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अक्तूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मार्कण्डेय त्रिपाठी

गो सेवा गो माता की सेवा कर लो, सारा दुख मिट जाएगा । गो में सारे देव विराजें , भव बंधन पिट जाएगा ।। गोरज,गोरस , गोर्वधन से, सज्जित गोकुल और गोपाल । गोमाता की महिमा न्यारी, गो सेवा से उन्नत भाल ।। गो स्पर्श अधिक सुखकारी , होती मधुर भाव की वृष्टि । सकारात्मक ऊर्जा मिलती, परिवर्तित हो जाती दृष्टि ।। गैया पंचगव्य देती है , जो है सच में दिव्य प्रसाद । लोक और परलोक सभी के, मिट जाते जिससे अवसाद ।। जिस घर में गोमाता होती , उस घर में लक्ष्मी का वास । प्रेमपूर्ण माहौल वहां का , दुश्चिंतन का होता नाश ।। गाय नहीं रख सकते घर में, गो सेवा हित करो प्रयास । गोशालाओं को अर्पित धन से भी बंधी रहेगी आस ।। भले चीता है राष्ट्रीय पशु अब, गैया को भी दो सम्मान । हिन्दू हृदय सच खिल जाएगा, मिट जाएगा सब अपमान ।। दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा है,इसका है ध्यान । गो पूजा हम करें सहर्षित, इसमें छिपा जगत् कल्याण ।। गैया केवल पशु नहीं है, वह है संस्कृति का आधार । हिन्दू धर्म की पोषक है यह, जिससे रक्षित है संसार ।। मिलजुलकर योजना बनाएं, सामूहिक गो पूजन आज । अजब छटा बिखरेगी सचमुच, होगा तिलक,माथ पर ताज ।। देगी शुभाशीष हम सबको

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

।गीत(16/14) हुई कृपा जब माँ लक्ष्मी की, जीवन यह सुखसार हुआ। माँ का ही आशीष प्राप्तकर- सबका बेड़ा पार हुआ।। होती है जब कृपा मातु की, खल ग्रह सब मिट जाते हैं। दया-सिंधु है माँ का आँचल, सभी विघ्न हट जाते हैं। देखा था सुख-स्वप्न कभी जो- आज वही साकार हुआ।।        सबका बेड़ा पार हुआ।। नारायण की वामा लक्ष्मी, पीड़ा सबकी हरती हैं। सदा भक्त के ऊपर यह माँ, सुख का नीर बरसती हैं। मातु कृपा ही पाकर जीवन- सुख का पारावार हुआ।।        सबका बेड़ा पार हुआ।। श्रद्धा-भाव हृदय में रखकर, जिसने मातु अर्चना की। मुदित मना तब माँ लक्ष्मी ने- नव सोपान सर्जना की। चढ़कर सीढ़ी पा उन्नति पर- लोंगो का सत्कार हुआ।।       सबका बेड़ा पार हुआ।। लक्ष्मी माँ का रूप निराला, चित्ताकर्षक-हर्षक है। सतत स्मरण माता जी का, धन-वैभव का वर्धक है। जिसने की है माँ- उपासना- उसका शुद्ध विचार हुआ।।    माँ का ही आशीष प्राप्तकर-     सबका बेड़ा पार हुआ।।               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                  9919446372

डॉ० विमलेश अवस्थी

 *मुक्तक* नीति को जान लो,और  आगे बढ़ो i शत्रु पहचान लो,और आगे बढ़ो i युद्ध की गर चुनौती, तुम्हें मिल रही, वक्ष को तान लो,और आगे बढ़ो i ▪️ कर रहे तुम पड़े,लोक रंजन यहाँ i घिर रहेहैं प्रलय के प्रभञ्जन यहाँ i शत्रु है सामने,तुम  जगो तो सही आज करना तुम्हें भाल भञ्जन यहाँ  *डॉ० विमलेश अवस्थी*  *त्रिपदी डॉ० विमलेश* *अवस्थी* *सन सन चलता पवन मेघो से भरा गगन वर्षा हो रहीसघन i शीत का आगमन । भीगा सा तन मन । प्राकृतिक परिवर्तन । मौसम हठीला है । कणकण गीला है। प्रकृति की लीला है i दुश्वारियाँ बढ़ेंगीं i लाचारियां बढ़ेंगी i बीमारियां बढ़ेंगी । डॉ० विमलेश अवस्थी

चेतना चितेरी

विषय—सरदार वल्लभ भाई पटेल शीर्षक:  मिलजुल कर रहना हिमालय से भी ऊंचा  जिनका मनोबल है, ऐसे वीर वल्लभ भाई पटेल को मैं नमन करती हूं। किसानों के हित में जिसने आंदोलन का नेतृत्व किया, ऐसे दृढ़ प्रतिज्ञ हृदय सरदार वल्लभ भाई  जी!को मैं स्मरण  करती हूं। जिनकी जन्मतिथि राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में 31 अक्टूबर को मनाया जाता है, मैं ऐसे लौह पुरुष की वंदना करती हूं। जिसने दिया जन को संदेश भारत के लोग मिलजुल कर रहना, ऐसे भारत मां के सपूत को चेतना श्रद्धा सुमन अर्पित करती है। (मौलिक रचना) चेतना चितेरी, प्रयागराज 26/10/2021pm.

कालिका प्रसाद सेमवाल

*सबके प्रति दया और प्रेम हो* ★★★★★★★★★★ सब   प्राणियों   के  प्रति जब    मन।  में  पीड़ा  हो, प्राणी   मात्र    की    पीड़ा  जब   अपनी   पीड़ा लगेगी, तब     ये    समझ     लेना कि   हमारे   हृदय में  दया है। तब     प्राणों     में    सोया  प्रेम      जाग       जायेगा, और      दूसरे    के     दर्द अपनी  पीड़ा  समझने लगेंगे, तब  ये   समझ   लेना   कि   ये जीवन हमें सही मिला है। मनुष्य     की        सुमति गुरु    चरणों   में  समर्पण, गुरु कृपा   से  ही   होती   है गुरु   की   वंदना  से होती है, गुरु के   प्रति    निष्ठा    ही उनकी   सच्ची अर्चना   है। ईश्वर    का      सामीप्य गुरू कृपा से ही सम्भव है, कर्मो     का   क्षय      भी ईश्वर की कृपा से होता है, हृदय में दया  और   प्रेम प्रभु कृपा से जाग्रत होता है। ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग    उत्तराखंड *हे महावीर तुम्हें प्रणाम* ******************** भक्तों के रक्षक हो सकल गुणों की तुम खान हो तेज तपस्वी महावीर तुम जय -जय मारुति नन्दन। घर -घर पूजे जाते हो प्रभु विद्या विनय सिद्धि दायक रुद्र अशं हनुमन्त महान  हे मह

रामकेश एम.यादव

आशिक़ी!    छाकर  बादल  वो   बरसने   लगे, पेड़ों   की   डालों   पे  झूले   पड़े। धरती   ने    ओढ़ी    धानी   चुनर, फिजाओं  के  पांव  थिरकने लगे। उठने लगी हूक कोयल के दिल से, दर्द   के  दायरे   तब   बढ़ने  लगे। बढ़ी  आशिक़ी नदियों  की  देखो, बेताबी    के    रोग   पलने   लगे। सागर  की  तलब  और  ही  बढ़ी, मयकदे में  निशदिन गुजरने  लगे। कुदरत की  आँखों में  छाई मस्ती, पपीहे भी  पिउ - पिउ रटने  लगे। अंग -अंग  कलियों  के  सजे ऐसे, नजरों  से  खंजर भी  चलने लगे। जवानी पे बस कब किसका चला, भौरें  भी   दवा   उन्हें   देने   लगे। मौसम  ने  ली  तब  ऐसी  करवट, मानों काँटों से फूल  खिलने लगे। मोहब्बत  बढ़ी इस  कदर जहां में, लोग बेखौफ़ जब-तब मिलने लगे। रामकेश एम.यादव  (कवि,साहित्यकार), मुंबई

मार्कण्डेय त्रिपाठी

सत्यमेव जयते सत्यमेव जयते, अब छोड़ो , आज झूठ का हुआ ज़माना । सिसक रहा है सत्य चतुर्दिक, ढूंढ़ रहा है आज ठिकाना ।। सत्य बात कहने वालों को, छुप छुप कर जीना पड़ता है । हरिश्चन्द् बनते फिरते हैं , यह ताना सुनना पड़ता है ।। जो जितना ही झूठ बोलता, वह उतना ही सफल कहाता । कलियुग के इस प्रथम चरण में, वही आज डटकर मुस्काता ।। झूठों के समूह के आगे , सत्य अकेला पड़ जाता है । फंस जाता वह सत्य बोलकर, कभी, कभी वह अड़ जाता है ।। सभी सत्य की हंसी उड़ाते , उसे धमकियां दी जाती हैं । साक्ष्य ढूंढ़े जाते विरोध में, सच्चाई तब मुरझाती है ।। कौरव अट्टहास करते हैं , पाण्डव अब भी यहां भटकते । पता नहीं, अब कृष्ण कहां हैं, संत हृदय अब कहें अटकते ।। सद्गुण ही अवगुण है अब तो, बड़ा कठिन है उसका जीना । कौन चलेगा सत्य मार्ग पर, कौन बहाए खून, पसीना ।। आंखों के सम्मुख सब होता, पर सबकी बोलती बंद है । हिम्मत ही मर गई आज सच, सिसक रहा यह कवि छंद है ।। सब सत्ता के चापलूस हैं , सब अपना अस्तित्व बचाते । दुम हिलाते रहते हरदम, सब उसके कर्तृत्व छिपाते ।। हम पर नजर गई गर उनकी, पता नहीं क्या, क्या तब होगा । घर, परिवार सभी बिखरेगा, ओ

संजय जैन बीना

*अनुकूल सोच* विधा: गीत अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे, भाव हृदय में पवित्र रखे। जो भी ऐसा कर पाता है, जीवन में आनंद पाता है।। चुगल खोर चुगली करे, और चोर चोरी से बाज़ न आवे ऐसे लोगों को लोग ही,  अपने आजू बाजू न बैठाए। और आते ही ऐसे लोगों के,  लोग हो जाते सावधान। और यहां वहां खिसकाने की,  कौशिश वो करने लगते।। अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे, भाव हृदय में पवित्र रखे।। सदैव मिलने को व्याकुल रहते, अच्छे और सच्चे लोगों से। संगत का असर निश्चित पड़ता,  हर किसी के जीवन पर। तभी तो लोगों को शिक्षा प्रति, करते है हम सजक। जिससे हो जाएगा एक,  सभ्य समाज का निर्माण।। अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे, भाव हृदय में पवित्र रखे।। जय जिनेन्द्र देव संजय जैन0" बीना" मुम्बई 26/10/2021

कालिका प्रसाद सेमवाल

वन्दना मां सरस्वती ******************* मां वीणापाणि सरस्वती भावों में ऊंची उड़ान दो, लेखनी  में   शक्ति   दो विचारों में पवित्रता दो, वाणी   में  मधुरता  दो सुरभित हो ये सारा जहाँ, विचलित मन को स्थिरता दो दूर करो मेरी सब दुविधा। ममतामयी हे मां सरस्वती ज्ञान अमृत पिला दो मां, हम चले नेह की राह पर इस दुर्बल काया में शक्ति दो, बहके न मेरे कभी कदम विचलित न हो कभी मन, मां हमको तुम तार देना मां सरस्वती हमको ऐसी  देना। ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उतराखंड

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ----      ------ सलामी----- सदा सलामी भाव से , झुक जाते हैं शीश । तेरी करुणा को नमन , हे मेरे अवनीश ।। हे मेरे अवनीश , एक तू अंतर्यामी । हे प्राणों के प्राण , जीव दे सदा सलामी ।। तोप सलामी दागता , करता है सम्मान । वीर शहीदों ने किया , तन मन सब कुरबान ।। तन मन सब कुरबान , तोड़ दी कष्ट गुलामी ।  गगन गूँज इक्कीस , दे रहा तोप सलामी ।। दिए सलामी सैन्य ने , सेनानी कर याद । तन मन धन बलिदान की , तभी हुए आजाद ।। तभी हुए आजाद , बने हम बैठे स्वामी । उनके पुण्य प्रताप , गर्व से दिए सलामी ।। छोड़ सलामी भावना , करता है अपमान । सारे सुख का है दिया , जिसने तुझको दान ।। जिसने तुझको दान , बनो पथ के अनुगामी । करता व्यर्थ प्रलाप , आज क्यों छोड़ सलामी ।। नित्य सलामी छोड़कर , करता है बकवास । श्रेष्ठ समझता रे मनुज , यूँ कुछ बिना प्रयास ।। यूँ कुछ बिना प्रयास , नहीं बनते हैं नामी । रखो नियम सिद्धांत , श्रेष्ठ जन नित्य सलामी ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) ●◆■★●◆■★●◆■★●◆■★●◆■★●◆ कुसुमित कुण्डलिनी  ---- 26/10/2021    

एस के कपूर श्री हंस

।रचना शीर्षक।।* *।।चाह और वाह, डाह* *नहीं है, जीने की राह।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 आग से आग   कभी  बुझती    नहीं   है। बिन धीरज   समस्या सुलझती नहीं   है।। क्रोध तो अवगुण   है सबसे          बड़ा। अहम से नज़र किसी की झुकती नहीं है।। 2 हर किसी के सरोकार से   मुलाकात  कर। बस महोब्बत की  ही संबको सौगात कर।। सहयोग     सद्भावना बसे      तेरे  अंदर। वह तेरी      बात करे तू उसकी बात कर।। 3 खुद को    तुम   जरा  ताराशो इस कदर। रहे सबकी ही     बस  तुझ पर      नज़र।। हर दोस्त को तुझ पर ही      नाज़   हो। बसा लो  अपने अंदर  प्रेम  और सबर।। 4 जीवन में     तकलीफ सीखा कर जाती है। मुश्किल तोअच्छा बुरा दिखा कर जाती है।। हर हार से    हम  कुछ कुछ    हैं    सीखते। कठनाई हमसे पहचान करा कर    जाती है।। 5 युगों से चला आ    रहा यही एक विधान है। जीवन ही समस्या और समाधान        है ।। बस उम्मीद का    दामन हमेशा थामे रखना। तेरे पास खुद हर    बात का  निदान     है।। *रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित* ।रचना शीर्षक।।* *।।हर लफ्ज़ बने मशाल,* *वह  फरमान  लिखना।।* *।।विधा।।मुक्तक।।

व्यंजना आनंद मिथ्या

---- लवंगलता ---                   ----    24 वर्ण विधान संयोजन ---- जगण 8 +ल    121-121-121-12 ,                  1-121-121-121-121-1 सादर समीक्षार्थ ----- महालय में अब आकर हूँ ,      सुन ईश कृपा करना तुम आकर  । पुकार रही तुमको कब से ,     खुश हूँ मुरली धुन को अब पाकर ।। सदा विनती करती रहती  ,       छवि आज दिखा बन ईश  दिवाकर । पवित्र करो मन आज यहाँ  ,       रखना इस जीवन को सुलझाकर। ।।                       💥💥 महान विचारक ही करते  ,      इस जीवन में कुछ आज स्व  खोकर ।      बढ़ा पग साधक जीवन में ,          खुद को मिलता सुख पावन बोकर ।।   करो प्रण मानव आज यहाँ ,       रहना मत जीवन में तुम  सोकर  । मिला कब देख यहाँ  नर को  ,     इस मानव जीवन में खुद रोकर ।।                 💥💥 स्व पावन भावन  सोच रखो ,     हिय में रखना प्रभु आज बसाकर । सुकर्म करो नित देख सदा ,         तन मानव का रखना तुम सुसजाकर  ।। भगा उस दानव को  तन से  ,      बसती रहती मन भोग दिखाकर ।  सुनो  मद मोह रहे  मन में  ,       अब आज भगा यह दोष हराकर ।। ****************************************((******))********* * व्यंजना आनं

नूतन लाल साहू

सोंच हर पल, न जाने हम क्या क्या सोंच रहें है जीवन अभी बहुत शेष है,कहकर माया मोह में है भरमाया। पर अकस्मात क्या घटना, घटने वाली है किसी ने अब तक न जाना। समय बहुत बलवान है यह बात, समझोंं या न समझाें सुख की घड़ियों के स्वागत में दुःख को क्यों आमंत्रित कर रहे हो। मानव जीवन का लक्ष्य बहुत दूर है आगे की राह है,बहुत जटिल पद, धन,वैभव प्राप्त कर लेना ही कोई सफलता नही है हमारा लक्ष्य है,भवसागर पार जाना। प्राण सबको प्रिय है पर जग में,कोई अमर नही है जगत है चक्की, एक विराट जिसके दो पाट है,दीर्घाकार आशा और निराशा आपके सोंच पर है निर्भर। नए जगत में आंखें खोलो नए जगत की चालें देखाें बुद्धि से कुछ समझा नही तो ठोकर खाकर तो कुछ सीखों। हर पल न जाने हम क्या क्या सोंच रहें है सोंच में ही,अपना पल बर्बाद न कर राह पकड़ तू, एक चला चल लक्ष्य है बहुत दूर,पर नामुमकिन नही है अपनी सोंच को बदलें, सितारें बदल जायेंगे। नूतन लाल साहू समीक्षा आज सुबह से शाम तक क्या क्या किया तुने इसकी समीक्षा क्यों नही किया। है क्या इरादा क्यों खुद पर ध्यान नही दिया, कैसी रंगत, भला बना ली है गलतियों पर,कैसे लगेगा लगाम। जैसे मोती सागर से

डॉ० विमलेश अवस्थी

गीतिका डॉ० अवस्थी ***हमको हमारे यत्नका, प्रतिफल नही मिलता i कर्म को सौभाग्य का संबल नहीं मिलता i *********************हिरन मन का दौड़ता, फिरता मरुस्थल मे, किन्तु खोजे भी कहीं पर जल नही मिलता i1 *बाद संध्या के उदित रजनी हुई, चाँदनी का किन्तु कोई पल नहीं मिलता i प्रश्न हैं सम्मुख खड़े झंखाड़ से, चल रहामन्थन मगर कुछ हल नहीं मिलता i उम्र का जलयान  ,जर्जर हो चला, सिन्धु की गहराइयों का तल नहीं मिलता i स्वार्थ की विमलेश यूँ भरमार है, किसी का भी मन यहाँ निर्मल नहीं मिलता i रचनाकार डॉ० विमलेश अवस्थी

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे* प्रभु का रूप अनंत है,प्रभु-आकार विराट। प्रभु-महिमा-सीमा नहीं,सकल लोक-सम्राट।। तारे-रवि-शशि तो सभी,रहें सदा आकाश। पर,प्रकाश दें अवनि को,बिना लिए अवकाश।। हिंदी का गौरव बढ़े, हिंदी  हिंदुस्तान । यही देश की शान है,यह अपना सम्मान।। बिना कला-साहित्य के,जीवन नरक समान। पढ़कर ही साहित्य को,होता मनुज महान।। संसद की गरिमा गिरी,छिड़ता सदा विवाद। आपस में प्रतिनिधि लड़ें,तज जनहित-संवाद।।                ©  डॉ0 हरि नाथ मिश्र                     9919446372

सीमा मिश्रा,

कर दो मेरा उद्धार मोक्षदायिनी मोक्ष मांगती, करती है चीत्कार, तात व्यथित मैं वसुधा पर हूं, कर दो अब उद्धार। मानव के संस्कृति शिखर की,मैं ही हूं पहचान, मेरे निर्मल जल से धुलते,पाप के जटिल विधान, किन्तु चेतना शून्य मनुज ने, मेरा हर डाला श्रृंगार, तात व्यथित मैं वसुधा पर हूं, कर दो मेरा उद्धार। ब्रह्म की मानस पुत्री मैं , उतर धरा पर आई, वेग संभाला शिव शम्भू ने,पुरखों को मुक्ति दिलाई। मनु संस्कृति रक्षित मुझसे,पर दिया मुझे धिक्कार, तात व्यथित मैं वसुधा पर हूं, कर दो मेरा उद्धार। मुक्त शवों को करते करते, सूख गई मेरी धारा, स्वच्छ सभ्यता को करने में, सूख गया है किनारा, विष्णुपदी हूँ अमृत जल से,कल कल करता संसार, तात व्यथित मैं वसुधा पर हूं, कर दो मेरा उद्धार। पुलकित तन और हर्षित मन से, राहें थी गाती, जीवन की रेखा हूँ मैं ,पर रोज सिमटती जाती, परि आवरण मिटाता जाता, मेरे हिय का प्यार, तात व्यथित मैं वसुधा पर हूं, कर दो मेरा उद्धार। रचना - सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर (उ० प्र०) स्वरचित व सर्वाधिकार सुरक्षित

शिवशंकर तिवारी

 चरागों की तरह जलने की दिल में चाह हो तो चल  अँधेरों में पड़े लोगों  की गर  परवाह हो तो   चल इन्हे फुर्सत नहीं अपनी तिजोरी की हिफाजत से  किसी बस्ती मे भूखों का भी कोई शाह हो तो चल  सुकूँ दिल को नहीं कोई, इधर मरहम, दवाओं से  कहीं मन्नत, दुआओं का कोई, दरगाह हो तो चल पड़े थे  पाँव में छाले, दरिंदों  नें कुचल  डाले   कोई बेदम मुसाफिर भी, तेरा हमराह हो तो चल घने बादल सियासत के, सुबह होने नहीं देते  तिमिर के इस समंदर की. तुझे कुछ थाह हो तो चल : शिवशंकर तिवारी । छत्तीसगढ़।

विजय कल्याणी तिवारी

" सुखद " / चौपाई / ----------------------------- सुखद क्षणों को रखा संजोए जिन्हें याद कर नयना रोए संवेदना जिवीत रहने दो अश्रु नयन से अब बहने दो। अश्रु जिवित रखता भावों को सहलाता रहता घावों को टीस बचाकर रखता जीवन अश्रु और भावों का बंधन । भीतर बाहर रहे बराबर सुख बरसे तब सकल चराचर जनम सफल हो जाए अपना रीत नीत मन सदा परखना। सुखद कल्पना सुख की छाया हाथ नही आते यह माया भूल गया रचना कारक को बोझ सौंप दे उस धारक को। कौल बहुत पक्का है उनका तू भी बन पक्का निज धुन का सुख दुख तब समभाव रहेंगे धार नदी बन सदा बहेंगे। निर्मल निश्छल गंगा जल मे सदा सुवासित नील कमल मे मन के भाव संजोना भाई बाकी कुशल रखें रघुराई । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

आज हमारी घरवाली पांव दबाये पानी पिलाये घड़ी-घड़ी..... दयानन्द त्रिपाठी निराला

शीर्षक - आज हमारी घरवाली पांव दबाये पानी पिलाये घड़ी-घड़ी..... आज हमारी घरवाली पांव दबाये पानी पिलाये घड़ी-घड़ी। मेरे प्रियतम मेरे नाथ करती बातें बड़ी-बड़ी। इठला कर वो हमसे बोली करवा पर कुछ गढ़वाओगे। झुमका, बाली आज सजन तुम हार गले की बनवाओगे।। देखो मेरे भोले सजन बगल वाली झुमका बाली ले आयी। राह तुम्हारी देख रही थी  खीर  पकौड़ी  सब  बनायी ।। टीवी, सोशल, अखबारें बोल रहे हैं छूट लगी है बड़ी-बड़ी... आज मेरी घरवाली पांव दबाये पानी पिलाये घड़ी-घड़ी।। हां ना जब कुछ सुनी नहीं तो रौद्र रूप है दिखलाई, घरवाली बना गयी आज साहब सी है डांट पिलाई।। मंगल की शोभा उड़ गयी बढ़ गयी अमंगल की छाया, हाथ उठा संत्संग करे, खानदान बखाने खड़ी - खड़ी.... आज मेरी घरवाली पांव दबाये पानी पिलाये घड़ी-घड़ी।। देखो मेरे निराला सजन मेरी बात भी सुनते जाओ। दौड़-दौड़ कर थकी हुई हूँ लाज शरम कुछ तो खाओ।। अब क्या बोलूं तुम प्राण पियारे कवितायें लिखते पढ़ते हो। करवा पर पैर दबाना तुम्हें चाहिए  नाहक मुझसे कहते हो। कविताओं को पढ़ने से प्राण पियारे गला दर्द होता है। उसे दबा दूँ बोलो तुम दर्द मर्द को ना होता है। मुझको झांसे में ना रखना

कालिका प्रसाद सेमवाल

*गौ माता को राष्ट्र माता बनाना है* ★★★★★★★★★★★ गौ   सनातन  धर्म की पहिचान, गौ   राष्ट्र की  भाग्य  विधाता, गौ   माता     मंगलकारी   है, गौ   माता   राष्ट्र   का   प्राण।   गौ   माता   जहां   रंभाती  है , उस  घर में   खुशियां  आती, ममता मयी   गाय  के कारण, पास नहीं आते है  कोई  रोग। गाय  माता  का दूध  अमृत है, पंचगव्य  से  मिटते  कई रोग , गौ  दर्शन से    मंगल होता है, जीवन का  कल्याण  हो जाता। अब भी  समय है सावधान हो जाओ, गौ माता के   वंश  को  बचाना   है, राष्ट्र   में   समृद्धि    लानी   है  तो, गौ माता को राष्ट्र माता बनाना है। ★★★★★★★★★★★ कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

एस के कपूर श्री हंस

बाल साहित्य* *शीर्षक।।बचपन* *विधा।।हाइकु* 1 नानी का घर छुट्टी में मौज मस्ती न कोई डर 2 महंगे सस्ते चंदा मामा  दूर के पास लगते 3 फिक्र की बात दूर   तक  चिंता न ये है सौगात 4 खेल खिलौना बचपन   यूँ  बीते हँसना    रोना 5 रूठो मानना बचपन  खजाना न है   हराना 6 ये बचपन पाते बच्चे सभी का अपनापन 7 ये बच्चे सारे मात पिता के तारे बहुत   प्यारे 8 राज  दुलारा हर बच्चा है प्यारा जग से न्यारा 9 बच्चे हैं अच्छे बच्चे मन   के सच्चे हँसी के लच्छे 10 ये  बचपना अनमोल  तोहफा हँसना रोना *रचयिता।।एस के कपूर* *"श्री हंस"।।बरेली।।* करवा चौथ।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* *।1।* केवल यह एक व्रत   ही नहीं सुहागन    का      संस्कार है। पति की दीर्घ  आयु के   लिये ये  चंद्रमा    से   गुहार       है।। प्रेम के  अभिव्यक्ति  की मानों चरमसीमा है     करवा   चौथ। सोलह  श्रृंगार से   सुजाज्जित आस्था     का    त्यौहार      है।। *।2।* स्नेह प्रेम आस्था   विश्वास का इक़ पर्व  है         करवा  चौथ। इक़ सुहागन के         समर्पण का गर्व   है        करवा   चौथ।। भारतीय नारी पति के  जीवन के लिए कर सकती   कुछ भी। एक नारी के श्रृंगा

नूतन लाल साहू

मैं को बिसर जाओ मानव जीवन है बहती धार नदी की जिसका कोई छोर नही है अकेला खड़ा है,कठिन धरा पर मैं को बिसर जाओ। जीवन है, इक आग का दरिया जिसको कोई लाँध न पाया मन है चंचलता के परवस में मैं को बिसर जाओ। न जाने क्या ख्वाब संजोए बैठे हो मन ही मन मुस्कुरा रहे हो मंजिल की तो कोई कोर नही है मैं को बिसर जाओ। मुश्किलों से छुटकारा,कभी नही मिलती उलट पलट वो दौड़े आती है चैन की नींद,किसने सोया है मैं को बिसर जाओ। महाशक्ति की यादों को क्यों भुल गया,सांसारिक सुख में रामरतन धन,तभी मिलेगा मैं को बिसर जाओ। जीवन तो,यौवन की देहरी पर है भाव तरंगे,घुमड़ रही है यदि आतुर हो, भव पार जाने को मैं को बिसर जाओ। जीवन का लक्ष्य,बहुत कठिन है कुछ पा करके कुछ खोना है कुछ खोकर के कुछ पाना है अगर जीवन में,शांति की चाह तो मैं को बिसर जाओ। नूतन लाल साहू

छत्र छाजेड़ फक्कड़

कड़ियाँ बिखरी इधर उधर जोड़ने वाला तो कोई और ही है कहीं क्रोध बसा, कहीं मोह कमा कहीं करूणा की नदियाँ बहती है कहीं विश्वास से ही जीवन है कहीं गुंजाइश शक की रहती है आशा निराशा की भँवर से बाहर आने का रास्ता तो आस्था ही है कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर जोड़ने वाला तो कोई और ही है हार कब स्वीकार करता है नर पर विजय की क्षमता भी कहाँ है वेद पुराण पढ़े सभी मगर सुखमय जीवन की डगर कहाँ है कभी उतरता कभी चढ़ता ये पर कालचक्र तो सतत चलता ही है कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर जोड़ने वाला तो कोई और ही है कहाँ स्वर्ग है नर्क देखा किसने कौन करता इसका लेखा जोखा कर्म स्वयं के ही फलदायक बाक़ी सब तो धोखा ही धोखा पेट की आग में जलता मनुज कुछ और तो इसे सूझता ही नहीं है कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर जोड़ने वाला तो कोई और ही है अनगिन ज़ख़्म देता ये जीवन पर मरहम तो मौत का लगता है एक रास्ता बंद हो जाये अगर दूजा स्वयं ही खुलता है आना जाना तो क्रम सृष्टि का सबके लिए ये होता समान ही है कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर जोड़ने वाला तो कोई और ही है पटल के समस्त प्रबुद्ध सदस्यों को फक्कड़ का नमन छत्र छाजेड़ “फक्कड़”

मार्कण्डेय त्रिपाठी

करवा चौथ आज चांद से रूप चुराकर , सुहागिनों का मन हर्षित है । करवा चौथ की बहुत बधाई, जोड़ी करती आकर्षित है ।। यह सुहाग का व्रत है सचमुच, चन्द्र दर्शन का अति महत्त्व है । बड़ा भाग्य होता है जिनका, वे करतीं व्रत,मूल तत्व है ।। पति की सुख समृद्धि कामना, और दीर्घ जीवन की आशा । वैवाहिक जीवन हो सुखमय, सुहागिनों की यह अभिलाषा ।। पति के हाथों पानी पीकर, वे निज जीवन धन्य मानतीं । भाव समर्पण का यह व्रत है, हर पत्नी यह पूण्य जानती ।। हे प्रभु, जोड़ी बनी रहे नित, हम पर कृपा बनाए रखना । जीवन के झंझावातों से, हमको सदा बचाए रखना ।। यही मांग प्रभु से होती है, अश्रु नयन में भर आते हैं । धन्य, धन्य संस्कृति हमारी, सारे दुख तब मर जाते हैं ।। हरितालिका तीज के सम ही, करवा चौथ हृदय को भाता । बाजारों में रौनक दिखती, देख मनस् सचमुच हरषाता ।। करतीं व्रत, उपवास सुहाग हित, कथा, कहानी भी होती है । कर सोलह श्रृंगार शाम को, वे शुचि सपनों को बोती हैं ।। जहां भी हैं भारतीय विश्व में, करवा चौथ धूम रहती है । अमर रहे सौभाग्य हमारा, नारी चरण चूम कहती है ।। फिल्मों और सिरियलों में भी, दिखती करवा चौथ की झांकी । चांद उतर आता

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*             *करवा* --------------------------------- करवा माता की कृपा , सदा सुहागन नार। दीर्घ आयु की कामना , सुखी रहे संसार । सुखी रहे संसार , साधना माँ की करते । व्रत पूजा धर ध्यान ,  सभी जन व्रत यह धरते। कह स्वतंत्र यह बात ,  आस का है यह घरवा । पूजो सब मिल साथ , यही सत् व्रत है करवा ।। करवा भर कर पूजती , करती हैं श्रृंगार । कथा कहानी आरती , बतलाए शुभ सार । बतलाए शुभ सार ,  धर्म सम्मान सिखाए । चंद्र देव का मान , सदा शीतलता आए । कह स्वतंत्र यह बात , भाव से होता भरवा । मातु आगमन श्रेष्ठ , भरो सब मिलकर करवा ।। करवा का व्रत कर रही , भारत की सब नार । पूजा अर्चन साधना , पति पत्नी का प्यार । पति पत्नी का प्यार , हाथ में हाथ सुहाए । कर सोलह श्रृंगार , नारियाँ गीत सुनाएँ । कह स्वतंत्र यह बात , गले में सोहे हरवा । हो अखंड सौभाग्य , यही वर दें माँ करवा ।। मधु शंखधर स्वतंत्र *प्रयागराज*

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ---- 24/10/2021                    ------ संस्थापक  ----- संस्थापक शुभ ज्ञान के , स्वागत बारंबार । आज बीच में आ गये , ज्ञान पुंज अवतार ।। ज्ञान पुंज अवतार , दिव्यता के परिमापक । दिये नवल उपहार , विराजे हिय  संस्थापक ।। संस्थापक सद्मार्ग के , सद्गुरु दीनदयाल । तमस छटे अज्ञान के , जीवन करे निहाल ।। जीवन करे निहाल , गुणीजन हे अध्यापक । विधिवत दें बुनियाद , मर्ममति श्री संस्थापक ।। संस्थापक जब भ्रष्ट हो , हो समूह का अंत । आहत हो सद्भावना , अपमानित हो कंत ।। अपमानित हो कंत , नहीं बन पाये व्यापक । सभी मार्ग अवरुद्ध , करे झूठा संस्थापक ।। संस्थापक संयमित हो , धर्म कर्म सद्भाव । अनुयायी मानस पटल , बनता अमिट लगाव ।। बनता अमिट लगाव , पूज्य होता प्रज्ञापक । उदाहरण अति श्रेष्ठ , करे प्रस्तुत संस्थापक ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. )

चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंद्र

सभी देशवासियों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं शीर्षक - करवा चौथ का "चंद्र"        (सत्य रजनीकांत का) जो दिवाकर की आभा ढक सकती क्षण में अपने अलौकिक आमोद में अनुसुइया रूप में त्रिदेव खिला सकती अपनी गोद प्रमोद में जिसने सत्यवान के प्राण छुड़ाए ,यम को लौटाया विनोद विनोद में सभी देवों की प्राण शक्ति समायी जिसमें,रहते सूर्य-शशि सदा गोद में यह भारतीय नारी को ही सहज सरलता से भाता है "चंद्र" जो तुमको माने अपने पति की जीवन दाता है तुम प्रकटना उचित समय पर, मान शक्ति का रखना अन्यथा गणपति का दिया अभिशाप, याद सदा ही रखना नारी दैवीय शक्ति का स्रोत स्वरूप असीम है शिव ने समझाया था,तुम्हें रूप का घमंड असीम है अभिशप्त, देख तुम्हें श्रीकृष्ण भी स्यमंतक मणि चोर कहलाए रामचंद्र, कृष्णचंद्र बचा न सके, तब शिव-शक्ति तुम्हें बचाए "चंद्र" आज हर रमणी चकोर बन तुम्हें निहारती अवनि से अंबर तक है रह रह कर बुहारती "चंद्र" तुम्हें सर्व दोष से उबारती शेखर शिखर शशांक उभारती तुमसे जिसकी उपमा दी जाती आज तुम्हें भी वह अनुपम भाती सृष्टि पृकृति ही समझे ? तुम उसे अलंकृत करते या वह तुम्

अक्षय लाल भारद्वाज

🙏 चँदा मामा🙏 तुम्हें चाँद कहूँ या तारा।                ए  चाँद  देव  हमारा।। क्या  किरदार  तुम्हारा।               चौथ का चाँद या तारा।। पतिदेव हो क्या हमारा।                  सोचे ए मन  विचारा।। करवा चौथ का चँद्रमा।               देखेगी बेटी बहू और माँ।। मन में मान पति जी रामा।              यह तो रिति का करनामा।।  नारी का सवाल नामा।               पति कहूँ या चँदा  मामा।। अक्षय लाल भारद्वाज 🥦🥦🥦 मंडी गोविंदगढ़ पंजाब🥦🥦🥦

निशा अतुल्य

करवा चौथ की सभी स्नेहिल सखियों को बधाई  प्रेम प्रीत की साधना , करवा का त्योहार । सजी सुहागन निरखती, साजन का उपहार ।। मुझको कुछ नहीं चहिए , साजन चाहूँ साथ । मान सदा रखना पिया, ले हाथों में हाथ  ।। रूप सलोना तब सजे ,साजन पकड़े हाथ । कजरा गजरा सज रहा, बिन्दी चूड़ी साथ ।। सिंदूरी आभा खिली, गौरी शंकर साथ । करवा माँ मना रही, वरद हस्त हो माथ ।। निर्जल व्रत रखती नहीं, पर करती हूँ प्यार । सुख-दुख सारे बाँटती, जो जीवन का सार ।। मन से बाँधी डोर हैं, सांस सांस हूँ साथ । कोई विपदा हो अगर ,कभी न छोड़ूँ हाथ ।। मैं दिल तुम धड़कन पिया, ऐसा अपना साथ । तुम से ही संसार है , तुम सजते हो माथ ।। निशा"अतुल्य"

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 24/10/2021_ विधा-मनहरण घनाक्षरी छंद *सृजन शब्द-करवाँचौथ* सुहागिनों की हैं शक्ति, प्रभु पे अमिट हैं भक्ति, करवाँ चौथ  का व्रत, त्योहार सजायेंगे। व्रत हैं ये सुहाग का, बढ़ते रहे भाग्य का, पति की उम्र के लिये, निर्जला निभायेंगे। व्रत है ये विश्वास का, अटूट बने आस का, खाना पीना कुछ नहीं, भूखे रह जायेंगे। मेंहदी सुहाग वाली, हाथों में रचा डाली, पति सदा साथ रहें, प्रभु को मनायेंगे। ----स्वरचित.. ---- योगिता चौरसिया"प्रेमा " --- मंडला म.प्र.

श्रीकांत त्रिवेदी

करवा चौथ मां लक्ष्मी का वाहन,उल्लू  उनसे इक दिन रूठ गया!  कालरात्रि मां के भी वाहन  गर्दभ का मुंह फूल गया!! दोनो ही सलाह कर बैठे, जाकर एक जगह पर ही, दोनो सहमत इक दूजे से , केवल एक बात पर ही!! हम दोनों की भी पूजा हो, अपनी अपनी देवी संग! तभी करें देवी सेवा जब, हो इस जीवन में रंग!! दोनो देवी अंतर्यामी, इनके मन की जान गई, इन दोनों की भी पूजा हो , बात ये दोनो मां गई!! कालरात्रि के वाहन गर्दभ, पूजन का दिन रखना याद! देवी पूजन सप्तमी को, बस उसके ग्यारह दिन बाद !! मां लक्ष्मी ज्यादा दयालु हैं, उलूक पूजन हो पहले ! दीवाली पर मेरे पूजन से, केवल ग्यारह दिन पहले !! इन दोनो की देखा देखी, गणपति वाहन भी रूठे! मेरी पूजा नहीं तो कोई, मेरी पीठ पर मत बैठे!! बोले गणपति, मूषक पूजन, भी होगा तुम ना रूठो! हो चतुर्थी पर जब पूजा, संग मेरे तुम भी बैठो !! तीनों ही दिन एक हो गए, तब ये करवा चौथ बनी! गर्दभ ,मूषक उलूक रूपी, पति के पूजन हेतु बनी!! हम सारे पति खुश हैं कितने,  पत्नी आज करे पूजा! मगर आज के बाद रोज ही, जाएगा ढंग से पूजा !! ... श्रीकांत त्रिवेदी लखनऊ

स्नेहलता पाण्डेय स्नेह

गीतिका छन्द आज है सौभाग्य का व्रत, सज रही हैं गोरियाँ।  मुस्कराती   हैं  हृदय  में, नेह  की ले डोरियाँ। हार    साजे  है  गले  में, चमक  जाएं मोतियां। कान के झुमके सुहाने, फैलती है ज्योतियाँ। सोलहो श्रृंगार  कर  के, खनक कंगन बाजती। हाथ में पिय नाम लिख कर, मधुर मन वो लाजती। रूप को दर्पण निरख कर, खुश हुई जातीं घनी। समझतीं है आज खुद को, जगत की सबसे धनी। कर रही श्रृंगार नख शिख, रह न जाये कुछ कमी। आतुरा  सी  मार्ग  देखें,  द्वार   पर  आँखे थमीं। बादलों  की ओट में जा, चाँद छिप  जाये कहीं। सुंदरी  के  अधर  टेसू, शुष्क  पड़   जाए वहीं। थाल पूजा  सज गई है, पात्र जल भी  ले लिया। आयु लंबी  पति जियें ये,प्रार्थना  प्रभु  से किया। पति  खड़े हैं सामने ही, जल पिलाते हाथ से। देखते अति स्नेह भर कर, नयन हर्षित साथ से। ज्यूँ रहे चंदा गगन में, लालिमा ज्यूँ  रवि  रहे। त्यों रहे मुझ संग साजन, प्रेम की ये छवि रहे। नेह  की  ये   रीति  प्यारी, राग  का  त्योहार ये। प्यास   भी   लगती  नहीं, चौथ का  उपहार ये। स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

संजय जैन बीना

*करवा चौथा और रिश्तें का बंधन* विधा : कविता करवा चौथ का ये  त्यौहार बहुत प्यारा है। जो पत्नी पति के  आयु के लिए व्रत रखती है। और साथ पति भी पत्नी के  साथ व्रत रखते है। और दोनों लम्बी आयु के के लिए पूजा करते है।। रिश्तो का बंधन  कही छूट न जाये। और डोर रिश्तों की कही टूट न जाये। रिश्ते होते है बहुत जीवन में अनमोल। इसलिए रिश्तो को दिलमें सजा के रखना।। बदल जाए परिस्थितियां  भले ही जिंदगी में। थाम के रखना डोर अपने रिश्तों की। पैसा तो आता जाता है सबके जीवन में। पर काम आते है विपत्तियों में रिश्ते ही।। जीवन की डोर  बहुत नाजुक होती है। जो किसी भी समय टूट सकती है। इसलिए कहता हूँ में रिश्तो में आंनद बरसाए। और पति पत्नी के  रिश्ते में बाहर लाये। और एकदूजे के लिए जीकर  दम्पतिक धर्म निभाते है।। जय जिनेन्द्र देव  संजय जैन "बीना " मुम्बई 24/10/2021

डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

*करवा चौथ का निर्जला व्रत* *************************** कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि। सुहागिनों का होता है  करवा चौथ व्रत तिथि। पति की लम्बी उम्र हेतु रखती हैं निर्जला व्रत। रात्रि में चंद्रदर्शन करने के बाद तोड़ती हैं व्रत। 24अक्टूबर21 को है इसबार करवा चौथ व्रत। शुभ नक्षत्र रोहिणी में अबकी पड़ रहाहै ये व्रत। एक और संयोग बना है रविवार का भी है दिन। सूर्यदेव भी आशीष देंगें सुहागिनों को इस दिन। सूर्योदय से पूर्व उठके ये महिलाएं करती स्नान। सरगी खाएं जल पिएं करें गणेश पूजा व ध्यान। निर्जल व्रत का संकल्प करें फिर कुछ ना खाएं। दिनभर निर्जल रखवाए सायं में जब चंदा आएं। चलनी हाथ ले अपने पिया को चंद्रमा जैसे देखें। पति के हाथों जल पीकर ही उनके प्रेम को देखें। करें कामना पति के दीर्घ आयु का चंदा से मांगें। तोड़ें व्रत सभी सुहागिनें  ख़ुशियाँ पुन-पुन मांगें।  सूर्यदेव देते आरोग्य व दीर्घायु रहने के आशीष। पति-पत्नी को जीवन में स्वस्थ सुखद आशीष। देते चंद्रदेव हैं अपना सुहागिनों को यह आशीष। पति चिरायु रहे धरेरहे नित हाथ पत्नी के शीश। पूजन करें मिट्टी के वेदी पर सब देवता स्थापित। इसी वेदी पर

अमरनाथ सोनी अमर

दोहा- करवा चौथ!  पति पत्नी के हित निरखि, आया करवा पर्व!  आज सुहागिन नारियाँ, ब्रत करतीं हैं सर्व!! 1!!  निर्जल ब्रत पालन करें, पूजें गौर गणेश!  लम्ब आयु पति को मिले, जीवन रहे न क्लेश!!2!!  करें प्रतीक्षा चाँद का, वही सुहगिन नारि!  जब शशि आये धरणि पर, देय अर्घ सुकुमारि!!3!!  कथा सुने पूजन करें, भोग लगे भगवान!  लेतीं महाप्रसाद हैं,  बाँटें तब जन मान!!4!!  साफ स्वच्छ श्रृंगार कर, बनी नवेली मान!  पति का पूजा भी करें शंकर जी पहचान!!5!!  अमरनाथ सोनी" अमर " 9302340662

निशा अतुल्य

हाइकु 🙏🏻 चाँद चमका रूप निखरा आज बोलो किसका । पूछती धरा  रोई नरगिस क्यों ? कौन बिछड़ा । ओस गिरती प्रियतम मिलती प्रसन्न दूब । ये विडम्बना मिलना, बिछड़ना साथ चलता । हँसना, रोना  आधार जीवन का बसा हृदय । करवा चौथ विश्वास सुहागन  नित बढ़ता । निशा अतुल्य

गौरव शुक्ल

पत्नी "पाकर के    जिसको पुरुष  पूर्ण होता है, जिसके बिन   जीवन सार तत्व खोता है। हर पाप पुण्य   में जिसका आधा हक है, हर पूजा पाठ,    यज्ञ जिससे सार्थक है। शास्त्रों ने   जिसको  अर्द्धांगिनी कहा है, जीवन स्वामिनी  व सहधर्मिणी कहा है। जो वरण अग्नि के सम्मुख की जाती है, ले फेरे सात, जिंदगी में         आती है। आती है तभी असल  में घर बस पाता, अनमोल  धर्मपत्नी का सचमुच  नाता। यह पति के प्राण माँग   यम से लाई है, सीता बन   कभी पार्वती बन   आई है। पति के शव के सँग जली,नहीं उफ बोली, हर व्यथा सही, पर   नहीं धर्म से  डोली। आबद्ध जिसे कर   अपने बाहु-वलय में, डुबकियाँ लगा जिसके निस्सीम प्रणय में- हर चिंता हर  थकान को अपनी  खो  कर, स्वर्गिक सुख का आभास प्राप्त करता नर। वह सहज प्रणम्या, अतुलित  मनभावन है, नारी का    पत्नी रूप       परम  पावन है। हम परिहासों में जिसे न  क्या क्या  कहते, चुटकुले   रोज    ही   नये    बनाते  रहते। पर हर   कटाक्ष    हँसकर  बिसार देती है, बदले में    हमको    मात्र    प्यार  देती है। उस  सहनशीलता  की  प्रतिमा का  वंदन। उस परिणीता, उस भार्या  का  अभिनंदन।              

प्रखर दीक्षित

*कर्क चतुर्थी पर जीवनसंगिनी को सनेह भेंट* *वर्तिका तुम प्रिये* सांझ का दीप मैं, वर्तिका तुम प्रिये, तुम चिरंतन अकथ सी कहानी मेरी।। संगिनी तुम सुभग, तार सप्तक तुम्हीं, श्रांत का तुम नमिष, शर्म पानी मेरी।। जीवनीय पथ सुघर , मोद अल्हादिनी, काम्य रम्या प्रभा, मधुर संभाषिनी, मंत्रिणी साधिका, लाज संस्कृति प्रदा, सौख्य संतति जा सुख विनोदिनी हे रतिके प्रियम्,पूर्णिमा द्युति अगम, शौर्य की शक्ति तुम ही रवानी मेरी।। *तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....* उर्मियां तुम हो सागर की अठखेलियां शपथ प्रणयन की पावन तुम्हीं फेरियां चित्रलेखा मेरी व्यञ्जना भाव की तुम अर्धांग मेरा , लास्य की बालियां छंद रस में पगी छंद का व्याकरण, पूर्ण विधु सी खिली हो सुहानी मेरी।। *तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....* बिन तुम्हारे यह जीवन सूना सखी, चिंत कारक घड़ी दु:ख दूना सखी प्रदाक्षिणा तुम मेरी मैं शपथ हूं सदा जाग्रत हूं निरंतर मैं न मरना सखी ग्रंथि पावन अटल, संग श्वासों तलक, दौज का चंद्र मैं ,तुम चंद्रानी मेरी।। *तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....* * प्रखर दीक्षित * *फर्रुखाबाद*

अजय आवारा

बस करीब ही है सहर थोड़ी दूर और चल, दिख जाएगी मंजिल थोड़ी दूर और चल। है अगर तू ही एक तन्हा यहां तो क्या हुआ, मिल जाएगा कोई तन्हा थोड़ी दूर और चल। सूना ही सही तेरी ख्वाहिशों का आसमान, मिल जाएगा कारवां थोड़ी दूर और चल। थक गया है तू कल के पीछे भागते भागते, मिल जाएगा तुझे कल थोड़ी दूर और चल। क्या हुआ जो बिखर गए टुकड़े तेरी धार के, मिल जाएगा तुझे साहिल थोड़ी दूर और चल। संभाल कर रख ले अपने अधूरे सवालों को, मिल जाएंगे जवाब उनके थोड़ी दूर और चल। यूं तो हर कदम आखिर लगता है जिंदगी का, मुलाकात होगी जिंदगी से थोड़ी दूर और चल अजय "आवारा"

अक्षय लाल भारद्वाज

🙏कुंडलिया छंद🙏 सुहागन मैं करती व्रत,करवा चौथ जय माल।  इंतजार  हैं  चाँद  का, सजी आरती की थाल।। सजी आरती की थाल,संग फल फूल  मिष्ठान। हर पल कृपा रखना, हे करवा चौथ के चाँन।। जन्म -जन्म  के  साथ,  मैं सदा    रहूं  सौभागन । कर  कृपा  माँ  करवा   ,  सदा   रहूँ मैं सुहागन।। अक्षय लाल भारद्वाज 🥦🥦🥦 मंडी गोविंदगढ़ पंजाब🥦🥦🥦

कालिका प्रसाद सेमवाल

*माँ जीवन की आराधना है* ***** माँ रामचरितमानस की चौपाई है, गीता  के   उपदेश  जैसी   है! कविता  के   अंलकार  जैसी  है, माँ     एक    पवित्र   नाम  है। माँ सरस्वती जैसी विद्या की देवी है, ज्ञानी और  विज्ञानी   दोनों है! करुणा की  करुण  कहानी है, श्रद्धा , ममता का भण्डार होती है। माँ मंदिर की मधुर ध्वनि होती है, भगवान  का  प्रसाद  होती  है! मोहक स्वरों   का सरगम होती है, माँ   सारा   दुख   हर   लेती    है। माँ  इन्सानियत  का  रुप होती है, त्याग   की   प्रतिमूर्ति   होती है! माथे  की  चन्दन   जैसी  होती  है, चिलचिलाती धूप में माँ छाँव होती है। त्याग और बलिदान का रुप होती है, माँ में  असीम   शक्ति   होती  है! हौंसला      बढा़ती     रहती   है, माँ  मन  का भाव  पढ़  लेती है। माँ जिन्दगी की सही परिभाषा है, जिन्दगी का  सुहावना  सफर  है! संस्करों   की  गंगोत्री  होती है, माँ ही जीवन की आराधना है। ★★★★★★★★★★ कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग     उत्तराखंड

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।* *।।अमूल्य जीवन।।अनमोल गुण।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 खुशनसीब जिसके लिए  कोई दुआ    करता    है। अपनो   में कोई          आपको      गिना  करता      है।। नेक नियत बना कर  रखो दिल से   सबके     साथ। दूर रह कर  कोई  आपको  याद किया    करता   है।। 2 ज्ञान जहर   जो   अहंकार  को जन्म         देता   है। वो ज्ञान अमृत  जो  नम्रता  को जन्म        देता    है।। ज्ञान मार्ग है स्वयं   को   भीतर तक      जानने    का। वो ज्ञान सर्वोत्तम  सर्वहित  को जन्म     देता        है।। 3 वही सच्चा  ज्ञान     शिक्षा  जो  आचरण में उतारी जाये। समस्या शुरू से     ही   समझी   फिर     सुधारी   जाये।। सच को     कहने   की  हिम्मत लाये    वह    ज्ञान   है। दोषारोपण नहीं            स्थिति   बस     सँवारी   जाये।। 4 आजकल रिश्ते   बस      रस्मी     निभाये     जाते     हैं। दिखावे के लिए    जाने     क्या  दिखाये    जाते     है।। सच्चे रिश्ते      वो जो       साथ जाते       हैं      जिये। हाथ पकड़    कर   गिरते    को उठाये      जाते    है।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस "* *बरेली।।*  *©. @.   skkapoor* *

छत्र छाजेड़ फक्कड़

ढेबरी अर ज़िंदगी छत्र छाजेड़ “फक्कड़” ढेबरी च्यानणे खातर जगायी जठै जठै बणग्या दाग काला़ काला़ गोबर लीपी गेरूंआ भींत पर रीसै हरअेक दाग स्यूं अेक पीड़  लपलपाती,झोला खाती बतावै ढेबरी री आ लौ क्हाणी ज़िंदगी री और जिंया ही पूर लाग्यो साफ़ करण नै बां काला़ मटमैला दागां नै हो’गी पूरी की पूरी भींत स्याह रात सी काली़ अर अेकामेक,अेकसार हुयगी  आ भींत स्याह म्हारी  दुख पांती डोलती ज़िंदगी सी पटल का सगला़ नै म्हारा जुहार सा

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ----      ------ रोना ----- रोना ही शुरुआत है , हँसना लगता झूठ । अल्प समय की ये क्रिया , फिर पकड़े दुख मूठ ।। फिर पकड़े दुख मूठ , यही जीवन भर होना । अद्भुत है संसार , लगे जीवन भर रोना ।। रोना खुलकर हे सखे , बन्द नहीं कर द्वार । हृदय कुंज के दीप से , मन होता उजियार ।। मन होता उजियार , चैन से फिर तुम सोना । बीत गये तम रात ,  सही होगा यह रोना ।। रोना तो है जिंदगी , नहीं मिला पिय साथ । सिर्फ दिखावा ही किया , रखकर ऊँचा माथ ।। रखकर ऊँचा माथ , बता अब क्या है खोना । जब तक चलती श्वास , भाग्य में दिखता रोना ।। रोना संवेदन कला , बनते बिगड़े काम । पत्नी नेता नागरिक , खास रहे या आम ।। खास रहे या आम , सफलता तार सँजोना । चमत्कार यह भाव , सीखना पड़ता रोना ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. )

नूतन लाल साहू

ऐ चांद तू जल्दी आना करवां चौथ पर आधारित हर साल दिवाली के पहले करवां चौथ का व्रत आता है लेकिन अखर जाता है जब तुम,बादल में छिप जाते हो भावों के फूलों से मणिमाला पिरोई हूं मैं ऐ चांद तू जल्दी आना। आंखे मूंद लेती हूं मैं चलचित्र की भांति जब मद्धिम मद्धिम रोशनियां चांद की नजर आती है कुछ पाने के सपने है ऐ चांद तू जल्दी आना। जीवन एक कहानी है कभी हंसाती है,कभी रुलाती है पर चांद,तेरा एक झलक जीवन सौरभ को, सुरभित कर देता है ऐ चांद तू जल्दी आना। मन के भीतर, विशद तरंगे ऊपर नीचे, आगे पीछे उठ रही है,हर पल चैन से बैठ न पा रही हूं आज मैं दिनभर भावों के सागर,तन पर मन धीमें धीमें थिरक रहा है ऐ चांद तू जल्दी आना। हर साल दिवाली के पहले करवां चौथ का व्रत आता है भावों के फूलों से मणिमाला पिरोई हूं ऐ चांद तू जल्दी आना। नूतन लाल साहू

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.                        कविता         *क्या है आजादी का मतलब*                     *****      क्या है आजादी का मतलब,      समय रहते समझना होगा।      आन बान शान की रक्षा में,      मिलकर साथ निभाना होगा।।      नियम पालना बहुत जरूरी,      मानव धर्म अपनाना होगा।      वसुधा पर मिलकर हम सबकों,      अपनापन दिखलाना होगा।।      कोई छोटा न कोई बड़ा,      मिलझुल कर आगे आना है।      संस्कारों को अपनाकर हमें,      जन-जन को पाठ पढ़ाना है।।      भौतिकवादी सत्ता मे चूर,      कुछ गद्दारों को बतलाना है।      क्या है आजादी का मतलब,      उनकों अब याद दिलाना है।।      आजाद भारत अपना देश,      गंग यमुन सी यहाँ पावनता।      आजादी का यह है मतलब,      हर दिल बनी रहे मानवता।।      ©®         रामबाबू शर्मा,राजस्थानी ,दौसा(राज.)

विजय कल्याणी तिवारी

जीवन एक समान --------------------------------------- स्थितियों के परिवर्तन ही जीवन के पहचान बोलो किसको कभी मिला है जीवन एक समान? ज्ञात तुम्हें है जब सब बातें आँसू किस बात यह जीवन ही रण भूमि है वरण करो हे तात्। जीत हार निर्णय तो लड़ कर हो हो पाएगा जो लड़ता है जीत हमेशा उसके हिस्से आएगा। भय भ्रम मे जीने से अच्छा सत्य करो स्वीकार यह भी संभव है कि तुमको याद करे संसार। आने वाली पीढ़ी का पथ दर्शन संभव कर दो जो अनुशरण तुम्हारा कर लें उनमे उर्जा भर दो। जो भाग उसके हिस्से मे दुख ही दुख आया स्थितियों को समझ डटे उन्हें प्रभु ने अपनाया। जीवन का संदर्भ समझने लालायित रहना कुछ छूटे कोई बात नही प्रभु पद ही गहना। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*गज़ल* बहर  -212   212  212  212* ------------------ वो जहाँ भी रहे पास लाए मुझे। इक रुहानी अदा  सी सताए मुझे।। वो करे दिल्लगी बात ही बात में, बात बिगड़े यदि तो जताए मुझे।।   छोड़ दे सारी दुनिया कोई गम नहीं, ख़ाक में भी मिले तो बताए मुझे।। चाँद तारों पे होगी ये दुनिया नई, ख़्वाब कितने ही उसने दिखाए मुझे।। अश्क आँखों में आने से पहले सदा, पास आकर अदा से हँसाए मुझे।। ख़त लिखे थी कभी जो मेरी याद में, लफ्ज़ वैसे ही उसके पढ़ाए मुझे।। आसमानों पे है कोई ताकत अगर,  मेरे महबूब से अब मिलाए मुझे।। भूलने की अदा मुझको भाती नहीं, साँस चलने तलक याद आए मुझे।। प्यार के राग में गीत गाए मधु, गीत वैसा ही कोई सुनाए मुझे।। *© मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/12) ऐसी हवा बही कुछ मित्रों, जिसमें ज़हर भरा है। जिधर देखिए  मुँह फैलाए, अरि ले वाण खड़ा है।। विवश हो गई जनता सारी, समझ न आए उसको। जहाँ देखिए घबराए सब, दुख कहते तो किसको? भाग-दौड़ सर्वत्र मची है- वह शैतान अड़ा है।।      अरि ले वाण खड़ा है।। स्थिति इतनी हुई भयावह, लोग भागते फिरते। मिलना-जुलना बंद हो गया, छिपे-छिपे घर रहते। कोई मदद नहीं करता है- पीछे  शत्रु  पड़ा  है।।     अरि ले वाण खड़ा है।। नित प्रकोप बढ़ता ही जाए, अंत न इसका लगता। जग में हाहाकार मचा है, देख,कौन है बचता। प्रभु का मात्र आसरा अब है- भारी प्रभु-पलड़ा है।।     अरि ले वाण खड़ा है।। हे,प्रभु तेरा शत-शत वंदन, भक्त पुकारें तुमको। आओ नाथ बचा लो जग को, करो  सुरक्षित  सबको। अकथ नाथ है महिमा तेरी- लगता अरि तगड़ा है।।     अरि ले वाण खड़ा है।।               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                   9919446372

प्रखर दीक्षित

*आख़िर क्यों ......?* दुखती रग को दबाना कदाचित शगल हो गया- उनका, बिखरते स्वपन धूर रह - रहकर वेदना के  व्रणों को कुरेदा जाता आख़िर क्यों.......? सयानी होती बेटी से पूछे जाते हैं प्रश्न रखा जाता बाहर जाने और देरी का हिसाब कौन , क्यों , किसलिए यद्यपि बेटे स्वतंत्र इस निगरानी से जबकि संतति दोनों संस्कारित होना का आवश्यक समाज में सिर्फ़ बेटी की अग्निपरीक्षा आख़िर क्यों.......? जिनकी ज़र जिनसे असितित्व जिनके नाम और पुरुषार्थ कारण प्रसिद्धि का परचम बुलंद आज ---- उन्ही वृद्ध आँखों में अश्रु पारवार और  ह्रदय में उद्वेलन का मौन आर्ट करून क्रंदन  संतति की विमुखता आख़िर क्यों.......? लुट रहे जीवन सज रहे बाजार सब कुछ बिकने की होड में करुणा दया सम्वेदना उपकार सौहार्द प्रेम और  मानवीय संचेतना सब लगा दाँव पर ह्रदयहीन जिन्दा लाशों में  स्वार्थ का विषाणु आख़िर क्यों.......? आइए विचार करें गर्द को झाडें  फटे में पैबंद टांकें रिश्तों को पुनः  त्याग के धागे से रफू कर सकें  नयी सोच की इमारत खड़ी करने में संकोच आख़िर क्यों.......? * प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

मार्कण्डेय त्रिपाठी

आत्मनिर्भर भारत दीवाली के पूण्य पर्व पर, हम मिट्टी के दीप जलाएं । चीनी उत्पादों को छोड़ें , आत्मनिर्भर इंडिया बनाएं ।। मेड इन इंडिया, उत्पादों को, सदा खरीदें और अपनाएं । स्वाभिमान से जीना सीखें , भारत का सम्मान बढ़ाएं ।। हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को फिर से हम मान दिलाएं । भारतीय रीति, रिवाजों के प्रति, फिर से आदर भाव जगाएं ।। लोकल फार वोकल पद्धति से, अपनी क्षमता को पहचानें । मात्रा, गुणवत्ता में ऐसी, बस्तु बनाएं, दुनियां जानें ।। भारतीय उत्पादों से निश्चित, आज विश्व बाजार सजेगा । ऊर्जस्वित है हृदय हमारा , फिर से डंका आज बजेगा ।। वैक्सीन स्वयं बनाकर हमनें , विश्व पटल पर नाम कमाया । दुनियां को निर्यात किए हम , मानवता का फर्ज़ चुकाया ।। अब तो छोटे वायुयान भी , भारत बेच रहा दुनियां को । भारत प्रतिभा निखर रही है , कौन पूछता है चिनियां को ।। कम पैसों में मिली सफलता, मंगलयान मिशन,जग जानें । कुछ भी नहीं असंभव है अब, वैज्ञानिक प्रतिभा गर ठानें ।। प्रधानमंत्री का शुभ चिंतन , भारत को ऊर्जस्वित करता । नहीं हाथ फैलाएंगे हम , यह विश्वास हृदय में भरता ।। संकल्प से सिद्धि मंत्र का , अप्रतिम असर आज द

संजय जैन बीना

*सात जन्मों का साथ* विधा : कविता मौत से पहले मैं देख लू जन्नत को।  ऐसी मेरी दिलकी आरजू है।  तेरे मेरी मोहब्बत को देखकर।  जीने का अंदाज देख पाएंगे।  और मोहब्बत को जान पाएंगे।  दिलको दिल में तभी बसायेंगे।।  जात पात ऊँच नीच का इसमें।  कोई चक्कर कभी होता ही नहीं।  क्योंकि होता है मोहब्बत में नशा।  जिस को चढ़ता है ये नशा।  हलचले बहुत दिलमें होने लगती है।  इसलिए तो जन्नत दिखती है हमें।।  मोहब्बत में जीने वाले वो जन।  सात जन्मो का करते है वादा।  जब भी लेंगे जन्म इस जहाँ में हम।  साथ तेरे ही जीना मरना चाहेंगे। और अपनी मोहब्बत को हम।  निभायेंगे सात जन्मों तक।।  जैसे राधा कृष्ण की मोहब्बत को लोग आज भी याद करते है।  ऐसे ही हम अपनी मोहब्बत को।  यादगार बनाकर जहाँ से जायेंगे।।  जय जिनेंद्र देव  संजय जैन "बीना" मुंबई 23/10/2021

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल

कवि परिचय                          शान्ती देवी माता मोरी पिता श्रीराम अभिलाष, पत्नी दुर्गावती को पहचान लीजिए।।                                          जनपद अमेठी बीचे तहसील गौरीगंज मा, शाहगढ़ विकास खंड मा उलरा गाँव जानिए।।                                       तहसील सदर  मोहल्ला ओमनगर मध्य ,जिला सुलतानपुर निवास अब मानिए।।                                              चंचल है कवि नाम नेटवर्क पेशा ललाम, इष्टदेव हनुमान भाई याही सच जानिए।।                                              आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।        ओमनगर, सुलतानपुर, उ.प्र.।।                8853521398,9125519009.

नंदिनी लहेजा

#दया #विधा_कविता #दिनांक -23 /10/2021 #दिन- शनिवार कोई कहे मेरा धर्म हिन्दू है, कोई कहे में धर्म से मुस्लिम भाई। कोई कहे में हूँ सिख तो, कोई कहे मेरा धर्म ईसाई। अपने अपने धर्म को लेकर,  करते सदा हम वाद-विवाद। पर हर धर्म का मूल दया है,  जिस को भूल करते है हम कई अपराध। चाहे किसी भी धर्म के हो हम, दया है हर धर्म का आधार। दया हो सृष्टि के हर इक प्राणी पर, क्योकि हर इक है धरा पर ईश्वर का उपहार। दया हर व्यक्ति को नेक बनाती, सत्कर्मों की राह दिखाती। दया हर धर्म को श्रेष्ठ बनाती, यह कभी न निष्फल जाती। नंदिनी लहेजा रायपुर(छत्तीसगढ़) स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

अमरनाथ सोनी अमर

मुक्तक- चित्र आधारित!  नई नवेली नारि गयी अपने ससुरारी!  पहने कंगन हस्त चूड़ियाँ भर के नारी!  हिना हस्त में रचे कंठ में माला पहने!  उंगलि अँगूठी पहन नैन  अवनी में डारी!!  रक्त वर्ण परिधान कान में झुमका पहने!  सुन्दर नीले नैन ओंठ में लाली दमके!  गोरे गोरे गाल रूप मनमोहक छवि है!  लगे इत्र हैं तेल सुगंधित भी वह महके!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302349662

चेतना चितेरी,

इक परिंदे— सी ये जिंदगी ____________________ इक परिंदे—सी ये जिंदगी! आज हम यहां    जाने कल कहां बसेरा हो। जीवन क्या! भरोसा कर ले प्रेम एक दूजे से छूट जाएगी अहम की गठरी एक दिन चोला बदल जाना है, इक परिंदे— सी ये जिदंगी! आज हम यहां     जाने कल कहां बसेरा हो। मन को कर ले निर्मल ना कर भेद किसी से छोड़ चला जाएगा एक दिन कुछ लेकर न जाएगा फिर क्यों इतना, अधर्म की कमाई कमा रहा  इस जनम को सार्थक कर ले एक दिन घर बदल जाएगा,  इक परिंदे—सी ये जिंदगी आज हम यहां जाने कल कहां बसेरा हो। (मौलिक रचना) चेतना चितेरी, प्रयागराज 22/10/2021,7:21am

पुष्पा निर्मल

आओ सृजन करें     शब्द सार्थक करें      दोहा शब्द भारती बंधना करूं भारती,देदो मुझको ज्ञान। करती पूजा आपकी, वारी जाऊँ जान।। माता भारती तेरी, हमतो हैं संतान। तुझमें सभी-कुछ ढूढते, हमको दो वरदान।। तुमहो माता शारदे,हमको देना ज्ञान। छंद सृजन कर सकुं,     हमें बना विद्वान।। माँ तुम्हारी आरती,  करते सुबहो-शाम। करो ना अभी आराम, माता तुझे सलाम।। हो तेरा उपकार माँ, हमको देना ज्ञान। एक तेरा सहारा माँ, बनना हमें महान।।    पुष्पा निर्मल

अतिवीर जैन पराग

इन्हें जेल भिजवाएं  टिकेट मंडली ले  पटरियों पर आया ।  रेले रोक आम जनता को गया डराया ॥  क्यों बंद में रोज आम नागरिक फंस जाये ।  ऐसे कैसे चलेगा देश कोई मुझे समझाए ?   क़ानून ले हाथ में कहीं भी जाम लगाये ?  सरकार वार्ता करें या इन्हें जेल भिजवाएं ॥  इंजिनियर अतिवीर जैन पराग  सौ करोड़ टीकाकरण  सौ करोड़ टीकाकरण कर विश्व रिकॉर्ड बनाया ।  सफाईकर्मी, स्वास्थकर्मी, डॉक्टरों ने करिश्मा कर दिखाया,प्रधानमंत्री ने नित हौसला बढ़ाया ॥ टिके के बहिष्कार को विरोधी लगाते रहे नारे । भाजपाई टीका कह टिके को जानलेवा बताया ॥ फिर टिके की कमी का हल्ला खुब मचाया । बार बार सरकार को नकारा नाकाम बताया ॥ रिकोर्ड टिके लग रहे समझ ना इनकी आया । चेरेवेती चेरेवेती एक लक्ष्य हमने पाया ।  भारत ने विश्व में नया इतिहास रचाया ॥  इंजिनियर अतिवीर जैन पराग भादों ना जाये  शरद ऋतु आ गई पर भादों ना जाये ।  पूरे अश्विन को भी भादों दिया बनाए ॥  भादों दिया बनाए रोज वर्षा हो जाती ।  जलमग्न शहर हुऐ पहाड़ गिर गिर जाते ॥  पहाड़ सड़क सबको वर्षा दिया मिलाए ।   सड़के पुल बहने लगे कैसे जीवन बचाए ॥  केरल उतराखंड में जीवन दूभर बनाए ।  शरद ऋतु आ गई पर

अमरनाथ सोनी अमर

सजल- प्रथम बार लिखने का प्रयास किया है सुझाव की अपेक्षा!  जीने का अधिकार मिला है ये मगर!  कैसे जियें तरीका खोजो कर फिकर!  जीना तो आसान  नहीं है  देश  में!  कोई युक्ति निकाल नहीं कटेगा सर!!  अब आतंक फैल गया है भारत में!  कर देंगें बेकार हमारा  यह  सफर!!  अस्त्र, शस्त्र अब रखना घर में है उचित!  वही फैसला करे अचानक है निडर!!  पूर्व हुआ  प्रयोग  हमारे   भारत में!  इन्हीं डरों के कारण देश हुआ अमर!!  अमरनाथ सोनी "अमर " दोहा- राधिका!  कृष्ण राधिका रूप दो,दोनों में इक प्रान!  कृष्ण जपो या राधिका,अति सुंदर भगवान!!  कृष्ण राधिका तुम जपो, कट जायेंगें क्लेश!  बिन प्रयास भव पार हो, यही संत निर्देश!!  अमरनाथ सोनी" अमर " 9302340662

कालिका प्रसाद सेमवाल

*गौ माता  की  महिमा गाये* ********************* गौ माता में तैतीस कोटि देवता, सबको गौ पालन सिखलायें,  सब गौ माता की सेवा करके, गौ  माता का महात्म्य बताये, अपना जीवन धन्य बनायें, *गौ   माता की महिमा गाये।* गौ माता की कृपा दृष्टि से ही, सुखी हो जायेगें सब नर नारी, गौ माता की अनुकम्पा से ही, दूर हो जायेगी विपदाये सारी सबको नव जीवन दिलवायें, *गौ माता  की   महिमा गाये।* अर्चन , वन्दन,  नित परिक्रमा, गौ माता की हमको करनी है, करके तेजो वलय हम बढ़ायें, चरण धूलि का तिलक लगाकर,  सकल मनोरथ  पूर्ण करायें, *गौ माता की महिमा  गाये।* घर घर दूध दही की नदी बहायें , वैभवशाली, धीर वीर बनके, खुशियां  चारों  ओर   लाये, वैदिक शुभ सन्देश  सुनाये, नयी क्रान्ति देश  में  लाये *गौ माता की  महिमा गाये।* ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

नूतन लाल साहू

अपनी क्षमता का पहचान कर लें सृष्टि यदि चलती रही तो संघर्ष भी,सिंधु मंथन की तरह निरंतर,चलता ही रहेगा आपदाएं आयेगी कष्ट झेलना पड़ेगा ही। पर धीरता से,गंभीरता से वीरता से, कष्टों को बर्दाश्त करना,सीख लें सुर दुर्लभ मानव तन पाया है अपनी क्षमता का पहचान कर लें। देव और दानव तो सतयुग,त्रेता और द्वापर में भी थे तो कलियुग में भी कैसे नही रहेगा। शोर भर करते रहेंगे तो हमारा उद्धार कैसे होगा पद, धन और वैभव प्राप्त करना मानव जीवन का लक्ष्य नही है राम रतन धन,मिल जाएं ऐसा कुछ यतन कर लें, सूर दुर्लभ मानव तन पाया है अपनी क्षमता का पहचान कर लें। उछल कूद मची हुई है शत्रु,चारो ओर से ललकार रहा है जैसे वीर अभिमन्यु चक्र व्यूह में फंसा हुआ था त्याग, तप और निःस्वार्थ सेवा ही मानव को अमर बना सकता है पर धीरता से,गंभीरता से वीरता से,कष्टों को बर्दाश्त करना सीख लें सूर दुर्लभ मानव तन पाया है अपनी क्षमता का पहचान कर लें। नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

[22/10, 6:44 am] Kavi S K KAPOOR Ji: *।।रचना शीर्षक।।* *।। हर धड़कन मे हिंदी* *हिन्द हिंदुस्तान चाहिये।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 हर रंग से भी    रंगीन हिंदुस्तान      चाहिये। खिले बागों      बहार गुलिस्तान     चाहिये।। चाहिये विश्व में  नाम ऊँचा   भारत      का। विश्व   गुरु      भारत  का सम्मान   चाहिये।। 2 मंगल चांद को  छूता भारत महान चाहिये। अजेयअखंड विजेता हिंदुस्तान      चाहिये।। दुश्मन नज़र उठाकर देख भी    ना     सके। हर शत्रु का    हमको काम   तमाम चाहिये।। 3 हमें गले मिलते   राम और रहमान   चाहिये। एक   दूजे के     लिए प्रणाम सलाम चाहिये।। चाहिये हमें  मिल कर  रहते हुए   सब    लोग। एकदूजे के लिए दिलों में       एतराम चाहिये।। 4 एक सौ पैंतीस  करोड़ सुखी अवाम   चाहिये। कश्मीर   कन्याकुमारी प्रेम का पैगाम चाहिये।। चाहिये    विविधता में एकता शक्ति    दर्शन। देशभक्ति सरीखा राष्ट्र    में यशो गान    चाहिये।। 5 पुरातन संस्कार मूल्यों का गुणगान    चाहिये। हर चेहरे पे भारतवासी जैसी  मुस्कान चाहिये।। चाहिये गर्व और गौरव अपने देश भारत   पर। हर धड़कन में   हिन्दी हिंद का पैगाम चाहिये।। *रचयिता।।एस

छत्र छाजेड़ फक्कड़

नारी मन की पीड़ा ===+++===+++ छत्र छाजेड़ “फक्कड़” दर्द कब रिसे जुबां पर छुप छुप ही सब सहना है सह सह कर ही जीना है सहते सहते ही मरना है...... पुरूष प्रधान समाज ने निश्चित कर दी नियति नारी की..  जीती है मात्र दर्द सहने को बचपन में उपेक्षा जवानी में शोषण और बुढ़ापे में मानसिक उत्पीड़न ...... मगर निर्मल बहती जलधार बहती है जो समेटे सब के अहसास रखती है बांध कर सबको अपने बंकिम बांकुरे तटबंधों में.... पर मदांध पुरूष कब सोचता है कैसी ये विडंबना क्या नारी ही है सब सहने को... पुरूष को छाया देता नारी का आँचल उस के आँसू पौंछता नारी का आँचल और पुरूष भूल जाता है करूणामयी शरण स्थली को..... जीवन के पग पग पर नारी बनती है सहारा कभी माँ बन कर कभी बहन बन कर कभी पत्नी बन कर कभी बेटी बन कर.....   कैसी ये नियति है नारी की सब सहती है सहते सहते मरती है पर दर्द कब रिसा जुबां पर पी कर पीड़ा... मुस्कुरायी सदा..... फक्कड़ का नमन

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.                                  कविता                 *आत्महत्या*                     ~~~        संकट चाहे कैसा भी हो,        हिम्मत आगे वो हारा है।        आत्महत्या समाधान नहीं,        सभी ने यह स्वीकारा है।।        जन्म-मरण परमेश्वर लीला,        धर्म ग्रंथों मे बतलाया है।        आत्महत्या समाधान नहीं,        ऐसा हमें सिखलाया है।।        बात-बात पर कुंठित होना,        खुद का करते हो अपमान।        आत्महत्या समाधान नहीं,        इतना तो अब तू ले जान।।        मनुष्य रूप में जन्म मिला है,        संस्कारों की अलख जगाओं।        आत्महत्या समाधान नहीं,        संस्कृतियों का मान बढ़ाओं।।         गंगा जमुना सी पावनता,         जीवन की सच्ची अभिलाषा।         आत्महत्या समाधान नहीं,         सफलता की यह परिभाषा।।        ©®           रामबाबू शर्मा,राजस्थानी ,दौसा(राज.) .                         कविता           *आशा का परचम लहरा*                         ~~~          मात-पिता,पुण्य प्रताप से          आशा का परचम लहरा।          मनभावन मिली सफलता,          खिल गया सबका चेहरा।।          सत्कर्मों के पथ स

डाॅ. आलोक कुमार यादव

*मनहरण घनाक्षरी*  रोम-रोम पुलकित, धरा हुई आलोकित। लेकर सुहानी भोर,  *सूर्य फिर आए हैं* ।। जीव-जंतु उठ गए पंछी करें कलरव। सुंदर-सुंदर फूल,  *मन को लुभाए हैं* ।। अनुपम अद्वितीय छटा यह प्रकृति की। प्रभु की अजब लीला,  *समझ न पाए हैं* ।। सभी करें गुणगान, प्रभु आप हैं महान। राधेश्याम राधेश्याम,  *यही गीत गाए हैं।।*  डाॅ. आलोक कुमार यादव

रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ----   ------ सजावट ----- आज सजावट खूब है , गाँव गली उजियार । दीपों के त्यौहार पर , मस्त मगन संसार ।। मस्त मगन संसार , दिखाते नयी बनावट । फैला परम प्रकाश , देखते आज सजावट ।। पिया सजावट देखकर , आये और समीप । देखे मुखड़ा गौर से , धरकर कोई दीप ।। धरकर कोई दीप , नेहवश करें मिलावट । निखरा है शृंगार , करें जब पिया सजावट ।। भव्य सजावट देख कर , नींव गए सब  भूल । वाह वाह करते सभी , रौंदे कितने फूल ।। रौंदे कितने फूल , त्याग दी सर्व रुकावट । ख़ुशियाँ पीछे देख , आज है भव्य सजावट ।। खूब सजावट कीजिए , आये सद्गुरु द्वार । मंगल कलश सजाइए , रंगोली शृंगार ।। रंगोली शृंगार ,  बनी है वाह बनावट । जगमग चारो ओर , सजी है खूब सजावट ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. )

चेतना चितेरी प्रयागराज

इक परिंदे— सी ये जिंदगी ____________________ इक परिंदे—सी ये जिंदगी! आज हम यहां    जाने कल कहां बसेरा हो। जीवन क्या! भरोसा कर ले प्रेम एक दूजे से छूट जाएगी अहम की गठरी एक दिन चोला बदल जाना है, इक परिंदे— सी ये जिदंगी! आज हम यहां     जाने कल कहां बसेरा हो। मन को कर ले निर्मल ना कर भेद किसी से छोड़ चला जाएगा एक दिन कुछ लेकर न जाएगा फिर क्यों इतना, अधर्म की कमाई कमा रहा  इस जनम को सार्थक कर ले एक दिन घर बदल जाएगा,  इक परिंदे—सी ये जिंदगी आज हम यहां जाने कल कहां बसेरा हो। (मौलिक रचना) चेतना चितेरी, प्रयागराज 22/10/2021,7:21am

मार्कण्डेय त्रिपाठी

नेताजी नमस्कार हे नेताजी, शत् नमस्कार , सचमुच तुम भाग्यविधाता हो । कथनी, करनी में भेद बहुत, तुम बेमौसम का छाता हो ।। लकलक करते हैं श्वेत वस्त्र, छाया मन में भारत विधान । कुर्सी में बसते हैं सचमुच, हे दिव्य देव,तव सतत् प्राण ।। हे नाथ, कोई ना समझ सके, कब तक तुम साथ निभाओगे । यह राजनीति की माया है, सुख, चैन कहां तुम पाओगे ।। गाड़ी, बंगला, नौकर चाकर, सब तुम्हें सहज मिल जाते हैं । ना जानें कितने बैंकों में , हे प्रभुवर तेरे खाते हैं ।। क्या कर लेगा कानून प्रभू , हर शाख पे उल्लू बैठा है । तुम तो सच अंतर्यामी हो, कब कान किसी ने ऐंठा है ।। हर विषय तुम्हें कंठस्थ प्रभू, हम सुनकर तुम्हें अघाते हैं । वाणी साधक भी यदा-कदा, तव वचनों में रम जाते हैं ।। सिर पर चुनाव जब आता है, तुम दीन हीन बन जाते हो । हे नाट्य कला में कुशल बन्धु, क्या यह सब कर सुख पाते हो ।। आज़ादी के परवानों की , क्या याद तुम्हें भी आती है । जनता की चीख-पुकारों से, क्या कभी धड़कती छाती है ।। विश्वास नहीं कोई करता, हे कपट मित्र, क्या बतलाऊं । है खतरनाक तव हास्य प्रभू, कैसे निज मन को समझाऊं ।। बगुलों में हंस छिपा बैठा, निकले तो उसकी