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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एस के कपूर श्री हंस

 हर किसीके दिल में एक घर* *बनाना सीखो       ।।* *।।विधा  ।। मुक्तक।।* 1 हर  दिल में तुम   इक  घर  बनाना       सीखो। किसी के दर्द के लिए दवा बन जाना  सीखो।। तेज   आवाज   नहीं  ऊंची बात   कहो     तुम। वक्त रहते  ही  सही   गलत आजमाना   सीखो।। 2 आँखों और दिल   की जुबां पढ़ना          सीखो। बिना सीढ़ी के     तुम ऊपर चढ़ना        सीखो।। तुम्हारी  किस्मत    बनती है प्रारब्ध और कर्म से। अपना भाग्य  तुम    खुद ही गढ़ना         सीखो।। 3 धारा के   विपरीत   भी  तुम चलना      सीखो। संघर्ष अग्नि में तुम    तपना गलना      सीखो।। तेरे अंदर की  क्षमता निकल कर  आये  बाहर। हो लाख  रुकावटें तुम  आगे बढ़ना      सीखो।। 4 विनम्र विनोदी  सहयोगी तुम बनना      सीखो। हर काम  जीवन  में   धैर्य  से करना      सीखो।। याद रखो छवि की उम्र व्यक्ति से होती है  ज्यादा। कोई बदनामी तो    पहले तुम मरना        सीखो।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*" *।।तेरे विचारों से ही तेरे जीवन का* *निर्माण   होता है।।* *।।विधा।।मुक्तक ।।* 1 तेरे विचार ही  चलकर फिर तेरे शब्द  वर्ण बनेंगें। तेरे शब्द फिर  आगे   सिद्ध  तेरे     कर्म   

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सजल* मात्रा-भार--16 समांत--आल पदांत--भरा है जीवन यह जंजाल भरा है, मन में सभी मलाल भरा है।। नहीं प्रसन्नता दिखती इसमें, शत्रु विषाद विशाल भरा है।। जहाँ देखिए लूट मची है, केवल लूट-धमाल भरा है।। जीवित तन-मन भी लेकर यह, लगता नर-कंकाल भरा है।। प्रेम-भाव-संबंध-क्षेत्र भी, पूरा लगे दलाल भरा है।। दया हीन पाषाण हृदय का, इसमें अरि विकराल भरा है।। कपट-दंभ,छल-छद्मों वाला, इसमें छलिया जाल भरा है।।          © डॉ0 हरि नाथ मिश्र               9919446372

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र,

*शीर्षक -  युग पुरुष स्वामी विवेकानंद(नरेंद्र)*     (जन्म जयंती पर कोटि - कोटि नमन) हे पूरब के प्रकाश पुंज , तुमने किया प्रकाशित पश्चिम दशों दिशाओं में लहर - लहर लहराया भारत का परचम  गौरव स्वाभिमान के धनी रहे , ज्ञान विवेक के राजहंस तुम राष्ट्र का मान बढ़ाया , संदेश दिया दुनियां को अप्रतिम जैसे  "नरेंद्र" नाम में छुपा हुआ था , तमसो मा ज्योतिर्गम हम युरोप हो अमेरिका सब को दिखायेंगे भारत का दम अलौकिक तेज ओज गौरव के अथाह प्रशांत सिंधु थे तुम विचार प्रणवता , संस्कार, संस्कृति, स्वाभिमान से थे हिंदू तुम तुम्हारी अकाल मृत्यु से हम सबको आघात हुआ तुम्हारे कृत्य कर्म से भारत का जग में गौरव गान हुआ युवाओं के आदर्श वने , प्रखर प्रचंड ऊर्जा का संचार हुआ "नरेन्द्र" , विवेकानंद हुआ इतिहास में कालजयी नाम हुआ उठ कर जागे हैं अब नहीं रुकेंगे , पाये लक्ष्य बिना हम कोटि-कोटि नमन करते हैं , आभार मनाते आपका हम        🌞 जय भारत 🌞   चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"  ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक              अहमदाबाद ,गुजरात *******************************            सर्वाधिकार सुरक्षि

भास्कर सिंह माणिक कोंच

जय हिन्द वन्देमातरम दिनांक - 12-01-2022 विषय - स्वामी विवेकानंद     ऐसे गीत सुनाए हम ------------------------------------- अपनी सभ्यता संस्कृति की रीत नीत अपनाए हम। अपनी कौशल बुद्धि ज्ञान से जग को मीत बनाए हम। नमन किया सारी दुनियाॅऺ ने  श्री परमहंस के शिष्य को। बने विवेकानंद जवानी ऐसे गीत सुनाए हम। था युवाओं का प्रेरणा स्रोत भारत का लाल अनोखा। अल्प आयु में ही रच डाला आलोकित ग्रंथ सलोना। शब्द शब्द में देश प्रेम था सच्चाई बतलाए हम। बने विवेकानंद जवानी ऐसे गीत सुनाए हम। चंदा सोम धरा से धैर्य सूरज से तेज लिया था। कदम बढ़ाकर हटा नहीं फिर कर्तव्य पूर्ण किया था।  शत्रु के सिर झुकाए पल में वही कथा दुहराए हम। बने विवेकानंद जवानी  ऐसे गीत सुनाएं हम।     -------------------- मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।                 भास्कर सिंह माणिक, कोंच

भूपसिंह भारती

"स्वामी विवेकानंद" भाईचारा   प्रेम  ही,  मूल  मंत्र  आनन्द। इनसे ही खुशियां मिले, कहा विवेकानंद।। लक्ष्य मिले जब तक नहीं, तब तक हो संघर्ष। कहा विवेकानंद ने, तब होगा उत्कर्ष।। भारत का दर्शन दिया, देने परमानन्द। प्यारे बहनों भाइयों, कहा विवेकानंद।। देकर देश विदेश में, भारत दर्शन खूब। बणे विवेकानंद थे, जन जन के महबूब।। सन्त विवेकानंद का, जन्मदिवस है खास। युवा दिवस के रूप में, भरे आत्मविश्वास।। मानव सेवा है बड़ी, मन से कर उपकार। सबसे सच्चा कर्म तो, होता परोपकार।। मान बुजुर्गों को करो, होते देव समान। कहा विवेकानंद ने, सबका कर सम्मान।। - भूपसिंह 'भारती', आदर्श नगर नारनौल, हरियाणा।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

विवेकानंद(दोहे) चिंतक-साधक थे बड़े,संत विवेकानंद। खोल दिए निज तेज से,चक्षु रहे जो बंद।। आडम्बर-पाखंड का,खंडन किए विवेक। सती-प्रथा को रोक कर,किए काम हैं नेक।। जा अमरीका देश में,व्याख्यायित कर धर्म। मानवता की सीख दे,श्रेष्ठ किया है कर्म।। भारत के आदर्श का,व्यापक किया प्रसार। अपनी संस्कृति का किया,यहाँ-वहाँ विस्तार।। अल्प आयु में रुग्ण हो, देव-लोक प्रस्थान। करके युवा नरेन्द्र ने,पाया अति सम्मान।। युवा-दिवस के रूप में,इनकी कर जयकार। भारत अपना देश यह,सदा करे सत्कार।। युवा विवेकानंद का,सब करते सम्मान। इनकी उत्तम सोच ही,है भारत की शान।।         © डॉ0 हरि नाथ मिश्र            9919446372

डॉ.अमित कुमार दवे

विवेकानंद जयंती विशेष देश को आज विवेक चाहिए              ©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा देश को आज विवेक चाहिए- सार्वकालिक महापुरुषों में… सनातन आदर्शों में…. वैश्विक विचारों में… अनुकरणीय मूल्यों में….।। सच!आज देश को विवेक चाहिए- संपादित व्यवहारों में…. जीवन संस्कारों म़े…. सामाजिक संंबन्धों में…. आपसी संवादों में….।। हाँ आज देश को विवेक चाहिए- शैक्षिक संरचनाओं में…. तकनीकी व्यवहारों में…. आचरित चरित्रों में…. प्रसारित सूचनाओं में…. देश को फिर आज विवेक चाहिए- उन्नत नागरिकता में… तेजस्वी उद्बोधनों में…. राष्ट्रीय राज्यनीति में…. उत्कृष्ट अर्थनीति में... सुनों ! आज देश को विवेक चाहिए- नव साहित्य के सृजन में.. सटिक शब्द व्यहरण में.. शास्त्र अनुशीलन मे….. आत्मिक अवबोधन में…. हाँ..! आज वही विवेक का .. देश के उत्थान को विवेक चाहिए..।। सादर प्रस्तुति © डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,अश्कों की तुरपाई ,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   मेले  में   तन्हाई   है  । यादों  की परछाई है  ।। ..............................................   ये पायल की सरगम भी  ख्वाबों  की  शहनाई  है  ।। ................................................   चाक ज़िगर को कर दे जो  वो   कातिल   अँगड़ाई  है  ।। ..............................................   कैसे   उसपे   यकीं     करूँ।  वो  भी   तो    हरजाई     है ।। ...............................................   चैन  सुबह  ,   ना  रात सुकूँ  । सौतन   सी    ,पुरवाई     है   ।। .............................................  धड़का  है सौ बार   ये    दिल  वो    जब   भी,  शरमाई    है  ।। .............................................   दर्दो   ग़म    के    चादर    पे   अश्कों    की    तुरपाई    है   ।।  ..............................................   शिवशंकर   तिवारी   । छत्तीसगढ़  । ................................................

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव

*युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामीजी को नमन* धर्म रक्षक देश भक्त एवं एक युवा सन्यासी। सनातन धर्म संस्कृति प्रचारक भारतवासी।। 12 जनवरी 1863 को जन्में पवित्र धरा पे। स्वामी विवेकानंद से पहले नरेंद्र नाथ थे वे।। कायस्थ वंश में जन्में बंगाली कायस्थ ज्ञानी। कोमल हृदय उदार अध्यात्म के सुंदर ज्ञानी।। माता हैं भुवनेश्वरी देवी पिता विश्वनाथ दत्त। जन्में हैं जिनके कोखी से ये नरेंद्र नाथ दत्त।। वेद वेदांतों के प्रकाण्ड विद्वान रहे हैं स्वामी। प्रभावशाली आध्यात्मिक विश्वगुरु ये स्वामी।। रामकृष्ण परमहंस को है अपना गुरु बनाया। उनके सानिध्य में रहके अमूल्य शिक्षा पाया।। 11सितंबर1893 में विश्व धर्म महासभा हुई। अमेरिका शिकागो में अध्यात्म पर सभा हुई।। भारत के सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। स्वामीजी ने उत्कृष्ट सम्मोहनीय भाषण दिया।। मेरे अमेरिकी प्रिय भाई एवं बहनों से शुरुआत। स्वामी के दिए आदर से पैदा दिल में जज्बात।। विवेकानंद ने सनातनधर्म पे दिया ऐसा भाषण। देश के इस युवा सन्यासी का सुनते रहे भाषण।। उठो जागो स्वयं जागकर औरों को भी जगाओ। तबतक नहीं रुको जबतक लक्ष्य ना पा जाओ।। जीवन में कुछ लक्ष्य बनाओ एवं

मधु शंखधर स्वतंत्र

...सुप्रभातम्...🙏🕉️🌺🌺 *गज़ल* ______________________ दिल में हिम्मत हैं रखते अदावत  नहीं। बाँटते हैं मुहब्बत ही नफ़रत नहीं ।। शेर के दाँत गिन ले जो वंशज वही, डर के रहने की हमको जरूरत नहीं ।। सामना कोई कर ले मुकम्मल हो गर, नामुकम्मल में है ऐसी हिम्मत नहीं ।। देगें मोहलत यदि मान लो तुम खता, दुश्मनों से भी रखते हैं नफरत नहीं ।। आसमानों से ऊँचे इरादे मेरे, जो डिगा दे मुझे ऐसी ताकत नहीं ।। हम निहारें कभी आरजू से तुम्हें, कुछ भी पाने की ऐसी तो  आदत नहीं ।। देश पर जान दे देगी मधु आपकी,  इससे बढ़कर है कोई  शहादत नहीं ।। * डॉ .मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*✒️

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 13/01/2022                ------  सिंहनाद ----- तुम सबकी आवाज बनो सिंहनाद कर सबल सदृढ़ स्वर , मानवता की लाज बनो । गहन विषमता व्याधि बढ़ी है , शुभ संपूर्ण इलाज बनो । चिंतनीय सारे मसलों के , हल कर्ता दिलराज बनो ।। हो यात्रा अब नये सफर की , बाहुबली सरताज बनो । धोखेबाजों गद्दारों के लिए सुधारक बाज बनो ।। जो अनीति को शह देता है , उनके मत हमराज बनो । जो जन आध्यात्म नहीं जाने उनके भी अंदाज बनो ।। विश्व पटल पर खुशियाँ छाये , न्याय प्रेम का शुभ साज बनो । कल के ऊपर काम न टालो , श्रेष्ठ बनो अब आज बनो ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

नूतन लाल साहू

कुछ ज्ञान की बात बेलगाम यदि जीभ तो हो सकता है अपमान सही बात को भी कहें देख व्यक्ति और स्थान। मत टोको हर बात में बांटो घर में प्यार हर इच्छा पूरी नही हो सकता राखिए मन में संतोष। सत्कर्मों  में रत रहो मत बैठो खामोश साधन बढ़ते है नही प्रकृति कहें समझाय। कौन भविष्य को जानता है कठिन है कर्म फल लेख वर्तमान में जियो निशदिन आगे पीछे देख के। इस तन का विश्वास क्या पानी भरी है देह जाने कब बह जाए वह अधिक न करिए नेह। अपना धर्म निभाइए करिए सबसे प्रीति बोले सबसे प्रिय बचन यही है सुंदर जीवन नीति। क्या अनुचित है,क्या उचित है क्या है धर्म,क्या है अधर्म इसमें उलझे नही अधिक और सदा करें सत्कर्म। बेलगाम यदि जीभ तो हो सकता है अपमान। नूतन लाल साहू

विजय कल्याणी तिवारी

मैं मन का मारा बेचारा ----------------------------- नही कभी जीता नित हारा इस मन का मारा बेचारा । कहाँ चोट लग जाए कैसै सोच समझकर पग धर यारा। वह लाचार बड़ा दिखता है चल उसको दे जरा सहारा । सरल नही है त्याग तपस्या जो बन जाओ तुम ध्रुव तारा। कूदा नही नदी के जल मे व्यर्थ भयाकुल क्यों जलधारा। इस तन लहू चूसना जारी सत सेवा का गढ़ कर नारा । गहन शीत तरूवर के नीचे भोर प्रतीक्षित वह बेचारा । उस जल से उम्मीद बहुत थी निकला सारा जल ही खारा । हुई गलतियां डरना सीखो राख करे सब कुछ अंगारा । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

रक्तबीज            *रक्तबीज कोरोना* है बढ़ रहा कोरोना रक्तबीज की तरह, सबको डरा रहा है, बुरी चीज़ की तरह। डरना नहीं है इससे मगर,सुन लो दोस्तों- संयम-नियम को धारो, ताबीज़ की तरह।। क़ुदरत के साथ धोखा करने का फल है ये, गिरि-सिंधु-सर-अरण्य को ठगने का फल है ये। क़ुदरत के ही तो ख़ौफ़ का,उछाल कोरोना- है साज़िशे क़ुदरत कोई, नाचीज़ की तरह।। यद्यपि चला ये चीन से,कुछ लोग कह रहे, पहुँचा है देश पश्चिम,जहाँ लोग मर रहे। भारत पे भी प्रभाव इसका,कम तो है नहीं- लगता यही है दलदल, दैत्य कीच की तरह।। दूरी बना के रहने में,सबकी ही ख़ैर है, अपने घरों में रहना,करनी न सैर है। थोड़े दिनों का कष्ट ये,इसे है झेलना- संकट में धैर्य है दवा,मुफ़ीद की तरह।। सर्दी-जुक़ाम-खाँसी-बुख़ार कोरोना, स्पर्श-रक्तबीज इव पनपे है कोरोना। बस स्वच्छता इलाज है,एकमात्र कोरोना- बनना नहीं समूह,उत्सव-तीज की तरह।। करुणा-दया दिखानी, है अब गरीब पे, घड़ी मदद की उनकी,मिलती नसीब से। मिलना मग़र जो उनसे, मुँह ढाँक के मिलो- उपकार तो होता सदा,तहज़ीब की तरह।। करना विनाश सबको, है रक्तबीज का, है रोकना फैलाव इसी,रक्तबीज का। होगा भला जगत का,बस कर विनाश इसका- जीवन है भोज इसक

संजय जैन बीना

*दुनियाँ को समझो* विधा: कविता मेरा जीने का अंदाज निराला है इसलिए ज्यादा मेरे दोस्त नहीं।  पर जो भी है मेरे दिलके करीब उनका मैं दिलसे आभारी हूँ। सीधी बातें मैं हर पल करता  जो दिलको छूती और चुभती है। जिसके कारण लोग मुझे  कम ही पसंद करते है।।  जमाने की खा कर ठोकरे  यहाँ तक तो आ पहुंचा।  कर्म भले ही अच्छे किये परंतु फल कड़वा ही मिला।  कभी अपनो ने तो कभी  परायों ने बहुत गम दिये।  कहानी किस्मत की मेरी पता नहीं किसने है लिखा।।  बहुत सोचा और समझा  इस जमाने के बारे में।  कदर करता था समय का तभी तो समय ने साथ दे दिया।  और जो कुछ लिखा पढ़ा था वही आज काम आ गया।  इसलिए संजय कहता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दो...।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 13/01/2022

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

मकर संक्रांति।।लोहडी़।। की पावनमंच को हार्दिक बधाई व सस्नेह सादर प्रणाम, मकर संक्रांति पर आधारित चार सवैया छंद अवधी भाषा में देखें.....            सूर्य भये उत्तरायनु अब तिऊ तिऊहार बहार रहेगी।।                    शादी वियाहु कै काजु शुरू अब  मंगल बाद्य अवाजु बहेगी।।              यही मँहय आवा तिऊहारू चुनाव औ ओमीक्रान बयारू  रहेगी।।          जाप हवन अरू यग्य विशेषु पंडित चंंचल धारु बहेगी।।1।।          आई लहरु पहिली जौ हिन्द तौ सांसत मा कछु जान परा।।                 मुल धीरु पराक्रमी हिन्द जना वैग्यानिक खोजिदे औषधि रा।।             लगै वैक्सीन जुटी सरकारू अरू दूजी लहरु परभाव टरा।।                  हैं हिन्द के वासी सुसाहसी वीर तीजिऊ चंचल जाये खरा।।2।।         मतदान परे सरकारू बने अरु काजु सुकाजु सबै चलिहैं।।                तिऊ तिऊहारू कै होड़ चले खेतिऊ खलिहान सबै गहिहैं।।         गंगा नहावनु तीर्थ चले पाप नसावन लहरु उबहिहैं ।।                    भाखत चंचल धीरमती हौं साहसु खेल सदा करिहैं।।3।।                         यहु देश गुलामी जौ झेलि लिया अरू संकट ते घबराते नहीं है।।          आवा जोई ज

नूतन लाल साहू

पुस के महीना पुस के महीना दिन भर चलय जुड़ जुड़ हवा दिन हे नानकुन नदा गे हे रौनिया। पानी ह गिरत हे जुड़ सरदी, जर बुखार म हफरत हे दुनिया अब इही ला कहिथे कोरोणा। गोरसी अंगेठा तापे के अब्बड हे मजा घुम मत जादा नइ त पाबे सजा। गरम गरम चहा बड़ लागय नीक चिंगुर जाथे हाथ गोड हलाले थोरिक। गांव गंवई,बस्ती सहर जग म परे हे  बिपत अति भारी दिन भर चलय जुड़ जुड़ हवा। चारो मुड़ा धुप कुहरा छागे परकीरति रानी ह जड़ागे हे खोंधरा में चिरई हे कलेचुप कांपय बेंदरा नरियावय हुप। जुड़ ला भगाही भईया सुरुज नारायण,जभ्भे जागही पुस के महीना दिन भर चलय जुड़ जुड़ हवा। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 14/01/2022                ------ निहारते हैं ----- अब तक राहें निहारते हैं ।  बीते पल के शब्दों को चुन चुन  , गीत बनाकर पुकारते हैं ।। आने की जो बात कही थी , हर पथ कंटक बुहारते हैं । कभी सदन तो कभी स्वयं को , दर्पण सम्मुख सँवारते हैं ।। मन मंदिर बैठी मूरत का , नित्य आरती उतारते हैं । ध्यान साधना केन्द्र बनाकर , अपना त्राटक निखारते हैं ।। कठिन प्रतीक्षा की घड़ियों से , पिया संकल्प सुधारते हैं । कल की तरह आज भी सारा , संवेदी क्षुधा वारते हैं । सतत् प्रतीक्षा जीवन यात्रा , ये तो सदा स्वीकारते हैं । कैसा देश निठुर वह होगा , बैठे बैठे विचारते हैं ।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *गीता* _______________ गीता महा गाथा कहे । श्री कृष्ण की वाणी रहे । सच ज्ञान का दीपक जले । शुभ भावना मन में पले ।। अर्जुन कभी भी हार मत। अपने खड़े स्वीकार गत ।। जीवन मरण तो चक्र  है । यह सत्य कारी वक्र है ।। कर्मों  निहित ही फल मिले । कोमल नये पत्ते खिले। जो मिल गया वो प्यार है । जानों वही अधिकार है ।। अर्जुन व कृष्णा साथ थे। अब सारथी खुद नाथ थे । सुनकर वचन अर्जुन कहे। क्यू् दर्द ऐसा हम  सहें ।। गीता सतत् संदेश दे । चेतन जगत आदेश दे । स्वीकार लो सब जान लो। सच्ची सफलता मान लो ।। गीता रचे खुद व्यास जी। पढ़ते नवल इतिहास जी । जीवन सुधा रस पी रहे । मधु मालती लिख जी रहे।। * मधु शंखधर ' स्वतंत्र * *प्रयागराज* *14/01/2022*

एस के कपूर श्री हंस

।।राख में भी    चिंगारी   ढूंढ* *लायो, यही जीत की रीत है।।* *।।विधा ।।मुक्तक।।* 1 हालात खराब  हों  तो  भी समझदारी दिखलाइये। रास्ते में हों पत्थर तो  आप जोर     से     हटाइये।। हार हो सामने  तो भी  हार को  मानना      नहीं। कोशिश करके राख   में से चिंगारी   ढूंढ  लाइये।। 2 डूबते को  तिनका  किनारा बन         जाता     है। तेरी सोच से  तू खुद अपना सहारा बन   जाता है।। कपड़ों में नहीं किरदार   से  महक   आनी चाहिये। मत हारो मन तो टूट कर भी दुबारा बन    जाता है।। 3 कभी नीम तो नमक कभी है शहद  सी      जिन्दगी। हर हाल में चलना           कि रहट    सी     जिन्दगी।। सीने में आग     मन मस्तिष्क में हो वास शांति का ।। बस जीत के लिए       चाहिये चहक   सी   जिन्दगी।। 4 हर अनुभव से सीखें  तो जीत है       यह      जिन्दगी। हर काम में लें   आनन्द   गीत सी है   ये       जिन्दगी।। हर त्रुटि भी      हमारी शिक्षक है      सबसे       बड़ी। मत बोझ समझो       कि मीत है     यह       जिन्दगी।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस'*" *।।1।।* सूर्य  का    उत्तरायण    में   और होता मकरराशि में प्रवेश। खिचड़ी,मक्का,

मधु शंखधर स्वतंत्र

मकर संंक्रांति की बधाई व शुभकामना के साथ यह रचना ---------- मकर संक्रांति धूम मची है -------------------------------- मकर संक्रान्ति धूम मची है , घर - घर में खुशहाली है । पुष्प सुशोभित वन उपवन में , खेतों में हरियाली है ।। सूर्य हुआ उतरायण अब से , पौष पर्व यह भाता है । धर्म ग्रंथ सब महिमा गाते , माघ पूर्व यह आता है । उदित सूर्य को नमन करे सब , फैली नभ पर लाली है। मकर संक्रांति धूम मची है.......।। स्नान दान का पर्व ये पावन , गंगा सभी नहाते हैं । लड्डू तिल के खिचड़ी घी से , छक कर सारे खाते हैं । पुण्य कर्म से धर्म जुड़ा है , यह भाव शक्ति शाली है। मकर संक्रान्ति धूम मची है.....।। बाल युवा मिल नाचे गाएँ , नई पतंगे लाते हैं । लिए लटाई छत पर सारे ,  बाजी खूब लड़ाते हैं । मस्ती का माहौल बना है , चाल बनी मतवाली है। मकर संक्रांति धूम मची है........।। कृषक अन्नदाता हर्षाए , पर्व ह्रदय अपनाते हैं । हँसी खुशी से सबसे मिलते , सुर नव गीत सजाते हैं। नये रूप में धरा सुसज्जित , हर्षित मधु यह माली है। मकर संक्रांति धूम मची है .....।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज 14/01/2022

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

   गीत (16/14) गीत हम भारत के वासी हमको, कण-कण इसका प्यारा है। गर्व सदा है भारत पर ही- भारतवर्ष हमारा है।। सदियों पहले रहा विश्व-गुरु, जीवन-सूत्र दिया जग को। आज वही है गरिमा इसकी, देता मूल मंत्र सबको। पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण- करता उर-उजियारा है।।     भारतवर्ष हमारा है।। कहीं खेत फसलों से लहरें, कृषक अन्न उपजाते हैं। कहीं बाग में फल भी पकते, मीठे फल सब खाते हैं। बादल उमड़-घुमड़ नभ बरसें- बहती सरिता-धारा है।।       भारतवर्ष हमारा है।। ऋतुओं का यह देश निराला, ऋतु वसंत-छवि न्यारी है। विविध पुष्प उपवन में खिलते, विलसित अनुपम क्यारी है। हृदय-हरण कर प्रकृति मोहिनी- देती शुचि सुख सारा है।।       भारतवर्ष हमारा है।। कश्मीर-शीष है मुकुट सदृश, शोभा लिए हिमालय की। गिरि-गह्वर में बसे देव-घर, पूजा रुचिर शिवालय की। सिंधु उमड़ता दिशि दक्षिण का- सब कुछ लगता न्यारा है।।      भारतवर्ष हमारा है।। मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारे जो, गिरजाघर भी यहाँ बने। सबने अलख जगाई जग में, भाव वही जो प्रेम सने। बने विश्व परिवार एक जब- रहता भाई-चारा है।।      भारतवर्ष हमारा है।।                © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                  

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,हम मौज़े रवानी हैं ,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,     घनघोर अँधेरे में, चलकर दिखलायेंगे ।  तूफान के साये में, जलकर दिखलायेंगे  ...................     है वक्त तपिश का ये,हमको न बताओ तुम । हम दौरे खिजाँ में भी, खिलकर दिखलायेंगे   ....................  वो लाख सितम ढाये इस दिल पे मुसीबत में  फौलाद बदन वाले, हँसकर दिखलायेंगे   ................... सैय्यद परिंदों के पर चाहे कुतर  डाले । परवाज़ में दम हो तो, उड़कर दिखलायेंगे  ........................  आफत की आतिश में शोलों की बारिश में   कुन्दन की तरह हम भी, तपकर दिखलायेंगे   ........................... मुख मोड़ के दर्पण से, नज़रें न चुराओ तुम  दिल की चाहत चेहरे, खुलकर बतलायेंगे   ....................... तुम रोक न पाओगे ,दीवार से बंदिश की  । हम मौजे रवानी हैं ,बहकर दिखलायेंगे  ।। ..............................................   शिवशंकर तिवारी छत्तीसगढ़  .............................................

संजय जैन बीना

*मकर सक्रांति का संदेश* विधा : कविता राम को जपो श्याम को जपो जपो ब्रहमा विष्णु महेश को।  पर मत छीनो लोगों से  तुम उनके अधिकारो।  राष्ट्र चरित्र का तुम सब  कब करोंगे निर्माण?  बहुत हुआ खेल अब  जाती धर्म का देश में।  कुछ तो अब शरम करो  देश के निर्माताओं। कितने सारे त्यौहार  एक तिथि पर पड़ते है।  जो की अलग अलग  धर्म वालो के होकर भी।  एक जैसे ही लगते है चाहे हो मकरसक्रांति या हो वो पोंगल आदि।  फिर क्यों धर्म के नाम पर  नफरत के बीज वोते हो।  और देश के भाईचारे को क्यों मिटाने पर तुले हो।  नहीं किया जब भेदभाव उस दुनियां को बनाने वाले ने।  फिर तुम कैसे मिटा पाओगें उसकी बनाई दुनियाँ को।  क्यों लिया जन्म देवीदेवताओं ने भारत की इस भूमि पर।  क्यों नहीं लिया जन्म  उन्होंने किसी और देश में।  जरा गम्भीर होकर के सोचो  तुम सब इस मूल बात को। रघुपति राघव राजा राम पति के पावन सीताराम।  ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सभी को बुध्दि दे भगवान। सोच विचारकर करो  एकता वाले तुम काम।  तभी अमन चैन शांति स्थापित देश में हो पायेगीं।।  सभी देशवासीयों को मकर सक्रांति पोंगल लोहरी आदि की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।  जय जिनेंद्

विजय कल्याणी तिवारी

/  क्या खोया  / ---------------------------------- क्या खोया किसकी तलाश है इस हद तक तू क्यों उदास है। पूरब की किरणों को देखो उसके संग अनुपम प्रभास है। तुम क्या जानो सत्य कहां आती - जाती सघन सांस है। झूठ नही चुभता है तुमको जो चुभता है वही फांस है । बात जरा सी क्या बिगड़ी अंतर मन से अब उदास है। तुमसे मिलना बातें करना इस जीवन का महारास है। अपनों ने जी भर ठुकराया अपनाओगे यही आस है । सुख साधन कल्पनातीत है यादें केवल आस - पास है। तुम अपने मन को समझाओ अंतर मन मे क्यों खटास है। कितना रोकूं नही रुक रहे नयन बरसते अनायास हैं । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे(खिचड़ी) मकर राशि में सूर्य का,होता यदा प्रवेश। सूर्य-तेज बढ़ने लगे,उत्तर-दिश जो देश।। खिचड़ी का यह पर्व तो,होता बहुत महान। गंगा में डुबकी लगा, करते  सब  हैं दान।। पोंगल का शुभ पर्व भी,है खिचड़ी का अंग। इसे मनाते लोग भी, ले  उत्साह - उमंग।। दान-पूण्य के पर्व पर,होता हिय में हर्ष। शुद्ध सोच,शुचि भाव से,करे राष्ट्र उत्कर्ष।। भारत के त्यौहार सब,देते हैं उल्लास। जागरूक करते उन्हें,जो मन रहें उदास।।            © डॉ0हरि नाथ मिश्र               9919446372।

निशा अतुल्य

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं💐   दोहा 14.1.2022 सूर्य उत्तरायण हुए , मकर राशि में आज । ठिठुरन भी कुछ कम हुई , भोर बजाती साज ।। गुड़ तिल के संयोग से ,बने भिन्न पकवान । अर्घ्य सूर्य को दो सुबह, भोग लगा भगवान ।।  नभ पतंग छूने चली , बंध डोर के अंग । रिश्तों को बांधे रखो , मीठी बातों संग ।। देख शीत ठंडी पड़ी , धरती ऊर्जा मान । पर्व संक्रांति का मना , खिचड़ी का दो दान । सूर्य मकर में आ गए , ऋतु बसंत आह्वान । फूल पात सब खिल गए,भूमि लगती  पावन ।। निशा"अतुल्य"

नूतन लाल साहू

मन की गांठे खोलो हमारी अवनति विपन्नता और असफलताओं का मूल कारण हम पुरानी और घिसी पिटी परंपराओं और रूढ़ियों से घिरे है इसीलिए हम,चल नही रहे है मनमाफिक आगे बढ़ नही रहे है आप किसका इंतजार कर रहे है अपनी मन की गांठे खोलो। आगे बढ़ने के लिए कमर कस लो आगे बढ़ने का संकल्प नही लेंगे तब तक हम पिछड़े रहेंगे और असफल भी होंगे रूढ़ीवादी नही बने रहना चाहिए हमेशा नया सोचना चाहिए इसीलिए तो कहता फिरता हूं अपनी मन की गांठे खोलो। स्वयं का मूल्य कभी भी कम नही आंकना चाहिए कैसी भी परिस्थिति हो कैसी भी मुसीबत पड़े कैसी भी परेशानियां हो या अभाव क्यों न हो,जीवन में कभी भी निरुत्साहित न हो। जो व्यक्ति अवसर गंवा देता है वह बाद में पछताता है ठोस और सकारात्मक निर्णय लें आज ही सत्य है आज ही शाश्वत है अपनी मन की गांठे खोलो। नूतन लाल साहू

ज्योति तिवारी बैंगलोर

🙏🏻🌹 प्रात काल शुभवेला सूर्य देव उत्तरायण आए अर्घ्य समर्पित श्रद्धा उर धरि ध्यान जप तप करि नेम और दान मकर संक्रांति पर्व महान तिल गुड घी चावल कम्बल श्रद्धा यथावत सेवा दान सूर्य आराधना आरोग्यता,मान  जीवन प्रतिपल बने महान निस दिन सेवा हो निष्काम नव वर्ष प्रण, मकर संक्रांति पर्व महान।। ज्योति तिवारी बैंगलोर

विजय कल्याणी तिवारी

पाषाण जीवन ---------------------------------- आँसुओं से रिक्त है जो मन सच कहूं पाषाण वह जीवन। भीगता ही है नही आँचल तोड़ जाता है मगर बंधन । सोच निर्मम है जमाने की सींचता कोई नही उपवन । ज्ञान गंगा में डुबो आए आदमी को चाहिए तो धन। सुलह की बातें करे तो कौन अब भरा अंतस बड़ा अनबन। लोग उसके साथ ही चलते जेब जिसकी हो मधुर खनखन । मोह मदिरा का बढ़ा भारी आक्रांत एकाकी से है आँगन । रंग उतरे फूल - पांतों के नयन भर रोने लगे मधुबन । शेष तेरा आसरा अब कुछ करो इस जगत को त्राण दो भगवन । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *गंगा* ------------------------ गंगा सदा बहती सजल । यह चाँदनी सी है धवल।। बहती चले अविरल नदी। उद्भव  कथा कहती सदी।। वैदिक जगत की शान है । धारा सरस वरदान है । धारा अमरता सी बनी । आकार में अति है घनी । लहरें शुभम् पावन बहें। जीवन सतत् है सच कहें। बढ़ना हमारा कर्म है । मन शुद्धता शुभ धर्म है।। आओ सभी पूजें इसे । जल के बिना जीवन किसे। सोचो जरा संज्ञान लो । बस शुद्धता का भान लो।। माता स्वरूपा हैं यहीं। माँगे कहाँ कुछ भी कहीं । गंगा मृदुल जल धारती। मधुमय नमन स्वीकारती ।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

ऊषा जैन कोलकाता

🙏🙏🌹🌹🙏🙏 बंसी की धुन तेरी सुनने को गोपियाँ घूम रही है बौराई।  राधा भी सुध बुध बिसराये ढूँढ रही है तुझको कन्हाई।  ढूँढ रही गोकुल की गलियाँ बिलख रही है यशोदा माई।  नंदबाबा भी गुमसुम से बैठे अंक से किसे लगाएँ कन्हाई।  इतना मत रूठो तुम कान्हा आ जाओ अब कृष्ण कन्हाई।  प्रीत बढ़ाकर तोड़ गए तुम कैसी लीला तुमने दिखलाई।      ऊषा जैन कोलकाता

नूतन लाल साहू

बहुत कठिन है जीवन की राह जिनको सबको जोड़ना है वह करते है बरदाश्त कलियुग का है,समय चल रहा चुभती बात न बोलिए जनाब। तिल तिल बीता जिंदगी अब थोड़ी है शेष लक्ष्य प्रेरणा के बिना मानव करे ना काम। जिनको सबको जोड़ना है वह करते है बरदाश्त। श्रम चरित्र ईमान का होता नही है विकल्प गुण अवगुण सबमें बसे डिग्री का है फर्क। कौन जानता है किसी के मन में है क्या बात उन लोगों को क्या कहें कटु है जिनके बोल। जिनको सबको जोड़ना है वह करते है बरदाश्त। उकसाने से किसी के भड़के कभी न आप रहते बहुत सतर्क है जो होते है चालाक। कल की बातें जो करे उसे आलसी जान किस स्थिति में क्या करें सदगुरु जी देता है ज्ञान। जिनको सबको जोड़ना है वह करते है बरदाश्त। नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* ------------------------- *शारदे* माँ शारदे द्वारे खड़े। अज्ञानता में हम पड़े ।। शुभ ज्ञान वाणी तार दो। नव ज्योति दीपक सार दो।। वीणा धरे कर में कमल। माँ रूपसी सात्विक धवल।। आसन विराजो खास जब। निज ज्ञान का हो वास तब।। अनुपम अलौकिक शक्ति माँ। वेदों समाहित भक्ति माँ ।। माँ सार गीता ज्ञान हैं। माँ शब्दमय वरदान हैं ।। माँ शीश चरणों में धरूँ। निशदिन सतत् वंदन करूँ। मधु मालती यह लिख रही। माँ ज्ञान दो , मधु हो सही ।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

एस के कपूर श्री हंस

।युग पुरूष स्वामी विवेकानंद जी की जयंती।।(12 जनवरी)* *।।1।।* अल्प आयु में   ही   दिया था अमर दर्शन इतिहास। देश भारत     को  किया   था सर्व विश्व सुविख्यात।। स्वामी रामकृष्ण परमहंस  के वे सर्वसिद्धअनुयायी। स्वामी    विवेकानंद  नाम   से हुए विश्व में विख्यात।। *।।2।।* युवा पीढ़ी की सोच  अध्यात्म का    अदभुत        मेल। शिकागो    सम्मेलन में   चली विचारों की अदभुत रेल।। नवभारत  निर्माण      संकल्प लिया यौवनकाल  में ही। नरेंद्र बने स्वामी विवेकानंद था ये दर्शन काअदभुत खेल।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* *।।झूठ के पाँव नहीं होते हैं।।* *।।विधा।।  मुक्तक।।* 1 यही सच कि   सच का कोई जवाब    नहीं    है। एक   सच ही   जिसके चेहरे पर नकाब नहीं   है।। सच सा  नायाब    कोई  और नहीं             दूसरा। इक सच ही  तो  झूठा    और खराब      नहीं   है।। 2 सच मौन   भी   हो     तो  भी सुनाई    देता     है। सात परदों के     पीछे से   भी दिखाई   देता     है।। फूस में चिंगारी सा   छुप   कर आता    है   बाहर। सच ही      मसले की      सही   भरपाई    देता   है।। 3 चरित्र के बिना   ज्ञान       एक झूठ सी   

विजय कल्याणी तिवारी

/ जानते हैं सब / ------------------------------------- जानते हैं सब सकल संसार में पाप धो गंगा जमन के धार में। हो गया है, धो सहजता से उसे क्यों दबा जाता है उसके भार में। है सभी कुछ ध्यान से पढ़ ले लौकिक अलौकिक बात गीता सार मे। था नही तैयार उतरा क्यों भंवर मे मूढ़ आकर रो रहा मझधार में । सांस थी तब तक नही खुश हो सका आज खुश लगता लिपट कर हार मे । नित्य अपना कर्म कर क्या सोचता लाभ हानि है लगा व्यापार मे । छोड़ दे स्वछंद विचरण हेत उसको बंद करके रख न कारागार में । बांटने मे मत कभी संकोच करना चूकना अनुचित जगत व्यवहार में। लोग वैसे हैं नही दिखते हैं जैसे कर रहे अपराध घुस सरकार में । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 12/01/2022                ------  मुखड़े ----- तलाशते सब अपने मुखड़े ।  कई ज्वार भाटे आने से , खोते गये चाँद के टुकड़े । रहा समय गतिमान हमेशा , झोंके आने से सब बिगड़े । कोशिश की साक्षी बन जायें , औंधे मुँह लगते ये तगड़े ।। नीची वही मानसिकता के , अंक पाश में अब तक जकड़े । देखो जिसे यहाँ जानोगे , अंदर से हैं उखड़े -उखड़े ।। अंतर्द्वंद्व सभी के अंदर , किसको छोड़ें किसको पकड़े । भटके सभी मूल को भूले , फिर भी हैं व्यर्थ रहे अकड़े ।। यही क्रम है यहीं भ्रम भी है , बनते जितने उतने उजड़े । तू निमित्त ये तेरा दर्शन , सुख- दुख जीवन के दो पलड़े ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 12/01/2022- विधा-दोहा *सृजन शब्द- जुदाई* हुई जुदाई खो दिये, नहीं रही अब आस । अंतस तम अब छा गया, बिछड़ गया प्रिय खास ।।1!! विरह वेदना खूब है, कलम उठाते देख । धर-धर आँसू बह रहे, करते हम उल्लेख ।।2!! आज जुदाई सह रहे , कभी मिलेंगे मीत । बाजेंगी शहनाइयां , गूजेंगे संगीत ।।3!! रोती जाती बेटियाँ , नैहर सूना छोड़ । पिता जुदाई सह रहा , माँ ममता ले जोड़ ।।4!! प्रेमी मन व्याकुल व्यथित , सहे विरह के ताप । प्रेमा मनका फेरती , करती माधव जाप ।।5!! सहे जुदाई जिंदगी, वीर वधू जो नित्य । सरहद जाते जब लड़े, सैनिक वह आदित्य ।।6!! ----- योगिता चौरसिया 'प्रेमा' -----मंडला म.प्र.

संजय जैन बीना

विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर मेरी रचना  *हिन्दी मेरा साया* विधा : गीत मैं हिन्दी का बेटा हूँ हिन्दी के लिए जीत हूँ।  हिन्दी में ही लिखता हूँ हिन्दी को ही पढ़ता हूँ।  मेरी हर एक सांस पर  हिन्दी का ही साया है।  इसलिए मैं हिन्दी पर जीवन को समर्पित करता हूँ।।  करें हिन्दी से सही में प्यार  भला कैसे करे हिन्दी लिखने  पढ़ने और बोलने से इंकार।  क्योंकि हिन्दी बस्ती है हिंदुस्तानीयों की धड़कनों में।  इसलिए तो प्रेमगीत भक्तिगीत  हिन्दी में लिखे जाते।  जो हर भारतीयों का गौरव बहुत बढ़ते है।।  करो हिन्दी का प्रचार प्रसार तभी तो राष्ट्रभाषा बन पायेगी।  और हिन्दी भारतीयों के  दिलो में बस पायेगी।  चलो आज लेते है  हम सब एक शपथ।  की करेंगे सारा कामकाज  आज से सदा हिन्दी में। तभी मातृभाषा का कर्ज  हम भारतीय उतार पाएंगे।।  और सच और अच्छे  हम भारतीय कहलाएंगे। संजय की यह रचना  समर्पित है हिंदी भाषा के लिए।  करो उपयोग हर समय  हमारी हिंदी भाषा का आप। बहुत बड़ा उपकार होगा हमारी हिंदी पर उनका।।  विश्व हिंदी दिवस पर सभी पाठकों को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना " (मुंबई)

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

भारत रत्न द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि को स्मरण कराती कवि की रचना देखें....                           हिन्द देश के चंचल तारे,                  मात पिता के राजदुलारे,                 आँखों के थे अतिशय प्यारे,             जय जवान आदर्श तिहारे,               जय किसान उद्बोधन वाले।                     जीवन सादा सदा तिहारे,                ऊँच विचार वाले न्यारे।                   जहाँ कहाँ कस चले गये।।1।।           न कुछ कहना न ही सुनना,            राह निहारें अपलक नयना।             शान्ति दूत अस सुन्दर वयना,          आदर्शों पै नित नित बढ़ना।।           सिखा गये मिथ्या न बकना ।।           वादा करके जाने वाले,               छोटे कद के चंचल न्यारे,                  कहाँ जहाँ जस चले गये।।2।।          आये न क्यों जाने वाले,                   भरतवंश अस राह निहारे।             न  कोई पाती न ही संदेश,                  आये न कर काज विशेष।                रह गयीं बातें हिय अवशेष,         सुनी न तुम्हरी जो लवलेश।।           तड़पा करके जाने वाले,                 आश बँधा के जान

एस के कपूर श्री हंस

*।।भारतवर्ष के द्वितीय प्रधानमंत्री* *भारत रत्न आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर अर्पित श्रद्धांजलि।।* *।।1।।* शत शत    नमन  तुमको करते शत   शत   प्रणाम। धरती के  पुत्र    कहलाते लालबहादुर तुम्हारा नाम।। सादगी ,प्रतिबद्धता ,काम समर्पण   की मूरत थे तुम। अमर रहेगा नारा  बुलवाते जय जवान  जय   किसान।। *।।2।।* सादा जीवन  उच्च   विचार से जीवन तुम्हारा उत्सर्ग था। तुम्हारे कार्य   सेवा   दृष्टि में पहले सबसे निर्बल   वर्ग था।। तुम्हारे लिए राष्ट्र मूल्य   राष्ट्र सेवा थी प्राणों से    बढ़ कर। तुम्हारे लिए भारत की  माटी से बढ़कर नहीं कोई स्वर्ग था।। *अर्पणकर्ता।। एस के कपूर* *"श्री हंस "।।बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

नूतन लाल साहू

जीवन एक रहस्य है यह जीवन का फलसफा समझ सकय न कोय यदि तू प्रभु जी को मानता है तो फिर पूरा मान। पुर्ण सफलता के लिए दो चीजें रख याद माता पिता गुरु का आशीर्वाद और अपना आत्मविश्वास। मत कर तू जरा भी अभिमान मिट्टी में मिल जायेगा कब क्या कर दें, यह समय कौन सका है जान। जीवन एक रहस्य है प्यारे। स्वर्ग नरक है कल्पना है असत्य ये धाम यही भुगतना पड़ेगा प्यारे अपने कर्मो का अंजाम। जब तक चलती सांस है करना नही मलाल जो देता है ईश्वर तुझे उसमें रख संतोष। सोच सोच कर स्वयं को क्यूं करता है हैरान न जाने कब क्या दें दें प्रभु जी,जो चाहा सो होय। यह जीवन का फलसफा समझ सकय न कोय यदि तू प्रभु जी को मानता है तो फिर पूरा मान जीवन एक रहस्य है प्यारे। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 11/01/2022                ------ अनंत ----- बोलो , मैं कब हारा हूँ । विजय पताका सबसे ऊँचा , नीलगगन ध्रुवतारा हूँ ।। घूर्णित जीवन चक्र अनवरत , लगता सबको न्यारा हूँ । मैं इसकी हर चाल समझता , इसीलिए तो प्यारा हूँ ।। सात समंदर तीन लोकहित चूना मिट्टी गारा हूँ । मति सक्रियता सदा शीर्ष पर , अजेय अनंत धारा हूँ ।। हर घट पर मेरी ही सत्ता , श्री मंदिर गुरुद्वारा हूँ । व्यास बाल्मिकी पाणिनि नारद , मैं ही सदा सँवारा हूँ ।। सृजन देवता परिचय मेरा , मनमौजी बंजारा हूँ । नहीं किसी से बैर पुरानी , नहीं किसी का यारा हूँ ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

ऊषा जैन कोलकाता

*जय हनुमंत*  केसरी नंदन करें हम वंदन,  तेरी महिमा का करें गुणगान हो।  अंजनी के लाला हृदय विशाला,  बजरंग बली ज्ञान के भंडार हो।  आये संकट जब तेरे भक्तों पर,  कर देतें तुम बेड़ा पार हो।  तुम सा ना कोई भी  वीर है,  तुम वीरों के वीर महावीर हो।  जलधि लांघ लंका  पहुंच गयें,  सीता को  संदेशा पहुंचाया हो।  लंकेश पुत्र तुम्हे पकड़ने आया,  तुमनें उसको भी मार गिराया हो  स्वर्ण लंका दहन कर डालीं ,  टूटा रावण का फिर अभिमान हो मात सिया से लेकर निशानी रघुनंदन तक उसे पहुंचाया हो विहृल हो रहे थे राम प्रभु,  जाके ढाँढस उनकों बधाँया हो।  तीर लगा लक्ष्मण को जब संजीवनी बूटी  तो ले आए हो।  भ्रातृ शोक में डूबे थे राम प्रभु,  तुमनें लक्ष्मण के प्राण बचाएं हो।  तुम तो अतुलित बलशाली हो,  तुम्हारीं महिमा सबसे निराली हो।  नय्या डोले जब बीच भंवर में,  लगा देतें दया की पतवारें हो।  तेरे चरणों में जो भी आता है,  अपने कष्टों से मुक्ति पाएं हो।  🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏 ऊषा जैन कोलकाता

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

शीत-शोभा ठिठुरन से भरी शाम जब बर्फीली होती है, धधकती आँच भी तब आग की शर्मीली होती है। आसमाँ साफ-निर्मल-स्वच्छ,चाहे रहे जितना- पर धूप सूरज की भी बड़ी शर्दीली होती है।।    कहीं पर खेत सरसों के छटा अद्भुत बिखेरे हैं,    मटर के फूल औ फलियाँ मगन खेतों में पसरे हैं।     निकलती सोंधी खुशबू जो फफकते गुड़ कड़ाहों से-     महकती हर दिशा मानो,बड़ी रसीली होती  है।। टमाटर-मूली-गाजर से धरा-शोभा कहीं बढ़ती, कहीं गेहूँ की बाली देख,बला हलधर की भी घटती। शलजम-गोभी-आलू से सजी सीवान यूँ समझो- बड़ी मन-भावनी,नटखट,अदा छबीली होती है।।    कहीं पर क्यारियाँ महकें हरी धनिया औ लहसुन से,     कहीं पर खेत सब बिलसें,चुकन्दर-गंजी-बैगन से।     हरी मेंथी,हरी पालक औ सागा प्याज भी लहरें-     हरे मिर्चे की भी तासीर,बड़ी नशीली होती है।। लटकतीं छप्परों से लौकियाँ,मनभावन लगतीं हैं, हवा सँग अठखेलियाँ करतीं,बड़ी लुभावन लगतीं हैं। बगल में खेत अरहर का,भरा गदरायी फलियों से- हँसी फूलों औ फलियों की,बड़ी सुरीली होती है।।     ताज़ा ईख के रस संग, मटर-मिश्रित-कचालू-दम,     जिसका सेवन करते सब,दोपहर में गरम-गरम।     साथ में चटनी धनिया की हरे लहसुन की

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*विश्व हिंदी-दिवस*             *राष्ट्र-भाषा-हिंदी*(दोहे) हिंदी-भाषा के बिना,कभी न हो कल्याण। आदर इसका सब करें,यही देश का प्राण।।       हिंदी-भाषा विश्व की,भाषा एक प्रधान।       हिंदी में अभिव्यक्ति से,मिलती है पहचान।। अपनी बोली बोल कर,तन-मन प्रमुदित होय। मीरा-तुलसी-सूर ने,दिया बीज है बोय ।।       करें प्रतिज्ञा आज हम,भारत-भाषा हेतु।        करें पार हम ज्ञान-सर,चढ़ निज भाषा-सेतु।। हो विकसित समुचित यहाँ, हिंदी-भाषा-ज्ञान। होवे लेखन-कथन में,हिंदी का गुण-गान ।।         चाहे हो इंग्लैंड भी,वा अमरीका देश।          हिंदी का डंका बजे,चहुँ-दिशि,देश-विदेश।। भारतेंदु कविश्रेष्ठ ने,दिया चेतना खोल। हमें कराया स्मरण,निज भाषा अनमोल।।         उनके प्रति इस देश के,हैं कृतज्ञ सब लोग।          निज भाषा का दे दिया,सुंदर-अनुपम भोग।। हिंदी भाषा का हमें,करना है उत्थान। इससे बढ़कर है नहीं,कोई कर्म महान।।         गौरव-गरिमा-शान है,यह अपना सम्मान।         रहें अमर अब विश्व में, हिंदी-हिंदुस्तान।।                          © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                            9919447372

कुमार@विशु

जिसका चरण पखारता , सागर अपने हाथ।       रखवाली करता सदा , हिमगिरि रहके साथ।।1।।       रहन सहन सब भिन्न है , भाषा भले अनेक।       राष्ट्रीभक्ति भर हृदय में , रहते मिल सब एक।।2।।       झेलम कहती है कथा , वीरों का इतिहास।       पोरस की तलवार ने , की   यूनानी  ह्रास ।।3।।        हिंदी  मेरी शान  है , हिन्दू तन अभिमान।        झण्डा मेरी आन है , प्यारा     हिंदुस्तान ।।4।।        * कुमार@विशु*

विजय मेहंदी

सम्मानित हिंदुस्तानी साथियों आज 10 जनवरी  " विश्व  हिंदी दिवस " ✍️ पर प्रस्तुत है मेरी यह सरल सी रचना--------------------   " मातृभाषा-हिंदी " ✍️ हिंदी  हमारी  भाषा  है, हिंदी ही  अभिलाषा है। हिंदी  हमारी  शक्ति  है, हिंदी ही अभिव्यक्ति है। हिंदी  हमारी  बोली  है, हिंदी  ही  हमजोली  है। हिंदी  भाषा-जननी  है, हिंदी  ही  कुलकर्णी है। हिंदी  भाषा  पावन  है, हिंदी ही  मनभावन  है। हिंदी हमारी संस्कृति है, हिंदी  ही  सुसंस्कृति है। हिंदी हमारा  संस्कार है, हिंदी ही  सुपुरस्कार  है। हिंदी हमारा अभिमान है, हिंदी  ही  स्वाभिमान  है। हिंदी   हमारी   आन   है, हिंदी    ही    सम्मान   है। हिंदी   हमारी   जान   है, हिंदी ही देश की शान है। हिंदी---हिंदू---हिन्दुस्तान, अपनी भाषा अपनी शान। ======✍️======= रचना- " विजय मेहंदी " (सoअo) कम्पोजिट इंग्लिश मीडियम स्कूल शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर(यू पी)🇮🇳🙏

डॉ.अमित कुमार दवे

©भाल यशस्वी उन्नत करती मधुरं सरगम वाली अपनी हिंदी राष्ट्र की आत्मा अन्तस् में रखती जगत् साधती अपनी हिंदी।। ©डॉ. अमित कुमार दवे,खड़गदा        हिंदुस्थान की गौरव गाथा का नित सम्मान करती अपनी हिंदी भाल यशस्वी उन्नत करती मधुरं सरगम वाली अपनी हिंदी।। सहस्रों मिलों की दूरी सहज संवाद से ही पाटती अपनी हिंदी ज्ञान सनातन जग को सिखलाती नित विकसती अपनी हिंदी।। अन्तर्कलह को स्वयं पाटती एकसूत्र में देश पिरोती अपनी हिंदी नेह-स्वावलंबन का नित मर्म जन को बतलाती अपनी हिंदी।। शब्ददृष्टि से वर्त्तमान निहार ज्ञान भंडारण करती अपनी हिंदी भावी पीढ़ी को संस्कारित करने का सामर्थ्य रखती अपनी हिंदी।। मार्ग शान्ति का सरल सहज़ ही नित जग को सिखलाती अपने ही आनंद में विश्व जन को मुग्ध करती अपनी हिंदी।।  नवीन ज्ञान-विज्ञान क्रोढ़ में सहेज समृद्ध स्वतः होती हिंदी आश्रय वैश्विक ज्ञान का बनती हमारी प्यारी अपनी हिंदी।। नित विकसती जनमानस हर्षाती विकसित होती अपनी हिंदी राष्ट्र की आत्मा अन्तस् में रखती जगत् साधती अपनी हिंदी।। सादर सस्ने प्रस्तुति © डॉ.अमित कुमार दवे , खड़गदा,

अमरनाथ सोनी अमर

गजल- हिंदी!  हिंदी हमारी शान है हिंदी हमारी जान है!  हिंद के हम दूत हैं हिंदी मेरी प्यारी चान है!!  हिंदी मेरी मातु- पितु है हिंदी में पैदा हुये!  हिंदी भाषा है हमारी हिंदी मेरी प्रान है!!  हिंदी भी बोली ठिठोली हिंदी पर हम गर्व है!  राष्ट्र को भी हिंदी भाषी पर यही गुमान है!!  राजभाषा है हमारी विस्तार पूरे विश्व में!  धार्मिक हिंदी हमारी मिलती उन सम्मान है!!  राष्ट्र भाषा के लिए हम हैं  सभी प्रयास रत!   इक  दिनों हो राष्ट्र  घोषित मेरे प्रण की ठान है!!  सूर, तुलसी ,भारतेंदु, कबीर का यही सरताज थी!  हिंदी  उन्हें थी प्राण  प्रिय भी वह हुयें कुर्वान हैं!!  मान मर्यादा में रहना धर्म पालन हिंदी है!  हिंदी से सब सीख मिलती ज्ञान का पहचान है!!  अमरनाथ सोनी 'अमर' 9302340662

भास्कर सिंह माणिक

मंच को नमन       शोभित हिंदी ------------------------- देव पूजन थाल की तरह  जग में सुशोभित है हिंदी। केसरिया चंदन की तरह ललाट पर शोभित है हिंदी। पावन गंगा जल की तरह हृदय को शीतल करे। महकते पुष्प की तरह संसार को सुगंधित करें। स्वर्ण कलश की तरह मन आकर्षित है हिन्दी। देव पूजन थाल की तरह जग में सुशोभित है हिंदी। मीठे लड्डू की तरह वाणी में रस घोलती है। वेद पुराणों की तरह सच मधुर बोलती है। धूप नैवेद्य की तरह जग में सुगंधित है हिंदी। देव पूजन थाल की तरह जग में सुशोभित है हिंदी। शुभ विजय शंख की तरह नभ थल में घोषित है। सूर्य चंद्र दीपक की तरह  जगत में प्रकाशित है हिंदी। देव पूजन थाल की तरह जग में सुशोभित है हिंदी।        ---------------- मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।               भास्कर सिंह माणिक , कोंच

एस के कपूर श्री हंस

*।।मिल  जुल कर जीने का* *अंदाज़ ही जिन्दगानी है।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 मैं अपनी ही जिन्दगी को फना होते  देखता.  रहा। जिंदगी की राह में कोहरा घना होते   देखता   रहा।। समय से      कोशिश नहीं  की जीवन  जीने     की। खुद को इक पुतला    सा  बना होते देखता रहा।। 2 मैंने जाना नहीं कि  जिंदगी  तो इक   इबादत    है। खुशियां   ढूंढ क़र    लाने    की इक     तिजारत है।। हज़ारों रंग समेटे    है   जिन्दगी छोटी सी     उम्र में। हौंसला धैर्य विवेक  से जीत की इक   इबारत      है।। 3 जिन्दगी तो   एक   अनमोल सी अनसुनी   कहानी है। कभी बहुत बुद्धिमानी   तो कभी इसमें    नादानी    है।। जिन्दगी का फलसफा कि    बस जी कर देखो इसे जरा। सदा बहती रवानी  ही   कहलाती जिन्दगानी            है।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।* *।।भावना  और प्रेम ही* *रिश्तों को   निभाने का*, *एक    मात्र     मन्त्र है।।* *।।विधा।।   मुक्तक।।* 1 जल रहे भून रहे   हैं नफ़रत की    आग    में। खुद ही चुन  रहे  हैं     कांटें अपने   भाग  में।। बोल रहे हैं   दिन   रात  राग विद्वेष  की भाषा। घुन लग रहे  हैं   भीतर  तक दिल के सुराख

नूतन लाल साहू

कर्म ही श्रेष्ठ है कर्म भाग्य है,कर्म श्रेष्ठ है कर्म ही है,सबका भगवान समय देखकर कर्म कर तब होगा कल्याण। हर मानव अर्जुन यहां परम आत्मा है श्री कृष्ण आत्म ज्ञान से ही हल हुआ है मन के सारे प्रश्न। पढ़ी हजारों पुस्तकें खूब बटोरा ज्ञान ज्ञान न उतरा कर्म में तो है बोझ समान। जिसने जाना स्वयं को वह साधक बन जाता है समय देखकर कर्म कर तब होगा कल्याण। आज अभी और इसी क्षण में जीते है जो लोग उसको भूत भविष्य का नही लगेगा रोग। हिम्मत को मत छेड़िए करता रह अपना कर्म आखिर बदलेगी तेरी इक दिन तकदीर। कर्म भाग्य है,कर्म श्रेष्ठ है कर्म ही है,सबका भगवान समय देखकर कर्म कर तब होगा कल्याण। नूतन लाल साहू

विजय कल्याणी तिवारी

संसार  --  समर -------------------------------- संसार समर है लड़ना है क्यों ठहरा, आगे बढ़ना है। यहां सपन सभी अंगूरी हैं पथ की पहचान जरूरी है  इच्छाएं आध - अधूरी हैं मन ढूंढ़े मृग कस्तूरी है मिलना और बिछड़ना है क्यों ठहरा, आगे बढ़ना है। मत दूर भाग तू बंधन से क्यों हार मानता जीवन से विचलित है मन क्रंदन से कुछ मांग यशोदा नंदन से दुनिया मे व्यर्थ झगड़ना है क्यों ठहरा, आगे बढ़ना है । आई विपदा मे टूट गया निज हाथों से सब छूट गया  यह घट मिट्टी का फूट गया ईक पल मे सब कुछ लूट गया अब क्या जीना क्या मरना है क्यों ठहरा, आगे बढ़ना है। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 10/01/2022             ------  प्रेम प्रवर्तक ----- सुमन चाप नतमस्तक है ।  लिए सुमावलि देता रहता , प्रेमानुभूति दस्तक है ।। वय किशोर से यौवन तक , अनुराग भरे सप्तक हो । वसुधा आह्लादित हो जाये कोविद प्रेम प्रवर्तक हो ।। गीत गजल दोहा चौपाई , छंद मापनी मुक्तक हो । प्रातः चिंतन काव्य पठन नित , नम्य भावना पुस्तक हो ।। लक्ष्य निशाना के भेदन को , कसी हुई गति लस्तक हो । चित्तमोहिनी मानस मंदिर , स्पर्श पुरोधा हस्तक हो । शुभ सुयुक्ति सुभ्रु सुभौटी , तन्वंगी तन तप्तक हो । सुमंगला मति हर्षित करती शुभदा प्रदा सुरक्तक हो ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 10/01/2022- विधा-दोहा *सृजन शब्द-सुहागन* बनी सुहागन आप की, जीना है अब साथ । माधव से अरदास है, नहीं छोड़ना हाथ ।।1!! कहे सुहागन माँग में, भरदे अब तो प्यार । जीवन भर दें प्रेम में, करे प्रीत इकरार ।।2!! हाथों में हो मेंहदी , लगे महावर पाँव । प्रेम गली में वास हो , प्रियतम का सुख छाँव ।।3!! साँसों के स्पंदन सदा, बसता तू ही आज । नव तरंग उठती सदा, कहे मिलो सरताज ।।4!! मन गहराई जान ले, कुछ तो करो उपाय । मन मति होती बावरी , और अधिक अकुलाय ।।5!! दर्शन प्यासे नैन है, कर देना उपकार । देखूँ तुझको हर पहर, कहे सुहागन सार ।।6!! बनी सुहागन देखती, राह निहारूँ आज । व्रत रखती तेरे लिए, तू सजता हिय ताज ।।7!! कहे सुहागन सुन विनय ,माधव तुम हो खास । प्रेमा प्रीतम मानती, तुझसे ही है आस ।।8!! खड़ी सुहागन वीर की, राह देखती रोज । देश भक्ति के फर्ज में, जीती जीवन ओज ।।9!! बनी सुहागन वीर की, सैनिक था जो एक । माँग भरी है खून से, सुखी रहे प्रत्येक ।।10!! ----- योगिता चौरसिया "प्रेमा" -----मंडला म.प्र.

निशा अतुल्य

विश्व हिन्दी दिवस पर  10.1.2022 विश्व दिवस हिन्दी बना , देखो जग की शान । नित भाषा उन्नति करो , बढ़ता जाता मान ।। जिन बोला तिन ही लिखा , हिन्दी बड़ी महान । सरल सुसंस्कृत लेखनी , सदा बढ़ाती मान ।। निज मन हिन्दी धार कर , हो हिन्दी सम्मान । मातृभूमि की आन ये , गौरवशाली जान ।। देवनागरी की सुता, संस्कृत की पहचान । उर्दू बहना बन गई, गंगा जमुनी शान ।। पश्चिम ने अपना लिया, दे हिन्दी सम्मान  । विश्वस्तर पर पढ़ रहे , बढ़ा रहे सब ज्ञान ।। भाषा हिन्दी है सरल, रहे अलंकृत भाल । स्वर व्यंजन के साथ है , सुन्दर जिसकी चाल ।। निशा'अतुल्य'

मधु शंखधर स्वतंत्र

विश्व हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं... *स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*               *भाषा* भाषा हिन्दी आज है , विश्व पटल की शान । मानक भाषा पर करें , भारतीय अभिमान । भारतीय अभिमान , सहज ही सब अपनाएँ । सहज वर्ण आधार , ह्रदय को यह छू पाए । कह स्वतंत्र यह बात , विश्व में ज्ञान पिपासा । करते मानव शोध , श्रेष्ठतम् हिन्दी भाषा ।। भाषा की लिपि ही प्रमुख , वर्णों से पहचान । देवों को अति प्रिय लगे , देवलोक का मान । देवलोक का मान , सभ्यता को दर्शाए। हिन्द देश में आज , व्यक्ति अभिव्यक्ति सजाए । कह स्वतंत्र यह बात , भाव की यह अभिलाषा। स्वर व्यंजन लो जान , मूल यह हिन्दी भाषा ।। भाषा हिन्दी विश्व में , गढ़े नए प्रतिमान । आशाओं के दीप से , उज्ज्वल सुखद निदान । उज्ज्वल सुखद निदान , स्वयं ही गाथा गाओ । धरो श्रेष्ठता भाव , पताका यह फहराओ। कह स्वतंत्र यह बात , आज है यह मधु आशा । विश्व पटल पर सतत् , श्रेष्ठ हो हिन्दी भाषा ।। मधु शंखधर 'स्वतंत्र *प्रयागराज*

ऊषा जैन कोलकाता

*प्रभु प्रेम और आस्था* सारी दुनिया छोड़ जाए और कोई न तेरे  साथ है थाम लोगे हाथ  कान्हा मन में अमिट विश्वास है।  अपने भावों की अभिव्यक्ति कान्हातुझसे ही करूँ  अपनी खुशी अपनी व्यथा व्यक्त तुझसे ही करूँ।  जब जब डराती है मुझे जग की  कुछ परेशानियाँ आ जाते कोई रूप धरके कर देते हो मेहरबानियाँ।  जन्म  व्यर्थ गँवा दियालोगों  मे अपनत्व  ढूँढते     मतलब से रिश्ते थे सभी जाते गए मुझे छोड़ के ।  ले ली शरण जब से तेरी दुनिया ही सारी मिल गई तेरे पावन चरणों में मेरी सारी दुनिया सिमट गई।  जब तुझसे मिलने का मन हो आँखें बंद कर लेती हूँ तेरी मनोहर छवि को अपने ह्रदय में रख लेती हूँ।    अपने मन के भाव से पूजन में नित्य तेरा करती हूँ चुन-चुन के फूल लाती हूँ चरणों में अर्पण करती हूँ।  माखन मिश्री बना अपने हाथों से तुम्हे खिलाती हूँ देख कर तेरा रूप  मोहना  मंत्रमुग्ध मैं हो जाती हूँ।   मन के भावों से तेरी मधुर बांसुरी भी सुनती हूँ भूल कर मैं खुद को कान्हा नाचने भी लगती हूँ।  है यही अरदास प्रभु तेरे  भक्ति रस में डूब जाऊँ  अंत समय जब आए मेरा चरण में तेरे जगह पाऊँ। 🙏🌹 सुप्रभात 🌹🙏   ऊषा जैन   कोलकाता

सुखमिला अग्रवाल भूमिजा

विश्व हिंदी दिवस की बहुत बहुत बधाई    गौरव गाथा हिंदी  *************🌹********* हिन्दी सरिता समग्र प्रवाहित  गौरव गाथा।१। गौरव  बिन्दी  विज्ञान व्याकरण  अतुल श्रृंगार।२।  हिंदी सहज सुभाषित एकता  जन जाग्रति।३। बिन्दु करिश्मा  गौरवशाली गाथा हमारी हिन्दी।४। •••••••••••••••• सुखमिला अग्रवाल,'भूमिजा' ©स्वरचित मौलिक  जयपुर राजस्थान

संजय जैन बीना

*सर्दी का मौसम और...* विधा : कविता सर्दी मौसम में प्यार मोहब्बत  की आपस में बातें होती है।  सर्दी मौसम में मोहब्बत निभाने  कि कसमे खाई जाती है।  और चलता है दौर आपस में मेल मिलाप करने का।  पर होती है दिलको पीड़ा सर्दी में बिछड़ ने पर।।  चारों ओर हरियाली  कितनी छाई रहती है।  मंद मंद हवाओं के साथ हल्की ओस गिरती है।  जिससे वदन सुकड़ा सा  और गरम हो जाता है।  जो दिलकी गहराईयों में लम्बी आह भर देता है।।  गर्म हुये वदन पर जब  ओस की बूंदे गिरती है।  तो अंदर से एक आवाज  छन सी आती है।  जो दिल दिमाग को  शून्य करके बेचैन कर देती है।  और सीने की धड़कनों को और तेज कर देती है।।  आँखे होंठ और दिल भी अपनी कहानी कहते है।  और तन मन सब कुछ  तड़पकर सुस्त होने लगता है।  न कुछ खाया पिया जाता है न ही बिना उनके जिया जाता है।  दिल में लगी है जो आग  उससे सिसकियां भर रहा है। और ये सब कुछ सर्दियों के  महीने में ही क्यों होता है।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 10/01/2022

सुरेश लाल श्रीवास्तव

हिन्दी  हमारी शान है माँ    और     मेरी    मातृभूमि, मेरे    जीवन  की परिभाषा है। हिन्दी   है   मेरी   शान    सदा, मृदुता     मण्डित यह भाषा है। लोगों    के दिलों  में प्रेम  भाव, जो   सदा   जगाती   है  रहती। निज  मधुर भाव प्रवहण  द्वारा, मधुरस     संयुत्   कर  देती है।। राष्ट्रीय    चेतना    जागरण   में, हिन्दी     का    बहु    योग रहा। चारित्रिक  मूल्यों   का  विकास, इसके     ही   अनुयोग      रहा। हिन्दी   है  आन-मान    सबकी, जीवन    की   पहचान भी    है। मास  सितम्बर  तिथि चौदह को, राष्ट्रीय      दिवस     मने   सदा।। विश्व    जनों को  मानवत्व  पाठ, जिस  भाषा  ने   है    सिखलाई। वसुधैव  कुटुम्बकम का मूलमंत्र, जनमानस   को   है  अति भायी। साहित्य    साधना    हिन्दी   की, अगणित कवियों   की रही कर्म। राष्ट्र-प्रेम      बन्धुत्व भाव    भर, जन    चेतना  सबने  है  फैलाई।। मध्यकाल हो या आधुनिक काल, हर  काल  में हिन्दी  मुखरित थी। हिन्दी    के     रचनाकारों     की, मर्यादा   कभी  न   कुछ कम थी। स्वातंत्र्य  काल  में  राष्ट्र-प्रेम   को, जिस  भाषा  ने ज्योतिर्मान किया। उस   देव  लिपि  हिन्दी को

एस के कपूर श्री हंस

*।।विश्व हिंदी दिवस10 जनवरी* *के   अवसर   पर।।* *।।रचना  शीर्षक।।* *।।हिंदी हिन्द   की    बन चुकी* *पहचान           है।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 सरल सहज सुगम भाषा वह बोली हिंदी है। सौम्य और  सुबोध आशा वह बोली हिंदी है।। आत्मीय  अभिव्यक्ति   है हिंदी के      प्राण। सुंदर और सभ्य परिभाषा वह बोली हिंदी है।। 2 संस्कृति संस्कार   की  जो एक फुलवारी    है। हिंदी बहुत मधुर भाषा जो जग से    न्यारी है।। भारत की  लाडली     और वीरता की गौरवगाथा। हिंदी ह्रदय वाणी    वह तो बहुत ही  प्यारी है।। 3 भारत जन जन की  भाषा हिंदी बहुत दुलारी है। मन मस्तिष्क की     बोली भारत की लाली है।। हो रहा सम्पूर्ण     विश्व  में हिंदी  मान सम्मान। हिंदी में ही   निहित  भारत की   खुशहाली है।। 4 हिंदी हिन्द की बन     चुकी पहचान           है। सम्पूर्ण विश्व में हिंदी से  ही गौरव गान      है।। एकता की  डोर   नैतिकता का है सूत्र   हिंदी। हिंदी से ही  विश्व में   भारत की आज शान है।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस "* *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

*शीर्षक* -   *हिंदी भाषा* (विश्व हिंदी दिवस पर विश्व में रह रहे सभी हिंदी प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएं) महाकाल के वाद्य से प्रकटी संस्कृत की बेटी, कालजयी भाषा है हिंदी अक्षर वृह्म शब्द सिंधु है ,जीवन की परिकल्पित परिभाषा है हिंदी साॅ॑सें है भारत की, भारत के भविष्य की प्रबल अभिलाषा है हिंदी जो संपूर्ण देश को जोड़े,ऐसी जन जन की भाषा है हिंदी हमारी लेखनी हमारी वाणी हमारा सृजन, व्याकरण है हिंदी हमारा संस्कार हमारी संस्कृति , हमारा आचरण है हिंदी हिंदी हमारी अस्मिता हमारा अभिमान और हमारा सम्मान है हिंदी सूर तुलसी कवियों ऋषि मुनियों का, ज्ञान और गान है हिंदी जैसे जड़ से कट कर वृक्ष, कभी नहीं हरे भरे रह पाते हैं कृतघ्न और अमानुष माॅ॑ का सम्मान, कभी नहीं कर पाते हैं माॅ॑ की ममता पोषण से ही, शिशु बड़े और महान् हो पाते हैं वो पशुओं से जीते हैं जो प्यार लुटाते औरों पर,माॅ॑ का गुणगान नहीं कर पाते हैं सभी सरितायें मिलती जैसे सागर में, हिंदी वह अथाह सागर है हिंदी शब्द नाद लिपि और विश्वासों का अनुपम अद्भुत आगर है फिर भी आज द्रोपदी बनी खड़ी है है हिंदी, अंग्रेजी खींच रही है चीर अंधे राजा बहरी सरकारे

दिलीप कुमार पाठक सरस

~ 🌹गीत 🌹~ *हिंदी रचती नई कहानी है* 🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫 तुम दीपक हो, मैं हूँ बाती,        तुम सूरज, मैं भोर-प्रभाती | तुम सागर, मैं नदिया प्यारी,        तुम अम्बर , मैं धरा तुम्हारी | तुम पत्थर हो, मैं हूँ पानी,          तुम राजा हो, मैं हूँ रानी | शब्द-अर्थ की प्रीति- सुहानी,            हिंदी रचती नई कहानी || वर्णों ने लघु गुरु स्वर देकर,  साथ सरस यति-गति का लेकर |  कहीं रुकावट बने न बाधा,        पहले अपनी लय को साधा || फिर स्वर से मिलवाए व्यंजन,           जैसे आँखों में हो अंजन | भेद मिले जब व्यंजन ध्वनि से,       शब्द बनाते तब जग-ज्ञानी || शब्द- अर्थ की प्रीति- सुहानी ,            हिंदी रचती नई कहानी ||      शब्दों के पर्याय कई हैं,         अर्थों के अध्याय कई हैं | शब्द विलोमों की है नगरी,         अर्थ-भरी शब्दों की गगरी || कहीं कहावत, मुहावरे हैं,         वाक्यांशों के शब्द भरे हैं | रूढ़ी यौगिक योगरूढ़ बन,          गद्य-पद्य दोनों के सानी | शब्द-अर्थ की प्रीति-सुहानी,         हिंदी रचती नई कहानी || माथ सजाए माता हिंदी          दो रूपों वाली है बिंदी| सबसे अनुपम न्यारी हिंदी,       

अमरनाथ सोनी अमर

हाइकु- वारिस!  पिता का धन, वारिस का नजर,  घूमता सदा!  वारिस- चिंता,  सताये पल पिता,  सहता दुख!  पेट को काटे,  कंजूस की गठरी,  ढोये हमेशा!  धन लालच,  सताये रात दिन,  सोये क्षणिक!  इकठ्ठा करे,  जायदाद, जमीन,  वारिस लिये!  अथाह किया,  एकत्र जायदाद,  सौंपा वारिस!  इज्जत खत्म,  गुनतें नही पिता,  हुये मालिक!  बने हैं गुण्डा,  मनमानी है राज,  नहीं सलाह!  पीतें शराब,  करें मांस भक्षण,  गृहस्थी नष्ट!  गाली - गलौज,  नींद किये हराम,  मान माटी में!!  चले न मेरा,  गुड किया गोबर,  बने राक्षस!  वारिस मोंह!  किया स्वप्न अधूरा,  इन चक्कर!  हे दीनानाथ,  देखो दुख हमारा,  चाहिये मुक्ति!  हे दयावान,  कर दया निरीह,  करिये जल्दी!  वारिस दुख,  सहन क्षमता खत्म,  प्राण है फसा!!  अमरनाथ सोनी" अमर " 9302340662

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक -   गुरु गोविंद सिंह जयंती (प्रकाश पर्व, गुरु गोविंद सिंह जयंती पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं) पराक्रमी पिता तेग बहादुर, माता गुजरी का था जो जाया पावन पुण्य धरा पटना की धन्य हुई, जन्म जहां पर पाया जिसने जीवन भर ध्वज, धर्म का अविचल अडिग फहराया जिसे पाखंड अधर्म अत्याचार पर, झुकना कभी न आया महान् वह संत योद्धा, सदैव रहा गृहस्थ अविकार सत्य धर्म के लिए आजीवन, लड़ता रहा विविध प्रकार अनुपम भेष कराया धारण,कंघा केश कच्छा कंगन और कटार खालसा हेतु छकाया अमृत, और धारण कराए विशेष ककार अद्भुत बलिदानी जो हिन्दू धर्म की रक्षा हित, तीन पीढियां बार गये बुझेगी नहीं ज्योति धरा पर उनकी, जिंदादिली हमको सिखा गये धर्म रक्षा हित करने बलिदानी सदा तैयार, पंथ खालसा का सृजन कर गये चौदह युद्धों में मुगलों को कर परास्त, अपने पुत्रों का हॅ॑सते हॅ॑सते बलिदान दे गये जिन्होंने चिड़ियों से बाज़ तुडाये, गीदड़ भी दहाड़ते सिंह बनाये सवा लाख से एक लड़ा कर, गोविंद सिंह अमर नाम कहलाये जिनके बाणों की बौछारों से, शत्रु विटप से गिरने ढूंढते मही अगवानी थे ऐसे गुरु गोविंद सिंह जी श्रेष्ठ पुत्र, पिता महा शौर्यवान ब

निशा अतुल्य

9.1.2021 रजनी छंद 23 मात्रिक पदांत गुरु अनिवार्य  दो दो अथवा चारो पंक्ति तुकांत  2122 2122 2122 2  साथ मेरा तुम निभाओ ये जरूरी है । बात मेरी मान जाओ ये जरूरी है ।। अर्चना करती सदा तुम ही सहारे हो। सौंप तुमको सब दिया, कान्हा हमारे हो ।। निशा 'अतुल्य'

संजय जैन बीना

*छोड़ गये मुझे...* विधा : कविता  चले थे साथ मिलकर किसी मंजिल की तरफ। बीच में ही साथ छोड़कर निकल लिए और के साथ। अब किस पर यकीन करें इस जमाने में साथ के लिए। हर तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ हमे आज कल दिखता है।। मिला था जब दिल हमसे तो कसमें खाते थे तुम। सात जन्मों तक एकदूजे का साथ निभाने की। फिर ऐसा क्या हो गया जो गरीब का साथ छोड़ दिया। और यश आराम के लिए  और का हाथ थाम लिए।। महत्वकांक्षी लोग किसी एक के हो नहीं सकते। आज ये है तो कल कोई और भी इनका हो सकता है। क्योंकि मोहब्बत तो इनके लिए एक खिलौना है। और टूटते ही उसे बदल  ने की फिदरत होती है।। न कोई मंजिल न लक्ष्य  ऐसे लोगो का होता है। बस अपनी जवानी और रूप से घयाल करके। प्यार करने वालो का प्यार   पर से विश्वास उठवा देते है। और ऐसे लोग न जीते है और न ही मर पाते है।। जय जिनेन्द्र  संजय जैन "बीना" मुम्बई  09/01/2022