सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुधीर श्रीवास्तव

माँ महागौरी *********** माँ जगदम्बे का अष्टम रूप माँ महागौरी कहलाये, श्वेत वस्त्र आभूषण से अलंकृत माँ श्वेतांबरा भी कहाये। चार भुजाओं वाली मैय्या त्रिशूल डमरु संग सुहाए, शंख, चंद्र, कुंद की महिमा माँ के मन को भाये। वृषभ वाहन धारिणी मैय्या वृषारूढ़ा भी कहलाये, न्यायप्रिय और शांत मुद्रा माँ की मन को बहुत रिझाये। माँ अन्नपूर्णा रूप में भी माँ को पूजा जाये, अमोघ फल दायिनी मैय्या आठ वर्ष की आयु पाये। विपरीत परिस्थिति हो कितनी तनिक न चिंता करिए, धैर्य करो धारण जीवन में ये ही संदेश बताए। ✍ सुधीर श्रीवास्तव      गोण्डा(उ.प्र.)     8115285921 ©मौलिक, स्वरचित

सूरज मिश्रा

नया साल आ गया हमारा आओ मिलकर दीप जलाये. अप्रैल फूल मे पडे हुये उनको फिर से हिन्दुत्व सिखाये. नयी बहारे नया चमन है नये नये सब फूल खिलाये. नया सवेरा नयी शाख हैं नये नये व्यवहार चलाये. करे अदब से बात सभी से जलने ना दें कोई अलाये. आओ मिलकर दीप जलाये! सबसे पुराना सम्बत हिन्दू आओ इसका मान बढाये नष्ट करे जो इसको मलेक्छी उसपर भी प्रत्यंच चढाये ज्वालाये गहरी हो फिर भी सबसे पहले इसे बचाये मस्तक उठे गगन मे लहरें कसम हमे अभिमान लचाये  चाँद सितारे मिलकर उपर हिन्दू हिन्दुत्व का शोर मचायें आओ मिलकर दीप जलायें 2   संस्कृति प्रकृति बहने दोनो सहमे हुये परिंदे है संस्कृति प्रकृति के दुश्मन है सबसे बडे दरिंदे है रिस्ते को रिस्ता ना समझे हैवानो सी चाह रखें ऐसे पापी धर्म नही ये धरा मजहबी राह चखें धरा धुसरित हो न कभी भी इस पर फिर से फूल उगायें  आओ मिलकर दीप जलाये 2                             kvi सूरज मिश्रा ✍

डॉ0 निर्मला शर्मा

"नवरात्रि" नवरात्रि का त्योहार, लाया खुशियाँ अपार। मन झूमे बार-बार, करे वन्दना श्रृंगार। नव देवियों का आगमन, धरा करे सुस्वागतम। फैला चहुँदिश उल्लास, प्रकृति करती हुलास। अँगना खुशियाँ हैं छाई, जैसे खिलते पलाश। लाओ पूजा की थाल, करो दीपक प्रकाश। करती दुष्टों का नाश, घ्वनि करता आकाश। जीवन करती सुगम, नहीं कोई पथ दुर्गम। जीवनदायिनी हैं मैया, छवि लागे सुंदरतम। चलो आस्था के मार्ग, हो जीवन का उद्धार। नवदुर्गा की साधना ,करे कष्टों से उद्धार। बढ़े धन और धान्य, फैले शांति निज धाम। जग करे आराधना, लेके अम्बे का नाम। सुख, शांति, समृद्धि, लाये देवियों के पाँव। माता दुर्गे सँवारे ,मेरे बिगड़े सब काम। मद, मोह, लोभ, काम ,साधना से कट जायें। विषय विकार सभी मन के, तेरी भक्ति से मिट जाये। इन्द्रियाँ हो वश में, भवसागर से तर जायें। मिले आशीष माँ का, सब कष्ट मिट जायें। डॉ0 निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

अजय आवारा

इस तरह मोहब्बत का इजहार करेंगे, सजदा तेरे दर पर हम बार-बार करेंगे। यकीं करते रहे हम उनके इस दावे पर, कि मोहब्बत सिर्फ एक ही बार करेंगे। वादा किया था उसने सोने से पहले, कि इंतजार तेरा हम रात भर करेंगे। चल यहीं रख दे तेरी वादों की दुकान, क्या पता था वही वादा बार-बार करेंगे। कैसे याद रखें सूरत तेरी तू ही बता दे, नए नकाब मैं हम तुझे हर बार मिलेंगे। कर लिया था भरोसा हमने तेरे सच पर, पता न था वही फरेब हमें हर बार मिलेंगे। चल बुझा दे उम्मीद की लौ भी तू आज, धुआं बन चिराग में हम हर बार जलेंगे। अजय आवारा

मार्कण्डेय त्रिपाठी

जीवन दर्शन जिंदगी के बरस बीस कब उड़ गए, कुछ पता ना चला,हम किधर जुड़ गए । नौकरी छोड़ी, पकड़ी और आगे बढ़े , बैंक में शून्य पर शून्य जुड़ते गए ।। फिर हुई शादी,सपनें सुनहरे जगे, मौज मस्ती हुई, वे भी दिन चल गए । बाल बच्चे हुए, ध्यान उन पर लगा, बंद मस्ती हुई,बोझ सिर लद गए ।। पत्नी गृह कार्य में व्यस्त रहने लगी, शून्य पर शून्य मैं भी बढ़ाने लगा । गाड़ी, बंगले की किश्तें भी सिर पर चढ़ीं , धीरे, धीरे मैं उनको चुकाने लगा ।। उम्र चालीस की होने लगी भ्रात तब, पास बैठो मेरे,बात हम कुछ करें । पत्नी बोली कि फुर्सत नहीं काम से , पल्लू खोंसे चली वह, निरर्थक धरे ।। साठ की उम्र होने को थी जब सखे, पुत्र विदेश में था,बड़े खुश थे हम । एक दिन फोन आया कि शादी किया, क्या कहें दर्द अपना,मिटा था भरम ।। बेटा बोला कि बैंकों के शून्यों को अब, दान दे देना,अब मैं नहीं आऊंगा । सुनकर बेहोशी मुझको सताने लगी , अश्रु बहने लगे, अब कहां जाऊंगा ।। पत्नी आई और बैठी मेरे पास तब, बोली , क्यों थे बुलाए,सुनाओ अभी । थोड़ी फुर्सत में हूं, क्या सुनाना तुम्हें , कुछ न बोला मैं, लुढ़का था मुखड़ा तभी ।। देह ठंडा पड़ा था,समझ वह गई, ले अग

संजय जैन बीना

*क्या कह कर गये थे...* विधा: कविता आज और कल में क्या है अंतर और आने वाले कल में क्या होगा।  क्या इंसान इंसान को समझेगा और अपनी इंसानियत जिंदा रखेगा।  या एक दूसरे को ही वो  अपना शिखार बनायेगा।  क्या इसकी भविष्य वाणी कोई  कल और आज में कर करेगा।।  स्नेह प्यार मोहब्बत का मतलब  सबसे ज्यादा पशु-पक्षी समझते है।  जो कल भी और आज भी   इंसानो से ज्यादा अच्छे होते है।  इसलिए तो इंसान आज कल  घरो में कुत्ता बिल्ली... रखते है।  जो उसे इंसानो से ज्यादा  शायद वो इंसान लगते है।।  कैसे हम आप कहा सकते है की इंसान इंसान पर भरोसा...।  इसे बेहतर तो वो जानवर है जो एक-दूसरे पर अन्त तक..।  ऐसा इस युग में हमें आज देखने को बहुत मिल रहा है।  इंसान को घर के बाहर रखते है और कुत्ते बिल्ली को अपने साथ।।  जो राम कृष्ण और ऋषि मुनि  अपने युग के अंत में कह गये थे।  की आने वाला कल बहुत ही  अलग तरह का होगा।  जिसमें इंसान इंसान का शिकार करेंगे और पशु-पक्षी घरो में राज करेंगे।  जो आज हमें हकीकत में  वर्तमान में देखने को मिल रहा है।।  जो कुछ मैं देखता और सुनता हूँ वही अपनी लेखनी में लिखता हूँ।  और समाज को आईना दिखाने की मैं पू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे लेकर सोच नवीन जो,पलता यहाँ समाज। नई  चेतना  साथ  ले,करे  विश्व  पे राज।। मात्र शुद्ध परिवेश ही, होता  रोग-निदान। सोच न कलुषित हो कभी,रखें सभी जन ध्यान।। देख  गंदगी  सोच  की, होता  मन  में  क्षोभ। सच्चा मानव है वही, जिसमें  रहे  न  लोभ।। प्रियतम हैं परदेश में, गोरी - चित्त  उदास। टूट गई उसकी अभी,मधुर मिलन की आस।। सफल-सुखद-स्वर्णिम रहे,केवल वही अतीत। वर्तमान  यदि  शान  से, जाता  है  जो  बीत।। लोभ-मोह को त्याग कर,रख काबू में क्रोध। प्रगति-द्वार निश्चित खुले,बिना किसी अवरोध।। धीरज कभी न छोड़ना, धीरज  सच्चा  मीत। जीवन को बस दे यही, मधुर  गीत-संगीत।।              © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                  9919446372

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 09/04/2022                ----- लाडली ----- भूल गये सब निठुराई । जब से घर में आई बेटी , ममता ने ली अँगड़ाई ।। 16/14 हँसता उपवन महकी कलियाँ , जब देखी वो लरकाई । भाग्योदय है नये क्षितिज से , नियति भी मधुर मुस्काई ।। लगता है खुशियों का गुच्छा , घर मेरे चलकर आई । हिय परिवर्तित शुद्धि बुद्धि अब , शुचिता मन को भाई । वैचारिक तब्दीली संभव , बिसरे सब महा ढिठाई । अब रक्षा के भाव जगे हैं , तू पिता कर्म सिखलाई ।। दाता तूने बेटी दी है , लख लख कोटि तेरी दुहाई , सुख पाया हुआ प्रतिष्ठित , होती है जगत बड़ाई ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

// माँ -- 8 // -------------------------------- मात अष्टमी आज है  रूप अनूप परोस । अंतस भाव पवित्र हो  मिले परम संतोष।। लड़ लड़ कर सब हारते नष्ट भ्रष्ट संसार। परम शांति का चाहिए इस जग को उपहार।। यह उपहार प्रदान कर यही जगत कल्याण। तू ही जग की देह है और धड़कते प्राण ।। दुख में जीने की कला सीख सकें जो लोग। चलन चरित्र उत्तम रहे जीवन कटे निरोग ।। धूप छाँव दोनों मिले  जो प्रकृति के अंग । सभी रंगों पर हो चढ़ा प्रेम प्रीत का रंग।। विजय कल्याणी तिवारी , बिलासपुर छ.ग.

छत्र छाजेड़ फक्कड़

सुप्रभात संग आज का विचार :-  ख़ामोशी  ने  ख़ामोशी  से ============== छत्र छाजेड़ “फक्कड़” इधर खोमोश नजर उधर ख़ामोश अधर.... फिर भी सब कुछ कह डाला ख़ामोशी ने ख़ामोशी से.... क्या कहा क्या सुना पर कर गया प्रकंपित मन को... और हुआ एक अहसास मृदुल छुअन का सतरंगी रंगों का और हुआ एक स्तंभन एक संप्रेषण एक संवेदन कर गया मुदित मन को.......! प्रबुद्ध पटल को नमन

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

वंदे मातरम (स्वर्णमुखी) माता रानी बहुत दुलारी। सबसे प्यार किया करती हैं। प्रेमिल हार दिया करती हैं। श्री माता जी सहज पियारी। नौ रूपों में तेज चमक है। सर्वोपरि माँ असुर नाशिनी। विंध्याचल की विंध्यवासिनी। परम रूपसी भाव गमक है। तुम्हीं शारदा मैहरवाली। हंसवाहिनी ज्ञानविधाता। प्रेमदायिनी जग व्याख्याता। तुम्हीं समर में खप्परवाली। शेष महेश गणेश तुम्हीं हो। ब्रह्मचारिणी वेश तुम्हीं हो।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 8838453801 स्वर्णमुखी सदा काम का अभिनंदन हो। जीवब को ही काम समझना। सदा काम में ही रत रहना। काम-लक्ष्य का नित वंदन हो। कर्म प्रधान कर्म ही पूजा। कर्म बिना मानव अति हीना। कर्म-नीर में मानव मीना। कर्मनिष्ठ बन चल त्यज दूजा। कर्म तपस्या नित करता जा। तपो-तपाओ खुद को प्यारे। तन-मन दान किया कर न्यारे। कर्म पंथ पर नित चलता जा। कर्मनिष्ठ ही भाग्यवान है। कर्महीन नर दुखी जान है।। रचबाकर:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801 स्वर्णमुखी माता जी के द्वार चलेंगे। गौरी माँ का वंदन होगा। बार-बार अभिनन्दन होगा। गौरी माँ से प्यार करेंगे। सभी भक्त उपवास करेंगे। कीर्तन भजन मनन चिंतन हो। अति प्रसन्

मार्कण्डेय त्रिपाठी

नारी जीवन मांग में सिन्दूर पड़ते ही , वह लड़की से औरत बन जाती । दीदी से आंटी बनती वह , निज पीड़ा भी कह ना पाती ।। दो बच्चों के बाद भी उसका , पति अब भी भैया कहलाता । घर के बाहर का आकर्षण , यह जग धोखेबाज बताता ।। ध्यान रखती सबकी पसंद का, उसकी इच्छा का न मूल्य है । उसके पति का बाह्याकर्षण , क्षमा योग्य, वह देवतुल्य है ।। सबसे पहले उठ जाती वह , चौका, बर्तन और रसोई । धन्य, धन्य है प्यारी बेटी , जिसकी चिंता करे न कोई ।। बिना इजाजत के वह अपने, मायके भी ना जा पाती है । कामचोर कहलाती है वह , मन मसोस कर रह जाती है ।। अपने पति से और पिता से, कुछ पैसे भी नहीं मांगती । अगर जरूरत पड़े तभी भी , समझौता कर,बात टालती ।। देकर मां दृष्टांत स्वयं का , उसकी हिम्मत सदा बढ़ाती । वक्त सभी कुछ ठीक करेगा, कहकर मां उसको समझाती ।। थककर आने पर भी घर में, कोई नहीं पूछता पानी । याद आती तब सखी सहेली, हर औरत की यही कहानी ।। आंखों के नीचे कालापन, क्यों है, वह, यह नहीं बताती । भला आप समझेंगे कैसे , उसकी मां तक समझ न पाती ।। चेहरा शांत, हंसी फूलों सी , कहते मौन तूफ़ान कहानी । सात जनम भी कम पड़ जाएं, इसे समझने में,हे जानी

संजय जैन बीना

*जुमले क्या होते है।*   विधा : कविता किसी बात को कोई  कितना सुन सकता है।  और उसकी भावनाओं में कब तक वाह सकता है।  पर जब मालूम पड़ेगा की  ये सब तो एक छलावा था।  और अपने फायदे के लिए जनता को फसाया था।।  समझो आम इंसानो को वो कैसा जीवन जीते है।  और क्या क्या उन लोगों की जरूरतें आम होती है।  इन्हीं सब बातों का वो  विशेषज्ञो से पता करवाते है।  फिर उन्हीं बातों को वो  अपना हथियार बनाते है।।  बेचारी भोली-भाली जनता  इनके जाल में फस जाती है।  फिर जीतकर जंग ऐसे लोग उन बातों को जुमले बताते है। और झूठ के बल पर ये  सत्ता पर बैठ जाते है।  और देश व देशवासियों को चारों तरफ से लूटते है।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 08/04/2022

अजय आवारा

न मैं हिंदू हूं और न हीं हूं मुसलमान, मैं कहुं खुद को एक हिन्दुस्तानी महान। सभ्यता पनपी जहां सबसे पहले, पनपी संस्कृति सनातन की महान। समाहित किया जिसने हर परंपरा को, कुछ ऐसा है, मेरा भारत महान। न भेद जहां अपने और पराए का, धरती है हिन्द की इतनी महान। भाषा अनेक और रीत भी अनेक, यह है घर सब का, नहीं यह मकान। रंगभेद सब मिट जाते जहां, ऐसा है, यहां का हर इंसान। भेद में भी एका मिलता जहां, देखा है कहीं, क्या ऐसा जहान? गूंजता यहां स्वर  मानवता का, हो गुरुवाणी, पूजा, या फिर अजान। ढूंढ लो चाहे जग भर में, नहीं मिलेगा, दूजा हिंदुस्तान। अजय आवारा

ऊषा जैन उर्वशी

*मुक्तक मापनी 16 /14* माता करूँ मै आराधना ,  मन की तुम्ही हो साधना।  मेरी आस हो विश्वास हो , गिर ना पड़ूँ माँ थामना।  असुरों का करती विनाश तू,  दीन दुखियों की आस तू।  तेरे द्वार आई आज माँ,  देदो दरश है कामना।  ऊषा जैन उर्वशी

नूतन लाल साहू

जग में आने का उद्देश्य मेरी वाणी में तनिक भी मिठास नही है फिर भी विनय सुनाने आया हूं मैं भगवान तुम्हारें चरणों में मैं तुम्हें रिझाने आया हूं। मैं हूं भिक्षुक और तुम हो दाता ये संबंध बताने आया हूं सेवा को कोई वस्तु नही है फिर भी मेरा साहस तो देखों रो रोकर आंसुओ का मैं हार चढ़ाने आया हूं । इन आंखों के दोनों प्यालो में कुछ भीख मांगने आया हूं आपके चरण कमल को नौका बनाकर भवसागर पार जाने को आया हूं। न मुझमें बल है, न मुझमें है विद्या न मुझमें भक्ति है, न मुझमें है शक्ति ना कोई मेरा कुटुम्ब साथी है अटल ना ही मेरा शरीर है साथी तेरे स्वरूप का ध्यान लगाने तेरे ही गुणों को गाने सदा भक्त और भगवान का रिश्ता को जग को बताने आया हूं मैं मैं हूं भिक्षुक और तुम हो दाता भवसागर पार जाने को आया हूं मैं। नूतन लाल साहू

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम* सर्वोच्च सम्मान के सिंहासन पर आसीन एक सुदृढ़ व्यक्तित्व जिसकी हर क्रिया सम्पूर्ण समाज के लिए आदर्श रूप में अनुकरणीय हो जाती है वह है - मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।हर स्थिति में जो समनंजनक स्थिति को प्राप्त हो-वह राम के अतिरिक्त भला और कौन हो सकता है?माता-पिता के लिये आदर्श पुत्र, भाइयों के लिये आदर्श भ्राता, पत्नी के लिये आदर्श पति, गुरु के लिये आदर्श शिष्य, प्रजा के लिये आदर्श राजा, समूची जनता के लिये आदर्श जन-मन तथा सम्पूर्ण समाज के लिये सर्व ग्राह्य, सर्व स्वीकार्य पुरुष श्री राम एक इष्ट देव के रूप में सदैव अमर रहेंगे।      राम शब्द स्वयमेव आदर्श का पर्याय बन गया है।राम वह परम पवित्र अस्तित्व है जो सर्व व्यापक, सर्व कालिक और सदैव प्रासंगिक अवधारणा के रूप में समग्र जनमानस में विराजमान है और अनंत काल तक विद्यमान रहेगा।      राम एक मधुर, प्रशांत, धीर-वीर-गंभीर, ज्ञान और वैराग्य का वह सिद्धांत सूत्र है जिसका अनुगमन कर आत्मोत्थान के शिखर तक पहुँचा जा सकता है।श्री राम एक सम्पूर्ण मानव के प्रतिनिधि  हैंऔर स्वयं में सम्पूर्णता के द्योतक हैं।इसलिए श्री राम को जान

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14)कर्तव्य जीवन की राहों में पग-पग, आगे बढ़ते जाना है। लड़कर ही तो तूफ़ानों से, सदा लक्ष्य को पाना है।। रुकता जो पथ-बाधा पाकर, रूठ लक्ष्य उसका जाता। मंज़िल तक वह पहुँचे भी तो,  फल सूखा केवल पाता। क़दम समय से मिला चले जो, मधु फल उसको खाना है।।       सदा लक्ष्य को पाना है।। हो प्रचंड सूरज की गर्मी, या भीषण बरसे पानी। शीत लहर का हो प्रकोप या, मौसम करता मनमानी। दिखता केवल लक्ष्य जिसे ही, मिलता उसे ख़ज़ाना है।।      सदा लक्ष्य को पाना है।। । सागर की तूफ़ानी लहरें, सदा मीत बन जाती हैं। ऊँची-ऊँची पर्वत-शिखरें, अवनत माथ झुकाती हैं। ऐसा अवसर उसे ही मिलता, लक्ष्य सुदृढ जो ठाना है।।     सदा लक्ष्य को पाना है।। भौतिक बाधा भले आज हैं, कल विनाश उनका निश्चित। कितना मीठा फल वह होता, श्रम-बूँदों से जो सिंचित। सच्चे साधक को इस जग ने, पूजनीय ही माना है।।      सदा लक्ष्य को पाना है।।                 © डॉ0हरि नाथ मिश्र।                    9919446372

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,,पुरनम निगाहों को,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  तपिश का दौर जारी है, रखो पुरनम निगाहों को । ज़िगर में बेकरारी है, रखो पुरनम निगाहों को ।। उधर फूलों की चाहत, मखमली नाजुक बदन लेकिन। इधर काँटों की झाड़ी है, रखो पुरनम निगाहों को  ।। घुली मिसरी लबों पे,गूँजती पायल कहीं छम छम  । कहीं चुभती कटारी है ,रखो पुरनम निगाहों को  सफर दुश्वार हो  चाहे, पड़े हों पाँव  में छाले   । चलने की लचारी  है, रखो पुरनम  निगाहों को  ।। बरसते आग के गोले ,धधकते मज़हबी  शोले  । ज़मीं दिल की कछारी है ,रखो  पुरनम निगाहों को ।। दिखाकर नित नये करतब, वो जादू कर गया सब पर । बड़ा  शातिर  मदारी  है, रखो  पुरनम  निगाहों   को  ।। नशे में इश्क के कल जाम छलके, इस कदर  यारों । अभी  भी  कुछ  खुमारी  है, रखो  पुरनम निगाहों को ।। परिंदों  को  न जाने  दो, पड़ोसी  के  मुँडेरों  पर  । कूचों  में   शिकारी   हैं, रखो  पुरनम निगाहों  को ।। .............................................  शिवशंकर  तिवारी   । छत्तीसगढ़  । ...............................................

संजय जैन बीना

*खुदको ढूढ़ना पड़ेगा* विधा : कविता पढ़ लिखकर तुम अब हो गये हो डिग्रीधारी।  पर कर नहीं रहे हो  अब भी कोई कामधाम।  जबकि तुम्हें पता है की सरकार युवाओं को।  रोजगार आदि के लिये कुछ भी नहीं कर रही है।।  क्यों आस लगा रखी है तुमने नौकरी की सरकार से।  ये तो तेरी मेहनत का फल है की तू पढ़ा-लिखा इंसान बन गया। जबकि ये तो चाहती नहीं है हमारे देश की सरकारे। इसलिए देश के युवाओं को दूसरी राह दिखा रहे है।।  स्वयं तुझे अब हल खोजना पड़ेगा और गाँवों की बंजर पड़ी भूमि को।  आबाद इसे अपनी मेहनत लगन से  तुझे अपना लक्ष्य बनाना पड़ेगा। और स्वयं के रोजगार का बीज  हल चलाकर बौना पड़ेगा। और खुशाली की हरी फसल चारों दिशाओं में लहराना पड़ेगा।।  जरा धैर्य से तू सोच की  किस भारत में जन्म लिया है।  जहाँ के कण कण में  सच में भगवान बसते है।  ऐसी पवित्र भूमि पर तुझे  हल चालने को मिल रहा। और मानो तुम्हें इस पर  बहुत गर्व हो रहा होगा।।  स्वयं बनो देश के युवाओं  शासक और प्रशासक तुम।  मत देखो औरो की तरफ दया की आस लगाकर।  खुद बनो तुम एक योध्दा  अपनी मेहनत के बल से।  और खुशाली गाँवों से लेकर शहरो तक में लाकर दिखा दो।।  जय जिनेंद्

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

समय..... रचना देखें...... पुरानी चिरानी के भाव लदेअबु पल्लव रोज़ नवीन जु आयो।। वस्त्र जो गरम गये अबु कोननु दिनमणि रोब जमाने जु आयो।। हरियाली उठी अबु फसलिनु केरि रंग पिअराई सुहानो जु आयो।। चंचल बाल कुँवार कबो कोई श्वेतनु केशु रँगाने जु आयो।।1।। थोडी़ मा थोरी सी शीतु बची अरू चित्तनु चैत समाने लग्यो है।। पाती गिरी बिच डारनु तै अब रूचिकर पल्लव आने लग्यो है।। शीतल मंद बयारि बहै अबु नीम मा फूलन आने लग्यो है।। चंचल माई के दिन नवरातर आने को ठाढ़े सुहाने लग्यो है।।2।। साफ सफाई चली सबु मन्दिर लागै दिनानु हैं माई के आयो।। वोट जे खोट वो मारि के चोट अबु सरकारू संदेशनु आयो।। पंडनु रोलीऔ चावल साथेनु याद पितरपख लाने जु आयो।। भाखत चंचल रे सखियानु लगै नवरातर माई जु आयो।।3।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल, सुलतानपुर, यू.पी.।। , सुलतानपुर, यू.पी.।।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

लोकगीत     *सवँरिया भुलाइ गइलैं* गाईं हम कइसे अब कजरिया, सवँरिया भुलाइ गइलैं सखिया।। जाइ परदेसवा सुधियो ना लिहलैं, नेहिया-सनेहिया के पूरा बिसरौलैं। भेजे नाहीं कउनौ खबरिया।।सवँरिया भुलाइ....... चढ़तइ सवनवाँ बौरायल मौसमवाँ, करै पूरी देहिया तोरायल बेईमनवाँ। सतावै रात बहुतै अन्हरिया।।सवँरिया भुलाइ........ चमकै बिजुरिया त चिहुँकै जियरवा, बहुतै सतावै ई मौसमी बोखरवा। लगावै आगि बिरह-चिनगरिया।।सवँरिया भुलाइ........ रात-दिन रहिया निहार थके नैना, नाहीं सुख कउनो न मिले अब चैना। सून- सून लागै मोरि अटरिया।।सवँरिया भुलाइ.......... रेलिया-मोटरिया कै सुनि-सुनि सिटिया, आवे नाहीं हमरा के रतिया में निंदिया। काटि खाय फूल कै सेजरिया।।सवँरिया भुलाइ.......... तोहसे कहीला सुना हे भइया बदरा, दे दा सनेस मोर पिया भइलें बहिरा। बैठि जोहीं अबहीं ले दुवरिया।।          सवँरिया भुलाइ गइलैं सखिया।।                  © डॉ0हरि नाथ मिश्र                      9919446372

मार्कण्डेय त्रिपाठी

एक पिता की इच्छा मैं बूढ़ा हो गया हूं अब , मुझे तुम छोड़ मत जाना । व्यथित, बेचैन उर रहता , कभी मुझको न ठुकराना ।। न कहना आ रही दुर्गंध , गंदा हो गया हूं अब । गीला बिस्तर मैं कर देता, नियति का खेल है यह सब ।। चलाया है तुम्हें उंगली पकड़कर, भूल मत जाना । नहीं अब शक्ति पांवों में , उपेक्षित कर न मुस्काना ।। कटोरी और चम्मच गिर पड़े, तो ध्यान मत देना । यह काया हो गई जर्जर , मेरा बकबक भी सुन लेना ।। न रखना अलग कमरे में , भला कैसे पुकारूंगा । दवा, पानी ज़रूरी है , कैसे खुद को संभालूंगा  ।। मुझे मत डांटना, मुझसे कोई ग़लती भी हो जाए । कभी बहरा न तुम कहना , समझ में कुछ न यदि आए ।। अकेलापन मुझे खलता , कभी तुम पास भी आना । करूं यदि याद बुढ़िया को , तो हिम्मत देकर सहलाना ।। जब अंतिम वक्त हो मेरा , तो लेना हाथ मुट्ठी में । मैं निर्भय होकर जाऊंगा , रखो तुम याद घुट्टी में ।। मैं ईश्वर से कहूंगा , नित तेरा कल्याण हो बेटा । अमंगल पास ना आए , कहूं क्या और सुन बेटा ।। पिता की चाह यह अंतिम , कभी ना मुझको बिसराना । मेरा आशीष है तुमको , गीला,शिकवा बिसर जाना ।। मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

सीमा मिश्रा बिन्दकी

मैया एक सहारा तुम  जीवन की इस मरुभूमि में,  शीतल जल की धारा तुम। डोल रही मानव की नैया, मैया एक सहारा तुम।।  अहंकार के वशीभूत हो, भटक गया पथ राही ही, अन्धकार से घिरा चतुर्दिक, दीपों का हमराही ही। माया के प्रवाह में डूबा, मैया एक किनारा तुम। जीवन की इस मरुभूमि में,  शीतल जल की धारा तुम।  स्वारथ की चादर में लिपटे, अपने और पराए सब, तृष्णा के फंदे में उलझे, नेत्रहीन बौराये सब। मावस की काली रातों में, चमचम एक सितारा तुम। जीवन की इस मरुभूमि में,  शीतल जल की धारा तुम।  प्रगति शिखर से लौटा मानव, उसी डाल को काट रहा, साँसें जिससे लेकर जीता, विष उसको ही बाँट रहा। कपटी इस कर्कष नगरी में, नेहिल गीत हमारा तुम। जीवन की इस मरुभूमि में,  शीतल जल की धारा तुम। सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

माँ का भजन माँ का भजन कर माँ का भजन कर। माँ का चरण धर माँ का रटन कर।। माता रानी सबसे न्यारी। सारे जग में मोहक प्यारी।। माँ का नियमित पूजन करना। माँ की शरण सदा नीत गहना।। माँ का चरण धर रहना पकड़ कर। माँ का भजन कर माँ का जतन कर।। माँ में सभी देव रहते हैं। हो प्रसन्न सब दुख हरते हैं।। नौ रूपों में मात विराजत। नौ रातर में जगत सजावत।। माँ का भजन कर माँ का स्मरण कर। माँ संग रहना माँ में रमण कर।। सदा शैलजा अति गंभीरा। ब्रह्मचारिणी अतुलित वीरा।। उत्तम चन्द्रघण्ट कुष्मांडा। माता -स्कंद सहज ब्रह्माण्डा।। माँ का भजन कर माँ का भजन कर। माँ का चरण धर माँ का रटन कर।। षष्ठ रूप माँ  प्रिय कात्यायिनि। कालरात्रि सप्तम अविनाशिनि।। गौरी महा विश्व कल्याणी। सिद्धिदात्रि माँ देत सु-वाणी।। माँ का भजन कर माँ का रटन कर। माँ चरणों को पकड़-पकड़ कर।। काली महा महा लक्ष्मी माँ। महा सरस्वति त्रिगुणमयी माँ।। जो माता का पूजन करता। माँ का कृपा पात्र वह बनता।। माँ का भजन कर माँ का भजन कर। शीश झुकाकर माँ का चरण धर।। रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801 स्वर्णमुखी प्रीति रंग अद्भुत चमक, बहुत मनोहर भाव। प्रीति पेय मोहक

छत्र छाजेड़ फक्कड़

क्यों राते जल्दी ढलती है छत्र छाजेड़ “फक्कड़” सारे दिन अवसाद को ढोया जीवन के अनगिन झमेले रातें ही तो अपनी है जहाँ पूरी शान्ति मिलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है एक आस लिए इंतज़ार करूँ शशि संग पिय का दीदार करूँ मिलन के क्षण आये तो पिया सांसें डरती भी,मचलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है मद छलकाये उजली चाँदनी ज्वार चढे चुप मन मंदाकिनी भुजपाश बढ़ाये ताप सतत देह पिया मेरी जलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है पलकों की छुअन में रजनी रीती कैसे कहूँ मन पर क्या बीती बातों में वक़्त बीत गया लाज लगे मन कहे क्या करती है क्यों रातें जल्दी ढलती है कितनी भरी जाने मन में पीर बक दे बैरी सब नयनन का नीर पीव मिलन की अधूरी प्यास धीर धरूँ कैसे जां निकलती है क्यों राते जल्दी ढलती है पटल के गुणवंतों को सविनय नमन संग

विजय कल्याणी तिवारी

//  माँ -- 7  // -------------------------- मात तुम्हारे चरण में  कटे शेष दिन रैन। तत्क्षण जीवन से विदा  दरस न पाए नैन।। उस जीवन का अर्थ क्या  जो तुझसे है हीन। सब कुछ पाकर वह मनुज  जग जीवन हो दीन।। माँ करुंणा के अंश से  भर झोली संसार। धीरे - धीरे धर्म का  होने लगे प्रसार।। घटे ताप संताप जग  निखरे पुण्य प्रकाश। तेरी सत्ता हो अटल  भाव रहे मन दास।। प्रेम प्रीत के वृक्ष में  खिले सुवासित फूल। नेह स्नेह बढ़ता रहे  जीवन के अनुकूल।। विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग. // माँ -- 6 // ---------------------- दुख दारिद जग बढ़ रहा विघटन में है प्रीत  ऐसे में मन मोहते माता तेरे गीत ।। अंतस के मृत भाव को सहज जगाती मात निज भक्तों पर नित करें नेह मयी बरसात।। तेरे चौखट से कोइ गया न खाली हाथ हाथ पकड़ कर ले गई सबको अपने साथ।। विपदा में हम सब पड़े माता विपति निवार सहज सुखों का भान हो बदल मनुज व्यवहार।। गुंजित गीत हृदय रहे और चरण में ध्यान जनम जनम सेवक रहूँ इसका हो अभिमान।। विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *काली* ---------------------- काली दिवस सप्तम सरस  , नौरात्रि नव शुभता सुजस । रक्षा करें माता सदा  , प्रति चैत्र मासे  प्रतिपदा ।। दानव दलन को तारती , माँ अष्टभुज संहारती। महिषा असुर मर्दन करीं, माँ रक्त सारा मुख वरीं ।। माँ मुण्डमाला गल धरे , तन श्याम शोभा माँ वरे। अनुपम सुहानी भव्यता , माँ जागरण शुभ सभ्यता ।। नौ देवियों में दिव्यता , माँ कालिका सी नव्यता । लाली अधर पर शोभती , शाश्वत प्रभा मन मोहती ।। माँ अर्ध रूपी शिव वरद , हैं शक्ति रूपा माँ सुखद। कष्टों दुखों की नाशिनी , दुर्गा परम सुख दायिनी।। पूजन करो वंदन करो , माँ का मनन चिंतन करो। जय - जय महा हे कालिका , करतीं सुखद मधु तालिका।। * मधु शंखधर 'स्वतंत्र' * *प्रयागराज* *08/04/2022* *मधुमालती छंद* *कात्यायनी* ------------------------- कात्यायनी माँ जय करूँ, वंदन सतत माता वरूँ। नव रूप षष्ठम धारतीं, संकट सभी माँ टारतीं।। षष्ठम् दिवस कात्यायनी , शोभा शुभग वरदायिनी। बसतीं नवल शुचि रागिनी, माँ रूप शुचि कामायिनी ।। कात्यायनी माता शुभम , शुभ ज्योति जलती है परम। ऋषि श्रेष्ठ कात्यायन सुता, नवरूप शाश्वत पन पिता।।  फल बल

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 08/04/2022                ------ टूटे ताले ----- जो भी करना था कर डाले । कठिन परीक्षा दी जीवन की , खुशियाँ बाँट रहे अब छाले ।। पिंजर टूटा उड़े परिंदे , गगन बुलाता सैर कराने । मिला खजाना प्रीत मीत का , जंग लगे वह टूटे ताले  ।। विकृत मनस का रूप निखर , पावनता नित पोषित होता ।  कोना कोना मन मन्दिर का , दूर हो रहे सारे जाले ।। अद्भुत प्यास जगी है प्यारे , मिलन विरह के चक्रव्यूह से । भाव विवेकी आगे बढ़कर , धुले सभी तन मन के काले ।। मूल गंध आकर्षित करती , कदम बढ़े अब मंजिल पाने । तूफानों में कश्ती थामे , मिला मुझे पिय बन रखवाले ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी " *                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! प्रीत पदावली ---- 07/04/2022                ------ दीवाना ----- अब तक दीवाना बना रहा ।  कुछ नासमझी थी पता चला , क्यों मैं अंजाना बना रहा ।। मोह निशा का अंत हुआ अब , खुद से बेगाना बना रहा । संसारी भावों में लिपटा , अब तक मस्ताना बना रहा ।। उसको पाना फिर भी खोना , यूँ ही पछताना बना रहा । जी लेने

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

स्वर्णमुखी जो करता है नंगा नर्तन। मधु भावों से प्यार नहीं है। मौलिक शिष्टाचार नहीं है। उसे न भाता प्रभु का कीर्तन। केवल दोष दिखाई देता। छिद्रान्वेषण करता रहता। कभी न गुण की पूजा करता। श्याम रंग को कहता श्वेता। ललित कला से प्रीति नहीं है। मधुर भावना मार गयी है। शुभ्र कामना हार गयी है। शिव दर्शन की नीति नहीं है। देख न पाता जो उन्नति है। सरेआम उसकी अवनति है।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

विजय प्रताप शाही

शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है, शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है, शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है,  आदि तुम्हीं से   अंत तुम्हीं से,  तुमसे  शून्य  अनन्त  तुम्हीं से,  उद्भव  का   आधार  तुम्हीं से,  सकल सृष्टि   संसार  तुम्हीं से,  तुमसे ही   दिन रात  जगत में,  और   तुम्हीं से  सुबह शाम है,  शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है, शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है ।। विजय प्रताप शाही  गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

संजय जैन बीना

*ख्यालों की रानी* विधा : कविता रखा कदम जब अपना  तुमने मेरे शहर में।  दिलकी धड़कने मेरी बढ़ने लगी तेजी से।  लगा तब कोई अपना आज आ गया है दिलमें।  जो नया आलाप छेड़कर सजा रहा है मोहब्बत को।।  कदम रखते ही तुमने खिला दिया मेरे दिलको।  जहाँ था वर्षो से अंधेरा वहाँ उजाला कर दिया।  तन्हा जीने वाला भी मोहब्बत को लालचा उठा।  और तुम्हें अपनी जिंदगी का  हमसफर बनाने को मचल उठा।।  बहुत कुछ है तुम में  जो तुम्हें खुद पता नहीं।  हो तुम दिलों की धड़कन शायद ये भी तुम्हें पता नहीं।  हो इतनी सुंदर और चंचल की तरसते है तुझे देखने को।  कुछ तो बिना देखे ही घायल है मेरे शहर के कितने लोग।।  बड़े अजबी किस्से है  तेरी मोहब्बत के मेहबूब।  न देखा था न जाना था बस सपनो में आना-जाना था।  एक भोला सा मासूम चेहरा जो ख्यालों में दिखता था।  और जिसे हकीकत में पाना  बहुत ही मुश्किल था।।  पर कभी कभी सपने भी हमने सच होते देखे है।  औरो की क्या बात करे हम तो खुद इसे साक्षी है।  जो अपने ख्यालों की  रानी के साथ जी रहे।  और मोहब्बत का पैग़ाम  अपनी लेखनी से दे रहे है।।  जय जिनेंद्र संजय जैन बीना मुंबई 05/04/2022

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 05/04/2022                ------ नयी दुनिया ----- मैं दुनिया नयी बनाऊँगा ।  मेरे प्रयास अब भी हैं जारी , बन प्रेम पूर्ण दिखलाऊँगा ।। असफलताओं से सीखा अब तक , गलती नहीं दोहराऊँगा । जहाँ कहीं भी भूल हुई मुझसे , उनको फिर खूब सजाऊँगा ।। मुक्ति पथिक बन स्वयंप्रभा लेकर , सोया  वह भाग्य जगाऊँगा । समय सफल सुभदा कर्मों से ही , प्रेमिल नित पाठ पढ़ाऊँगा ।। शस्त्र शास्त्र दिग्भ्रमित किये मन को , इन सबको दफ्न कराऊँगा । नया धर्म जो प्रेम भरा हो जग में , प्रतिपादित वह  कर जाऊँगा ।। जहाँ नित्य आनंद मगन हो ,  जीवन के शुभ पथ लाऊँगा । सब वैमनस्यता शमन कराकर , करुणांकुर हिय तल लाऊँगा ।।              ---- रामनाथ साहू ननकी                       मुरलीडीह ( छ. ग. )

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*नववर्ष*(दोहे) स्वागत है नववर्ष का,खुला हर्ष का द्वार। नवल चेतना से मिले,दिव्य ज्ञान - भंडार।। बने यही नववर्ष ही,जग में प्रगति-प्रतीक। कोरोना के रोग की,औषधि मिले सटीक।। कला-ज्ञान-साहित्य का,होगा सतत विकास। विमल-शुद्ध नभ-वायु का,बने जगत आवास।। सुख-सुविधा-सम्पन्न कृषि,होंगे तुष्ट किसान। भारत अपना  देश  ही , होगा  श्रेष्ठ - महान ।। सरित-प्रपात-तड़ाग सब,देंगे निर्मल नीर। निर्मल पर्यावरण से,जाती जन की पीर।। देगा यह नववर्ष भी,जन-जन को संदेश। मानवता  ही  धर्म  है, जानें  रंक-नरेश ।। लोकतंत्र के मूल्य को,समझेंगे सब लोग। घृणा-भाव को त्याग कर,लेंगे सुर-सुख-भोग।।                © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                    9919446372

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

प्यार निभाना नहीं सरल है (स्वर्णमुखी) नहीं जानते प्यार निभाना। फिर क्यों इसे रटा करते हैं? बहक-बहक बोला करते हैं। नहीं जानते इसे सजाना। प्यार पालना नहीं सरल है। आती रहती हैं वाधाएँ। इस सुगंध में भी विपदाएँ। यह अमृत भी और गरल है। है बहार मधु सुखद सरोवर। इसे देख जग सह नहिं पाता। अपना केवल रोष जताता। प्यार नीर अरु जलज मनोहर। जिसे प्यार करने आता है। वह दैवी सुख नित पाता है।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

मार्कण्डेय त्रिपाठी

राखो मेरी लाज प्रभुजी राखो मेरी लाज । बीच भंवर में फंसी है नैया , बुद्धि भ्रमित है आज ।। प्रभुजी कब से तेरे द्वार खड़ा हूं , तव दर्शन के हेतु अड़ा हूं । अब तो कृपा करो हे प्रभुवर, पूर्ण करो मम् काज ।। प्रभुजी बहुत कठिन यह माया बंधन , आहत मन करता है क्रंदन । तुम तो सब कुछ जान रहे हो, गिरी समय की गाज ।। प्रभुजी कोई नहीं पूछता है अब , बंद आंख से देख रहे सब । तुम तो समदर्शी कहलाते , हे जग के सरताज ।। प्रभुजी तुमने अगणित पतित उबारे , भक्त खड़ा है तेरे द्वारे । मेरे दुख भी दूर करो प्रभु , डूब न जाए जहाज़ ।। प्रभुजी पूजा पाठ मुझे ना भावे , मंत्र जाप ना मुझे सुहावे । व्यथित हृदय आकुल है मेरा, जान रहे सब राज़ ।। प्रभुजी तुम ही हो बस मात्र सहारा , दीनबंधु ,जग पालनहारा । भटक रहा है भक्त तुम्हारा , देता तुम्हें आवाज ।। प्रभुजी मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

नूतन लाल साहू

क्यों रूठ गये है प्रभु जी क्या मैं बताऊं,क्या मैं सुनाऊं नैनो में आंसू उठे न कदम है दुःख ऐसा नही है कोई,जिसे मैं मन में छिपाऊं क्या तुम परीक्षा ले रहे हो हमारी क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे। पानी पीकर प्यास बुझाऊं नैनन को कैसे समझाऊं तेरे बिन आवे न मुझकों निंदिया बरस रही है नैनों से झड़ियां दीनो के नाथ क्यों निष्ठुर बना है क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे। क्या मुझसे दोष हुआ है हुआ है क्या गुनाह मुझसे संकट में है आज वो धरती जिस पर तूने जन्म लिया था। देख रहे हो,मेरे दुःखडे सारे कब दर्शन दोगे, छुटै अब तो दम है क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे। मैं ढूंढ रहा हूं तुमकों प्रभु जी कुंजन कुंजन जमुना तट पर मैं तो अर्जी कर सकता हूं आगे मर्जी है तेरी बीच मंझधार में,मैं पड़ा हूं तेरी आशा लिए,मैं खड़ा हूं रास्ता ना सुझें, मुझको प्रभु जी कहां जाएं मुसीबत के मारे क्या मैं बताऊं, क्या मैं सुनाऊं क्यों रूठ गये है प्रभु जी मेरे। नूतन लाल साहू

अनूप दीक्षित राही

रोज-रोज मेरा हाल पूछा न करो। ये मुश्किल सा सवाल पूछा न करो।। * हम कैसे जी रहे थे हम खुद ही नहीं जानते। ये अपनों का ही है कमाल पूछा न करो।। * इक गफलत सी बनी रही रिश्तों के दरम्यां। निभाये गये थे ये बा-कमाल पूछा  न करो।। * सुबह शुरू हो शाम को खत्म हो जाती है। कुछ अजब थे ज़िन्दगी के कदम-ताल पूछा न करो।। * जमाने ने उठाई हर कदम पर अंगुलियां। जो कुछ भी था फिलहाल पूछा न करो।। * आ गयी थी ज़िन्दगी की वो सुबह आखिरी। कैसा गुजरा हुआ था साल पूछा न करो।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

विजय कल्याणी तिवारी

// माँ -- 4 // --------------------- तेरी छवि नयनन बसे और हृदय में प्रीत अर्चन वंदन नित करूं  गाउं तेरे गीत।। मेरे स्वर मे तू बसे बहे अमिय रसधार जनम जनम मुझ पर रहे माता का उपकार। दुख हर लूं मैं दीन के पोछूं अँखियन नीर दुष्टों के छाती चले  सदा समर शमशीर।। न्याय और अन्याय का समझे भेद जहान कटुक भाव से मुक्त हो इस जग में इंसान।। अन्न हीन जन नहि रहें  रहे क्षुधा नहि देह। सब घटता हो तो घटे  अंतस घटे न नेह।। विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

ऊषा जैन कोलकता

212  212  212  212 हम तुम्हें श्याम निस दिन बुलाते रहे,  हम सदा शीश चरणन  झुकाते रहे।  तुम हृदय में समाए रहे रात दिन,  मन सिहांसन तुम्ही से सजाते रहे।  हम तुम्हें श्याम निस दिन बुलाते रहे,  हम सदा  शीश चरणन झुकाते रहे।  नैन तिरछे दिखे रोज जादू करे,  चढ़ गया खूब  जादू बचाते रहे।  बांसुरी जब बजे चैन ही छीन ले,  पाँव पायल बजे वो नचाते रहे।  हम तुम्हें श्याम निस दिन बुलाते रहे,  हम सदा शीश चरणन झुकाते रहे।  केश है घुंघराले  उड़े जा रहे ,  ये  नजर ना हटे हम हटाते रहे।  आज सुन लो अरज फिर कहे ना कभी,  संग  रहना हमारे  मनाते रहे। हम तुम्हें शाम निस दिन बुलाते रहे,  हम सदा शीश चरणन झुकाते रहे। ।     🙏🌹सुप्रभात जी🌹🙏     ऊषा जैन कोलकता

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नव संवत्सर (स्वागत) आ गया वर्ष नूतन सभी हों मगन, सूर्य लेकर नई रौशनी आ गया। अभी अलविदा बीती रजनी को कह- हर दिशा में अनूठा नशा छा गया।। बाग में जो कली अधखिली सी रही, खिल गई देख मस्ती नए  वर्ष  की। हुआ मन मगन सुन भ्रमर गीत-गुंजन- हो गई  दिव्य  वर्षा   परम्  हर्ष  की।। खेत की सब फसल भी सुनहरी दिखें, रूप  जैसे  अवनि  का  सँवारा  लगे। मस्त खशबू  फ़िज़ा को सुगंधित करे- भाव  मन  में  सुकोमल- दुलारा  जगे।। सतत धारा सरिता की कल-कल बहे, नीर  निर्मल  सरोवर  कमल-दल सजे।  कोपलों से गए सज सभी वन-विटप- गीत-संगीत  खग-कुल  निरंतर  बजे।। जिस तरफ़ देखिए नव सृजन ही सृजन, हो  वनों - उपवनों - पर्वतों  पे  सभी। प्रकृति का सुहाना सफ़र दिव्यतम यह- रहे  जग  में  क़ायम, है  जैसा  अभी।।             © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                 9919446372

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।* *।।जिंदगी किसीके लिये अभिशाप* *किसी के लिए   वरदान  होती है।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 यह छोटी सी  जिंदगी  पर इतना तूफान क्यों है। यहाँ सब कुछ  सब    मिले इतना अरमान क्यों है।। चैन सुकून प्यार   महोब्बत को दो तुम पहला दर्जा। नफरतों का दिल में     भरा यह   सामान    क्यों है।। 2 झूठ के आगे सच    का  यह अपमान     क्यों    है। सच्ची सेवा पर  लगा     यह खूब लगान   क्यों है।। मिलजुल कर  ही   रहो  सब लोग      दुनिया    में। इस हंसी खुशी के  उलट   ये जारी फरमान क्यों है।। 3 प्रेम की बोली के बदले घृणा का सम्मान   क्यों है। पल पल बदले फितरत ऐसा इंसान    क्यों     है।। किसी के साथ करके    देखो  तुमअच्छा हीअच्छा। आएगा समझ में कि संगसाथ का  मान    क्यों है।। 4 जान लो हर समस्या  साथ   में लिए समाधान होती है। मत बनाओ मुश्किल इसे    कि जिंदगी आसान होती है।। अच्छा सोचो अच्छा  करो मिल जाएगा परिणाम अच्छा। तभी किसी के लिए   अभिशाप किसीको वरदान होती है।। *रचयिता।। एस के कपूर"श्री हंस *" *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

नूतन लाल साहू

दाता एक राम माया मोह में फंसा है बांवरे मकड़ी जैसा है जाल जिस घर में हो प्रभु श्री राम जी की पूजा वह घर बैकुंठ धाम। सौप दे नैया प्रभु श्री राम जी को वो ही भवसागर पार लगा देंगे दाता एक राम पुजारी सारी दुनिया। पापी से पापी को भी करते नही इंकार है जायेगा उस पार तू कैसे हर तरफ अंधकार है। जीवन नैया सौप प्रभु जी को शरणागत की रक्षा करते है,हर पल दाता एक राम पुजारी सारी दुनिया। त्रेता युग में राम बना द्वापर में घनश्याम बना बड़े भाग्य हम भक्तों के साक्षात प्रभु जी का दर्शन हुआ। मेरा ना आसरा है कोई मेरा सहारा नही है कोई दाता एक राम पुजारी सारी दुनिया। नूतन लाल साहू

विजय कल्याणी तिवारी

// माँ -- 3 // ------------------- मेरे मन के आँगना  पड़े आज तव पाँव फिर कैसे डूबे कहो बीच भँवर में नाव।। चाहे पार उतार दे  कर दे मुक्ति प्रदान तू जिस जीवन में रहे वहां शून्य व्यवधान।। मैं मूरख अज्ञान में  फंसा रहा दिन रैन दरस आस की है लिए आकुल मेरे नैन।। निज मन की यह मूढ़ता भटकाए नित पाथ ठोकर खा आहत हुआ  पकड़ मात अब हाथ।। तनिक तेरे स्पर्श से बदला जीवन मूल प्रात शुभ्र किरणें लिए खिले अनेको फूल।। विजय कल्याणी तिवारी , बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 04/04/2022                ------ विषकंद ----- मन महामलिन मतिमंद हुआ । मद मतंग मदगर्वित मदकल , विषयी विषाणु विषकंद हुआ ।। अति अशिष्ट अय अयन अँधौटी , फूहड़ फरीक फरफंद हुआ । ताम तामसिक तनय तरंगित भट्ट भूमिशायी व्यंद हुआ ।। व्यर्थ व्यंग्य के वाण चलाकर , छरछराहटी छल छंद हुआ । पछतावा प्रत्येक पगों पर , थिरक थिरक महती स्पंद हुआ ।। चिर चंचलता चरम चपलता , गर्वित गवेषण गयंद हुआ । अपनी निर्लज्जता जानकर निज कारागृह में बंद हुआ ।। क्षमाशील से क्षमा माँग ले , मूरखमति तू आसंद हुआ । ननकी न्याय नीति पथ धर ले , तज जिस पर अति बुलंद हुआ ।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मार्कण्डेय त्रिपाठी

जैसी अर्जी,वैसी मर्जी जैसी अर्जी तुम दोगे प्रभू को सखे, वैसी ही मर्ज़ी प्रभु की सदा पाओगे । दृष्टि जैसी होगी, वृष्टि वैसी होगी, निज समर्पण से ही प्रभु को तुम भाओगे ।। शिष्ट मन से सदा, राम का नाम लो, होगे विशिष्ट प्रभु की नजर में सदा । बन अशिष्ट, आचरण मत करो तुम कभी , क्लिष्ट कुछ भी नहीं, प्रभु को है सब पता । स्वच्छ मन से किया ना प्रभु जाप तो , लौटकर इस भंवर में तुम फिर आओगे ।। जैसी अर्जी तुम दोगे प्रभू को सखे मन, वचन , कर्म में हो समर्पण सदा , तुम दिखावा न करना, कभी जान लो । कुछ नहीं चाहिए, मात्र शुचि भाव हो, भूखे हैं भाव के प्रभु, कहा मान लो । संग संतों का कर,पाठ ग्रंथों का कर , इस संसार सागर से तर जाओगे ।। जैसी अर्जी तुम दोगे प्रभू को सखे चाहे जिस रूप में तुम प्रभू को भजो , एक ही ब्रह्म के, वे विविध नाम हैं । मेरे सरकार सचमुच दयालू बहुत , कृष्ण वे ही हैं सच और वे ही राम हैं । भक्ति सरिता में तुम भी नहा लो सखे, उर से प्रभु के तरानें भी तुम गाओगे ।। जैसी अर्जी तुम दोगे प्रभू को सखे मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

मधु शंखधर स्वतंत्र

*माँ चंद्रघंटा* 🕉️🙏 ----------------------- माँ चंद्र घंटा आ गयी , ध्वनि घोष जय जय की भयी। आयी तृतीया प्रतिपदा , आनंद सूचक माँ सदा ।। जो चैत्र मासिक व्रत करें, विपदा सभी माता हरें । सौभाग्यदायी  माँ कृपा , शतनाम माँ का जो जपा ।। करतीं जगत उद्धार हैं , माँ सिंह पर असवार हैं। कर कमल सोहे शांतिदा , चल शंख ध्वनि करतीं सदा ।। संसार का सब दुख हरें , पूजन मनन जो भी करें। कर दुष्ट का संहार माँ , बेड़ा लगाएँ पार माँ ।। ध्वनि नाद से माँ तारतीं , संकट सभी माँ टाँरतीं । अनुपम सहज शुभ सभ्यता , बसतीं नयन यह भव्यता ।। माँ धूप दीपक आरती , घंटा सुखद झंकारती । जय जय करें उद्घोष जब , मधु चंद्रघंटा वास तब ।। * मधु शंखधर 'स्वतंत्र' * *प्रयागराज* 04/04/2022

संजय जैन बीना

*माँ तेरे रूप अनेक* विधा : कविता मन मंदिर में आन विराजो  मेंहर वाली मातारानी।  दर्शन की अभिलाषा लेकर आ गये हम मेंहर में।  तुमको अपने दर्शन देने  बुला लो हमें मंदिर में।  हम तो तेरे बच्चे है  काहे घूमा रही हो दुनिया में।।  कितने वर्षो से मातारानी तुम सपने में देख रही हो।  अपनी मन मोहक छवि की  आकृति हमें दिखा रही हो।  पर साक्षात दर्शन को   चैत्र नवरात्रि में हमें बुलाएं हो।  और भक्तो को दर्शन देकर हमें धन्य बनाये हो।।  पग पग पर साथ दिया हे मातारानी तुमने।  जब जब फूली साँसे मेरी ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने में।  तब तब साथ आई गई माँ मेरी तुम बनकर। पल भरकर में बदल गई दर्शन पा कर किस्मत मेरी।।  धन्य हुआ मैं आज सही में माँ तेरे रूपों को देखकर।  नौ दिनों में क्या कुछ तुमने दिखा दिया इस दुनिया को।  अपने हर स्वरूप का भी तुमने विवरण दिया सबको।  और अत्याचारी पापीयों का किया विनाश हे माँ तुमने।।  आप सभी को चैत्र नवरात्रि की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना " मुंबई 04/04/2022

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

शक्ति अनंत परम ब्राह्मणी (स्वर्णमुखी) महा भवानी जग कल्याणी। नौ रूपों में सर्व तुम्हीं माँ। दिव्य महोत्सव पर्व तुम्हीं माँ। परम अनंत शक्ति ब्रह्माणी । तुम्हीं शारदा मैहरवाली। सदा वैष्णवी स्वर्गमुखी हो। मधुर छंद प्रिय स्वर्णमुखी हो। सुरभित छप्पन व्यंजन थाली। माहेश्वरि लक्ष्मी प्रिय काली। शैलसुता कुष्मांड आदि हो। चामुंडा ब्रह्मांडवादि हो। हे माँ!कर सब की रखवाली।। अमृत ज्ञान-भक्ति की धारा। बन रच माँ! मोहक संसारा।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801 स्वर्णमुखी माखनचोर बना जो जग में। कहलाया प्रिय कृष्ण कन्हैया। उस की होती सदा बधइया। चित का चोर हुआ जो जग में। प्रेम और सम्मान ह्रदय में। रख कर सब से बात किया कर। गलती का अहसास किया कर। रखना सारे जग को हिय में। हँस कर बड़े प्रेम से मिलना। यही तरीका सर्वोत्तम है। बैठा उसमें पुरुषोत्तम है। हृदय खोल कर सब से जुड़ना। सहज प्रीति का गंग बहाओ। स्वयं नहाओ अरु नहलाओ।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

अक्षय लाल भारद्वाज

मां को नमन🙏🏿 कुंडलिया छंद------नवरात्रि नवरात्रि के दिन निराले,मां की जय जयकार मां की कृपा बनी रहे, सदा करे उपकार सदा करे उपकार, कष्ट निवारणी माता जो आए मां के शरण,सुख शांति है पाता मां करके तेरी भजन ,बने ज्ञानी शास्त्री सब पर कृपा रखना मां, हे माता नवरात्रि अक्षय लाल भारद्वाज मंडी गोविंदगढ़ पंजाब

आलोक मिश्र मुकुन्द

212        212         212        212 चाँदनी   रात   में  इश्क  कर  इश्क  कर। खूब  जज्बात  में  इश्क  कर  इश्क  कर। बन  गया  है  नियम प्रेम- परिणय का भी, अब  किसी जात में इश्क कर इश्क कर। छा   गए   मेघ   आकर   यहाँ  प्रीति  के, भीग  बरसात  में  इश्क  कर  इश्क कर। कह  दिया  जो  निभाना  उसी को  सदा, एक  रह  बात  में  इश्क़  कर इश्क कर। आग  है  तू  तो  पानी   उसे  भी  समझ, रह  के  औकात में इश्क कर इश्क कर। प्रीति   में  काश   कान्हा  तुझे  भी मिले, सोच  खैरात  में  इश्क  कर  इश्क  कर। ✒️ आलोक मिश्र मुकुन्द

विजय कल्याणी तिवारी

// माँ -- 2 // ------------------ माता तेरी गोद में  मिले अनत विश्राम तू ही धरणि धरा लगे तू ही चारो धाम।। कृपा करो जगदम्बिके बढ़ा बहुत मन त्रास जाने कब से नयन ने  देखा नही प्रभास।। केवल दुख संताप से भरा हुआ भव धार माता विनय विनम्र है मुझको पार उतार।। अंतस के सब पाप का दहन करो हे मात् आच्छादित नभ पुण्य से नही अपितु अर्थात।। आदि अंत तू ही जगत तू ही शक्ति स्वरूप तेरे मुख देखे लगे  खिली खिली ज्यों धूप।। विजय कल्याणी तिवारी , बिलासपुर छ.ग

प्रखर दिक्षित

*गीत* *पुष्प वाटिका* मनोहर जोड़ी री!सुखधाम।  तपसी भेष धरे ज्यों काम।। मेरे। मन की जानो भवानी, पूरण इच्छा करो स्वामिनी।  विंहसी मूरत माला खिसकी, वरदा वर दो हे महरानी।।        गौरा मैया यही चाह मन,              हों वैदेही वर ये घनश्याम।। *मनोहर जोड़ी री!......* कौन देश किसके सुत ज्याए, कहो प्रयोजन कैसे आए।  गौर बरन ये कौन लाल जी, बड़े भाग दर्शन हम पाए।।       तपसी बांके राजकुमार ,            बताओ ऐ जी आपन नाम।।  *मनोहर जोड़ी री!......* अवध नगरिया कोशलेश सुत, चुनने पुष्प वाटिका आए।  गौर बरन लछिमन लघु भ्राता, दृश्य मनोरम सुंदर भाए।।      विदेह नगर की वैदेही को,          मन भाए तपसी युव राम।। *मनोहर जोड़ी री!......* प्रखर दिक्षित

डॉ. अर्चना दुबे रीत

*छंद दोहा, कुण्डलिया* *नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं* जय माता दी🙏🙏 अष्टभुजी माँ अंबिका, शाकम्भरि शुभ नाम ।  रक्तदन्तिका कालिका, आरति सुबहो शाम ।। माता प्रथम शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी रूप। चन्द्रघण्टा त्रिरुपा,  कूष्माण्डा को पूज। कूष्माण्डा को पूज, जय स्कंद महरानी। धर कात्यायनी रुप, जयति जय मातु भवानी । 'रीत' कहे कर जोड़, कालरात्री से नाता । सिध्दिदात्रि हे मात, महागौरी जगमाता ।। * डॉ. अर्चना दुबे 'रीत '*✍️        *मुम्बई*

अजय आवारा

क्या हुआ बस एक रोड़ा ही तो है, उसका मुंह बस थोड़ा टेढ़ा ही तो है। चलें जाया करें पहनकर बाजार में, अचकन में एक पैबंद जोड़ा ही तो है। सुना था वो मासूम है थोड़ा दिल का, मिले तो जाना वो थोड़ा एड़ा ही तो है। राज महल ही बस मेरा मिट्टी का घर, शहर नहीं है, बस गांव खेड़ा ही तो है। कौन कहता है वो थाली भर खाते हैं, नाप लो कमर, मोटा थोड़ा ही तो है। जाने जमाना क्यों पागल कहता है, गर्मी है थोड़ी, ओढ़ा दुशाला ही तो है। नहीं सो पाओगे तुम आज की रात, बिस्तर में पत्थर का टुकड़ा ही तो है। अजय "आवारा"

निशा अतुल्य

नववर्ष मुक्तक 13/11 नव संवत्सर आ गया, बिखरा है आह्लाद । डाल- डाल पर पुष्प है , भोर निराला नाद । अमराई महकन लगी, कोयल करती गान । नववर्ष नवगान रहे, मधुर-मधुर संवाद । निशा"अतुल्य"

दिलीप कुमार पाठक सरस

*नवसंवतर मंगलमय हो*  गणपति को निज शीश झुकाती, मिली सुहानी भोर | आशाओं ने पंख पसारे, दृष्टि गगन की ओर || नये वर्ष की पावन बेला, स्वागत में श्रीमान | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा मनोहर, करती जय-जय गान || माँ की ममता की छाया में, मिलता हर्ष अपार | अष्ट सिद्धि नव निधि ने खोले, नए वर्ष के द्वार || रोग द्वेष भय शोक क्रोध सब, भागें कोसों दूर | धन वैभव सुख साधन सारे, मिलें सहज भरपूर || पल-पल गाती दिशा प्रगति की, नवल मंगलाचार | अम्बर देता आलिंगन को, बाहों का विस्तार | नवसंवतसर शुभ हो सबको, दें खुशियाँ उपहार | सहज भाव से सरस बधाई, कर लेना स्वीकार || पल-पल जिसका मैं अभिलाषी, मिले आपका प्यार | यही कामना है ईश्वर से, आप रहें खुशहाल | दीर्घ आयु हो स्वस्थ रहें नित, और बढ़े परिवार || 🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️ ~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस'

मधु शंखधर स्वतंत्र

हिन्दू नव वर्ष व नवरात्रि के पावन आगमन की अनंत शुभकामनाएं...... ---------------------- माँ शैलपुत्री  पूजिता , नौ रूप प्रथमा सेविता । सिंहों सवारी प्रिय परम , आराध्य शाश्वत शुचि वरम।। हो चैत्र मासे आगमन , नव वर्ष शोभित है नमन। हिन्दुत्व का वरदान है , शक्ति का नव सम्मान है।। नौ रूपता नव वर्ष है , यह ही नवल उत्कर्ष है । कुसुमित नवल नव पुष्प हैं, पल्लव नवोदित गुच्छ हैं ।। धन धान्य उपजाए कृषक, शोभा प्रकृति मधुरम झलक। कलरव करें पक्षी सुभग, नव भोर करते हैं विहग ।। गंधर्व का शुचि गान है, शुभ नेत्र खोले ज्ञान है । अब विष्गु जागृत हो रहे, शुभ वाक्य देवों ने कहे ।। आओ मनाएँ वर्ष नव , हिन्दुत्व का आमर्ष नव । नव चेतना उत्कर्ष नव, मधुमय मधुर मधु हर्ष नव।। * मधु शंखधर 'स्वतंत्र '* *प्रयागराज* *02/04/2021*

डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

*चैत्र प्रतिपदा क्यों पावन तिथि है* इसी तिथि को ही शुरू किए हैं रचना,  सृष्टिनिर्माता सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी। ये कितनी पावन पुण्य तिथि सनातन, हिन्दू धर्म संस्कृति की माने ब्रह्मा जी। चैत्रमास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि है,  विक्रम सं.2079अनल नाम संवत्सर। शक संवत1944 व युगाब्द5124 है, हिन्दू धर्म में नया वर्ष है नव संवत्सर। ऋतु बसंत बयार अयन उत्तरायण है, नक्षत्र रेवती  दिन शनिवार तदनुसार। आंग्ल दिनांक 2 अप्रैल 2022 तिथि, शुभ - मंगलमय हो सबको सपरिवार। विशेष वासंतिक नवरात्रारम्भ हुआ है, कलश स्थापना करके बाँधे बंदनवार। देवीमैया की पूजा अर्चना वंदना शुरू, माँ की कृपा बरसने का है ये त्यौहार। भारत में मान्य नव वर्ष संवत्सरों में है, प्रचलित संवत्सरों का है प्रथम दिवस। महाराज विक्रमादित्य द्वारा प्रारम्भ ये,  विक्रमी संवत का है यह प्रथम दिवस। चैत्र मास में यह शुभ पर्व पड़ने से ही, सब कहते इसे हैं ये शुभ चैत्र नवरात्र। ऋतु बसंत में ये शुभ पर्व पड़ने से ही, कुछ कहते इसको वासंतिक नवरात्र। धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक भी, महाभारत बाद हुआ था इसी दिवस। इसी दिन पैदा हुए हैं देश में संत एक, संत झूलेलाल

मार्कण्डेय त्रिपाठी

न्यूक्लियर फैमिली मेरे बंधू, न्यूक्लियर फैमिली का, अब जमाना है । न कोई साथ में रहता , पृथक् सबका ठिकाना है ।। मियां, बीवी और बच्चों तक ही, अब परिवार है सिमटा । वृद्धाश्रम में पड़े माता पिता, हैं आज बस चिमटा ।। हुए हैं दूर हमसे,देख लो , अब ख़ून के रिश्ते । कहूं क्या, जानते हैं सब , लगें सम्बन्ध अब सस्ते ।। बहन भाई, चाचा चाची , के रिश्ते नाम के हैं अब । मामा मामी,बुआ फूफा को, लगभग भूलते हैं सब ।। क्या होते मौसा और मौसी , नहीं है याद बच्चों को । बिखरते जा रहे रिश्ते , बताएं कैसे चच्चों को ।। दादा दादी,नाना नानी की, कोई बात ना करता । वे सिमटे हैं किताबों तक , कोई परवाह ना करता ।। गुरु और शिष्य के सम्बन्ध भी, ऐसे ही हैं प्यारे । नहीं पहचान आपस में , चला करती हैं तकरारें ।। थोड़ा रिश्ता बचा है आज , तो ससुराल का है बस । वहां भी स्वार्थ है छाया , कहीं पकड़े न कोई नस ।। बड़ी दारुण व्यथा है आज, हिन्दू कुल का क्या होगा । संयुक्त परिवार ख़तरे में , चलें ऐसे कि जस घोंघा ।। जमाना याद है हमको , कि जब हम साथ रहते थे । बहुत था प्रेम तब उर में , सुख, दुख साथ सहते थे ।। कहां अब कौन रहता है , पता हमको नही

संजय जैन बीना

*संवत 2079 दे आपको..* विधा : कविता करे न कोई गम अब जाते हुए 2078 संवत का।  जो बीता सो बीता अब गुजर गया साल।  सिखा गया जाते जाते लोगों के दिलमें प्रेमभाव।  नहीं आया विपत्ति में धनदौलत अबकी बार। भूला कर अपने सारे गम करे नई सोच के साथ शुरूआत।।  नया साल दे आपको, मन माफिक परिणाम। सभी ख्वाब पूरी हो, करते प्रार्थना ईश्वर से ।  सभी को रिद्धि दे,  सिद्धि दे, वंश में वृद्धि दे। ह्रदय में ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे। अभय वरदान दे, दुःखो को दूर कर। सुख भर पूर दे,  आशा को संपूर्ण कर। सज्जन जो हित दे,  कुटुंब में प्रीत दे । जग में जीत दे,  माया दे, साया दे । और निरोगी काया दे, मान-सम्मान दे। सुख समृद्धि और ज्ञान दे। शान्ति दे, शक्ति दे, और भक्ति भरपूर दें...। ऐसी में देता हूँ, शुभ कामनाएं दिलसे। रहे अमन और शांति अपने इस मुल्क में। हिल मिल कर रहे हमसब अपने भारत में।।   आप सभी को अग्रिम विक्रम संवत 2078 को भूलकर  नव संवत 2079 की और गुड़ी पड़वा की मंगल शुभकामनाएं, आप सभी को दिल से देता हूँ। जो आपको हर खुशी के साथ शक्ति शांति समृध्दी दे।।  जय जिनेन्द्र  संजय जैन "बीना" मुम्बई 02/04/2022

श्याम कुंवर भारती

कहानी जूही की महक  भाग * 6      लेखक *श्याम कुंवर भारती शुबह जब धीरज की छोटी बहन गुड़िया जूही को चाय लेकर उसके कमरे में गई और जूही को जगाना चाहा तो देखी जूही को तेज बुखार है।उसने जूही को उठाते हुए कहा लीजिए मैडम चाय पीजिए लेकिन आप को तो तेज बुखार है और आपने किसी को बताया भी नही। आप चाय पीजिए मैं मां को बुलाकर लाती हूं।जूही उठना चाही मगर उठ नही  सकी ।उसने धीरे से कहा तुम चाय टेबुल पर रख दो गुड़िया मैं पी लुंगी। गुड़िया चाय टेबल पर रखकर भागती हुई बाहर निकल गई।थोड़ी ही देर में  धीरज  और उसकी मां कमरे में भागते हुए आए ।धीरज की मां ने जूही का  सिर छूकर कहा अरे बेटी तुमको तो सच में बहुत तेज बुखार है।फिर उसने सहारा देकर जूही को उठाया और बैठाते हुए टेबल से चाय देते हुए बोली तुम चाय पियो बेटी थोड़ा आराम मिलेगा । धीरज थोड़ा चिंतित दिख रहा था वो अपनी मां को बता भी नही पा रहा था की जूही की बीमारी का कारण वो खुद ही है। उसने कहा मैडम आप चाय पीकर तैयार हो ले मां आपके साथ चलेगी मैं आपको डॉक्टर के यहां लेकर चलता हूं ।डॉक्टर के यहां से आपके आपके आवास पर चलना होगा।आपके ऑफिस को भी खबर करना होगा।आपके निवास

ऊषा जैन कोलकाता

212/ 212/ 212 /212 साधना मन यही श्याम मिलना मुूझे फूल बन पाँव में कृष्ण रहना  मुझे।  रोज़ देखा करूँ मै तुम्हे ख़्वाब में रूबरू भी कभी श्याम तकना मुझे।।  बांसुरी बज उठी मैं मगन हो गई पाँव घुंगरु पहन झूम नचना मुझे।।  मोहनी सुरतिया तो लुभाती बहुत खो रहे होश अब थाम रखना मुझे।।  रूप तेरा हृदय में बसा ही लिया उर्वशी श्याम का नाम जपना मुझे। ।  🙏🌹 *सुप्रभात जी* 🌹🙏     ऊषा जैन  कोलकाता

नूतन लाल साहू

जो बोओगे वही काटोगे धन दौलत से नही भक्ति से ही मुक्ति पाओगे तज विषयों को मन से भक्ति में रम जाओ। प्रभु जी की महिमा को चाहे जैसे भी गा लो जीवन है छोटी सी नैया प्रभु जी का नाम पतवार है प्रभु जी से ज्यादा,प्रभु जी के नाम में शक्ति की भरमार है। जिसने भी बैर किया है प्रभु जी से उनका विनाश हुआ है जग में जो बोओगे वही काटोगे। निर्मल मन से प्रभु जी को जिसने भी पुकारा है मनवांछित फल उसने पाया है द्रौपती की लाज राखी चीर बढ़ाकर प्रभु जी ने गणिका के अवगुण को पल भर में ही मिटाया है प्रभु जी ने। जो भी लगन लगाया सच्ची कभी उसकी नाव न अटकी इसमें कोई शक नही है हम कलयुग अवतारी है बड़े भाग्य हम भक्तों के मात्र नाम जपन से ही भवसागर पार होते है। स्वर्ग नरक है कल्पना करनी का फल,यही भुगतना पड़ता है जो बोओगे वही काटोगे। नूतन लाल साहू

संतोष श्रीवास्तव सम

धीरज का फल --------------------✍️ सहज हुआ रे मौसम, अब वह शीत नहीं है, अब न ही ठिठुरन है, गैरों की रीत नहीं है। फलाश के फूलों के, दिखे नजारे सारे हैं, पल्लवित पुष्पित हो, ये सजे किनारे हैं। मंगल गान हो रहे, जाग्रत प्राण हो रहे, नव रूप पाया सबने, कल्याण सबके हो रहे। यह नव वर्ष नव आशा, निश्चित जगायेगी जानों, नव संदेश से नव बगिया, निश्चित खिलायेगी मानों। तब तो मैं कहता हूँ, धीरज का फल था मीठा, कहाँ ठिठुरती थी वो बेला, कहाँ अब कुछ भी न झमेला। अब दासता की कहीं दिखती नहीं छबि है, अब न ही ठिठुरन वह, गैरों की रीत नहीं है। ------ संतोष श्रीवास्तव "सम " ----------कांकेर, छत्तीसगढ़ ----------------------------------

हरिकेश प्रजापति

कुंडलिया़ शुक्ल पक्ष तिथि प्रतिपदा, पावन चैत्र मास। हिंदू नूतन वर्ष की , यह होती शुरुआत।। यह होती शुरुआत, प्रकृति लगे नवेली। नव पल्लव,नव पुष्प, लिए नवरस अलबेली।। हरित छटा श्रृंगार ,नई दुल्हन की शक्ल। अभिनंदन,! नववर्ष, चैत्र प्रतिपदा शुक्ल।। हरिकेश प्रजापति        जनपद बस्ती

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

सजल जिसके दिल में प्यार भरा है। उसका दिल उन्नत गहरा है।। जिसके दिल में प्यार नहीं है। वह कठोर गूँगा-बहरा है।। कूट नीति जो रचता रहता। उसके इर्द-गिर्द पहरा है।। जिसको जीना कभी न आता। वही अक्ल का सड़ा-मरा है।। जो विद्या का घोर विरोधी। वह मरियल इंसान जरा है।। जिसे घृणा है मानवता से। वह सबके चित से उतरा है।। ईर्ष्या-द्वेष भरा है जिसमें। जानो उसको अधम नरा है।। जिसके दिल में प्रेम समंदर। वह अति मोहक दिव्य स्वरा है।। जो हिंसा का वृक्ष लगाता। समझो दाद-खाज-खसरा है।। सच्चाई को जो नकारता। नक्कारा वह खुद खतरा है।। जो सबको सम्मान दिलाता। वह सम्मानित शिव छतरा है।। जो सबका सहयोगी बनता। वह पीपल का शुचि पतरा है जिसके मन में देव भाव है। वही जगत का प्रिय भतरा है।। उकसावे में जो आ जाता। बनता वह बलि का बकरा है।। जो विचार का अति दरिद्र है। उसका उर पतला-सकरा है।। जिसकी शैली न्यायमार्गिनी। वह सबके दिल का कतरा है।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक -   भारतीय नव वर्ष  बसंत बहारों फागुनी रंग बयारों से पाकर यौवन,पूरा भारत झूम रहा है आज अवनि और अंबर प्रफुल्लित हो रहे, सभी देव सुमन वर्षा रहे आज मंद पवन के झोकों से चहुं ओर बह रही, सुरभि सुगंधित आज दशों दिशाएं पुलकित हैं, भारत की महिमा के गीत गा रहीं आज देख छटा भारत भूमि की , प्रकृति सृष्टि भी पुलक रही है आज सूर्य-शशि में होड़ लगी है, भारत माता की आरती कौन उतारे आज भारत माता का वैभव श्रंगारित स्वरूप देख, ऋद्धि सिद्धि भी लजा रहीं हैं आज पूरा भारत नव दुर्गा की नवधा भक्ति शक्ति की, उपासना शुरू कर रहा आज जवान, किसान, युवा, उद्यमी, स्त्री-पुरुष, सब में  सृजन साकार हो रहा आज उत्तर- दक्षिण,पूरब- पश्चिम खुशियां छायीं,सब एक सूत्र में बॅ॑ध रहे आज उत्साह, ऊर्जा की लहर उठाता, युग बोध की स्मृति जगाता,नव वर्ष आ गया आज पुण्य धरा भारत की घर घर में धन-धान्य की, खुशहाली लाती आज शस्यश्यामला भारत माता सतरंगी, परिधान पहन है हर्षाती आज आर्यावर्त भरतखण्ड की इस पुण्यभूमि की,यश कीर्ति गा रहा विश्व आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रति वर्ष, है हमारा नव वर्ष, प्रकृति सृष्टि भर जाती है चिर यौवन से आज.... बसंत बहा

लेखक श्याम कुंवर भारती

*कहानी * *जूही की महक*    भाग -5 लेखक - श्याम कुंवर भारती जूही ने कहा चलो कही धूप में बैठते है थोड़ी बात चीत करके फिर वापस चलेंगे।सुधीर ने कहा ठीक है मैडम। दोनो थोड़े दुर पर एक सीमेंट की बनी बेंच पर बैठ गए।बात जूही ने शुरू किया - तुम हमेशा कम बोलते हो या मेरे साथ हो इसलिए ।नही मैडम आप बोलिए न मैं सुन रहा हूं सुधीर ने जल्दी से कहा। तुम नहीं पूछोगे मगर मैं खुद ही अपने परिवार के बारे में बताती हूं।मेरे परिवार में मेरे माता पिता और तीन छोटी बहने है।मेरी पढ़ाई लिखाई सच कहो तो मेरी मां ने ही कराया है।मेरे पिताजी एक किसान है ज्यादा खेती बाड़ी  नही है।मेरे पिता की एक एक्सीडेंट में एक हाथ और एक पैर डैमेज हो जाने से उनसे कोई बड़ा काम नही हो पाता है ।इसलिए मेरी मां ने सब्जियां उगाना शुरू किया। मां के काम में हम चारो बहने मदद करती थी।सब्जियों से अच्छी आमदनी हो  जाती थी।व्यापारी खेत से ही सब्जियां खरीद ले जाते थे।लाभ होने पर मेरी मां दूसरे किसानों की जमीन भाड़े पर लेकर सब्जियां उपजाने लगी।इंटर पास करने के बाद मैने एक प्राइवेट स्कूल में टीचर के रूप में पढ़ाना शुरू किया और खुद भी पढ़ती थी।घर ठीक चल र

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

जय माँ शारदे प्रीत से तो फायदा हो जाएगा।  प्रेम में दिल तो फ़ना हो जाएगा।  हम दिखेंगे आपको हरपल सनम ,  आपका उर आइना हो जाएगा।  इस तरह मत आप हमको देखिए सोच लो फिर हादसा हो जाएगा।  मत सनम मायूस ऐसे होइए ,  जब मिलोगी तन हरा हो जाएगा।  नाम दिल भी आपका मम गाएगा  आपका दिल "रुद्र" का हो जाएगा संदीप कुमार विश्नोई रुद्र दुतारांवाली अबोहर पंजाब

श्रीकांत त्रिवेदी प्राञ्जल

💐 "नव संवत्सर"💐 मन में छाया है हर्ष अहा ! आया अपना नव वर्ष अहा !!  मौसम ने भी अंगड़ाई ली  पेड़ों ने भी तरुणाई  ली,  कलियां भी आज जवान हुई,  कोयल की कूक सुनाई दी,         मन में तन में है हर्ष अहा !          आया अपना नव वर्ष अहा !! तालों में खिलते कमल अहा, खेतों में पकती फसल अहा, बागों  में  आम  भी  बौराये , सब कुछ है अपना असल अहा !          अब है अपना उत्कर्ष अहा !          आया अपना नव वर्ष अहा !! ना धरा ठिठुरती सर्दी से, ना देह सिहरती सर्दी से , कुहरा भी छाया नहीं घना, फसलें ना मरती सर्दी से!         अब ऋतु का है उत्कर्ष अहा!          आया अपना नव वर्ष अहा !! इस ऋतु का रंग बदलता हैं, कलियों का ढंग बदलया हैं , हम सब नव वर्ष  मनाएंगे , संवत्सर जरा बदलने दो!      धरती पर छाया हर्ष अहा !      आया अपना नव वर्ष अहा !!      श्रीकांत त्रिवेदी, "प्राञ्जल" लखनऊ

अतिवीर जैन पराग

भारतीय नववर्ष  चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय नव वर्ष आया l पक गई फसल देखो काटने का मौसम आया ll रंग बिरंगी धरा सजी भोरे तितली  गुनगुनाए  l विक्रम संवत 2079  भोर की शुभकामनाएं ll सर्वे भवंतु सुखिनः का भाव मन मे लाए l नवरात्रि आ गए आओ भगवा फहराए ll नौ देवियों को पूज कन्या पूजन करवाएं l चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय नववर्ष  मनाए ll    अतिवीर जैन पराग मेरठ  मोबाइल 94569 66722

गौरव शुक्ल

नूतन संवत्सर 2079 की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं- '' आप सभी को नए वर्ष की अतुल अपार बधाई,  कोष कृपा का माता दुर्गा स्वयं लुटाने आईं।  खिलें सुमन खुशियों के, यश का हो अनंत विस्तार,  भरता जाए दिनानुदिन धन वैभव का भंडार।  सभी सुखी हों, सभी निरामय, सभी भद्र कहलायें,  रंचमात्र हो दुखी न कोई ऐसे भाव जगायें।  विश्व व्याप्त हो भारतीय संस्कृति का यह संदेश,  कटुता छँटे, मिटे धरती से सारा ईर्ष्या-द्वेष।''  इन्हीं कामनाओं सहित गौरव शुक्ल मन्योरा

छत्र छाजेड़ फक्कड़

विषय :  नव वर्ष और  नया  साल  आ  गया =============== छत्र छाजेड़ “ फक्कड़” मैं सोया था नींद के आग़ोश में और पता ही नहीं चला कि कब नया साल आ गया..... पूर्व में प्राची की लाली से कलियाँ ऐंठी मखमली घास पर ओस की बूँदों का साम्राज्य फिर से छा गया..... जाने कब नया साल आ गया.... झर झर झरता निर्मल जल सात सुरों में करता कल कल गिरा गिरीवर से पावन कोमल जल गंगा बन सब के मन को भा गया.... जाने कब नया साल आ गया.... ज्वार उठा शांत सिंधु में चंदा मुस्काया नीले नभ में गहन रात ने ली अँगड़ाई मादकता से भरा भरा वायु वेग से डरा डरा दीप शिखाओं का समूह दसों दिशाओं में यौवन सा छलका गया.... जाने कब नया साल आ गया.... उन्मत तप्त अधर छू अधर ज़ुल्फ़ों के अंधेरों में छिप कर नयनों से मिले अधखुले नयन कभी दूर कभी पास मदन वेग के प्रबल प्रहार से मन शर्माता होले से अधीर मन को सहला गया.... जाने कब नया साल आ गया.... कहीं बचपन बीता कहीं यौवन चढ़ा चालाक मगर ये क्रूर समय सपनों का ढेर लगा गया जीवन यापन के बीहड़ पथ पर गिरते पड़ते शिथिल क़दम धरते वक़्त सारा यूँ ही गुज़र गया..... किसे पता था कि बुढ़ापा आ गया.... जाने कब नया साल आ ग