी कपड़े , बस जीवन हित काफी हैं

मधु शंखधर स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया              मौका मौका पड़ते ही मनुज , बदले जब व्यवहार । थाली का बैगन उसे ,  कहता है संसार ।। कहता है संसार ,  व्यर्थ है मानव जीवन । दूजों का हित भूल , नहीं खुश होता है मन । कह स्वतंत्र यह बात ,  भाव का है यह  चौका । धैर्य प्रेम के साथ , निभाते हैं सब मौका ।। मौका पाकर ही बढ़े , विद्यार्थी विश्वास । करे परिश्रम वो अथक  ,  तभी सफलता पास । तभी सफलता पास , स्वयं का नाम कमाए । कर्म सृष्टि का सार , कर्म गीता का भाए । कह स्वतंत्र यह बात , दाल पर जैसे छौका। उन्नति की हो राह , श्रेष्ठ मंजिल दे मौका ।। मौका जब भी पा सको ,  ज्ञान बढ़ाओ आप । अज्ञानी का ज्ञान ही , बनता है अभिशाप । बनता है अभिशाप ,  पतन की राह दिखाए । अन्तर्मन का ज्ञान , मनुज को ईश बनाए । कह स्वतंत्र यह बात ,  देखते कुत्ता भौका । एकलव्य का तीर , बंद कर पाया मौका ।। मधु शंखधर 'स्वतंत्र प्रयागराज

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) अधरों पर मुस्कान आ गई, आज पिया के आने से। झूम उठा तन-मन सब अपना, उन्हें पुनः पा जाने से। होंगी बातें मीठी-मीठी, रात-दिवस तक बिना थके। भर लेंगे बाहों में मुझको,  लगातार वे बिना रुके। आशाओं के फूल खिलेगें, उनको गले लगाने से।।    उन्हें पुनः पा जाने से।। रातें अब सब पूनम होंगी, तम न अमावस आएगा। ग़म के बादल अब न रहेंगे, नहीं अँधेरा छाएगा। दुनिया के सुख सब मिल जाते, सम्यक प्रीति निभाने से।।   उन्हें पुनः पा जाने से।। महक उठेगी जीवन बगिया, आशाओं के फूलों से। मधुर मिलन का सुख भी होगा, कभी-कभी की भूलों से। यह सुख तो ऐसा होता जो, भूले नहीं भुलाने से।।       उन्हें पुनः पा जाने से।। प्रेयसि-प्रेमी मिलना होता, पावन संगम तन-मन का। सच्चे दिल में देव-वास है, नहीं काम कुछ अब धन का। मंज़िल मेरी आज मिल गई, बिगड़ी बात बनाने से।।       उन्हें पुनः पा जाने से।।               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                    9919446372

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 18/11/2021                    ------ बदल गया है वो ----- बदल गया है वो ।    प्रीत महल से बहुत दूर अब ,                     निकल गया है वो ।। मुझसे अच्छा पात्र मिला तो ,                       पिघल गया है वो । सब इच्छाओं के फूलों को ,                      कुचल गया है वो ।। त्याग झोपड़ी आज किसी के ,                        महल गया है वो । अपनी सारी खुशियाँ देकर ,                     विकल गया है वो ।। उसके थे आभास निराले ,                        दहल गया है वो । शायद खास अभी कुछ करने ,                      अमल गया है वो ।। रोते -रोते हँसने लगता ,                       सँभल गया है वो । मेरे आने से ही पहले ,                       टहल गया है वो ।। जाना बागों की कलियों को ,                      मसल गया है वो ।। ननकी छोड़ो उसको देखो ,                       अटल गया है वो ।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

" बात बात पर मन दुखता है " ---------------------------------------- बात बात पर मन दुखता है नयना नीर बहाते हैं पीर बहुत व्याकुल करते हैं हम खुद को समझाते हैं। प्रश्न चिन्ह अपने जीने पर रोज लगाना पड़ता है भीतर का हर भाव नित्य ही खुद से जी भर लड़ता है साथ छोड़ जाने को आतुर सारे रिश्ते नाते हैं बात बात पर मन दुखता है नयना नीर बहाते हैं। सीमाओं से अधिक हुआ सब यह बात किसे मै कहूं सखा अर्थ हीन है बहना जानूं फिर भी नियमित बहूं सखा और नही कुछ कर पाते पंथी इसी चल जाते हैं बात बात पर मन दुखता है नयना नीर बहाते हैं। याद नही पड़ता है मुझको मुख मुसकान कभी आए हों नयन अश्रु के निर्झर निर्झर अंतस को समझाए हों दुनिया वालों का कहना कहाँ कभी शरमाते हैं बात बात पर मन दुखता है नयना नीर बहाते हैं । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

एस के कपूर श्री हंस

। जाने किसी की दुआ कब* *जिन्दगी के काम आ जाये।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 एक दिन तो सब को ही जाना है। छूट जायेगा यहीं पर सारा ताना बाना है।। अमर नहीं जीवन बस करो कर्म अच्छे। गिनती की सांसें गिनती का ठिकाना है।। 2 जब आता बुलावा चलता नहीं बहाना है। इस सृष्टि का यह सच यही फसाना है।। इसलिए कहते कि करो कुछ उपकार भी। प्रभु के पास जाकर वह हिसाब दिखाना है।। 3 गिने हुये श्वास का ही यह सारा खेल है। नहीं किया मेल सबसे तो होगा सब बेमेल है।। यह दुनिया का मेला मिला है बहुत सौभाग्य से। पानी के बुलबुले सी यह जीवन रेल है।। 4 जाने कब जिन्दगी की शाम आ जाये। जाने का बुलावा उसका पैगाम आ जाये।। सबसे बना कर रखो दिल की नेक नियत से। जाने किसकी दुआ जिंदगी के काम आ जाये।। *रचयिता।।एस के कपूर '"श्री हंस'"* *।।सफलता का मंत्र जनाब,* *आँखों में ख्वाब और हों* *कोशिशें बेहिसाब।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 सीने में जोश और बस आँखों में ख्वाब रखो। हज़ारों

डा. नीलम

*शीत की भोर* भोर भी थरथराने लगी धुंध की चादर लपेटे धीरे-धीरे कर-पग धरती फलक पर आने लगी सिंदुर में घोल श्वेत- सलेटी-सा रंग क्षितिज  करने लगा है मुस्कुरा कर दिवस का स्वागत  उतरने लगी धूप भी लरजती सिहरती हुई फूल पात भी खिलने लगे ओस में भीगे हुए हवाएं शीत का शालू लिए अल्हड़ नायिका-सी घूमती रहती हैं सुबह से शाम तलक इधर- उधर देख के उसकी आवारगी डरने लगे हैं लोग पहन कर निकलने लगे हैं पैर में मोजे से ले सर पर टोप।         डा. नीलम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे* चढ़कर उन्नति की शिखर,करें नहीं अभिमान। संभवतः कल नष्ट हो,यह अपनी पहचान।। हाथ बढ़ाकर थाम लें,उसका भी तो हाथ। उन्नति-शिख पर जो चढ़े,देकर उसका साथ।। सोच सदा सहयोग की,है मानव का धर्म। प्रेम-भाव-सहयोग से,होता उत्तम कर्म।। कहना कभी न चाहिए,करके जग उपकार। ऐसा करना अंत में, देता  कष्ट  अपार।। मात्र इसी सहयोग से, होता  सदा  विकास। जन-जन का कल्याण हो,बस यह रहे प्रयास।। नर-नारी-सहयोग को,सृष्टि-धर्मिता जान। मिल कर ही दोनों करें,जीवन में उत्थान।। विश्व-एकता तब रहे,जब हो उत्तम सोच। करें भलाई मिल सभी,सबकी निःसंकोच।।             © डॉ0हरि नाथ मिश्र                 9919446372

मार्कण्डेय त्रिपाठी

रंगों का जीवन में महत्व रंगों का जीवन में बहुत महत्व है, प्रकृति का उपहार,मनोरम तत्व है । रंग जीवन को सरस बनाते , ऋषि, मुनि भी इसके गुण गाते । कवियों के लिए प्रकट अमरत्व है ।। रंगों का जीवन में मनोवैज्ञानिक प्रभाव सुखदाई , चिकित्सकों ने महिमा गाई । सांगीतिक प्रतिभा में इसका सत्व है ।। रंगों का जीवन में नीला रंग शांति, सुख दाता , गगन, सिंधु नीला है भ्राता । नीले परदे का भी बहुत महत्व है ।। रंगों का जीवन में पीला राष्ट्र प्रेम सूचक है , त्याग, समर्पण का रूपक है । कविताओं में इसका रुचिर प्रभुत्व है ।। रंगों का जीवन में स्वास्थ्यवर्धक नित हरा रंग है , हरियाली सबको पसंद है । आंखों के लिए सुखद यह तत्व है ।। रंगों का जीवन में गर्मी में काला हितकारी , भय और शोक प्रतीक अवतारी । तमोगुणी है, फिर भी प्रकृति प्रदत्त है ।। रंगों का जीवन में लाल रंग खतरे का द्योतक, जोश, उत्साह भाव का पोषक । इसमें गर्माहट का सच में तत्व है ।। रंगों का जीवन में श्वेत, शांति शुचिता दर्शाता, अनुशासन का पाठ पढ़ाता । सचमुच इसमें छिपा बन्धु, अमरत्व है ।। रंगों का जीवन में इन्द्रधनुष में सात रंग हैं , मोर नृत्य में अति उमंग

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,तिरंगा जो सम्हाले हैं ,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  कहीं बंदिश निगाहों पे, कहीं ओठों पे ताले हैं  अँधेरों की हुकूमत है, तभी सहमें उजाले हैं   .................................................   अनाजों से भरे गोदाम चूहे खा रहे लेकिन   गरीबों के मुकद्दर में, नहीं मिलते निवाले हैं   ................................................   जहाँ जाकर बढ़े, इंसान से इंसान की दूरी   ज़मानें में बहुत बेकार ,वो मस्जिद शिवाले हैं   ...............................................   ख़फा लब से तबस्सुम फिर खुशी इज़हार हो कैसे   ज़हर हिस्से में आए, जब कभी सागर खँगाले हैं   .............................................   मुबारक हो तुम्हें मंज़िल, मुझे राहों पे रहने दे  न चल पाऊँगा तेरे साथ, इन पाँवों में छाले हैं   ...........................................   नहीं है दाग कोई भी, हमारे मन के दर्पण में   नज़र में दोष होने से ,उन्हें लगते ये काले हैं   ............................................  उठेगी आग की लपटें, जलेगी झूठ की लंका  तपिश महसूस होगी इस

अनूप दीक्षित राही

दर्द को मेरे न नुमाया कीजिए। हो सके तो इसको छुपाया कीजिए।। * दुनिया वाले देखेंगे इसमे भी ऐब भी। यूँ बेकार वक्त न जाया कीजिए।। * दूसरों के गिरेबां मे झांकने से पहले। अपने वजूद पर ही अंगुली उठाया कीजिए।। * ख्वाबों मे ऐसे न आया करो तुम मेरे। कभी रुबरु भी आ जाया कीजिए।। * आईने से क्यों पूछता है हकीकत मेरी। कभी खुद को भी आईना दिखाया कीजिए।। * बेतरतीबी मे बसर कर रहा था ज़िन्दगी। कुछ सलीका हमे भी सिखाया कीजिए।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

नूतन लाल साहू

कैसा जमाना आ गया कहने भर को लोकतंत्र है खिसक जाते है लोग,अनदेखी करके कौन सुनेगा, किसको बोले किसे सुनाएं,कड़वा किस्सा जब अपना ही भाई, चर गया भाईचारा कैसा जमाना आ गया है। देखा मैने एक आदमी पड़ा सड़क के बीच में ख़ाई चोट,एक्सीडेंट से कराह रहा था,बहुत जोरों से। जिसने भी देखा,खिसक लिया मानवता तो कहीं खो गया है लोगों के मुंह से बस इतना ही निकला जाने क्या झंझट है जाने क्या लफड़ा है इंसान की ऐसी दशा देख भौचक्का रह गया,मैं राम जाने क्या पुछे सिपइया कौन सुनेगा, किसको बोले किसे सुनाएं, कड़वा किस्सा जब अपना ही भाई, चर गया भाईचारा कैसा जमाना आ गया। बिना किसी संकोच के गुंडा छेड़ रहा है,लड़की को मदद के लिए,लड़की रोई पर,कोई न आगे आया ये जमाना,बड़ा ही निरदइया रस्ता है मुश्किल खस्ता है हाल, भइया कौन सुनेगा, किसको बोले किसे सुनाएं, कड़वा किस्सा जब अपना ही भाई, चर गया भाईचारा कैसा जमाना आ गया है। नूतन लाल साहू

ऊषा जैन कोलकाता

*आजा कान्हा* आजा ओ कान्हा तुम्हें  रोज मै पुकारती तेरा ही नाम लेकर धड़कन मेरी  चलती।  दुनिया की कुछ भी कान्हा दौलत ना चाहिए तेरे ही चरणों में रहने की इजाजत मुझे चाहिए।  कैसे मैं पाऊँ तुझको तू ही बता दे कान्हा तेरे ही दर्शन को तड़पे दिल ये मेरा नन्हा।  सुना है कान्हा तुमने  प्रीत  तो निभाई है मुझको क्यों कृष्णा तुमने कर दिया पराई है।  मुझको ना भाये  कान्हा अब यह तेरी दुनिया तेरा ही नाम लेकर मुझको मिलती है खुशियाँ।  आना ही होगा तुमको आना ही होगा तुमको आजा ओ कान्हा  तेरा रस्ता मैं देखती।  🙏🌹 *सुप्रभात*🌹🌹 * ऊषा जैन कोलकाता *

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 19/11/2021                    ----- जाने क्यों ? ----- जाने क्यों ? अनसुलझी पहेली सी लगती है जिंदगी ।  रोती सदा , कम हँसती है जिंदगी ।। जाने क्यों ? बस चक्रव्यूह में रहा उलझा जीवन । झंझावातों में रौनक खोता मन ।। किसी तीली सी जलती है जिंदगी । रोती  सदा , कम हँसती है जिंदगी ।। जाने क्यों ? क्या जाने कब उम्मीदें दम तोड़े । किसी मोड़ पर सिया , राम को छोड़े ।। आज खुशियों से डरती है जिंदगी । रोती  सदा , कम हँसती है जिंदगी ।। जाने क्यों ? जो चाहा दिल ने वो मिले कहाँ हैं । दावे हैं मिले लूटते सब यहाँ हैं ।। घुटन लिए जलती बुझती है जिंदगी । रोती सदा , कम हँसती है जिंदगी ।। जाने क्यों ?                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 19/11/2021_ विधा-रूप घनाक्षरी 8,8,8,8   *सृजन शब्द-स्वागत* माधो मेरे तुम आओ, आके कही मत जाओ, मन धरे प्रेम देख , दर्शन की लगी आस । रटती सुबह शाम, और नहीं दूजा काम , जोगनी जो छाई रही, नैनन की बढ़ी प्यास ।।  स्वागत हृदय करें, जीवंत खुशियाँ भरें ,  विनय है कर जोड़ , करती हूँ अरदास । एहसास नया हिय ,पाकर जो तुझे पिय,   सखियाँ बतियाँ बना, पा के तुझे बने खास ।। --- योगिता चौरसिया " प्रेमा "     -----मंडला म.प्र. प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 18/11/2021_ विधा-रूप घनाक्षरी *सृजन शब्द-गोरी* राधा रानी देखो गोरी ,माधो संग खेले होरी, भीगे तन-मन हारी, सताते हैं देखो श्याम ।। छम-छम बाजे साज , पहनी पाजेब आज , भागे रूके नहीं भोरी, खेले सदा अभिराम ।। इनकी महिमा न्यारी , लगती है जोड़ी प्यारी । मोहती हृदय देखो, देवता भी लेते नाम ।। गली-गली घूमे गोरी , रंगती गुलाल छोरी, माधो हाथ नहीं आये, ढूँढे वृंदावन धाम ।। ---योगिता चौरसिया "प्रेमा" -----मंडला म.प्र.

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) जन-जन में है व्यापित खुशियाँ, शरद सुहावन बेला है। धूप गुनगुनी अच्छी लगती, अद्भुत कुदरत-खेला है।। दिन में सूरज-किरणें भातीं, रात में चंदा पूनम का। गरम बिछौना होता मित्रों, पूरा दुश्मन ठंडक का। सब अलाव के आस-पास तो, रहता रेलम-रेला है।।     अद्भुत कुदरत-खेला है।। रबी-फसल से खेत सजे हैं, अगल-बगल हरियाली है। शरद-पूर्णिमा रात सुहानी, रजनी भव्य उजाली है। दृश्य प्राकृतिक मन हर लेते, यद्यपि बहुत झमेला है।।     अद्भुत कुदरत-खेला है।। कुछ खेतों में पीला रँग भी, अपना रंग जमाता है। पीला वसन पहन धरती का, रूप अनोखा भाता है। पीली फूली सब सरसों में, सुंदरता का मेला है।।    अद्भुत कुदरत-खेला है।। शरद सुहावन लगती उनको, जिनको सुख-सुविधा मिलती। उनको तो है कष्ट दायिनी, जिनकी रजनी दुःख में कटती। दिन तो कट जाता है लेकिन, रजनी ठेलम-ठेला है।।      अद्भुत कुदरत-खेला है।।                 डॉ0 हरि नाथ मिश्र                  9919446372

नूतन लाल साहू

बस, इतना ही तू कर लें माया की डालियों पर है संसार का हिंडोला जीवन की किश्ती भी मझधार में पड़ी है भटक रहे है हम,इधर उधर जग में,कोई न मिला सहारा इसीलिए तो कहता हूं प्यारे जीवन की डोर, अब तो कर दे प्रभु जी के हवाले बस, इतना ही तू कर लें प्यारे। हमें जन्नत मिले या ना मिले पर,मिल तो जायेगा एक सहारा माया के सारे बंधन को तोड़ कर प्रभु जी चरणों में,प्रीत जोड़ लें कुछ न बिगड़ेगा,तेरा प्यारें प्रभु जी के शरण में,आने के बाद इसीलिए तो कहता हूं प्यारे जीवन की डोर, अब तो कर दे प्रभु जी के हवाले बस, इतना ही तू कर लें प्यारे। जब तलक है,भेद मन में कुछ नही बन पायेगा, तू हर खुशी मिल जायेगा प्रभु जी के कदमों में,झुक जाने के बाद फूलों से पुछो की उस पर,कैसे छायी है बहार सूखी बगिया भी खिलेगी प्रभु जी का आशीर्वाद मिलने के बाद जीवन की डोर, अब तो कर दे प्रभु जी के हवाले बस, इतना ही तू कर लें प्यारे। नूतन लाल साहू

मार्कण्डेय त्रिपाठी

प्रार्थना क्या है आत्मा का गीत है यह प्रार्थना , भक्तगण का मीत है यह प्रार्थना । ईश के प्रति यह समर्पण भाव है, दर्दमय संगीत है यह प्रार्थना ।। लक्ष्य इसका ईश से संवाद है , भक्ति भाव विभोर, प्रेम अगाध है । हाथ जोड़े,आंख मूंदे, सिर झुकाए, अश्रुधार लिए यह अनहद नाद है । भजन, संकीर्तन व लेखन कार्य से, प्रकट पीड़ा भाव है यह प्रार्थना ।। दर्दमय संगीत है दीन, दुखियों की यह करुण पुकार है , ईश भक्ति का सहज आधार है । श्रद्धा, विश्वास और भरोसा से भरा, परम पद की प्राप्ति हेतु व्यवहार है । मौन शब्दों में भी होती व्यक्त जो, आत्म विह्वल भाव है यह प्रार्थना ।। दर्दमय संगीत है यह विवश, लाचार की आवाज है , लोक व परलोक सुख की राज है । प्रभु से एकाकार की स्थिति है यह, सार्वजनिक हो या हो निजी साज है । मन और मस्तिष्क एक होते हैं तभी, प्रभु को नित स्वीकार है यह प्रार्थना ।। दर्दमय संगीत है प्रार्थना द्रोपदी व मीरा तान है, छोड़ दे दुनियां तो प्रभु का गान है । प्रार्थना प्रभु तक पहुंचती है तभी, जब मनस् में कुछ भी ना अभिमान है । जाति, पंथों तक न सिमटी यह कभी, हर हृदय उपचार है यह प्रार्थना ।। दर्दमय संगीत है भक्त

नंदिनी लहेजा

*युवा देश के भविष्य* ******************* आज युवा पीढ़ी को, इक बात मैं कहना चाहुँ। तुम हो भविष्य भारत का ,तुम धरोहर हो हमारे। तुम सपना हो हर भारतीय का,तुम हो गर्व  हमारे। तुम युवा शक्ति कहलाते हो,जो चाहो वह कर जाते हो। जो उत्साह ललक होती तुममे, हर मंजिल तुम पा सकते हो। हमने तुम्हे आजादी दी है ,ताकि करो सपने सब तुम पूरे। जो कभी बसते थे हमारी अखियों में,न हो पाए पर वो पूरे। परन्तु आज रोज़ देखती और सोचती, कितनी आगे निकल चुकी यह पीढ़ी। यह रोके से न रुके,बस चढ़ना चाहे आजादी की सीढ़ी। हर माता-पिता यह चाहते है,सपने पुरे करे तुमसे। पर तुम इतना आगे  हो बढ़ चुके, आज़ादी के अंध में हो खो चुके। गर वो समझाए कोई बात तुम्हे,तुम सोचते हो वे तो बूढ़े हो चुके। तुम्हे तो साथ अच्छा लगता है, अपने उन मित्रों का , जो तारीफें तुम्हारी करते है ,केवल मौजमस्ती करते और पैसे तुम्हारे लुटाते है। माता पिता के पैसों को, बुरे व्यसनों में न उड़ाओ। तिनका तिनका कर जोड़ा उन्होंने तुम्हारे लिए ,तुम उनका मान बढ़ाओ। यह मत भूलो इस उम्र में ही ,मेहनत तुम्हे इतनी करनी है। स्वयं को शिक्षित कर , जिंदगी अपनी संवारनी है। गर इस पल में तुम संभल

रामकेश एम.यादव

आबाद रहे दुनिया! देखो!  धरा पे  ढंग का इंसान  चाहिए, आबाद रहे दुनिया तो किसान चाहिए। बम, एटम-बम पे कभी  नाज न कर तू, दरिया न बहे खून की समाधान चाहिए। लड़ें  न कभी  आंगन की आपस में ईटें, इस तरह का दोस्तों मुझे जहान चाहिए। आए हो दुनिया में बनों मील का पत्थर, जाने के  बाद  पांव का निशान चाहिए। समझा न किसी को तलवार  की भाषा,  सारे  जहां में प्यार की  जुबान  चाहिए। सर- परस्त जो थे  वो कब  के चले गए, पहलेवाला  फिर से  हिंदुस्तान  चाहिए। नये -नये  बुलंदियों की  सीढ़ी  चढ़े देश, हर दिल में वैसा ही  आसमान  चाहिए। सपने  में भी  शेर  फाड़  के न खा सके, न इस  तरह की मुझे  दास्तान  चाहिए। दफ़्तर  को हैं बनाते  रिश्वत  की दुकान, इस तरह का  हमको न दीवान  चाहिए। रखे  जो  अपने  हृदय में गाँव की पीड़ा, उगे   न  कोई  भूख  वो  प्रधान  चाहिए। हवा के घर में  हो हर  किसी का मकान, मुझको न  प्रदूषण का  वितान  चाहिए। जिस्म की  मंडी पे कोई  जड़  दो ताला, ऐसा धरा  पर  कोई  न  मचान  चाहिए। रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार,मुंबई)

अनूप दीक्षित राही

जिन्दगी के मायने कितने बदल गये। हम वक्त के साथ मे खुद ही ढल गये।। * मेरे अपनो ने मुझे इतना मगरूर कर दिया। नाकामियों को देखकर मेरे कदम सम्भल गये।। * शिद्दत से जिसको चाहा वो उम्र भर न मिला। अरमान अश्क बनके आँखों से निकल गये।। * बस थी यही खता की हमने ऐतबार कर लिया। हम तो फकत दिलासा मे यूँ ही बहल गये।। * जाने कहां से गूंजे नग्मे मुहब्बत के। सोये से ख्वाब दिल के आज फिर मचल गये।। * साहब आसां नही है इतना मुहब्बत का ये सफर। न जाने कितने आशिक यहां सिर के बल गये।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0