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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नौवाँ-3 क्रमशः.....*नौवाँ अध्याय*(गीता-सार) पर त्रय बेदन्ह बिधि अनुसारा। करैं सकाम करम जे सारा।।      पियत सोमरस भइ अघमुक्ता।      स्वर्ग सकल सुख चह संजुक्ता।। पूजहिं मोंहि जग्य करि लोगा। भोगहिं दिब्य सुरन्ह कहँ भोगा।।      भोगि सकल सुख स्वर्गय लोका।      पुन्य छीन जब हो परलोका।। आवहिं पुनः मृत्यु-जग सरना। बंधन बँधहिं जनमना-मरना।।     पर जे करहिं करम निष्कामा।     भजहिं निरंतर मोरइ नामा।। भाव अनन्यइ स्थित मों मा। एकीभाव गाइ मम महिमा।।      योग-छेम मैं तिन्हकर करऊँ।      तिनहिं भगत मैं आपुन कहहूँ।। भक्त सकामी जदपि कि पूजहिं। मोंहि औरु जे देवन्ह दूजहिं।।       पर ते मूढ़ औरु अग्यानी।       पूजन-बिधि ते कबहुँ न जानी।। जानैं नहिं अधिजग्य स्वरूपा। मैं परमेस्वर तत्त्व अनूपा।।       पुनर्जन्म पावैं यहि कारन।       जनमहिं-मरहिं जथा साधारन।। देव पूजि नर पावहिं देवा। पितर पूजि पितरन जन लेवा।। दोहा-भूत पूजि लहँ भूतहीं,मोंहि पूजि मों पाहिं।         मुक्त होंहिं भव-बंधनहिं,पुनर्जन्म नहिं ताहिं।।         मम पूजा हे पार्थ सुनु,परम सुगम हर ठाउँ।         पत्र-पुष्प-फल-जल सभें,सगुण प्रकटि मैं खाउँ।।    

कालिका प्रसाद सेमवाल

*माँ  विद्या का दान दे दे* ********************* माँ शारदे की सूरत मन को लुभा रही है, वीणा  से   मातेश्वरी झंकार ऐसी कर दे, अज्ञानता को माँ शारदे जीवन से मेरे मिटा दे। है ज्ञान की कमी माँ तम ने है मुझको घेरा, अज्ञानता ने आकर माँ दिल में  किया  बसेरा, श्रद्धा के  तेल  से  माँ दीपक तेरा जला रहा हूँ।  एक ही आस  तुम हो बाकी  है ये जग झूटा, विश्वास बस तुम्हीं  तुम हो माँ शारदे करुणा बरसाओ, अज्ञानी कह कर  ये दुनिया मुझको    बुला  रही   है।  खुल  जाय   बन्द   चक्षु ऐसी विमल बुद्धि माँ दे दो, भर  दो कलम  में  स्याही भाओ के द्वार माँ खोल दो, विद्या के   दान   से   माँ झोली तू मेरी माँ भर दे। ******************** कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

नूतन लाल साहू

प्रश्न किस रंग में रंगू,मैं कि प्रभु जी का दर्शन हो जावे किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी मेरा मार्गदर्शक बनें। राधा जी ने,रंगी थी प्रेम रंग में श्री कृष्ण जी,राधा का हुआ बजरंग बली ने,लगाया था बंदन को हृदय चीर,सीता राम को दिखा डाला किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी का दर्शन हो जावे। मोह माया से मेरा मन हट जावे जीवन अपना सफल बनें ऐसा रंग मुझे बता दो,सदगुरु जी कि हृदय में राम नाम का दीप जलें किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी का दर्शन हो जावे। सब दोस्त है,अपने मतलब का दुनिया में किसी का कोई नही जब पैसा हमारे पास में था तब दोस्त था, लाखों में ऐसा रंग मुझे बता दो, सदगुरु जी कि प्रभु जी के चरण कमल तक मैं,पहुंच सकूं किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी का दर्शन हो जावे। यह संसार स्वप्न की रचना संग चले नही,तन भी अपना इस बंगले में दस दरवाजा बीच पवन का खंभा ऐसा रंग मुझे बता दो, सदगुरु जी कि भवसागर पार, मैं हो जाऊं किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी का दर्शन हो जावे किस रंग में रंगू, मैं कि प्रभु जी मेरा, मार्गदर्शक बनें नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ---- 28/07/2021                    ------ शोषण ----- शोषण अत्याचार के , निर्धन लोग शिकार । तरस रहे हैं आज भी , तलाशते आधार ।। तलाशते आधार , करे जो इनका पोषण । करते मिले हलाल , आज तक होता शोषण ।। शोषण कोई तब करे  , जब तक रहें गुलाम । मुक्त हुए उस बंध से , गया काम अरु नाम ।। गया काम अरु नाम , रहे फिर जीवन तोषण । होता हिय उद्गार , समझ क्या आया शोषण ।। शोषण नारी का हुआ , आदि काल पर्यन्त । कठपुतली नर हाथ की , समझे कैसे कन्त ।। समझे कैसे कन्त , भाव का करते चोषण । करता मन विद्रोह , देख कर इनका शोषण ।। शोषण अब तो बन्द हो , दो पूरा अधिकार । मूल धार से जोड़िए , कर उसका सत्कार ।। कर उसका सत्कार , मंच पर कर उद्घोषण । प्रगति प्रखरता साथ , करो मत कोई शोषण ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) ●◆■★●◆■★●◆■★●◆■★●◆■★●◆

डॉ निशा माथुर

हरा हरा रंग, हरा हरा मौसम हरे हरे पर्ण पल्लव हरी प्रकृति, हरी सृष्टि ,पंछी भी कर रहे कलरव बुध हरिद्र है, बुध हेरम्भ ,बुद्ध है हरित विनायकवं हरा रंग है ,हरे रंग में रंग ले , बुद्ध विध्न हर्णेश्वरं। ................................................... तो आज सावन की बूंदों का ठंडा ठंडा कूल कूल मजा लीजिये। मस्त मस्त बरखा बहार के साथ जिंदगी का भरपूर मजा लीजिये। नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल- हर तरफ़ है ख़ूब चर्चा आपके किरदार की इसलिये भड़की है ख़्वाहिश आपके दीदार की  रोज़ी रोटी की तमन्ना में जवां दर दर फिरें इस तरफ़ जाये नज़र कब देखिये सरकार की  कर दिया ऊपर से रोगन ख़स्तगी देखी नहीं ज़िंदगी कैसे बचेगी सोचते दीवार की  बाग़बां को आयेगा कब बाग़बानी का शऊर शाखे-गुल मुरझा रही है इन दिनों  गुलज़ार की  हर किसी को अपनी अपनी ही पड़ी है आजकल कौन कर पायेगा ऐसे में मदद लाचार की  गिर गया मेयार फ़न का इस कदर है दोस्तो कौन क़ीमत पूछता है आज के फ़नकार की किस कदर दिलदार है *साग़र* मेरा महबूब भी  ग़लतियाँ मेरी भुला देता है सौ सौ  बार की  🖋️ विनय साग़र जायसवाल,बरेली 27/7/2021

मधु शंखधर 'स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया                बारिश बारिश के अंदाज से ,  धरती हुई निहाल। धरती की अति प्यास को, बुझा रही तत्काल। बुझा रही तत्काल , जिया की प्यास हमेशा। अनुपम अद्भुत दृश्य , प्यार का दे संदेशा। कह स्वतंत्र यह बात , प्रीत की पहली ख्वाहिश। भीगूँ प्रिय के साथ , हमेशा हो यह बारिश।। बारिश में तन भीगता ,  मन का झंकृत तार। पिया मिलन से हो सुखद, भाव ह्रदय उद्गार। भाव ह्रदय उद्गार , प्रकट यह खुद ही होता। नाचे मन का मोर , चैन भी मन का खोता। कह स्वतंत्र यह बात , लगे तब बूँदें आतिश। प्रियतम आए पास , प्रिया तन भीगे बारिश।। बारिश की टिप टिप सदा , सप्त सुरों का वास। इंद्रधनुष के रंग से , बादल करता रास। बादल करता रास , चाँद भी तब छिप जाता। प्रिया साथ हो रास , चाँद यह मौका पाता। कह स्वतंत्र यह बात , चाँद यह करे गुजारिश। बरसो मेघा आज ,  मुझे अति प्रिय है बारिश।। मधु शंखधर 'स्वतंत्र प्रयागराज

दिलीप कुमार पाठक सरस

~गीत मुस्कराते तुम रहो गीत मैं रचता रहूँ, मीत गाते तुम रहो | मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो|| तरुवरों ने दी तुम्हें, गंध गंधिल प्यार की|  दुख-कथानक भूलकर, छाँव दी आधार की|| फूल-सी है जिंदगी, खिलखिलाते तुम रहो | मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो || रूप कितने लो बदल, अंत होता है नहीं | लौट आता दूर जा, घूम-फिरके फिर वहीं|| दीवटों के क्रोण में, जगमगाते तुम रहो | मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो || आँसुओं को पोंछकर,हो हवाओं-सा मगन | नाप लो सारी धरा ,नाप लो सारा गगन || चाँद बनकर रात में, झिलमिलाते तुम रहो | मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो || गीत मैं रचता रहूँ, मीत गाते तुम रहो | मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो || 🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️ ~© दिलीप कुमार पाठक "सरस "

मन्शा शुक्ला

दिल में  बसी तेरी मूरत वो श्याम  मुरली वाले मिलता  नही शुकुन दर्शन  किये  बिना नैनो  को  मेरे  तेरे दीदार की  आदत सी हो गयी है। नित्य जाना तेरे दर पे करना अरज चरण में रसना को मेरी तुमसे विनती  करने  की आदत सी हो गयी है। तुम ही तो एक मेरे हमदर्द हो कन्हैया दुख दर्द अपना तुमसे कहने की आदत सी हो गयी है। सुनोगे कभी तो आवाज मेरी हरोगें व्यथा  पीर मेरे हृदय की भरोसा  है मुझको  कृपा पर तुम्हारी दया की तेरे मुझको आदत सी गयी है। मन्शा शुक्ला अम्बिकापुर

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय।।जीवन/जिंदगी।।* 1 गिर कर    चट्टानों   से   पानी  और तेज     होता है। वही जीतता  जो       उम्मीदों से लबरेज   होता है।। गुजर कर    संघर्षों से  व्यक्ति और है मजबूत बनता। भागता और तेज   जब   नीचे कांटों का सेज होता है।। 2 दीपक के तले  सदा     अंधेरा    ही     रहता        है। पर खुद जलकर  उससे रोशन सबेरा      बहता  है।। मुश्किलों में ही    आदमी  को अपनी होती पहचान। सफलता का हर  चेहरा   यही बात  कहता       है।। 3 मुसीबतों में ही    उलझ    कर शख्सियत निखरती है। गलत हो सोच  तो       जिंदगी फिर     बिखरती    है।। जैसी नज़र   रखते    नज़रिया वैसा जाता   है   बन। आशा और विश्वास   से ही हर तकलीफ    गिरती है।। 4 जीवन का   सफल    आचरण अलग    होता      है। तकलीफ़ का अपना   आवरण अलग    होता     है।। संघर्ष की भट्टी में तपकर सोना बनता   है      कुंदन। कामयाबी का  यही   व्याकरण    अलग   होता      है।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।।।* मोब।।।।।।      9897071046                       8218685464

डॉ० विमलेश अवस्थी

राम नील कमल के समान, साँवरो सलोनो अंग, वाम भाग सोहे अति, मिथिलाकुमारी है i स्कन्ध धनु विशाल, कटि में कसे निसंग, हाथ विकराल सर, मानो चिनगारी है i सिंह के समान वक्ष, वीर रूप प्रति अक्ष, शत्रु न टिके समक्ष, ऐसे बल धारी हैं । भानु वंश दिनमान, तेज शूरता निधान, रघुवंश अवतंस, वन्दना तिहारी है i *********************2 तेज पुंज दया धाम, सत्य साधना ललाम, राघवेन्द्र अभिराम, बार बार वन्दना i भानु से प्रकाशवान, उच्चता में हिमवान, राम राम के समान, बार बार वन्दना । सन्त हितकारी राम, शत्रु मदहारी राम, शर,चाप धारी राम, बार बार वंदना । खेद ,भय हर्ता आप, कर्ता और भर्ता आप, दनुज संहरता आप, बार बार वन्दना i स्चनाकार ङॉ० विमलेश अवस्थी कविएवम् वरिष्ठ नागरिक

संजय जैन बीना

*सावन में तड़प* विधा : कविता बचपन खोकर आई जवानी  साथ में लाई रंग अनेक।  दिलको दिलसे मिलाने को देखो आ गई अब ये जवानी।  अंग अंग अब मेरा फाड़कता  आता जब सावन का महीना।  नये नये जोड़ो को देखकर मेरा भी दिल खिल उठता।।  अंदर की इंद्रियों पर अब  नहीं चल रहा मेरा बस।  नया नया यौवन जो अब अंदर ही अंदर खिल रहा।  तभी तो ये दिलकी पीड़ा अब और सही नहीं जा रही।  ऊपर से सहेली की नई बातें दिलमें आग लगा रही है।।  कैसे अपने मन को समझाये दिलकी पीड़ा किसे बताये।  रात रात भर हमें जगाये  रंगीन सपनो में ले जाये।  भरकर बाहों में अपनी वो प्रेमरस दिलमें बरसाये।  और मोहब्बत को अपनी हमरे दिलको दिखलाये।।  सच में ये सावन का महीना  आग लगाकर रखता मनमें।  और न ये बुझाने देता है अंतरमन की आग को।  कभी कभी खुदके स्पर्श से खिल जाती दिलकी बगिया।  फिर बैचेनी दिलकी बड़ जाती मन भावन की खोज में।।  जय जिनेंद्र देव  संजय जैन "बीना" मुंबई 28/07/2021

मार्कण्डेय त्रिपाठी

गंगा  मैया मानचित्र भारत का मुझको , शिव जी जैसा लगता है । बिखरे जटा जूट, हिमगिरि वन, सिर गंगा जल फबता है  यदि देखें भारत गाथा तो , मुझको ऐसा लगता है । एक समय था उत्तर भारत, जल बिन सूना दिखता है ।। हिमगिरि पर जलधारा थी पर, उसको नीचे लाता कौन । विफल हुए थे यत्न अनगिनत , थके लोग, बिल्कुल थे मौन ।। भगीरथ के पूर्वज तत्पर थे , किया उन्होंने बहुत प्रयास । किंतु सफलता नहीं मिली, तब वे भी थककर हुए निराश ।। राजा भगीरथ अभियंता थे , जो थे अटल व्रती,जन चाह । अपने साहस,तप के बल पर, सजग निकाले जल की राह ।। गंगोत्री से शुरू हुआ पथ , पहुंचा वह हरिद्वार, प्रयाग । अंत समय गंगा सागर तक, पहुंचा,बुझी हृदय की आग ।। पाकर गंगा का पावन जल , उपजा मन में स्नेह अपार । हुआ प्रफुल्लित जन मानस तब , उसको मिला मुक्ति का द्वार ।। गंगा, मां बन गई तभी से , पूजा नित होती उसकी । प्रमुख नगर हैं गंगा तट पर , शोभा अगणित है जिनकी ।। गंगा केवल नदी नहीं है , वह हम सबकी आशा है । उसकी अमृत धार बिना , जीवन में घोर निराशा है ।। मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

रंजना कुमारी वैष्णव

प्रकृति की गोद में शांत चित्त बैठी आज मैं प्रकृति की गोद में । आह! क्या नजारा हैं, मनोरम छवि प्रकृति की । वो पहाड़ो को चीरता सूरज,  ये वृक्षों पर छाई अमर बैलों की घटाए,  पैरों को छूकर कल-कल बहती नद,  कलरव पक्षियों का आखेट नजारा... सब कितने व्यस्त और मस्त हैं, फिर मैं क्यूं एकांत ढूंढ रही हूँ?  पर कुछ तो सोच रही मन ही मन में... जब ये विशाल पहाड़ सूरज के उदीयमान को नही रोक पाते , ये वृक्षों पर छाई अमरबेल टहनियों को नही जकड़ पाती,  कल-कल बहती नदियों को कितना ही छिन्न -भिन्न कर दो,  परन्तु नव राह संचार कर अपने लक्ष्य तक पहुँच ही जाती... फिर मैं क्यूं मन मार रही? ये नादान पक्षी बच्चों संग ठिठोली कर कोसो दूर तक है जाते,  सांझ ढले आशियाना मिलेगा या नहीं कभी ना जान पाते,  जो उजड़ा आशियाना तो फिर निर्माण मे लग जायेंगे , पर हार मान ले जिंदगी मे कभी ना हमें सिखायेंगे...  तुच्छ लगती चींटी सबको मेहनत करना सीखा देती, कुछ भी असंभव नही दुनिया मे अच्छे से समझा जाती।    रंजना कुमारी वैष्णव

विजय कल्याणी तिवारी

गंगा जाता डूब --------------------------------- पापी पाप उतारने गंगा जाता डूब भावों में संक्रमण हुआ और अकड़ता खूब। बुद्धिमान बनता बहुत छली छलावा क्षूद्र भूल गया सब देखते मरघट से ही रूद्र। नयन नही करुणा सखा हृदय नही है प्रीत फिर भी मूरख चाहता इस दुनिया मे जीत। सम्मुख भूखा रो रहा नहि पिघला पाषाण तब पछताएगा सखा जब तन निकले प्राण। मन बदलो गंगा चलो एक मेव है रीत सुंदर सुंदर शब्द से सजे सुरीला गीत। पथिक पंथ आनंद मे मधुर मनोहर भाव निष्कंटक हो फिर चले भव सागर मे नाव। पार उतरने मे प्रिये रखता क्यों संदेह भागवान को ही मिले उस दाता का नेह। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव

महाकाल भोले शंकर ही कोरोना को मारेंगें पाकर वरदान भस्मासुर ने,अपना आतंक मचाया। भस्मासुर को शंकर जी ने, किया भस्म और मारा। इस वैश्विक महामारी को भी,केवल वही तो टारेंगे। महाकाल भोले शंकर ही,ये कोरोना को भी मारेंगे। बहुतबड़ा ये काल बना है,जीवन सबका खतरे में। नौकरी व्यापार दिहाड़ी,सब कुछ पड़ा है खतरे में। रोजी रोटी के लाले पड़ गये,बंद होगये सब काम। मजदूरों का तो बुरा हाल है,कहीं नहीं कोई काम। शासन सरकारें सहयोग देरहीं,कोई न भूखा सोये। मानवता के सभी पुजारी,कर रहे हैं सेवा जो होये। कच्चा पक्का दोनों राशन,नित्य ही गरीबों में बाँटें। मरे भूखसे न कोई नर सेवा है,दुःख नारायण छांटें। किसान न होते धरती पर,तो कहाँ अन्न फिर पाते। अन्नसब्जी को लोग तरसते,सोचो फिर क्या खाते। कोरोना वारियर्स केही जैसे,इनका भी हो सम्मान। भूखों सब मर जाते यदि,ना होते मेहनती किसान। सब है कृपा प्रभू की भइया, रक्षक है कृपानिधान। संकट की इस घड़ी सहायक, केवल एक किसान। बहुत सब्र करलिया,सह लिया पूरा-2 लाकडाउन। टारो अब प्रकोप इसका,मृत्युदर भी तो हो डाउन। जैसे शिवतांडव करके प्रभु,हर अहंकारी को  मारे। वैसेही कोविड19 को मारें,दिखे ना किसी

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

                                कविता              गाँव की गलियाँ                   ~~~~~             शुद्ध,हवा,शुद्ध खान-पान,              मधुर वाणी शिष्ट व्यवहार।             मेरे गाँव की गलियाँ,             मनभावन तीज त्यौहार।।            खेत खलिहान धरोहर,            छाछ राबड़ी वो चटनी।            मेरे गाँव की गलियाँ,            छाप छोड़ती जो अपनी।।           पक्षी कलरव मनमोहक,           जैव विविधता मन भाती।           मेरे गाँव की गलियाँ,           सुखदायक प्यार लुटाती।।           घर आँगन सुंदर संस्कृति,           आन-बान-शान निराली।           मेरे गाँव की गलियाँ,           नयनाभिराम मतवाली।।          पावन संस्कृति की शोभा,          चहल-पहल थी सुखकारी।          मेरे गाँव की गलियाँ,          जय हो भारत माता की।।          ©®             रामबाबू शर्मा राजस्थानी दौसा(राज.)

निशा अतुल्य

सावन   बारिश की बुंदियों से सज गई धरा प्यारी नित-नित देखो कैसे बदरा लुभाती है । बदरा हैं कारे कारे  पीयु पीयु मनवा रे सावन की ऋतु देखो मन मेरे भाती है । धानी सी चुनर ओढ़ तीखी कजरे की धार गजरा लगा के केश पिया को सताती है । मेहंदी से रचे हाथ बिंदिया सजे है माथ झुमका जो मुख चूमें बड़ी इतराती हैं । स्वरचित निशा अतुल्य

आशु शर्मा

शोर है हर तरफ जंगे हालात का  साजिशें तोड़ने की मकां रेत का  जान पहचान इतनी निकालो न तुम  और मतलब निकल जाएगा बात का  देखता जब भी हूँ जुल्फ खोले उसे  गुनगुनाता हूँ मुखड़ा किसी गीत का  आ न जाना ज़माने की बातों में तुम  रास्ता ये दिखा दें हवालात का  देखना वक़्त मेरा गुज़र जाएगा  जिक्र होगा नही फिर से इस रात का  आसमां आ मिलेगा ज़मी से कभी  कौन है जो करेगा यकीं बात का बात झूठी नहीं कोई कहता यहाँ झूठ सच बन गया ज़िन्दगी मौत का (जंगे हालात- जंग ए हालात) रचनाकार आशु शर्मा  मुम्बई

वंदना खरे मुक्त

  विषय -मित्रता के रंग मिलते नही अब मित्र वो,  जिनमे कृष्ण सुदामा बसते हों,  है नही वो नाभि कहीं जहां सुगंध कस्तूरी हो,   हर ओर पनप रही ईर्ष्या,  मित्रता बस छलावा है,  ऊपर से बस प्रेम बरसता,  अंदर जलती ज्वाला है,  खेल है बस स्वार्थ का,  केवल पाने की आशा है,  मित्रता की मर्यादा भंग हो गई,  दोस्ती को बना दिया दिखावा है,  जिनके हाथों में हाथ दिया है ,  वही खींचते टांग हमारी,  क्या कहें ? कैसे कहें ?  कैसी है अजब ये उनकी यारी।  मित्रता  का पहने नकाब,   छुपे हुए हैं दुष्ट सभी,  दिन में जाने कितने कितने बदलते हैं मुखोटे सभी।  कलयुगी इन मायाधारी,  मित्रो के कुचक्र में फंसी हुई,  बस याद उन्हें ही करती हूँ , जो थे बचपन मे संग कभी।  नयनों में झूलती है मधुरता,  वाणी की उनकी कोमलता,  वो अबोध बालपन की हृदयता,  कितनी निश्छल थी वो निर्मलता।  बस संग संग चलते थे हम सब,  छल प्रपंच से दूर कहीं,  सुख दुख के हम सब साथी थे,   एक ही आसमाँ के तो तारे थे,  न कोई छदम, न कोई आवरण,  बस एकात्म का किया था वरण।  आज एकांत की इस नीरवता में,  ढूंढती हूँ वही पुराने संग सखा, कोई लौटा दे हाय वो संग सखा।  हो जाऊं आज फिर से

सत्य प्रकाश शर्मा सत्य

एक गीतिका समान्त  अती पदान्त आँखें मात्रा भार 32 मात्रा पतन  नहीं कष्ट हुआ है तन को लेकिन झर -झर-झर -झर झरतीं आँखें नम्र स्वभाव बहुत ही इनका पर दुख देखीं वहतीं आँखें छिपे हृदय के भाव कहे बिन कहतीं और समझ भी जातीं चंचल स्वेत श्याम रतनारी पढ़ी फ्लौस्फी लगतीं आँखें जहाँ परस्पर मिल जातीं हैं प्रेम रोग पैदा कर देतीं करें विकल दिल कुटुम्ब तोड़ें काम बहुत कुछ करतीं आँखें सूना -सूना अंधकार मय सब संसार लगे इनके बिन एक बार मन मोहक देखें पुनि -पुनि झुकि -झुकि पड़तीं आँखें कहतीं सुनतीं लाज लजीली इन में सदा शौर्य औ पानी "सत्य" कोध यदि हुआ हृदय में शोले जैसी जलतीं आँखें सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य"✍ निवासी -पुरदिल नगर ( सि० राऊ ) मो०-8273950927

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

नमन मंच विधा-बाल गीत विषय-तितली रानी तितली रानी तितली   रानी, प्यारी  न्यारी  तितली  रानी। फूलों  पर हो  धूम   मचाती, इधर  उधर   उड़ती    जाती, तुम लाल हरी  नीली   धानी, तितली रानी तितली   रानी। खुश हो बच्चे  दौड़  लगाते, उछले कूदे  पकड़  न  पाते, लख  सुंदरता  हो    हैरानी। तितली रानी तितली  रानी। फूलों में तुम हो छिप जाती, बाल जगत को  हो  हर्षाती, पीली   सतरंगी     मस्तानी, तितली रानी तितली   रानी। पतली पतली  छोटी  काया, कितनी  प्यारी   तेरी  काया, हम सब  सुनते सदा कहानी, तितली रानी तितली  रानी।। तितली रानी तितली   रानी, प्यारी  न्यारी तितली  रानी।। ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम,  कानपुर 9935117487

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 दोहे (धोखा) धोखा से धोखा मिले,धोखा घातक होय। धोखा कभी न कीजिए,धोखा से सुख खोय।। साधु-संत सँग जो करे,धोखा और अनीति। ऐसे जालिम से कभी,करे न कोई प्रीति ।। दमन-दंभ,धमकी-कपट, छल-प्रपंच हैं पाप। धोखा इनका मीत है,करें कभी मत आप।। धोखा देना मीत को,है जघन्य अपराध। दो दिन के इस खेल में,मात्र प्रीति से साध।। सीय-हरण रावण किया,बना कपट आधार। नष्ट स्वयं हो कर किया,सकल बंधु-परिवार।।                  © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                      9919446372

रामकेश एम.यादव

फूल! रंग - बिरंगे   फूल   हमें   बुलाते  हैं, हम उन्हें, वो  हमें  देख  मुस्काते हैं। खुशबू  बिखेरते  रहते  फिजाओं में, हमारे  खोये   सपने  वो  सजाते  हैं। हवा के झोंकों  से वो  हिलते हैं जब, बड़ी ही  सादगी  से  गले  लगाते हैं। फूलों से  हमारा है  अनजान  रिश्ता, बड़े  अदब से  वो रिश्ता  निभाते  हैं। कुदरत ने हुस्न  बख्शा है  फूलों  को, तितलियों  को रोज  रस  पिलाते हैं। बदलती है रुत औ बदलता है मौसम, खिज़ा के आने से वो नहीं घबराते हैं। जब  कोई  जाता  है  उनकी  गोंद में, उसकी  पाठशाला वो बन  जाते   हैं। गलियों में उनके न  छाता अँधियारा, जुगुनू की  रोशनी  से नित्य नहाते हैं। पाकीजगीभरी आँख से देखते सभी को, पाते हैं शरीफ  तब   खिलखिलाते हैं। नहीं  घबराते  इस  क्षणिक जीवन से, सर्वस्य लुटाकर जन्म सफल बनाते हैं। रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

पुष्पा निर्मल

काव्य रंगोली परिवार।  "मेरे मन की यह अभिलाषा" मेरे मन की यह प्रचण्ड अभिलाषा है। मनसा मेरी परोपकार की हो पूरी, आशा है। मैं किसी के लिए भला यथासंभव आजीवन करता जाऊँ। अपने लिए तो सभी जीते, औरों खातिर जी कर दिखाऊँ। समाज के लिए कुछ लोग हीं कर पुज्य होते हैं। मानवता के नाते हम चलो महासंकल्प लेते हैं। मैं भी कुछ कर पाऊँ, शक्ति प्रभु से प्रार्थना दोहराऊँ। समाज के कल्याण हेतु बहुत कुछ कर बढ़ता जाऊँ। लेते प्रण बड़ा काम हम सबको मिल कर करना है।                        पशुवत् स्वार्थी नहीं उदार मानव हमको बनना है। शंखनाद कर मन की अभिलाषा को पूर्ण करना है। सेवा और त्याग धर्म हमारा- सभों को सुखी करना है। पुष्पा निर्मल बेतिया, बिहार।✍️  27/07/2021

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक - (भारत रत्न) ए पी जे अब्दुल कलाम पंद्रह अक्टूबर उन्नीस सौ इकतीस तमिलनाडु रामेश्वर कस्बे में जन्मा अरुण ललाम जैनुलाबदीन आशियम्मा के घर प्रकटा सपूत आदर्श महान अनाम जो आगे चलकर बना अति प्रखर ज्योतिपुंज अब्दुल कलाम भारत सदा ऋणी रहेगा हम सब करते हैं उन्हें कोटि कोटि प्रणाम सादा जीवन उच्च विचार उनके कर्म रहे सदा निष्काम सर्व धर्म समभाव के प्रतीक रहे बढ़ाते रहे मान देश का अविराम सदैव कर्म में विश्वास किया स्व स्वार्थों को दिया विराम भारत की पावन पुण्य धरा का कण कण करता तुम्हें सलाम सदा अनुसंधान रत रहे पाये बहुत बहुत पुरुस्कार सम्मान पहले वैज्ञानिक वैमानिकी बने फिर बने भारत राष्ट्र प्रधान जीवन भर शाकाहार किया कभी किया न मदिरा पान विक्रम साराभाई से प्रेरणा पाई, नासा से लौट बनाया 'नाइक अपाचे' राकेट विमान पद्म विभूषण  भारत रत्न बने , बने मिसाइल मेंन प्रखर महान इगनीसाइड माइंड, विंग्स आफ फायर , सदा रहेंगे युवाओं के तीर-कमान सत्ताईस जुलाई दो हजार पंद्रह की शाम अस्ताचलगामी हो गया भारत का अभिमान युग पुरुष युग दृष्टा थे कलाम तुमको युगों-युगों तक याद करेगा हिन्दुस्तान                    

अतिवीर जैन पराग

दो मुक्तक  गुरु पूर्णिमा  गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाएं गुरूओं को याद करें ।  क्यों छोड़ी गुरु शिष्य परंपरा आओ बात करें ।  शिक्षा दान बना व्यवसाय कैसे त्याग करें ।  व्यास पूर्णिमा के पर्व पर गुरु व्यास को याद करें ।  पेगासस जासूसी  पेगासस जासूसी देश द्रोह बतला रहे ।  राहुल माइनो फिर राफेल राफेल गा रहे ।  देश के राज पाक चीन को बतला रहे ।  चीन - कॉंग्रेसी समझौते का कर्ज चुका रहे ।  इंजिनियर अतिवीर जैन " पराग " मेरठ मोबाइल : 9456966722 . मेल : ativir.jain@gmail.com

विजय मेहंदी

     डाo अब्दुल कलाम तुझे सलाम     सलाम-        सलाम-           सलाम,     डाo अब्दुल  कलाम    तुझे   सलाम।     15-अक्तूबर    सन-19सौ इक्कतिस,     दक्षिण  भारत  के  तमिलनाडु  प्रान्त,     सन्निकट     रामेश्वरम   था      कस्बा,     जन्म लिये धनुषकोटि  था       ग्राम।     डाo अब्दुल कलाम  तुझे      सलाम।    सलाम--------सलाम---------सलाम,    डाo अब्दुल कलाम    तुझे    सलाम।।    प्राइमरी स्कूल में  शुरू किया   पढ़ाई,    किया  स्नातक  विषय  रहा    विज्ञान।    करने  को  भारतीय  फौज  के लाइन,    तूँ      हेलीकाप्टर    किया   डिजाइन।    छोड़ के   तूँ         रक्षा      अनुसंधान,    थाम्ह    लिया   अंतरिक्ष    अनुसंधान।    किया    शुरू     उपग्रह    का    काम,    डाo  अब्दुल कलाम    तुझे    सलाम।    सलाम-सलाम---------------------    "रोहिणी" उपग्रह   आकाश   दिखाया,    निकट   पृथ्वी    के    स्थापित    कर,    किया   गौरवमई     अपना   योगदान,    डाo अब्दुल कलाम       तुझे सलाम।    सलाम-----सलाम------सलाम,------    बने     "निदेशक"-   विकास   संगठन,    सहित    तूँ   भारतीय रक्षा अ

अमरनाथ सोनी अमर

प्रदत्त बिषय पर रचना अर्पित!  बिधा- दोहा!  जीवन ऐसा तुम जियो, समझो हम दिर्घायु!  नेक कर्म करते रहो,मानों- मत अल्पायु!! 1!!  नेक कर्म से आपका, बढे़ आयु तुम जान!  भले बिदाई हो गयी, लेकिन अमर जवान!! 2!!  मानव जीवन में सदा, रहता ग्रंथ महत्व!  धर्म, कर्म अरु नीति का, उसमें सब है सत्व!! 3!!  ग्रंथों से शिक्षित हुआ, बनता वही बलिष्ठ!  सब बिधि संयम वह करे, जाये बन धर्मिष्ठ !! 4!!  अपनें जैसा मानिये,जीव -जंतु तुम भ्रात!  राखो सम ब्यवहार तुम, सब तो हैं निज तात!! 5!!  कभी नहीं दुर्भावना, पालो मत दिलदार!  प्राँणी सब हैं आपने, कर लो इनसे प्यार!! 6!!  अमरनाथ सोनी अमर 9302340662

मार्कण्डेय त्रिपाठी

आंखें आंखें सच दर्पण हैं मानो, सारे भेद बताती हैं । कभी हास्य तो कभी रुदन बन, सब कुछ वे कह जाती हैं ।। आंखों में ही प्यार झलकता, शर्म,जुगुप्सा, आंखों में । आंखों में अद्भुत ज्वाला है, सृष्टि बदलती राखों में ।। आंखों की भाषा को पढ़कर, काम अनेकों होते हैं । आंखों की है कृपा निराली, प्राणी जगते सोते हैं ।। आंखों की पीड़ा से सच, सरकारें भी गिर जाती हैं । पड़ा मुसीबत में जीवन तो, आंखें भी फिर जाती हैं ।। आंखें द्वय धोखा देतीं तो, खुल जाते हैं अंतर्चक्षु । सूरदास रचते हैं सागर, होते अगणित संत मुमुक्षु ।। आंखों के सपनें सच हों तो, यह जीवन खिल जाता है । होती आंखें चार जभी, तो जग मधुमय बन जाता है ।। स्वस्थ, चमकती आंखों में सच, सत्य दिखाई देता है । प्रभु आंखों की कृपा हुई तो, जगत् बधाई देता है ।। आंख बिना सूना है सब कुछ, आंखों का उपचार करो । नई रोशनी दे आंखों में, मानव का उपकार करो ।। मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

सुधीर श्रीवास्तव

मिसाइल मैन कलाम ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ 15 अक्टूबर 1931को जन्में   रामेश्वरम, तमिलनाडु के गरीब मुस्लिम परिवार में कलाम धरा पर आये। गरीबी की छाँव में अनेकों कष्ट सहकर दुश्वारियों से लड़़कर रार जैसे ठाने थे, अभावों, असुविधाओं के बीच हौंसले की चट्टान सदृश्य जूनून था जज्बा था, कुछ कर गुजरने की चाह और जीतने के इरादा था। गरीब मछुआरे के लाल की आँखों में बड़ा सपना था, बस वही सपना पतवार बन गया, तमाम झंझावातों के बीच सपनों को उड़ान मिल गया, देश को अद्भुत विलक्षण कलाम रुपी जैसे अलग ही मिट्टी का बना होनहार लाल जमीन से उठा तो आसमान में चमक गया। इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक ही नहीं  लेखक, प्रोफेसर, तो क्या देश के प्रथम नागरिक का गौरव भी पा गया, फिर भी कलाम  हमेशा आम आदमी बन जीवन बिता गया। राजनीति का अनाड़ी होकर भी भारत के 11वें राष्ट्रपति बन अपनी छाप छोड़ गया  देशवासियों के दिल में  अपने को बसा गया। जीता आपने देश का दिल मिसाइल की दुनियां में  देश को आगे लाये, पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में अटल जी की दृढ़ता संग कलाम जी बड़ी भूमिका निभाए । इसरो में बतौर इंजीनियर पृथ्वी, आकाश, नाग, त्रिशूल  मिसाइलों का आविष्कार किया, सदा सीखते र

डाॅ० निधि

पावन शिव अर्चना कोटिक सूर्य सम प्रखर, शिव का लिंगी रूप।  पाप, दोष का नाश कर, देत वर लिंग अनूप । नारायण  अरु  देव    ब्रह्मादि,  सेवत पूजत नित शिवलिंगी।  चन्दन ,कुमकुम ,पुष्प समर्पित,  लेपत सुवर्ण सुगन्धित लिंगी। अन्तस का तुम दीप जला लो, नमः शिवाय का जाप लगा लो।  शिव ही तो हैं घट -घट वासी,  मन चाहा वर शिव से पा लो।  दसों दिशाओं में शिव रहते,  शिव ही पंच तत्व को गढ़ते। कण-कण भीतर बसे शीव जी, शक्ति के बिन शव हैं शीव जी।  शिव को सदा हृदय में रखिये,  स्वयं समर्पित शिव पर रखिये। मन में शिव अरु तन हो शिवाला,  शिव,शिव,शिव,शिव नित शिव भजिये।  शिव को सादर शीश झुकाना,  अन्दर -बाहर सब शिव जाना।  शिव देखत सब तेरी करनी,  क्यूँ कर चाल चलत विधि नाना।  सब देवों के देव तुम , महादेव तव नाम।  हाथ जोड़ विनती करूँ, कीजै जग कल्यान।  डाॅ० निधि   *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*

डॉक्टर त्रिलोकी सिंह

प्रणय से परिणय तक    ================ इत्तेफाक वश ही तो हम-तुम, जिस दिन पहली बार मिले थे। सचमुच हम दोनों के दिल में, उस दिन आशा-दीप जले थे।। 1 ।।         उस दिन से फिर हम दोनों का,         मिलना बारम्बार हो गया।         फिर तो दोनों ही पक्षों से,         प्रणय-भाव स्वीकार हो गया।। 2।। उर में प्रेम-पुष्प खिलते ही, प्रेम-पराग लगा जब उड़ने। प्रेम-सुवास हुआ जब प्रसरित, अनुदिन प्रीति लगी तब बढ़ने।। 3 ।।           प्रणय-बेलि बढ़ते-बढ़ते ही,           सत्वर जा पहुँची अपनों तक।            हम दोनों की प्रेम-कहानी           फैल गई थी तब स्वजनों तक।।4।। फिर स्वजनों ने आगे बढ़कर, अपना लौकिक धर्म निभाया। हम दोनों के मौन प्रणय को, पावन परिणय तक पहुँचाया।। 5 ।।           परिणय-बन्धन में बँधने पर,           शमित हो गई सकल पिपासा।            आशा-किरणें जब फैलीं तो,           दूर हो गई सकल निराशा ।। 6।। आज हमारे नवजीवन का, सुरभित उपवन हरा-भरा है। दूर हुआ सारा सूनापन , घर-आँगन भी भरा-भरा है।। 7 ।।          सचमुच इत्तेफाक ही तो था,          वह हम दोनों के बचपन में।          प्रणय-भाव परिणय में परिणत,    

डॉ० रामबली मिश्र

हरिहरपुरी के रोले ममता मानव वृत्ति,सहज पहचान दिलाती। दुख के आँसू पोछ,जगत को दूध पिलाती। ममता खाती मार, मनुज जब होत अमानुष। ममता से संवाद,नित्य करता है मानुष।। ममता में है स्नेह,भाव की पावन  सरिता। ममता अमृत तुल्य, रचा करती प्रिय कविता।। यह संवेदनशील, दिव्य पावन हितकारी। ममता का शुभ राज्य, लोकमंगल शिवकारी।। ममता को मत त्याग, पकड़ इसकी प्रिय बाहें। यह मधुमय जीवंत, दिखाती दैवी राहें।। ममता की नित राह, पकड़ कर चल आजीवन। सब जीवों में बैठ,रचो सुंदर मन उपवन।। डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

गौरव शुक्ल

'' प्रकृति निस्तब्ध है यह हो गया क्या? हमारी गाँठ से कुछ खो गया क्या? दिशाओं में दसों हलचल मची क्यों? नमी बाकी न नयनों में बची क्यों? कहाँ रोयें,किसे पीड़ा दिखायें? कहाँ से सांत्वना हित शब्द लायें? विधाता ले गया क्या छीन करके ? गया यह कौन हमको दीन करके? + + + हमारे देश का श्रंगार था जो , हमारी ज्योति का आधार था जो। विलक्षण शक्तियों का जो धनी था, हमारे प्राण हित संजीवनी था। नसों में रक्त के जैसा प्रवाहित , हमारी चेतनाओं में समाहित; गया है कीर्ति के अकलंक रथ पर, 'मिसाइल मैन'वह स्वर्गीय पथ पर। + + + न कारण भी अधिक कुछ शोक का है, हुआ वह भूप नूतन लोक का है। दिखाने राह आया था हमें वह, सिखाया,जो सिखा पाया हमें वह। हमें शुचि पंथ के दर्शन कराकर, हमारे चित्त से कटुता भगाकर- धरा को प्रेम का संदेश देकर, गया है नेह का उपदेश देकर। + + + बिठाओ, शीश पर उसको बिठाओ, सजाओ ,भाल पर अपने सजाओ। करो साकार उसके स्वप्न आकर, सरलता, शीलता मन में बसाकर। रहे जीवित युगों तक साख उसकी, सहेजो प्रेरणा, ले राख उसकी। हुई है नष्ट मृण्मय देह केवल, मगर आत्मा हमारे संग प्रतिपल। विराजित श्रेष्ठता के शीर्ष पर हैं

सुनीता सुवेंद्र सिंह

ढाई आखर ढाई आखर से जुड़ गया जिसका नाता है, उसके रोम-रोम में ही संगीत बस जाता है। हो कश्ती कितनी भी जीवन की डांवाडोल पर, संगीत के सहारे वो तो पार उतर जाता है। जिसके हृदय में सिर्फ ढाई आखर  करे शोर, उसके रोम-रोम में ही बस संगीत समाता है। राग द्वेष के यंत्रों से जिनका मन हट जाता है, उसके रोम-रोम में भी बस संगीत  समाता है। बनकर साधक ढाई आखर का जो शिव से जुड़ जाता है सृष्टि के कण कण में उसे प्रेम संगीत नज़र आता है। आसमां से स्वर बरसते झूमकर गाता समीर धरा की धड़कन में रम जाता नेह का नीर ढाई आखर गूंजते सारी दिशाओं में स स्वर रह न पाता दूर इससे यत्न न करता असर वह तो बस प्रेम का दिनकर बन जाता है मन में निर्मल ज्योति जगाकर ज्योतिर्मय कर जाता है। सुनीता सुवेंद्र सिंह

रामकेश एम. यादव

डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम! तुझे महकता फूल कहूँ या, तुझे  अनंत  आकाश कहूँ। पूर्व राष्ट्रपति  मिसाइल मैन, या तुझे मैं  हिंदुस्तान  कहूँ। कलम में इतनी  शक्ति नहीं, मैं कैसे तेरा गुणगान करूँ? हे!   कर्मयोगी,   शिक्षाविद, किन शब्दों में  बयान करूँ। युवा पीढ़ी की शक्ति थे तुम, जाति - पाँत से  परे थे तुम। फकीराना  जिंदगी  जीकर, देश - प्रेम   से  भरे  थे तुम। अग्नि, त्रिशूल, पृथ्वी, नाग, और  बनाए   एटम -  बम। आज हमारी ताकत जग में, नहीं  किसी  से देखो  कम। अनुशासन प्रिय, शाकाहारी, कितने  अच्छे  कवि थे तुम। अंतरिक्ष,  स्पेस की  दुनिया, के   भी   सिरमौर  थे   तुम। रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे जीवन है जल-बुलबुला, आज आदि कल अंत। प्रेम सार है जगत का,कहते  पंडित - संत ।। प्रेम और सौहार्द पर,टिका हुआ संसार। इन्हें धरोहर मान लें,मंत्र जीवनाधार।। अपने को वर्जित रखें,करें न मदिरा-पान। साथ दुष्ट का त्याग दें,कभी न हो अपमान।। रहे प्रशासन चुस्त यदि,बढ़े न भ्रष्टाचार। मन-शुचिता के साथ हो,विकसित शिष्टाचार।। नहीं रहे आवागमन,ढूँढें उचित उपाय। मिले मुक्ति भव-जाल से,हों जब ईश सहाय।। पूण्य-कर्म देता सदा,जग सुख स्वर्ग समान। मन पाए संतोष-निधि,यह है कर्म महान ।। नैतिकता से मनुज का,हो व्यक्तित्व-निखार। नैतिक बल से विश्व भर,उसका हो सत्कार।।            © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                 9919446372

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावनमंच संचालक महोदया व माननीय श्री अवस्थी ।। पितातुल्य।। जी को हृदयतल की गहराइयों से मैं आप सभी को सप्रेम व सादर प्रणाम करता हूँ, तथा अल्पमति होते हुए भी समस्या पूर्ति की चेष्टा करता हूँ, अवलोकन करें....                                हूँ तो अग्यानी निर मूरख,                           बमभोले कछू ध्यान धरो।।।                         बचपन और जवानी खोया,                             मद आलस नहि मान करो।।                     पुण्यकाज कर सका न तीजे,                      चौथे में  सुभमान भरो।।                           हो सका क्या अन्त समय में,                    इच्छा शिव कल्याण करो।।                         आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा, चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।। मोबाइल...8853521398,9125519009।।

अनूप दीक्षित राही

ख़्वाब झूठे ही दिखाता है मुझे। ये इश्क़ हर पल सताता है मुझे।। दिल बोलना चाहे पर बोल पाता नही। बेजुबाँ ये कुछ बात बताता है मुझे।। हो गई है बात समझ से बाहर मेरे। रोज-रोज वो क्यूँ आजमाता है मुझे।। वादा था साथ चलेंगे हर एक मोड़ पर। हर कदम पर फिर क्यूँ गिराता है मुझे।। तमाम उम्र तो इसी बात का ही रंज रहा। जो अपना था वो ही रुलाता है मुझे।। लाख चाहा पर इससे बच पाया नहीं। ये नश्तर सा दिल मे चुभाता है मुझे।। अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

संजय जैन बीना

नया संसार विधा : कविता बचपन की यादों को, मैं भूला सकती नहीं। मां के आँचल की यादे, कभी भूल सकती नहीं। दादा दादी और नाना नानी, का लाड़ प्यार हमें याद है। वो चाची की चुगली, चाचा से करना। भाभी की शिकायत भैया से करना। बदले में पैसे पाना, आज भी याद है। और उस पैसे से, चाट खाना भी याद है। भाई बहिनों का प्यार, और लड़ना भी याद है। भैया की शादी का वो दृश्य, आज भी आंखों के समाने है। जिसमे भाभी की विदाई पर, उनका जोर से रोना याद है। खुदकी शादी और विदाई का, हर लम्हा याद आ रहा है। मां बाप के द्वारा दी गई, हिदायते और नसियाते।  मैं आजतक नहीं भूली  और न भूलूंगी। क्योंकि अपनी दुनियाँ को  मैं खोकर आई हूँ। पर दिलमें नई उमंगे लेकर, साथ पिया के आई हूँ। जो अब है मेरी जिंदगी के आधार स्तम्भ। मानो मेरी जीवन का यही है अब संसार। छोड़कर माता पिता और,  भाई बहिन को मैं। नये माता पिता नंद देवर,  भाई बहिन जैसे पाये है। छोड़ छोटी सी दुनियाँ को, मैं बड़ी दुनियाँ में आई हूँ। अब जबावदारियों का बोझ, स्वंय के कंधों पर उठाई हूँ। क्योंकि दिया पिया ने मुझे  इतना स्नेह प्यार जो।  जिससे अब खुद की  नई दुनियाँ बसाई हूँ। और जो कलतक  खुद

डॉ० रामबली मिश्र

दुर्मिल सवैया अभिषेक करो शिवशंकर का व्रत ले  शिव नाम जपा करना। मन ही शिव काम करे सहजा मन में मत पाप कभी रखना। सबके प्रति भावुक वृत्ति रहे मत क्रोध करो प्रिय सा रहना। अति शांत बने हर जाप करो हर काम शिवाय सदा चलना। शिव सावन में शुभ काम करो यह माह सुहावन है सुखदा। इस मास चलो जपते शिव को शिववार महोत्सव है वरदा। समझो अपना शुभ भाग्य जगा यह सावन है उपमा फलदा। रहते अविराम खड़े चलते सबके प्रति मोहक रूप सदा। सबको शिव दान दिया करते अति भावुक हो सबसे मिलते। खुश हो कहते चलते सबसे सब शांत करें जग को जलते। सबमें अतिमानव प्रेम पले शुभ मानव मान दिखे फलते। बल -पौरुष का उपयोग सहर्ष सहाय सुखाय शिवाय मते। मनमस्त सदा शिवशंकर का हर रूप निराल लुभावन है। शिवशंकर का यह सावन उत्तम पावन भव्य सुहावन है। अति शीघ्र प्रसन्न सदा शिवशंकर प्रेम निधान स्वभावन है। मिलिये इस विप्र महा मुनि से यह देव महा बहु पावन है। डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

नंदिनी लहेजा

विषय-नारी सौंदर्य विधा-कविता ईश्वर की अनुपम कृति हैं नारी सौंदर्य की है साक्षात् मूरत नारी ममता,करूणा और प्रेम से भरी कोमल,चंचल सी है नारि नारी सौंदर्य की बात करें जाता सबका रूप रंगत पर ध्यान कोई सूरत का होए दीवाना किसी के कजरारे नयन ,बनते उसकी पहचान सबसे बड़ा सौंदर्य नारी का, जो ईश्वर ने दिया नारी को दान अपने भीतर इक जीवन सींचे , और पाए मातृत्व का मान मर्यादा,शील का कवच नारी-सौंदर्य को इसके निखरता है कहीं मलिन नज़र किसकी ना पड़े नारी का सौंदर्य उसे कहीं डराता है बस बिनती इक नारी की सबसे दो सम्मान हमारे अस्तित्व को भयमुक्त दो वातावरण हमें ताकि निखरे हम अपने गुणों के सौंदर्य को नंदिनी लहेजा रायपुर(छत्तीसगढ़) स्वरचित मौलिक

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव

गोरी में देखो आ गई यौवन की तरुणाई प्रीति की पायल जब से बंध गई मेरे पांव। रह-रह कर लगे उछलने मेरे गोरे-गोरे पांव। उमर हो गयी है अब मेरी पूरे सोलह साल। गालों पर लाली है छाई होठ हो गये लाल। दिल वश में है ही नहीं ये जाने है पूरा गाँव। भटक रहा मेरा मन तुम बैठे हो किस ठाँव। नजर ढूँढ़ती प्रियतम को कहाँ छुपे हो प्रेमी। आओ तुझे गले लगाऊं मिल जायें दो प्रेमी। मन डोले मेरा तन उछले तड़प रहा है दिल। ऐसे मुझे सताओ न तुम जल्दी आके मिल। रह-रह के हो जाता मन तेरे लिए ये विह्वल। याद में बहते मेरी आँखों से आँसू अविरल। नहीं संभलती है गोरी से यौवन की तरुणाई। रह-रह कर आती रहती है  मुझको अंगड़ाई। एक दूजे के हो जायें डाल गले फूलों के हार। देखो कैसे बहती है ये पिया मिलन की बयार। मेरे साजन तुम हो मेरे सपनों के राजकुमार। तेरे मेरे प्रेम मिलन से लगे बरसने नित प्यार। धक-धक करते ये दिल मेरा खाये हिचकोले। बहुत हो गया अब हम तुम एक दूजे के होलें। रचयिता : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. (शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी) इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया एलायन्स क्

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर

ए पी जे कलाम को सलाम--- चलता रहता संसार काल समय की नित्य निरंतर चाल।। बढ़ता जाता लौट कर नही आता  इतिहास पन्नो से वर्तमान को प्रेरित करता।। रामेश्वर तट शिव शंकर महिमा मोक्ष जन्म जीवन मृत्यु आलोक जन्म बचपन  रामेश्वर की गलियों में साधारण परिवार।। संघर्षों का बचपन अब्दुल संघर्षों से निखर प्रखर किशोर युवा जवान।। आंखों में सपने हृदय भाव में ज्वाला सार्थक जीवन प्राप्त करे कुछ ऐसा युग समय समाज का अभिमान।। गीता बाईबल और कुरान धर्म कर्म ज्ञान बोध की  महिमा गौरव कलाम।। घृणा द्वेष की दुनियां में अस्त्र शत्र की होड़ पुरुष प्रक्षेपास्त्र।।   पृथ्वी से पृथ्वी या आकाशसे आकाश सागर हृदय की गहराई हो चाहूं ओर सुरक्षा कवच कर्म पराक्रम पुरुषार्थ कलाम।। माँ भारती का लाड़ दुलार प्रथम नागरिक की गरिमा कलाम।। जन जन की अभिलाषा युवा सोच संमझ की भाषा आवाहन कलाम।। खुली आंख से सपने देखो युवा जागृत्व चेतना का युग सांचार कलाम।। वैचारिक चिंतन परिकल्पना यथार्थ आविष्कार का कलाम।। पढ़ना और पढ़ाना जीवन धर्म शिक्षा की परीक्षा परिणाम का महापरिनिर्वाण कलाम।। आदर्श अस्तित्व की धारा का अविरल निर्मल निर्झर नित्य निरंतर प्रबाह कमाल।। न

कुमार@विशु

सावन गीत: कजरी हरे रामा रिमझिम बरसे बदरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी , हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। देखो सखियाँ झूला झूलें, देखत  मोरा  मनवा डोले, हरे रामा गावें मिलके कजरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी। हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। देखो पिया जी बहे पुरवाई, झूमे  जिया  झूमे अमराई, कि  हरे रामा अंग-अंग उठेला लहरिया कि पिया नाहींअइलें ए हरी। हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। बिना साजन सावन ना भावे, बूँद-बूँद  तन  अगन  लगावे,कि  हरे रामा भींजत धानी चुनरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी। हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। दादुर  मोर  पपीहा  गावे, धानी धरा जियरा हरसावे,कि हरे रामा सूनी पड़ी रे सेजरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी। हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। हरे रामा रिमझिम बरसे बदरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी , हरे रामा मधुरे उठेला  दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।। ✍️कुमार@विशु ✍️स्वरचित मौलिक रचना

विजय मेहंदी

।।विजय दिवस।। ए मेरे वतन के लोगों, लगा लो विजय दिवस पर नारा। ये प्रण होगा हम सब का, नापाकी-पाक हिम्मत न करे दोबारा। यह मत भूलो कारगिल में, वीरों ने हैं प्राण गँवाए, कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर ना आये।-2 ए मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी।                         जो शहीद हुए थे कारगिल में , जरा याद करो कुर्बानी।(2) जब पागल हुआ था मुशर्रफ, किया था कृत्य बड़ा उन्मादी।  कर चुपके से घुसपैठ वो, फिर कर दिया धोखेबाजी। पता न रहा वजीर-ए-आला को, वो बुन दिया था चालसाजी। धोंखे से जाबांज शूरवीरों पर, कर दिया था वो कायरबाजी।  थे कायर शैतान वो पाकी, थी कायर उनकी शैतानी। जो कुकृत्य किये थे उसने, जरा याद रखो कारिस्तानी। कोई सिख कोई यूपीवासी, 527 वीर जो शहीद हुए कारगिल में, हर वीर थे भारतवासी। जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिन्दुस्तानी। जो शहीद हुए थे 527 शूरवीरों ने , उनकी बीस रही थी जवानी। थी खून से लथपथ काया, फिर भी वे ना घबराते। दो-दो के औसतन मारा, फिर गिर गये होश गवांके। जब अन्त समय आया तो,-2 कह गये कि ह

डॉ अर्चना प्रकाश

      कारगिल शौर्य दिवस पर       आँसू न बहाओ उन पर तुम ,      जो लौट के घर ना आये ।        देखो न कलाई दुल्हन की,         न देखो माँग सुहागन की ।         मातु पिता के आंसू न बहें          थे वतन के लाल अनोखे ।         वे दधीचि से वज्र बने ,         सब अमर वीर सेनानी हुए ।       वर्षों सीमा पर जगने वाले ,        अब सुख निद्रा में सोए है ।        ओढ़ तिरंगे की चादर वे ,        नव सपनोंमें खोए है ।        शत्रुओं के बंकर ध्वस्त किये ,           ढूढ़ आतंकी खत्म किये ।        तनिक न किया आराम,       रणभेरी में दिन रैन रहे ।         रवि शशि भी करे नमन उनको ,         दुलराये धरा पल छिन उन्हें ।       इक सांध्य दीप जले नाम उनके ,      सूरज तारे दिखाये नवरूप उनके।      आँसू न बहाओ उन पर तुम ,      जो लौट के घर ना आये ।         डॉ अर्चना प्रकाश लखनऊ        मो 9450264638 जय कैलाशवासी जय जय शिव शम्भू जय कैलाशवासी , हमें अपनी शरण लेलो हे अविनाशी ।    भक्ति की गंगा में डूब जाएं,     अमरकथा का अमृत रस पाए। हमें अद्भुत शक्तिदेदो घटघट वासी , जय जय शिवशम्भु जय कैलाशवासी ।           गौरी सा सूंदर तन मन पाए

कालिका प्रसाद सेमवाल

जय -जय जय श्री हनुमान ******************** भक्तों के रक्षक हो सकल गुणों की तुम खान हो तेज तपस्वी महावीर तुम जय -जय जय श्री हनुमान। घर -घर पूजे जाते हो प्रभु विद्या विनय सिद्धि दायक रुद्र अशं हनुमन्त महान  जय -जय जय श्री हनुमान। अरुण रंग और तरुण अंग अंजनी सुत अभिनन्दन है हर पल राम भक्ति में डूबे हो जय -जय जय श्री हनुमान। कष्ट निवारक करुणा नायक भक्तों की सुनते हो तुम पुकार ज्ञान ध्यान के योगी हनुमन्ता जय -जय जय श्री हनुमान। चरण शरण तुम्हारे आया हूँ संकट को हर लो श्री हनुमान हाथ जोड़ कर करता हूँ विनती जय- जय जय श्री हनुमान। अंजनी सुत हम शरण तुम्हारे तुम्हें कोटि -कोटि वन्दन   बल बुद्धि विद्या के दाता जय- जय जय श्री हनुमान। ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

छत्र छाजेड़ फक्कड़

परभात्यां नींवण में अेक गीत :- सामी आज्या गौरड़ी **************** म्हारै सपनां री राणी तूं सामी आज्या गौरड़ी आज... सावण बरस रह्यो झमाझम जीव म्हारो बिलमाज्या आज.... रेसमी जुलफां स्यूं झरै झर झर प्रीत रो पाणी पारे सा चिकणा गालां पे कद ठहरै ओ झरतो पाणी             मन बसी तस्वीर             कद खुलै तक़दीर देखो आभै स्यूं उतरी परी आज...... सामी आज्या गौरड़ी आज...... निचोवै निगोड़ी बिरखा भीज्यो नरम हाथ सै पल्लो कसूमल चम्पई आंगळयां पे दमक रही  पळकै हीरे री कणी झलमल                चालै सीतळ पवन                लागै  हिये  अगन लगासी आग पाणी में आज...... सामी आज्या गौरड़ी आज...... गौरी हंस कै मांगै तो देदयां म्हारी आ लटपटती जान कद आसी बा रात मिलन री कोई करादै बींरो ग्यान          चांदो चुग़ली खावै          तारा हंस  बतळावै नैंणा उतरै अंसुवन धार आज...... सामी आज्या गौरड़ी आज..... आ क़लम बावळी कद लिख्या  थांरी म्हांरी प्रीत रा गीत बोल तो सजाया सावणियो सुर सजावण हाळो मनमीत              घन घणघोर घणा              मनड़ो समझै कणां सजा दै मनड़े रा सपना आज..... म्हारै सपनां री राणी तूं सामी आज्या गौरड़ी आज

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

                कविता                 सुबह शाम                      ~~~          जन्मभूमि शान हमारी,          इसका सम्मान बढ़ाये।          सुबह शाम श्रमदान कर,          हम अपना फर्ज निभाये ।।          मात-पिता ईश्वर रूप,          हमें मान बढ़ाना है।          सुबह शाम लें आशीष,          सेवा धर्म निभाना है।।           जल अमृत,इसे बचाना,           समय रहते समझाना।           सुबह शाम कर प्रार्थना           इसका महत्त्व  बतलाना।।           चकाचौंध रूपी आभा,           कुछ काम नहीं आयेगी।           सुबह शाम प्रभु नाम से           यह नैया तर जायेगी।।          भौतिकवादी सत्ता यह,          मतलब की करते बात।          प्रकृति संदेश ही ऐसा          खा जाते हैं वे मात।।           रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

मन्शा शुक्ला

परम पावन मंच का सादर नमन          सुप्रभात 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏  तप  मूरत मैया जगदम्बे सौम्य स्वरूप मातु हे अम्बे वेद पुरान नही सकें बखानी महिमा तेरी अकथ कहानी। सिन्दूरी चुनरी अंग में साजें पुष्प  हार  माँ कंठ  विराजें मुख प्रसन्न तन  तेज स्वरूपा कमल नयन करूणा मयी रूपा। भयहारिणी भव तारिणी माता तुम ही जग की भाग्यविधाता द्वार  तिहारे जो  भी  आता मनवांछित फल वो सब पाता। पल पल बरसती दया तुम्हारी ध्याये तुमही सकल नर नारी चरण कमल जाऊँ बलिहारी सुनो दयामयी अरज हमारी। मन्शा शुक्ला अम्बिकापुर

डॉ० विमलेश अवस्थी

 सरस्वती वन्दना हे मातु भारती I तुम्हें नमन । गुञ्जित तुमसे ये धरा गगन । बजती वीणा झन झनन झनन । झन झनन झनन,झन झनन झनन मैं तेरे द्वार खड़ा,अम्बे I चरणों में शीश पड़ा अम्बे  भूतल पर तू ही एक शरन बजती है वीणा झनन झनन । झन झनन झन झनन । माँ तू ही पथ निर्मात्री है ब्रह्माणीहै,विधात्री है I तू विमलांगी तू श्वेत बरन बजती है वीणा झनन झनन । झन झनन झझन,झन झनन झनन ॥ ******************** भक्तों का क्लेशहरन करती I विजली जैसी दम दम करती I जगमग ,जगमग सी ज्योति किरन I बजती है वीणा झनन झनन ॥ झन झनन झनन ,झन झनन झनन । ******************** तू श्वेत वसन धारन करती तू श्वेत हंस वाहन रखती  रखती है श्वेत कमल आसन I बजती है वीणा झनन झनन I झन झनन झनन,झन झनन झनन सब पाप ताप हर ले जननी I बाधाओं को दल दे जननी  दे दे सबको सुखमय जीवन । बजती हैवीणा,झनन झनन । झन झनन झनन,झन झनन झनन I चहुँ ओर मयी आपा- धापी I षडयन्त्र रच रहे     हैं पापी I कर सकती तू ही परिवर्तन  बजती है वीणा झनन झनन । झन झननझनन,झन झनन झनन ।   डाo विमलेश अवस्थी:  मुझको अंगीकार नही है, झुकना या रुक जाना । संकट में त्योहार मनाना सीखा हैै I शूलों को गलहार बनाना स

नूतन लाल साहू

सावन का झूला झूला तो अनेकों झूलते है प्रायः हर महीना पर इंतजार रहता हैं, एक झलक देखनें को सावन का झूला सावन में हरियर हरियर दिखती है चारो तरफ धरती मां किसिम किसिम के फूल फूले है फुलवारी में राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक इंतजार रहता है सावन का झूला प्रेम प्रेम सब कोई कहता है पर प्रेम की मरम, न जाने कोय राधा जी ने प्रेम किया था,श्री कृष्ण जी से ऐसा ही प्रेम से मिलन होता है, हरि से राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक इंतजार रहता है सावन का झूला बहारों कलियां बन जाओ तुम फूल बन मुस्कुराओं और फूल बरसाओं मधुर मधुर मस्त मस्त गीत तुम सुनाओ तितली बन जाओ तुम भौरें बन गुणगुनाओं आ गया सावन का महीना झूला तो अनेकों झूलते है प्रायः हर महीना पर इंतजार रहता है, एक झलक देखनें को सावन का झूला नूतन लाल साहू

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर गोरखपुरी

इश्क इबादत का चेहरा---- दिल मे हलचल बेचैनी  फ़ज़र से नज़र दिल में उतरता चेहरा।। तपिश बारिस इंतज़ार हो शाम दीदार नज़र का चेहरा।। करीब थे  लगता ही नही जिंदगी में दूर कभी जाएंगे क्या कहूँ वक्त को वक्त की यादों का  चेहरा।। सुर्ख गालों की लाली कानो में बाली चमकती माथे पे  बिंदिया जहां कि नूर नज़र का चेहरा।। सावन की रिमझिम फुहार भीगा बदन साँसों की गर्मी हुश्न निखार काचेहरा।। बादलों में छुपा चाँद कभी चाँदनी अंधेरा कभीहवाओ में जुल्फ घटाओंमें छुपा चाँद सा चेहरा।। संगेमरमर सा तरासा वदन जुनून इश्क़ जैसे पिघलता मोम चिरागों कीजरूरत ही नही चाँद भी शर्माए जमाने में रौशन नाज़ चेहरा।। मंदिर में मूरत जैसी हीरे मोती की तमन्ना क्या करे कोई तमाम मन्नत मुरादों की इबादत चेहरा।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

एस के कपूर श्री हंस

*।।हो गयें हैं साठ* *के पार ,पर अभी असली* *इम्तिहान बाकी है।।* 1 सफर जारी   पर  अभी  तो आने को   मुकाम  बाकी है। किया जा चुका  बहुत कुछ पर    अभी काम   बाकी है।। साठ  के   पार      हो   चुके   तो कोई      बात         नहीं। अभी तो    नापी   है   ज़मीं अभी आसमान     बाकी है।। 2 अभी अदा  करने    शुक्रिया वह हर  इन्सान      बाकी है। पूरे    जो   कर     नहीं  पाये वह हर   अरमान    बाकी है।। अभी तो   शुरू ही      हुई है जीवन    की    दूसरी   पारी। जान लो कि     जिन्दगी का असली इम्तिहान    बाकी है।। 3 अभी भी    दुनियादारी   का  कुछ     लगान     बाकी   है। कर नहीं पाये   इस्तेमाल वो   साजो  सामान   बाकी    है।। रुकना नहीं     थमना   नहीं तुम्हें इस   बीच     दौड़   में। अभी भी जीतने    को    हर तीरो   कमान     बाकी    है।। 4 सेवा  निवृत हो गये पर अभी अनुभव का सम्मान बाकी है। कुछ नया   करने सीखने को भी   जज्बो  तूफ़ान बाकी है।। अब तो  वरिष्ठ  नागरिक का दायित्व   भी   है   कंधों  पर। अभी देखने  घूमने   को  भी पूरा     जहान    बाकी      है।। 5 चुप रह गई    जो  अब  तक अभी वह    जुबान  बाकी है। ऊपरवाल

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-- चाय पर फिर बुलाया बड़ी बात है प्यार मुझ पर लुटाया  बड़ी बात है इतना मसरूफ़ रहते हो फिर भी मुझे फोन तुमने मिलाया बड़ी बात है आज मिलना है हमको उसी मोड़ पर याद यह भी दिलाया बड़ी बात है  मेरे प्यासे लबों की तड़प देखकर जाम भर कर पिलाया बड़ी बात है दूरियाँ जल्दी सारी ये मिट जायेंगी यह भरोसा दिलाया बड़ी बात है  मुझ में मंज़िल को पाने की हैं ख़ूबियाँ आइना यह दिखाया बड़ी बात है तुमने मेहनत के बल पर ही साग़र यहाँ नाम इतना कमाया बड़ी बात है 🖋️  विनय साग़र जायसवाल, बरेली

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

महादेव वंदना डमरू जब तेरा बजता , मन को लगता है प्यारा।  शिव भोले जग के स्वामी , तेरा बोलूँ जयकारा।  तू मेरे मन को भाया , मैं दौड़ा दर पर आया।  शुचि कंज सुमन ले कर मैं , मैं पान सुपारी लाया। आओ शिव शंकर भोले , सब भक्त मनाने आए।  यह खाली झोली भर दो , सबने है शीश झुकाए।  तू सबको वर है देता , शिव शंकर भोला भाला।  तब से ही आ कर मैंने , दर तेरे डेरा डाला। नटराज कहे सब तुमको , तुम हो इस जग के स्वामी।  दर रुद्र खड़ा कर जोड़े , सुन लो कुछ अंतर्यामी।  रावण को वर दे डाला , कुछ सुन लो विनय हमारी।  मैं बालक हूँ प्रभु तेरा , वर दे दो हे त्रिपुरारी। संदीप कुमार विश्नोई रुद्र दुतारांवाली अबोहर पंजाब

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी ----                    ------ ज्यादा ----- ज्यादा की लालच नहीं , थोड़े का है काम । चलो सभी को बाँटते , लिखा सभी का नाम ।। लिखा सभी का नाम , बदल मत नेक इरादा । रहे न कोई दुःख , मदद कर उनकी ज्यादा ।। ज्यादा की चाहत नहीं , मन मति रहना धीर । दाता जो भी दे दिया , वो प्रसाद शुचि खीर ।। वो प्रसाद शुचि खीर , रखें यह जीवन सादा । पथिक राह आंनद , नहीं है इच्छा ज्यादा ।। ज्यादा से बचकर रहो , करो नहीं अति लोभ । औरों को ज्यादा मिले , मत करना मन क्षोभ ।। मत करना मन क्षोभ , तोड़ मत अपना वादा । रहो परम संतुष्ट , छोड़ दे हिस्सा ज्यादा ।। ज्यादा बातें मत करो , आये जब परिणाम । वर्जित करते शास्त्र भी , होना मत बदनाम ।। होना मत बदनाम , अभी तक है आमादा । बस मीठा ही बोल , ध्यान रख मत हो ज्यादा ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. )

विजय कल्याणी तिवारी

अंदर से है सूर ------------------------------ केवल बाहर से दिखता है अंदर से है सूर। दाता इनको क्षमा करो ये लोग बड़े मजबूर। इनकी आदत और कल्पना नाप रहे संसार अपनी नापी वस्तु के खुद बतलाते आकार। जब चाहें पकड़े रहें जब चाहे दें छोड़ प्रतिफल स्वयं निकालते संख्याओं को जोड़। फर्क नही सच झूठ मे गढ़ते स्वयं विधान मस्तक लेकर घूमते मित्र वृथा अभिमान। मन भीतर का आदमी कारागृह मे कैद व्याधि ग्रस्त जो आदमी बन बैठा है बैद। नयन ज्योति तो है नही अंतस जला न दीप फिर भी खुद को मानता जैसे कोई महीप। स्वांग रचाने मे बड़े पारंगत सब लोग अनुपभ अद्भुद छद्म का करते सरल प्रयोग। दीन दशाओं पर लगा शनि राहू का फेर हैं व्याधा के जाल मे तीतर और बटेर। कौन छुड़ाए बंध से कौन करे आजाद बहुत कठिन पहचाना भला कौन, जल्लाद। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

सत्य प्रकाश शर्मा सत्य

एक हिंदी गजल समान्त  उल पदान्त  नहीं मात्रा भार 16 बेटी है आगन की बुल बुल। करती सदा उजाला दो कुल॥ कन्या दान करो पुत्री का। "सत्य" बने वैतरणी का पुल॥ प्रेम जगत में सार बताया। जिसमें ढाई अक्षर है कुल॥ जिसके हृदय जमें ये अक्षर।  उसको स्वर्ग द्वार जाता खुल॥ प्रायः लोग मिले कुछ ऐसे। मुँह मीठा विष रहा हृदय घुल॥ खाना पति का गीत भ्रात के। अच्छी बात नहीं है बिल्कुल॥ सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य"✍ निवासी -पुरदिल नगर ( सि० राऊ ) मो०-8273950927

व्यंजना आनंद मिथ्या

आज का छंद ---               ----- शील ---- परिचय ----- एकादशाक्षरावृत्ति गण संयोजन -----  सससलल                 ( 112-112-112-11 ) तुम तो करना गुरु वंदन । करते वह जीवन चंदन ।। हरते दुख को बन पावन । करते रहते मन सावन ।। शुभ पावन  जो यह होकर । रहता तुझमे जब खोकर ।। सुख पाकर ही खुश हो मन । दिखता रहता चहुँ वो तन ।। अब  डूब  रहा सब मानव । धर पाप यहाँ  बन दानव ।। नित होकर देख  विनाशक । बनते न कभी प्रभु  वासक ।। **************** व्यंजना आनंद मिथ्या

निशा अतुल्य

चौपाई आराधना  शिव शंकर तुम औघड़ दानी। गौरा शिव की है पटरानी ।। नीलकंठ जब नाम कहाया। शीतल जल है दूध चढ़ाया।। गौरा जी ने ताप संभाला। ठंड़ी कर दी सारी हाला।। बरखा का मौसम मनभावन। शंकर भोला अति सुखपावन ।। शिव शंकर कैलाश निवासी। ॐ नाद निर्गुण अविनाशी।। गंगा शिव के शीश विराजे । चँदा सुंदर भाल पर साजे ।। एक हाथ में धनुष उठाया। दूजे डमरू खूब बजाया ।। शिव शंकर पंचाक्षर सुंदर । रख लो मन मंदिर के अंदर।। स्वरचित निशा अतुल्य

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

मदिरा सवैया अभिषेक करो शिवशंकर का व्रत ले  शिव नाम जपा करना। मन ही शिव काम करे सहजा मन में मत पाप कभी रखना। सबके प्रति भावुक वृत्ति रहे मत क्रोध करो प्रिय सा रहना। अति शांत बने हर जाप करो हर काम शिवाय सदा चलना। शिव सावन में शुभ काम करो यह माह सुहावन है सुखदा। इस मास चलो जपते शिव को शिववार महोत्सव है वरदा। समझो अपना शुभ भाग्य जगा यह सावन है उपमा फलदा। रहते अविराम खड़े चलते सबके प्रति मोहक रूप सदा। सबको शिव दान दिया करते अति भावुक हो सबसे मिलते। खुश हो कहते चलते सबसे सब शांत करें जग को जलते। सबमें अतिमानव प्रेम पले शुभ मानव मान दिखे फलते। बल -पौरुष का उपयोग सहर्ष सहाय सुखाय शिवाय मते। मनमस्त सदा शिवशंकर का हर रूप निराल लुभावन है। शिवशंकर का यह सावन उत्तम पावन भव्य सुहावन है। अति शीघ्र प्रसन्न सदा शिवशंकर प्रेम निधान स्वभावन है। मिलिये इस विप्र महा मुनि से यह देव महा बहु पावन है। डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

मधु शंखधर स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया                मिट्टी मिट्टी की कीमत सदा, समझे वही कुम्हार। रचता है जो हस्त से , निश्चित नव आकार। निश्चित नव आकार , मूर्ति से देव बनाए। पूजे यह संसार , साध्य से जीवन पाए। कह स्वतंत्र यह बात, पके जो जाकर भट्टी। पावन मिलता नीर , तभी हो शोभित मिट्टी।। मिट्टी से जीवन मिले ,  मिट्टी से ही अंत। चक्र यही चलता सतत् , नित जीवन पर्यन्त। नित जीवन पर्यन्त , ईश की महिमा गाए। काल बसा है जीव ,  सत्य यह ही बतलाए। कह स्वतंत्र यह बात , आँख मत बाँधों पट्टी। जीवन प्रभु की देन , मूल में बसती मिट्टी।। मिट्टी की खुशबू अलग , मातृ रूप यह प्यार। धरा सुशोभित हो रही ,  शोभा अपरम्पार। शोभा अपरम्पार , सही औकात बताए। धन का नहीं घमण्ड , सदा तन भी मिट जाए। कह स्वतंत्र यह बात, मित्र से हो मत कट्टी। सच्चा शोभित बंध , नीर अरु पावन मिट्टी।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नौवाँ-2 क्रमशः.....नौवाँ अध्याय (गीता-सार) पर जे जगत महातम अहहीं। भजहिं मोंहि अबिनासी कहहीं।।       भजहिं निरंतर मम गुन-नामा।       करि मम ध्यानइ करत प्रनामा।। करहिं जतन मों पावन हेतू। ब्रह्म स्वरूपहिं कृपा-निकेतू।।        कछुक भजहिं एकत्वयि भावा।        बासुदेव मम रूप सुभावा।। कछु पृथकत्व भाव मों पूजहिं। स्वामी-सेवक-भाव न दूजहिं।।       अपर पूजहीं बहुत प्रकारा।       निज सुभाव निज गति अनुसारा।। जगि स्मार्तइ क्रतु स्रोत कर्मा। स्वधा-अन्न-औषधि कै धर्मा।।        अहहुँ हमहिं घृत-मंत्र-बनस्पति।         अगन हमहिं जे हवन बनिस्बति।। सुनहु पार्थ मैं धाता-पोषक। माता-पिता-पितामह रोचक।।       ऋग अरु साम-यजुर मैं बेदा।       मैं ओंकार सब्द सम्बेदा।। अहहुँ हमहिं सुनु प्रतिउपकारी। सभ जन बास-सरन हितकारी।।       अहहुँ मैं उत्पति-प्रलय-अधारा।        अबिनासी अरु जगत-सहारा।। दोहा-मैं अमृत अरु मृत्यु मैं,सत्य-असत्यइ पार्थ।         सुरुज किरन कै ताप मैं, बरसहुँ जल परमार्थ।।                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र                        9919446372      क्रमशः........

डॉ. कवि कुमार निर्मल

🇮🇳🇮🇳🇮🇳☆कारगिल विजयोत्सव☆🇮🇳🇮🇳🇮🇳 अतिक्रमित कारगिल क्षेत्र विजय करने हेतु मिग-21 / 27 चलाये। "ऑपरेशन विजय" में भारत के 527 जवान हुए शहीद- कहलायें। 1300 से अधिक घायल फौजी- 527 बाँकुरे वीरगति गले लगाये। भारतीय जवानो में से अधिकतर जीवन के 30वसन्त देख नहीं पाये। सत्-सत्-नमन् योद्धाओं को 2700 पाक फौजियों को भून मार डाला। नहीं ले गये भीरू तो लाशों को  हमने सम्मान दे उन्हें  दफ़न कर डाला। 18000 फीट ऊचाई हिमगिरी पर चढ़-  यह कारगिल युद्व  निराला। बर्फ हीं बर्फ की चट्टाने हर ओर, न गया पेट में सप्ताह एख निवाला। २५० पाकिस्तानी सैनिक पलायन  कर भागे रण अपनी जान बचा कर। मोर्चा सौभाला 300 किलोमीटर वापस लिया एल ओ सी पार खँगाला। धुसपैठियों को खदेड़ भारत भू - खण्ड पर लहराया तिरंगा प्यारा, श्रद्धांजलि सुमन चढ़ाते आज चरणों में मांग रहे मातृभूमि से यह  वर।  तेरा वैभव अमर रहे माँ दिन चार ये रहे न रहे, झुक नहीं पाए तेरा सर। सहृदय साधुवाद्  "राजपुताना" रेजिमेंट को- आहुत वीर अमर हो। फिर देखा अगर इधर पाक तो आँख निकाल लाना  सुनिश्चित हो। 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 वंदेमातरम् 🇮🇳🇮🇳 जय हिन्द 🇮🇳

डॉ० रामबली मिश्र

भवसागर अत्यंत भयावह बहुत दुखद तन-मन दुखी कोई नहीं सुखी लोग अनायास ऐंठ रहे हैं लंका में बैठ रहे हैं धनमद में चूर धर्म से बहुत दूर आनंद काफूर स्वयं चकनाचूर दुख आता है कष्ट पहुँचाता है रोने के लिये विवश करता है स्वयं हँसता है यमदूत है महा कपूत है अचानक आता है मार गिराता है डटा रहता है मन से सटा रहता है नालायक है रोगदायक है इसे भगाओ मन को समझाओ इसे स्वीकार कर ही भगाया जा सकता है मन को मनाया जा सकता है विषपान करो नीलकण्ठ बनो शिवजाप करो मत पाप करो दुख दूर होगा शिवयोग होगा सावन आयेगा शिवसोम गायेगा डमरू बजायेगा मन को पुनः सजायेगा। सब्र कर आगे बढ़ चला कर मत हिला कर वीर हो साहस का परिचय दो उत्साह को प्रश्रय दो रोना नहीं, हँसते रहना निरन्तर एवरेस्ट पर चढ़ते रहना। डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

सुधीर श्रीवास्तव

विजय दिवस ************ बहुत गर्व है हमें अपने जाँबाजों,रणबांकुरों पर जिनके हृदय में हिंदुस्तान बसता है, जिनका हौसला चट्टान सा शरीर फौलाद सा आत्मविश्वास हिमालय सा और दुश्मनों के लिए आँखों में अंगार जलता है। आज विजय दिवस पर हमारा अश्रुपूरित नमन है, हमारे बाप भाई बेटे जो माँ भारती की आन के लिए शहीद हो दुनिया से विदा हो गये, हमने उन्हें खोया जरूर है मगर वे आज भी  हमारे दिलों में जिंदा हैं, हमारा सीना फख्र से ऊँचा है मगर एक कसक भी है, इसीलिए आँखों में आँसू भी है। हमने अपने जिगर के टुकड़ों को दुश्मन के कुचक्र से खो दिया, वो तो नीच पापी बेहया है, मगर हमारी गंदी राजनीति में भी कितनी हया है? उन्हीं पर ऊँगलियाँ भी उठाते हैं, जिनकी बदौलत सुख चैन और राजनीति में अवसर भी बनाते हैं। आज भी बहुत से ऐसे हैं जो घड़ियाली आँसू बहाते औपचारिकता के पुष्प चढ़ा श्रद्धासुमन अर्पित करने में सबसे आगे होंगे। फिर भी हमें गर्व है अपने उन जाँबाजों पर जो ऐसे बेशर्मों की बेहयाई पर ऊपर बैठे मुस्कुरा रहे होंगे, हमारी दिल से श्रद्धांजलि  बड़े गर्व से स्वीकार कर रहे होंगे। ■ सुधीर श्रीवास्तव       गोण्डा, उ.प्र.     8115285921

डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

कारगिल विजय दिवस की सब को बहुत बधाई हे कारगिल के शूर वीर,शत शत है नमन तुम्हारा। भारत माता के लाल तुम्हीं,है गर्वित भारत सारा। कारगिल विजय दिवस की,सब को बहुत बधाई। अमर शहीदों ने अपनी जानें,देकर विजय है पाई। भारत माता की रक्षा में,कर दिये प्राण न्योछावर। उन वीर सपूतों को श्रद्धा,के फूल समर्पित सादर। उस वक्त तो सेना में हर,साजोसामान रहा अधूरा। बोफोर्स  तोपों ने  गोला,बारूद बरसाया था पूरा। कारगिल संघर्ष में गोला,बारूद से लेकर ये राडार। दूसरे देशों पर निर्भरता,सैटेलाइट तस्वीरें हथियार।  भारत अब मजबूत हुआहै,किसी पर नअब निर्भर। उन्नत हथियार सर्विलेंस तंत्रमें,काफी आत्मनिर्भर। कारगिल युद्ध बाद तीनों,सेनाओं की शक्ति बढ़ाई। रडार मिसाइलें चापर्स टैंक,व फाइटर प्लेन बढ़ाई। अब भारत हर मौसम में,दुश्मन से लड़ने में सक्षम। सेनाके आधुनिकीकरण से,साजोसामान में सक्षम। कोई दुश्मन इस भारत को,आँख दिखा न सकता। पलभर में तोपें,युद्धक विमान उन्हें सीख देसकता। येहैआधुनिक भारत,इसको डर न किसी का भाई। जो चाहेगा आँख दिखाना,उसकी आँखें गई  भाई। रचयिता : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प

अमरनाथ सोनी अमर

बालगीत- चंद्र खिलौना!  मात्रा भार- 16-14. हम तो चंद खिलौना लेंगें,  जल्दी  लाओ  मैया  तुम!  नहीं दुग्ध मैं पान  करूँगा,  ना  श्रृंगार   कराऊ़ँ    मैं!!  हठ जब बाल किये बैठाहै,  खडी़  मात है  दुबिधा  में!  कैसे चंद  खिलौना दें अब,  कैसे  इस  समझाऊँ   मैं!!  युक्ति एक सूझी माँ मन में,  ले  परात  जल  लायी वह!  रखी भूमि तब छाया आया,  ले --लो  चंदा   लायी   मैं!!  फद-फद करके लल्लाखेले,  मात -पिता   मुस्काय   रहे!  इच्छा   लल़्ला  पूर हुआ है,  अब  इच्छित  दे  पायी मैं!!  अमरनाथ सोनी "अमर "

अलका जैन आनंदी

शिव महिमा दोहा गीतिका तुकांत- मृगछाल भाल बाल लाल पाल ताल माल ढाल चाल धमाल कमाल पदांत -आल 1 सावन में सब पूजते,चढें धतूरा भाल। शंकर जी का नाम हैं,कहें सब महाकाल।। 2आशुतोष शंकर कहे,करना बेड़ा पार। कृपा दृष्टि रखना सदा,पहने ये मृगछाल।। 3ज्योतिर्लिंग को पूजता,भक्त बड़ा नादान। संकट सारे काटते,हो वो मालामाल।। 4तीन लोक के नाथ हो,त्रिपुरारी है नाम।  दुनियाँ सारी पूजती,बदले उनकी चाल।।   5 शंकर भोले हैं बड़े,पल में जाते मान। पर्वत इनका धाम है,नाचे ढोलक ताल।। 6कृपा अपनी रखें सदा,हे भोले नटराज। संकट आया देश पर, तांडव करे कमाल।।   7 भजलो शिव शंकर सदा,करते सबके काज। महिमा अपरंपार हैं, गणपति इनके लाल।। 8विष को जब धारण किया, नीलकंठ फिर नाम। शंकर भोले नाथ है,अद्भुत करें धमाल।। 9दुग्ध का अभिषेक करें,पुण्य मिले महान । सर्प लगे गलहार हैं,भूत प्रेत बन ढाल।। 10 गंगाधर कैलाशपति,भोले के है नाम। राम पूजते हैं इन्हें,भूल सभी जंजाल।। अलका जैन आनंदी ©®