सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

दिसंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आमदो आवाम में अलख जगानी चाहिए- दयानन्द त्रिपाठी निराला

ग़ज़ल - आमदो      आवाम    में     अलख     जगानी     चाहिए।। तोड़ना  है   क्षितिज  को   तूफ़ान  आनी   चाहिए, इन   पुराने   मौसमों  में   ज्वार   आनी   चाहिए।। हो     गया    बस    बन्द    कमरे    में    सिसकना, आज सड़कों पर निकल  इतिहास  जानी  चाहिए।। विष    का    दरिया    आज    फैला    है    जहां   में, मंदिरों औ मस्जिदों से कूबकू में प्यार आनी चाहिए।। बिखरते   टूटते    उरयां    उम्मीदों   को    लिए   अब, जिन्दा   लाशों  की  खूं  में    उबाल  आनी   चाहिए।। पक्ष   और   प्रतिपक्ष   जब   लड़ने   लगे   हों   लोभ  में, तब   समझ   लो   नेपथ्य   में   आग  लगानी   चाहिए।। तख्त  तेरे  हाथ  में  हैं  शक्तियां   तुझमें   समाहित, वेदना करुणा भरी आंसुओं से बाढ़ आनी चाहिए।। त्याग   का  अब   दिन   गया   आघात  भी   ऐसे  करो, बीच  सागर  से  हवा  का  रुख  बदल  जानी  चाहिए।। सिर्फ     हंगामें     से     बदलता     है    नहीं    कुछ, आमदो    आवाम   में   अलख    जगानी    चाहिए।। वुस्अते    चिंगारियों   से   सय्याल   से   दश्ते   जली, चल निराला थाम दामन  तृषित प्रलय आनी चाहिए।। शब्दार्थ:-  कूबकू - जगह-जगह, ने

सीमा मिश्रा

नूतन वर्ष दर्द का एक युग बीत गया लौट वर्ष वो न आए , नया वर्ष अपने आंचल में सुमन हर्ष के भर लाए । अरुण अरुणिमा को संग लेकर इंद्रधनुष के रंग भरे, अलसाये पल्लव मुस्काकर प्रकृति का यशगान करें, राधा श्याम करें बरजोरी गोकुल चंदन बन जाए, नया वर्ष अपने आंचल में सुमन हर्ष के भर लाए । भय सांकल खटकाए न अवसाद दूर ही रहे खड़ा, नेह कोयलिया घर घर कुहके फूटे सुख का मेघ घड़ा, महक उठे ये भूमि भारती सांसे सरगम बन गाएं , नया वर्ष अपने आंचल में सुमन हर्ष के भर लाए । वंदनवार सजे हर द्वारे गणपति का आशीष मिले, रंगोली के बिखरे रंग से द्वार द्वार सौंदर्य खिले। अभिनंदन नववर्ष तुम्हारा आशाएं हिय धर पायें, नया वर्ष अपने आंचल में सुमन हर्ष के भर लाए । रचना -  सीमा मिश्रा , बिन्दकी फतेहपुर स्वरचित v सर्वाधिकार सुरक्षित

डॉ.अमित कुमार दवे

©हर तरफ से तोड़-मरोड़कर चुपके से सब छिन गए..! संवेदनाओं के ढाँढस बँधाते निष्ठुर तुम कहाँ चले गए?   © डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा इस विषदकाल में हे मेरे अन्तर्मन अब तो बताओ छोड़ अकेला मुझे इस भँवर में तुम कहाँ चले गए? कोरोना के कहर काल में स्वार्थी बनकर निकल गए, जद्दोजहद जीवन की करते दूर तुम कहाँ चले गए ! अब तो सून ओ मनोबल मेरे यूँही क्यूँ छोडा मुझको? अन्तर्बल की खोज में बेबस छोड़ तुम कहाँ चले गए? हर तरफ से तोड़-मरोड़कर चुपके से सब छिन गए..! संवेदनाओं के ढाँढस बँधाते निष्ठुर तुम कहाँ चले गए? भौतिकता की अंध दौड़ में कोरी मशीन बनकर रह गए! स्नेह-सहयोग-सेवा-समर्पण छोड़कर तुम कहाँ चले गए? धैर्य-साहस और जीजिविषा के कारण ही मैं बचा रहा हूँ अपनों के शुभाशयों का आज जीवन्त परिणाम रहा हूँ।। दूर भले रहें नित अपने पर संबंध जीवंत बनाएँ रखना! आस जीवन की बनवा रखकर यूँही तुम कहाँ चले गए? ओ मेरे प्यारे अंतस् हारों ना चाहे आएँ लाखों भूचाल! डरों ना तुम देख दानव भले अपने कहीं भी चले गए।। काल कोई आए जीवन में आस साँस की नहीं छोड़ें बस कोई साथ छोड़ें जग में पर साथ स्वयं का न छोड़ो तुम।। संबंधों का सार बन जीवन का मज़बूत आधार

अमरनाथ सोनी अमर

कविता- हमेशा एक सा नहीं रहता! 16-14. समय हमेशा एक न रहता,              समय बदलता रहता है!  किन्तु समय के साथ-साथभी,             स्वयं बदलना पड़ता है!!  समय चक्र के सँग- सँग चलते,                    ज्ञानी वही कहातें हैं!  समय जान कर जो नहि बदले,               मूरख वह बन जातें हैं!!  कहतें लोग बुरे दिन आये,              किन्तु बुरा नहिं आता है!  काल परिक्षा सबका लेता ,                ज्ञान पास हो जाता है!!  जिनके पास ज्ञान धन पूँजी,               कभी नहीं अकुलाता है!  अच्छा, बुरा सभी सम होता,              वही तुरत ढल जाता है!!  अच्छा,बुरा समय नहिं कोई,                  कर्मों में सब रहता है!  जैसा कर्म करोगे बंदे,              फल वैसा भी बनता है!!  भांपो जल्दी समय तुम्हारा,                 दिन कैसे वह आता है!  उस मंशा से चलो यार तुम,               बुरे काल भग जाता है!!  अमरनाथ सोनी" अमर " 9302340662

एस के कपूर श्री हंस

*।।मनोकामना / शुभकामना*  *नव वर्ष  2022   के लिए  ।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 बस आदमी को आदमी से प्यार हो  जाये। हर नफ़रत की    जीवन में हार   हो  जाये।। इंसानियत का ही हो  बोल बाला हर जगह। हर व्यक्ति में        मानवता साकार हो  जाये।। 2 हर किसी का हर किसी  से सरोकार हो जाये। हर सहयोग देने को आदमी तैयार    हो   जाये।। अमनो चैन सुकून की     हो सब    की जिंदगी। खत्म हमारे बीच की      हर तकरार    हो  जाये।। 3 राष्ट्र का हित ही        सबका कारोबार हो जाये। देश की आन को हर     बाजू तलवार हो जाये।। दुश्मन नज़र उठा कर     देख न सके     हमको। हर जुबां पर       शत्रु के लिए ललकार हो जाये।। 4 माहमारी कॅरोना की    करारी अब हार हो जाये। वैसा ही स्वास्थ्य का    दुनिया में संचार हो जाये।। भय डर का यह  जीवन  अब हो जाये   समाप्त। यह विषाणु हर जीवन सेअब बाहर हो     जाये।। 5 हर बाग में  अब  गुल गुलशन बहार   हो     जाये। जिंदगी का मेला वैसा ही फिर गुलज़ार हो   जाये।। यह नव वर्ष खुशियां     लेकर आये हज़ारों हज़ार। हर ओर जीवन में सुख  शांती बेशुमार हो     जाये।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।*

भुवन बिष्ट

*वंदना* मानवता का दीप जले,        प्रभु ऐसा देना वरदान।  प्रेम भाव का हो उजियारा,        नित नित करता मैं गुणगान।।  प्रभु ऐसा देना वरदान। ....... राग द्वेष की बहे न धारा,         हिंसा मुक्त हो जगत हमारा। सारे जग में भारत अपना,         सदा बने यह सबसे प्यारा ।। पावन धरा में हो खुशहाली,          बने सदा यह देश महान।। प्रभु ऐसा देना वरदान। ..... हो न कोई अपराध कभी,           वाणी में हो पावनता।  ऊँच नीच की हो न भावना,           जग में फैले मानवता।।  एक दूजे का  हम करें,           सदा सदा ही अब सम्मान।। प्रभु ऐसा देना वरदान। ......               ...... भुवन बिष्ट              रानीखेत (उत्तराखंड)

नूतन लाल साहू

बिदा वर्ष 2021 स्वागत किया था 01 जनवरी 2021 को अब 31 दिसंबर 2021 को बिदा कर रहा हूं। कोरोणा महामारी के कारण खुल के हंसना हुआ हराम सीताराम राधेश्याम। त्रेता युग होता तो राम रावण युद्ध लिखता द्वापर युग होता तो महाभारत लिख देता बड़ी मुश्किल से,जान बचा पाये है बिदा वर्ष 2021 सीताराम राधेश्याम। गृहस्थी की गाड़ी चला रहे थे अपनी औकात के अनुसार जो हुआ सो हुआ किंतु एक प्रश्न,आज तक कचोटता है क्यों और कैसे, आ जाती है विनाशकारी महामारी रोग। घर में राशन पानी तक नही था और लग गया, लाक डाउन लाक डाउन खुल के हंसना हुआ हराम सीताराम राधेश्याम। फिलहाल चिंता की कोई बात नही है कुछ खोया तो कुछ पाया भी है बार बार के रिजेक्ट से दिमाक में आया, एक तर्क बिदा वर्ष 2021 और स्वागत वर्ष 2022 सीताराम राधेश्याम। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 31/12/2021                ------ दो नयन ----- ये दो नयन सहारा तलाशतीं हैं । कब से एक इशारा तलाशतीं हैं ।। जिसके लिए खून की धार बहे थे । कठिनाइयों के हर समय सहे थे ।। नजरें सुखद नजारा तलाशतीं हैं । क्षण भर अम्न गुजारा तलाशतीं हैं ।। जहर पिलाते शर्म नहीं आई अब । मेरी ममता भी थी मुरझाई कब ।। कश्ती आज किनारा तलाशतीं हैं । प्यासी आँखें प्यारा तलाशतीं हैं ।। कुछ मोल नहीं है मेरी ममता का । स्थान तजी मैंने सदा विषमता का ।। सबमें भाईचारा तलाशतीं हैं । सूखी उद्गम धारा तलाशतीं हैं ।। गये उम्र उम्मीदों ने बहलाया । अक्सर अपनों ने ही मुझे सताया ।। अब भी दिव्य सितारा तलाशतीं हैं । ननकी राजदुलारा तलाशतीं हैं ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

ऊषा जैन कोलकाता

रोज बजाए बाँसुरी मनभावन माधुरी।  कैसे रूके राधा रानी नाचे चली आई है ।।  सुनके तेरी बाँसुरी हुई गोपियाँ बाँवरी।  भूल गई  सुध बुध दौड़ी चली आई है।।  हृदय स्पंदन मेरी साँसो की लय हो मेरी।  एक तेरे ही नाम की अलख जगाई है।।  चाह यही है मोहन बस जाऊँ वृँदावन।  एक यही तो कामना मन में समाई है।।  🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏 ऊषा जैन कोलकाता

विजय कल्याणी तिवारी

/ साल नया आने वाला / -------------------------------- साल नया आने वाला है मंगल दीप जले मन भर,पुण्य प्रभात पले। दुख दरिद्रता मिटे धरा से मुक्त रहे हर व्यक्ति जरा से सब घटता भले भले मन भर पुण्य प्रभात पले। हरा भरा वसुधा का आँचल मन भर बरसे काले बादल प्रकृति पगपग निज पाथ चले मन भर पुण्य प्रभात पले । मुसकाते सपनों के आगे सोने वाले भी सब जागे अब नही अनुनय विनय टले मन भर पुण्य प्रभात पले। जो मांगो मिलने वाला है आज प्रतिक्षित मधु प्याला है दिनकर, जाकर क्षितिज ढले मन भर पुण्य प्रभात पले । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) कटुता के इस कठिन काल में, अपने मृदु व्यवहार रहें। हों प्रयास रत केवल इतना, सुख-दुःख मिल परिवार सहें।। जीवन का है नहीं भरोसा, आज रहें कल नहीं रहें। प्रकृति प्रकृति की बदली करती, अभी आँधियाँ,फिर न रहें। आपस में ही मिल जुल करके, सरित-तरंग बहार बहें।।          अपने मृदु व्यवहार रहें।। जीवन का उद्देश्य यही है, प्रेम-भाव से रहें सदा। अनबन सारी भूल-भाल कर, निज कर्मों को करें अदा। प्रभुता-लघुता-सोच त्यागकर, बात मधुर हर बार कहें।।        अपने मधु व्यवहार रहें।। जीवन का तो अर्थ त्याग है, त्यागी जीवन अमर रहे। मधुर बोल से जग को जीते, सच्चाई ही डगर रहे। सच्चाई की अग्नि में त्यागी, जल कंचन आकार लहें।।       अपने मधु व्यवहार रहें।। मधुर स्वभाव त्याग-परिचायक, कटुता का यह घालक है। मानवता का पोषण करता, यह मूल्यों का पालक है। आओ मृदु, स्वभाव से अपने। यह सुंदर संसार गहें।।        अपने मधु व्यवहार रहें।।                 © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                    9919446372

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*           *आनंदित* आनंदित यह मन करे  , भाव सुखद नववर्ष । आंग्ल सभ्यता अनुसरण , माह जनवरी हर्ष । माह जनवरी हर्ष , यही सब अब तक जाने । यही आधुनिक रीत , जश्न नव पीढ़ी माने । कह स्वतंत्र यह बात , नियम होता आबंटित । लाए यह सौगात , ह्रदय करता आनंदित ।। आनंदित करता सदा  ,  सत्य सनातन धर्म । नूतन हिय संकल्प लें , चैत्रमास नव मर्म । चैत्र मास नव मर्म , प्रकृति नव रूप सुहाए । स्वर्ण वर्ण परिधान  ,  धरा यह मन हर्षाए । कह स्वतंत्र यह बात , पुष्प जग करे सुगंधित । शोभित भारत वर्ष ,  धर्म यह मधु आनंदित ।। आनंदित रवि का उदय , शोभित चंद्र प्रकाश । सकल जगत में व्याप्त है , फैला यह आकाश । फैला यह आकाश , समाहित करके तारे । ऐसे ही नव वर्ष ,  नये कुछ नियम हमारे । कह स्वतंत्र यह बात , नशा हो अब प्रतिबंधित । गुटखा मदिरा पान , त्याग मधु हो आनंदित ।। *मधु शंखधर "स्वतंत्र"* *प्रयागराज*

संजय जैन बीना

*2022 दे आपको....* विधा : कविता नया साल दे आपको, मन माफिक परिणाम। सभी ख्वाब पूरी हो, करते प्रार्थना ईश्वर से हम । आपको रिद्धि दे,  सिद्धि दे, वंश में वृद्धि दे। ह्रदय में ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे। अभय वरदान दे, दुःख को दूर कर। सुख भरपूर कर,  आशा को संपूर्ण कर। सज्जन जो हित दे,  कुटुंब में प्रीत दे । जग में जीत दे,  माया दे, साया दे । और निरोगी काया दे, मान-सम्मान दे। सुख समृद्धि और ज्ञान दे। शान्ति दे, शक्ति दे, और भक्ति भरपूर दें...। ऐसी में देता हूँ, शुभकामनाएं दिल से। रहे अमन और शांति अपने इस मुल्क में।  आपको नव वर्ष  2022 के लिए अग्रिम शुभकामनाएं। जय जिनेन्द्र  संजय जैन "बीना" मुम्बई 31/12/2021

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ये साल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ये साल जिसकी यादों में फिर गुजर गया । वो शख्स अपनें वादों से फिर मुकर गया  ...........................................   बदला नहीं है अब भी तन्हाईयों का मौसम । सायों की भीड़ देकर, वो फिर किधर गया  ।। ...........................................   ताज़े जख़म पे दिल के, हैं बेअसर दवाएँ । टूटा ज़िगर तो पल में, सपना बिखर गया  ।। ...........................................   ता उम्र साथ उसको चलना था इस सफर में । कुछ  दिन  में मेरा रहबर , जाने किधर गया  ।। .............................................   दिन में सुकून है ना रातों मे चैन उस बिन   ग़म दे के ज़िन्दगी को, जान ए ज़िगर गया   .............................................   हम आरज़ू  में उसकी, होते रहे  फ़ना  ।  वो जुस्तजू  में किसकी ,देखो   सँवर  गया  ।। .............................................   शिवशंकर तिवारी । छत्तीसगढ़   31/12/2021  .............................................

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय।। अनुभव 2021।।* *।।रचना  शीर्षक।।* *।।सादा जीवन,  उच्च विचार* *यही था वर्ष 2021का सार।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 डर कर रहना    घर का खाना      पीना। वर्ष 2021   में    बीता जीवन यूँ जीना।। घर में कैद   बीत   गया आधा      साल। अपनों के बीच ही बीता पूरा छह महीना।। 2 घर के अधूरे  काम    घर में पूरे      किये। बच्चों ने भी क्लास ऑन लाइन ही लिये।। बड़ो ने भी किया     वर्क फ्रॉम        होम। अखबार टी  वी देख कर ही जीवन जिये।। 3 इस साल ने  सीखा दिया स्वास्थ्य का   अर्थ। सावधानी हटे तो होता है अर्थ  का    अनर्थ।। इस साल ने बताया    घर के खाने का महत्व। जो बिना मास्क के   घूमा वो गिरा कॅरोना गर्त।। 4 वर्ष 2021 ने  बताया दूर रहकर रिश्ता निभाना। वर्ष 2021 ने     सिखाया पराये अपना बनाना।। वर्ष 2021 ने छीना  और दिया   बहुत     कुछ। वर्ष 2021 ने      दिखाया सादा जीवन बिताना।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस "* *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

नंदिनी लहेजा

जा रहा है साल पुराना ,नया साल है आ रहा कुछ आशाएं छूटी अधूरी,कुछ उमंगों के संग आ रहा क्या खोया क्या पाया इस जाते हुए वर्ष में कर लेखा जोखा मन को अपने बहला और समझा रहा नववर्ष के आगमन का किया था हर्षोउल्लास संग स्वागत अपनों संग बांटी थी ख़ुशी,अनेक योजनाओं से किया सबको अवगत मिलना था मुझे प्रमोशन इस वर्ष तभी तो इसका बेसब्री से इंतज़ार था पर कोरोना महामारी से हुए लॉकडाउन से प्रमोशन का सोचना भी बेकार था कभी छुट्टियों के लिए थे तरसते घरों पर हो गए हम कैद रिश्तों को समझा और करीब से विडिओ कॉल पर होती थी चैट साहित्य प्रेम जो खो गया था कहीं आज उमड़ उमड़ कर बाहर आने लगा बचपन से लिखते थे कवितायेँ ,आज उनको सम्मान मिलने है लगा जा रहे वर्ष में हमने अपने इक प्रिय को भी खोया जो रहता था सदा संग हमारे यादों का वह अब हिस्सा हो गया अध्यात्म से फिर जुड़ गया मन ,जब जुदा वह अपना हुआ अब लगने लगा क्या सोचे भविष्य की ,बस नेक कर्म सदा करता जा नंदिनी लहेजा रायपुर(छत्तीसगढ़) Like

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना  शीर्षक।।* *।।मत होना मायूस     जीवन से* *कि जिंदगी में सौगात बहुत है।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 खुशी होकर जियो जिंदगी  में जज्बात बहुत है। मिलेगा बहुत कुछ      इस में  सौगात बहुत है।। पर वाणी में रखना      तुम मिठास    बहुत ही। बात की चोट से यहाँ    पर आघात    बहुत  है।। 2 न गुम रहनाअतीत में यादों की   बारात बहुत है। मत होना मायूस    खुशियों  की अफरात बहुत है।। बना कर रखना तुम   अपने  रिश्ते       नातों     को। अपनों के खोने पाने      की यहाँ मुलाकात बहुत है।। 4 समय से चल कदम  मिलाके वक्त की रफ्तार बहुत है। जो रखते मस्तिष्क को  ठंडा उन्हें     सत्कार बहुत है।। क्रोध को त्यागना ही     उत्तम है     यहाँ            पर। व्यर्थ का जीवन में   यहाँ  पर गुफ्तार      बहुत    है।। 5 पैदा करनी    शांति कि    घृणा का रक्तपात   बहुत है। करना नहीं विश्वास कि    धोखे की खुराफात बहुत है।। बढ़ाना आदमी से   आदमी का प्यार      यहाँ      पर। जिंदगी में बिना वजह आंसुओं की बरसात बहुत है।। 6 मत तोड़ना विश्वास कि     यहाँ घात प्रतिघात बहुत है। कोशिश जरा करेआदमी अच्छा हालात         बहुत  है।। जीत को रखना

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

💐🙏🌞 सुप्रभातम्🌞🙏💐 दिनांकः ३०-१२-२०२१ दिवस: गुरुवार विधाः दोहा विषय: कल्याण शीताकुल कम्पित वदन,नमन ईश करबद्ध।  मातु पिता गुरु चरण में,भक्ति प्रीति आबद्ध।।  नया सबेरा शुभ किरण,नव विकास संकेत।  हर्षित मन चहुँ प्रगति से,नवजीवन अनिकेत॥  हरित भरित खुशियाँ मुदित,खिले शान्ति मुस्कान।  देशभक्ति स्नेहिल हृदय,राष्ट्र गान सम्मान।।  खिले चमन माँ भारती,महके सुरभि विकास।  धनी दीन के भेद बिन,मीत प्रीत विश्वास॥  सबका हो कल्याण जग,हो सबका सम्मान।  पौरुष हो परमार्थ में, मिले ईश वरदान॥  कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित)  नई दिल्ली

नूतन लाल साहू

बैरी अंकाल आगे रे सावन भादो बरसा मांगे अगहन पूस मांगे घाम ये बरसा नो हे ददा जी के जंजाल ऐ। काला कमाबे,काला खाबे जिनगी के नइये ठिकाना बैरी अंकाल आगे रे। मोर पिंजरा के मिट्ठू मैना करत हावय शोर रात म घुघवा घु घु बोले सुन के हमर,ये तन के हाल धक ले मोर जिवरा होवत हे आगे मोला, तिजरा बुखार ये बरसा नो हे ददा जी के जंजाल ऐ बैरी अंकाल आगे रे। तय का करत हस भगवान जाड़ म झड़ी लगा के पानी ह गोंटा मारय करा ला गिरा के। कइसे बचही परान सुरुज ला घाम दिखावन दे जिनगी के नइये ठिकाना हमर किसान बर आफत के बरसात ऐ ये बरसा नो हे ददा जी के जंजाल ऐ बैरी अंकाल आगे रे। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 30/12/2021                ------  अचला ----- दूर कहीं पर दीप जला है । आज्ञाता की चीर संगिनी , चंचलता पाकर अचला है ।। स्मृति के पन्ने थके पलटते , मन प्यासा ही बहुत चला है । आशाओं के संबल देकर , अब किसने फिर मुझे छला है ।। पड़ी ओस कण इन फूलों पर , भीगा भीगा वो निकला है । यूँ तो तय था होना उसका , मौसम भी बदला- बदला है ।। आई सुरमयी साँझ भी कल थी , समय बिलखते मंद चला है । कैसे विस्मृत हो चिंतन पथ , मद्धम टिम- टिम चाँद गला है ।। रहा टहलता इन गलियों पर , व्यथित भावना लिए पला है । कभी शिकायत के क्षण गुजरे , लेकिन हर्षोन्माद टला है ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

/ भाव से भगवान / ---------------------------- विव्हल होकर गीत जब गाया गया भाव से , भगवान को पाया गया । मूढ़ पहचाना नही तू ईश को नासमझ,सर से तेरे साया गया। सांस टूटी पथ सभी अवरूद्व से देखते सब संकलित माया गया । जो हृदय को छू सके वे शब्द थे कंठ भर भर कर जिन्हें गाया गया। गलतियां करते रहे वे नित्य ही जाने क्यों हमको ही समझाया गया। पंथ प्रचलित जो रहे वे भूलकर नित नया ही पाथ अपनाया गया। जिसपे इतराता रहा है उम्र भर आज माटी मे वही काया गया । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*               *ठंडी* ठंडी यह अति की बढ़ी , काँपे सारे लोग । बैठ रजाई खा रहे ,  पौष्टिक सारे  भोग । पौष्टिक सारे भोग , घेरता आलस आया । सूर्य देव हैं लुप्त , कुहासा ऐसा छाया । कह स्वतंत्र यह बात , सूर्य अब बना घमंडी । छिपता बादल बीच , देख कर ऐसी ठंडी ।। ठंडी का मौसम रहे , माह दिसम्बर खास । माह जनवरी फरवरी , क्रमगत होता ह्वास । क्रमगत होता ह्वास , ठंड का लुत्फ उठाओ । तिल गुड़ खाओ खूब , मित्र जन चाय पिलाओ । कह स्वतंत्र यह बात , बनो मत अब पाखंडी । बैठो मित्रों साथ , लगे आनंदित ठंडी ।। ठंडी से कुछ त्रस्त हो , बैठे घुसकर आज । कुछ जन जा कश्मीर में , देखें बर्फ मिजाज । देखें बर्फ मिजाज , मस्त हो घूमे सारे । हिम आँचल कश्मीर , पर्यटक दिल यह वारे । कह स्वतंत्र यह बात , टेकते हैं वह डंडी । जो हैं शक्ति विहीन , उन्हें बहु लगती ठंडी ।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मातृ-भूमि*(भारत) भारत माता के वीर सपूतों, अपनी धरती का कर लो नमन। ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी- कर लो टीका समझ इसको चंदन।।                   ऐसी माटी तुम्हें.........।। इसके उत्तर में गिरिवर हिमालय, जो प्रहरी है इसका अहर्निश। चाँदनी की धवलिमा लिए- दक्षिणोदधि करे पाद-सिंचन।।                ऐसी माटी तुम्हें............।। इसकी प्राची दिशा में सुशोभित, गारो-खासी-मेघालय-अरुणाचल। इसके पश्चिम निरंतर प्रवाहित- सिंधु सरिता व धारा अदन।।               ऐसी माटी तुम्हें..............।। शीश कश्मीर ऐसे सुशोभित, स्वर्ग-नगरी हो जैसे अवनि पर। गंगा-कावेरी-जल-उर्मियों से- देवता नित करें आचमन।।               ऐसी माटी तुम्हें.............। पुष्प अगणित खिलें उपवनों में, मृग कुलाँचे भरें नित वनों में। वर्ष-पर्यंत ऋतुरागमन है- लोरी गाए चतुर्दिक पवन।।             ऐसी माटी तुम्हें...............।। अपनी धरती का गौरव रामायण, सारगर्भित वचन भगवद्गीता। मार्ग-दर्शन कराएँ अजानें- वेद-बाइबिल का अद्भुत मिलन।।           ऐसी माटी तुम्हें.................।। इसकी गोदी में खेले शिवाजी, राणा-गाँधी-जवाहर-भगत सिंह। चंद्रशेखर-अटल क

संजय जैन बीना

*श्री चंद्राप्रभु के दर्शन करने* विधा : भजन गीत         थाल पूजा का लेकर चले आइये। चंद्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना। आरती के दियो से करो आरती। और पावन सा कर लो ह्रदय अपना। थाल पूजा का लेकर चले आइये।। मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की। उसको यूही दबाने से क्या फायदा। प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां। ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा। डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम। तब तक तो बहुत देर हो जायेगा।। थाल पूजा का लेकर चले आइये। चंद्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।। नाव जीवन की तेरी मझधारा में पड़ी। झूठ फरेब लोभ माया को तूने अपनाया था। जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म। क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा। जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो। और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो।। थाल पूजा का लेकर चले आइये। थाल पूजा का लेकर चले आइये। चंद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना। आरती के दियो से करो आरती। और पावन सा कर लो ह्रदय अपना। थाल पूजा का लेकर चले आइये।। जय जिनेंद्र देव संजय जैन "बीना" मुंबई 30/12/2021

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

एक सामयिक रचना कवि की देखें व आनन्द लें....                       घूप देखाय धरा न कतौअबु बादर बूँदी हियाँ दिखलैहै।।                      भोरू औ साँझु परे कुहिरा चौपाया गतीनु बखानि न जैहैं।।                     पूस दिना सखि टूस कहैं रजनी सजनी कतनी बढि़ जैहैं।।                    काजु सबै कै जुगाढ़ चलैमतिया सखि चंचल काव गनैहै।।1।।              सेंवारि फुलानि सखी सरसोंहरियाली धरा कै बखानि न जैहैं।।                                        गफ्फानि देखाय खडी़ अरहर मानौ राह ऊ रोंकि के जाइऊ न देइहैं।।                                         बथुआ औ चना खोंटहारि खडी़ कस लाइ घरा वै साग रचैहैं।।                   तोरि के गन्ना पेराइ के केर्रा मेहमानौ चंचल लाय पियैहैं।।2।।    आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल ।। 228001।। मोबाइल...8382821606,8853521398,9125519009।।

डॉ0 निर्मला शर्मा

"  वह रहा सदा अटल " अटल रहे सदैव जिनके इरादे कार्य भी किये सदैव ही अटल। ठाना जो कभी मन में बढ़कर किया वही हो दृढ़ न हुए विफल। स्वतंत्रता सेनानी वह देशभक्त देशसेवा को समर्पित हर वक्त। राजनीतिज्ञ ,प्रकांड पंडित,कवि व्यक्तित्व में उनके तेज जैसे रवि। विश्व पटल पर बन देश का प्रतिनिधि शक्ति सामर्थ्य दिखलाया बहुविधि। देश को राजनीतिक, सामरिक आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया। उनके दूरदर्शी निर्णयों ने देश को उन्नति की ओर अनवरत बढ़ाया। अटल थे वो अटल ही रहे पटल पर  प्रिय जननेता बन बसे मनस पर। अपने विचारों की स्वर्णिम आभा से  प्रकाशित किया सम्पूर्ण संसार। मानवता, सौहार्द, प्रेम का दीप जला किया सर्वत्र उजियारा मिटाया अंधकार। वे कहते थे यही जीवनभर- "मनुष्य को चाहिए कि  वह परिस्थितियों से लडे, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढे"। डॉ0 निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

डॉ. कवि कुमार निर्मल

*_चमकौर गढ़ी से सरहिंद_* _चमकौर लड़ाई सामान्य नहीं था वह धर्मयुद्ध।_ _चमकौर साहिब का गुरुग्रंथ में था वर्णित युद्व।_ _गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में खालसा था बना।_ _वजीर खान का नेतृत्व, मुगलों से गठबंधन सुना।_ _गुरु गोबिंद के विजयपत्र जफरनामा में लिखा, ग्रंथ में आया।_ _सरहिंद के नवाब वजीर खां के समक्ष पेश बंदों को करवाया।_ _ठंडे कारा से तलब, नवाब काजी अहलकारों ने करवाया।_ _खतना करवा नाम बदल लो- आँख दिखा कर धमकाया।_ _धर्म परिवर्तन बेअसर गुरुपुतर राजविद्रोही कहलाया।_ _दोनों साहबजादे गरजे- जोर-जुल्म को 'पाप' बताया।_ _जुल्म के खिलाफ देगें प्राण-  झुकने का नाम कहाँ?_ _26दिसंबर 1704- वजीरखांक्रूर ने जिंदा चुनवाया।_  _शहीदी के बाद माता गुजरी ईश्वर का गजब था 'शुक्राना'।_ _अरदास करते माँ प्राण त्यागी- अमरता निश्चित हीं पाना।_ _बंदे माता गुजरी जी की दिलेरी बहादुरी की कथा आज सुनायें।_ _सभी बंदे शुक्राना अदा करें, चमकौरगढ़ी सरहिंद होकर आयें।।_ _डॉ. कवि कुमार निर्मल____ ✍️_

विजय कल्याणी तिवारी

मैं चला वे भी चले -------------------------- मैं चला वे भी चले पर अकेले ढूंढ़ता ही रह गया दुनिया के मेले। भीड़ मे भी मैं अकेला रह गया भाव के धारे अचानक बह गया । तेज थी धारा बहा कर ले गई मोड़ पर कुछ और झटके दे गई । मैं नही समझा रूंआसा हो गया इस भंवर को पार करते खो गया । बेबसी से अब टटोलूं आसरा मुख झरे जब शब्द बोलूं आसरा । पर जगत निष्ठुर है यह जान कर प्रश्न पूछे ईश्वरीय विधान पर । और बस मे तब नही था कुछ मेरे सब लुटा कर पास आया हूं तेरे । तू शरण मे ले मुझे या त्याग दे हो सके तो भक्ति का अनुराग दे । मूढ़ था जो व्यर्थ विषयों में पड़ा दृष्टि गत है पाप से भरता घड़ा । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

ऊषा जैन कोलकाता

*सुनो न कान्हा* कब तक भटकूँगी मैं कान्हा उलझ रहीं हूँ इस सवाल में।  लख चौरासी के फेरे में मोहमाया के जंजाल में।।  दिखने लगी  मुझे तो  कान्हा हर -सू काजल की ही कोठरी।  मैला ना हो जाये अँचरा हरदम  रहती हूँ डरी डरी।।  संभल संभल कर चलती हूँ  फिसलने भरी है राहों में।  आई तेरे दर पर कान्हा रखलो अपने इन चरणों में।।  🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏 * ऊषा जैन कोलकाता *

मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*              *आह्लादित* ----------------------------------- आह्लादित हो मन अगर , छाए नई उमंग । हो करके स्वच्छंद तब , होती सहज पतंग । होती सहज पतंग , गगन को छू कर आए । जीवन का आनंद , सुखद मन ही पा पाए । कह स्वतंत्र यह बात , भावना हो मर्यादित । जीवन का आधार , ह्रदय अति हो आह्लादित ।। आह्लादित जब भी हुए , देवों के भी देव । दे देते वरदान तब , भोलेनाथ स्वमेव ।। भोलेनाथ स्वमेव  , बोल दे जो मन बमबम। डमरू का हो नाद , जगत में शोभित डमडम । कह स्वतंत्र यह बात , भावना हो संवादित । सत्य शिवम् का जाप , करे मन को आह्लादित ।। आह्लादित जीवन डगर ,  लक्ष्य निहित विश्वास । भाव भरे उपकार वो , होता सकल विकास ।। होता सकल विकास ,  लक्ष्य तक यह पहुँचाए । बाँटे सबमें हर्ष , स्वयं भी वह हर्षाए । कह स्वतंत्र यह बात , रहे यदि मन  आच्छादित । होगी कड़वी  बात ,  कहाँ तब मन आह्लादित ।। * मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*✒️

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ----                ------ अभियान ----- यह जीवन ही दान करूँ । जो भी मिला विश्व से जितना , सब अर्पित प्रतिमान करूँ ।। कृत संकल्पित सारी कृतियों को , मानव हित के अभियान करूँ । जो जाना जितना भी संचित , अर्पित सर्व विधान करूँ ।। प्रेम ज्ञान से मानव के हृद , नवल भव्य संस्थान करूँ । शोधित कर्मावली गुच्छ का , सृष्टि लोकहित गान करूँ ।। सदा उपेक्षित मूर्छित शोषित , लक्ष्यराज सद्भान करूँ । राष्ट्रवाद की भावांजलि से , एक सभी खलिहान करूँ ।। नयी प्रकृति परिवेश गढूँ मैं , सुखमय हिंदुस्तान करूँ । मातु भारती हित सब संभव  नयी खोज विज्ञान करूँ         ---- रामनाथ साहू " ननकी "               मुरलीडीह ( छ. ग. )

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __ 27/12/2021- 🌷*विधा-छप्पय छन्द*🌷  *सृजन-शब्द-फूल* प्यारी लगती धूप,सदा मौसम मन भाये । खिलते उपवन फूल, सुंदरतम् सृष्टि पाये ।। शीत लहर चल देख, सुहावन ऋतु है लागे । खुशबू रहती संग, जहाँ हिय सपने जागे ।। कहती प्रेमा आज सुन, लगे जिंदगी  भावनी । रंग-बिरंगे फूल ये, सजे बाग में पावनी ।। ----- योगिता चौरसिया "प्रेमा" -----मंडला म.प्र.

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे(दौलत) दौलत पाकर मित्रवर!,करना नहीं घमंड। रहना सदा विनम्र ही,वरन मिलेगा दंड।। धन-दौलत की अकड़ से,हो शुचि भाव-अभाव। जब अभाव हो भाव का, रहता  सदा  तनाव।। दौलत हो यदि प्रचुर तो,करें वित्त का दान। करे दान जो वित्त का, वह  है पुरुष महान।। दौलत जग टिकती नहीं,आज दूर कल पास। करें उचित उपभोग यदि,रहे न चित्त उदास।। धन-दौलत की चमक तो,रहती बस दिन चार। दो दिन का सुख दे भले,शेष दिवस अँधियार।।            © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                9919446372

संजय जैन बीना

*काम आई....* विधा : कविता बहुत कुछ खोकर भी बहुत कुछ पाया है।  जिंदगी के हसीन पल और कुछ सपने खोया है।  परंतु जीवन की सबसे बड़ी चीज प्राप्त हुई है।  जिसे साधारण भाषा में लोग इंसानियत कहते है।।  चलो अच्छा हुआ कि काल ऐसा भी आया।  जहाँ लोगों ने लोगो को निकट से जान जो पाया।  अमीर और गरीबी की खाई को भर जो पाया।  और लोगों ने लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़या।।  सिखा देते है हालात  इंसान को इंसान बनने को।  भूलकर अपने अहंकार को  नम्रभावों को जगाना पड़ा।  क्योंकि इन हालातो में न दौलत न शोहरत काम आई।  बस लोगों की अच्छाई ही लोगों के काम में आई।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 27/12/2012

अमरनाथ सोनी अमर

मुक्तक- आँचल!  माँआँचल सुख लोप हुआ अब,                 माता जी यम गेह गई!  हाथ बनाई रोटी चोखा,                   अब अपने से दूर गई!  अब तो सिर्फ उदर है भरना,               कौन उदर सहलाये अब!  केवल मैम कमाई भूखी,             अब तो वह सरदार भई!!  अमरनाथ सोनी" अमर " 9302340662

अनूप दीक्षित राही

जिन्दगी का हर फैसला मुझे मंजूर हो गया। सिर झुका कर मान लिया और खुद से दूर हो गया।। * अपनी ही उलझनो मे उलझे रहे तमाम उम्र। जमाने की उठती अंगुलियों से  चकनाचूर हो गया।। * वक्त की ठोकर लगी तो हर बात समझ आ गई। वक्त के आगे आदमी कितना मजबूर हो गया।। * रिश्ते सभी अजनबी हो गये हैं आजकल। अपनापन भी देखिए कितना मगरुर हो गया।। * मतलबी इस जहाँ मे पैसा ही है सबकुछ हुआ। चन्द सिक्कों की खनक मे हर कोई मखमूर हो गया।। * चेहरे पर चेहरा चढ़ा इंसान बहुरुपिया हुआ। आईना भी ये देखकर चकनाचूर हो गया।। * मखमूर-मतवाला * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

नूतन लाल साहू

आजकल का हाल दिन दहाड़े भीड़ में भी हो रहा है,आदमी का कत्ल आदमी से आदमी डरने लगा है आजकल। प्यारा सा चमन में तड़प रहा है,सौहाद्र यहां टांग खींच रहें है, एक दूजे की चिंता किसे है,देश की आदमी से आदमी डरने लगा है आजकल। सांप्रदायिक शक्तियों ने फिर से सर उठाया है,देश में मर रहें है,अनेक निर्दोष राम राज्य कैसे आयेगा आदमी से आदमी डरने लगा है आजकल। अन्न उगाने वाले भूखे पेट,सोने को मजबूर है मेहनत करने वाले बुनकर बिना कफन, मर जाते है ये तो हाल है,आजकल का। कपकपी सी रूंह में है जल रहा है,तन बदन आगे क्या होगा,कोई न जाने क्या ये सभी,पल भर के है। आदमी से आदमी डरने लगा है आजकल ये तो हाल है आजकल का। नूतन लाल साहू

ऊषा जैन कोलकाता

*फिसलता जीवन* फिसल रहा है जीवन पल पल जाने किस दिन आए ना कल।  तेरा मेरा करते करते जीवन की साझँ रही है ढल।  कौड़ी कौड़ी रुपया जोड़ा हरदम लगता तुमको थोड़ा।  कैसा कैसा खेल रचाया अपने सपनों को भी तोड़ा।  दुनिया से  रहता  बेगाना रिश्तो का भी मर्म न जाना।   माया ने  तुझको भरमाया भूल गया सुकून से जीना।  अंत समय जब आ जाएगा सब कुछ छोड़ यहीं  जाएगा।  ठहर जा तू अब मन बावरे ढेर  राख का रह जाएगा।  🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏 * ऊषा जैन कोलकाता *

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल की आज की रचना निहारी जाय,सुझाव आमन्त्रित हैं......           सन् बीस बिता लाकडाउन मा,     टीकाकरण इक्कीसु मँझारी।।             समीप लखो सन् बाइस का,            ओमिक्रान दिखै जग आय बुझारी।।                                         जग बीचु घना यहू हिन्द मुला,            भगवान कृपालु थे अवढरदानी।।             दोआब जँहा माई गंग जमुन,             भारती मोरी महा बलिदानी।।         जेस हाल दिखा जग केर सदा,सबसे बढि़या यहु हिन्द कहा।।                                        नहि वैइसु करारी लचारी ढही,           जस इटली अमेरिका देश सहा।।       यहाँ तीर्थ बसी जँह काशी सदा,        अयोध्या औ मथुरा हु तीरथ भारी।।                                          सोमनाथ औ द्वारका हार विहार,      गातन पिण्ड गया जँह चारी।।            देवी औ देवतनु वास सदा,              विन्ध्य औ वैष्णवी धामु खरारी ।।         कवि चंचल कैइसु बेचैन बसैं,           ओमिक्रानौ ख्यालु रखैंगे मुरारी।।     ओमनगर, सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश।। 228001।। मोबाइल...8853521398,9125519009।।

विजय कल्याणी तिवारी

/  गंतव्य  / ---------------------- पाँँव जो गंतव्य तक जाता नही वह कभी भी सत्य सुख पाता नही। जो अहम स्थान देता है हृदय को ढोंग करता है कभी ध्याता नही । है बहकता मीत नित सामर्थ्य मे मानवीय गुंण कंत अपनाता नही । है अहंकारी पतन तब तय रहा नम्रता का भाव मन आता नही । जिसका लेने में भरोसा है सदा ही वह आदमी बनता कभी दाता नही। जिंदगी के पुस्तकों के रंग को न समझ पाया हो वह ज्ञाता नही। जिस मनुज के मुख सदा मधुबैन है उस मनुज को दुख भी दहलाता नही। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना   शीर्षक।।* *।। कोशिश करने वाले हाथों की* *लकीरें बदल     सकते         हैं।।* *।।विधा।। मुक्तक।।* 1 तुम चाहो तो  हर तस्वीर बदल सकते हो। चाहो तुम तो     तकदीर बदल सकते हो।। यदि नहीं   मानी      मन  से    हार  तुमने। हाथों की तुम तो  लकीर बदल सकते हो।। 2 आ जाये उजाला तो फिर अंधेरा हट जाता है। जीत पक्की  जब     शब्द हौंसला रट जाता है।। सोच बदले तो नतीजा भी जाता  है    बदल। सफलता तभी निराशा का भाव छट जाता है।।  3 जीवन में उम्मीद भी   और आघात    भी     है। हार के साथ ही जीत   की सौगात   भी      है।। उम्मीद का दामन न  छोडो तभी जीत मिलती। जीत के हर मंत्र का    यही ख्यालात  भी     है।। 4 उमंग और जज्बे से     हर उड़ान   होती     है। जोशो जनून से  दूर  बाधा इस जहान होती है।। बस पँखों से    ही     कुछ नहीं    है      होता। हौंसला तो  सामने मंज़िल मुकाम     होती है।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस "* *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

डा.नीलम

पाती बेटी की माँ सुनो ना  तुम भी सोचोगी इतने अर्से बाद क्यों मैंने पाती लिख कर अपने मन की पीड़ा लिख दी समझ नहीं पाई थी जब मेरी विदाई पर तुम एकांत में जा मेरी छुटी हुई चीजों से लिपट लिपट रोईं थीं आज विदा मेरी भी बेटी हुई घर खाली-खाली हो गया दीवारों की खाली खूंटियां रसोई के खड़कते बर्तन पोर्च का खाली झूला खिले महकते फूल और वो दरवाजे से बाहर निकलता मुस्कराता अदृश्य चेहरा लाख छूने की कोशिश में हाथों का रीता रह जाना अब समझी  क्यों तू बिलख कर रोई थी क्या टूटा था तेरे भीतर रो तो नहीं पाई मगर तेरे भीतर की कसक आज भावविह्वल हो लिखने की कोशिश की है विरही बदली बरसाए बिना बूंद बूंद आखर में समेटने की कोशिश की है कि बरसो तक ये  भीगे अक्षर की पाती हर माँ की पीड़ा की थाती रहे।         डा.नीलम

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद तारे ख़़फा हों,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   चाँद तारे ख़फा हों कोई ग़म नहीं  दीप जुगनू  से निस्बत निभाते चलें । दौरे गर्दिश के मारे हैं जो  राह   में   हम गले से  उन्हें भी लगाते   चलें ।।  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  राह दुश्वार, मंज़िल  बहुत दूर   है  वक्त  का  ये मसीहा भी मग़रूर है।। ज़ख्म सीनें में, कदमों में छाले लिये  हर  सपन  को ,हकीकत बनाते चलें।। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   हार कर जंग जीने की चाहत न  हो  कौन है इस जहाँ में, जो आहत न हो।। अश्क आँखों में, ओठों पे मुस्कान  ले  राह  जीने की ,सबको   दिखाते चलें ।। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   मुफलिसी ही लिखीजिनकी तकदीर में  हम  दिलायें  यकीं, उनको  तदबीर  में   खिल उठेंगे  मरुस्थल में फिर से चमन  हम  पसीना  ज़मीं  पर    बहाते  चलें  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  घुल गई नफरतों की, हवा में ज़हर   मज़हबी लग रहे हैं, अमन के शहर  हाथ जिनक

सीमा मिश्रा बिन्दकी

विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो मानवता हो लक्ष्य मनुज का कर्मनिष्ठ हो ज्ञान दो, हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो। अग्निकुंड की दीप ज्योति में भस्म करो दुष्कर्मों को, नई भोर की नई रश्मि से जगा दो मां सत्कर्मों को। रोग दोष से मुक्त धरा हो कल कल स्वर का दान दो, हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो। अनुरागी कर्तव्यों के हो वाणी से मृदुभाषी हो, द्वेष भावना पनप न पाए चिंतन के अभिलाषी हो। कांटे बनकर पग में चुभे न पुष्प बने वरदान दो, हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो। भ्रमित न हो मां दिशा ज्ञान दो अंधकार न छा पाए, जड़ता विनष्ट हो जग से किरण भानु की छा जाए मुक्त गगन और मुक्त धरा हो मानव को संज्ञान दो, हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो। रचना -  सीमा मिश्रा , बिन्दकी फतेहपुर स्वरचित v सर्वाधिकार सुरक्षित

अमरनाथ सोनी अमर

मुक्तक- मुखौटा!  मात्राभार- 30!  असली मुसलिम बाबा,दादा,          मुसलिम रीति विवाह हुआ!  मुसलिम रीति मरे पर उनकी,             कलमा पढ़कर दाह हुआ!  आज देख लो मत के खातिर,                भगवा धारी बन करके!  हिंदू- धर्म मुखौटा पहनें,              घर -घर माँगें वही दुआ!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

नूतन लाल साहू

ऐसा क्यों हो रहा है पूजा स्थल होता है अति पावन मंदिर मस्जिद को बना दिये,सत्ता का साधन राजनीति में हिस्सा मांगे,आधा आधा लड़े बाप से बेटा और पोते से दादा आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। लगता है प्यारे, अकल तेरी चरने गई है,घास समरथ को नही,दोष कछु कह गये गोस्वामी तुलसीदास सदगुरु के बिना मोक्ष नही बिरथा जनम गंवाया अब भी प्यारे,समय है सोच में मत पड़ ज्यादा पर सदगुरु,इस कलियुग में मिलता कहां है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। अपनी अपनी सभी हांकते है बहरे हो गये है,सुनकर कान पर संकट की घड़ी में कोई न सुनने वाला मिलेगा चाहे कितना रो ले गा ले पहले यह कथन कटु सत्य था सांई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूं,साधो न भूखा जाय परंतु अब,मन में संतोष कहां है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। नूतन लाल साहू

अवनीश त्रिवेदी अभय

प्रस्तुत है सिंहावलोकन घनाक्षरी छंद... आइए मिलाएं हाथ, हमेशा रहेंगे साथ,                       मन में कोई बात हो, खुल के बताइए। खुल के बताइए तो, उर से हटेगा बोझ,                       अधरों  पे  फिर मृदु, मुसकान लाइए। मुसकान लाइए तो, चेहरे पे खिले नूर,                        घर- आँगन  महके,  सुमन  लगाइए। सुमन  लगाइए तो, पावन हृदय बने,                        उर के समीप आप, फिर चले आइए। अवनीश त्रिवेदी 'अभय '©

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना  शीर्षक।।* *।।हर क्षण,हर पल,जीवन को* *अच्छा आप     बनाते   चलें।।* *।।विधा।।मुक्तक।।* 1 जिन्दगी का साथ आप  हमेशा निभाते   चलिये। हर घड़ी जीवन बढ़िया आप  बनाते      चलिये।। अशांति  क्लेश  जीवन में    न कर पाएं  प्रवेश। क्षमागुण    से  समस्या  आप सुलझाते  चलिये।। 2 सीखें  लहरों से  गिरना और      फिर     उठना। सीखिये  अच्छा सच्चा  बोलना    और   सुनना।। सरल विनम्र   शांत बने   यह है    जीवन प्रबंधन। अनुभव से      सीखना उसको  फिर     गुनना।। 3 नाकामीउतार कर जोश की      चादर    ओढ़ लें। भरेआग सीने  में   और निराशा     छोड़        दें।। परिस्तिथि कैसी हो मन स्तिथि न   बिगड़े  कभी। मैं से हम   की       ओर राह    अपनी    मोड़ लें।। 4 जानलें  अच्छे   व्यवहार का  कोई      मूल्य  नहीं। कोईअन्य सद्गुण इसके जैसा    तुल्य          नहीं।। सुंदरवाणी में क्षमता सारे दिलों   कोजीतने      की। ये सारांश कोईअन्य पूंजी व्यक्तित्वजैसीअमूल्य नहीं।। *रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस "* *बरेली।।* *©. @.   skkapoor* *सर्वाधिकार सुरक्षित*

ऊषा जैन कोलकाता

ओ राधा के श्याम बताओ कभी तो कृपा बरसाओगे।  तरस गई है आँखें मेरी मोहनी सूरत दिखाओगे।  मुरली मधुर बजा दो कान्हा सुध बुध अब बिसरादो कान्हा।  मोह माया के काटो फँदे अपने धाम बुलालो कान्हा।  🙏🌹🌹🙏 ऊषा जैन कोलकाता

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 29/12/2021           ------  छंद महालय ----- प्रथम पूज्य गणराज विराजे , छंद महालय में । मात  शारदा  वीणा  बाजे , छंद महालय में ।। ज्ञान चक्षु तमनाशक भव के , छंद महालय में । भरे सजगता सब नीरव के , छंद महालय में ।। सत्य कथन प्रेरक प्रिय बातें , छंद महालय में ।। निश्चित समय सुलभ सौगातें ,छंद महालय में ।। पौराणिक छंदों की महिमा , छंद महालय में । वैदिक भाषा वर्धक गरिमा , छंद महालय में ।। प्रांजल शब्दोच्चारण लेखन , छंद महालय में ।। शब्द भाव रस के आरेखन , छंद महालय में ।। प्रेम भाव संबंध अनूठे , छंद महालय में । सत्य रहे टिके नहीं झूठे , छंद महालय में ।। अनुशासित आदर्श निराले , छंद महालय में । छंद रसामृत मिलते प्याले , छंद महालय में ।। गुरु इंद्राणी मुदिता ननकी , छंद महालय में । नीरामणी अमित अर्चन की , छंद महालय में ।। अद्वितीय अनुपम अनुबंधन , छंद महालय में ।। नित्य नमन प्रिय पद हिय वंदन , छंद महालय में ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

/ ईश का उपहार / --------------------------- सांस ही तो ईश का उपहार है इस जगत में जीव का आधार है। स्मरण रखना सदा इस बात को रोक लोगे तब नयन बरसात को । जो दिया वापस उसे पाना अटल जो जला कर राख कर दे वह अनल। इस अनल कौन बच पाया कहो तो स्वच्छ निर्मल धार नद बनकर बहो तो। इस धार मे जग जीव का कल्याण है जो डुबाया तन जलधि मे त्राण है । भूल कर भूला तो संकट बढ़ गया आदमी इक भूल सूली चढ़ गया । आँख रोते हैं रो कर लाल लगते हैं नींद कोसों दूर अब नित्य जगते हैं । चैन की सांसें गयीं मृत्यु से भयग्रस्त है मन कुठाराघात मे देहयष्टि पस्त है । कर नही पाया उपहार का सम्मान वह बांटता फिरता जगत मुफ्त का ज्ञान वह। आज अँसुवन मे नहाता है पड़ा टूटने को सांस मृत्यु सम्मुख है खड़ा। आ रहा है स्मरण पर नही कुछ काम के मूढ़ जीते जी हुआ रहीम के न राम के विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे(आनंद) आत्म-तुष्टि से ही मिले, जीवन में आनंद। भौतिक सुख से तो रहे,ईश-राह भी बंद।। मदद करें असहाय की,जो भी हैं संपन्न। पाकर तब आनंद को,होगा चित्त प्रसन्न।। गिरे हुए को थामना, है मानव का फर्ज़। मिले तभी आनंद भी,उतरे सारा कर्ज़।। स्वच्छ सोच,शुचि कर्म से,मानव बने महान। आत्मिक सुख-आनंद से,हो जग में पहचान।। यदि पाना आनंद है,तो करना यह काम। सब जीवों से प्यार कर,जिसमें लगे न दाम।।              © डॉ0हरि नाथ मिश्र                  9919446372

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

हास्य व्यंग्य प्रधान आशुकवि की रचना का पावनमंच आनन्द ले, सभी को मेरा सादर प्रणाम....          विषय.... ।।अतर।।       देखें.....    बिखेर रहा बहु इत्र सुगन्ध,               फर्शनु अर्श अँटा अँगडा़ई।।                   जैइसेनु नाम रहा बढि़या ,                 वैसेन नाम प्रसिद्धि कमाई।।           निकसा जस सागर मंथनु ते,              वैइसेनु बाहर  भा भी जमाई।।            लक्ष्मी जसु कैदु किया था देवारनु,     वैसेन नीकु गति कस पाई।।            पाप घड़ा अकुलानु धरा जस,            सोना औ चाँदी अथाह छपाई।।       कानूननु हाथ हैं लम्बे बडे़ ,          चलती कहाँ बहु दिन चतुराई।।        रेड परी सरकार छकी तब,                चंचल घोरि अकूत  कमाई।।               गुनाह नहीं हौं सेठ कही,                शासनु केरि कमी हौं गाई।।                     कैसी गढ़ी खुफिया यहु देशु,             जान सकी नहि नीति बुराई।।           सुदृढ़ होत जौ शासनु ई, तौ               चलती नहि केहु कै चतुराई।।               जौ शासनु हिन्द जुगाड़ चलै,            तौ जुगाड़नु होत अकूत कमाई।।        छल,छद्म ,कपट ,चतुराई जतिक,     अवगुन ज

नूतन लाल साहू

नववर्ष अभिनंदन अभिनंदन अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन। ये वर्ष बीत रहा है कोरोणा महामारी के आतंक से जर्रा जर्रा डरा हुआ है पत्थर भी घबराया है कैसे सुनाऊं,किसको बताऊं लाशों का ढेर लग गया है नववर्ष की नई सुबह से नई उमंगे और खुशियां हो अभिनंदन अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन। सांप्रदायिकता की आंधी चल रही है मेरे देश में महंगाई का रोना रो रहे है नर नारी भारत मां के आंचल पर खुशियां ही खुशियां भर दें अभिनंदन अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन। लोग अपने साये से भी डर रहे है आजकल अगले बरस के पहले ही खुशनुबा माहौल बनें नववर्ष की नई सुबह से नई उमंगे और खुशियां हो अभिनंदन अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 26/12/2021                ------  आभा ----- दो फूल खिले हैं गुलशन में । सुमन वाटिका महक उठी है , महाकाल के आँगन में ।। ज्योतिर्मय आभा है बिखरी , क्षण कण बीते दर्शन में । प्रतिपल प्रीत पुरातन जागे , संयुक्त शुभे अर्चन में ।। वंदन वाणी के मन भाये , नमित भाव हैं प्रवचन में । जीवनलता फलित हुई है ,  रंजित शुभदा  प्रहसन में ।। पौराणिक महिमामंडन स्वर , प्रमुदित प्रहसित पाहन में । नवपथ पथी अग्रसर होता , दिवस अवसान महाधन में ।। हर्षानुभूति हृदय मंंच लख , नैन टिके शुभ बंधन में । दिव्य यज्ञ संपन्न सुहाने , सृजनार्पित पद पावन में ।। स्वप्न सभी लक्षण साकारी , प्रेरित प्रेमिल परिजन में । दिव्य ध्वजारोहण परिलक्षित, मंत्र गुँथे मन तोरन में ।।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

/ पिछले पृष्ट / -------------------- पिछले पृष्ठों को खोलो तो कौन गया लेकर बोलो तो रिक्त हस्त ही जाना होगा अपनी जगह बनाना होगा। पुण्य किया तो अश्रु बहेंगे स्वजन हितैषी साथ रहेंगे। किया पापतब नर्क भोगना इन भोगों को कठिन रोकना। जब तक जीवन जागो भाई व्यर्थ न जाए यह तरूणाई । काम करो कुछ ऐसे जग मे पुष्प खिलेचल दो जिस मग मे। ध्रुव तारा सा चमको दमको पथ दिखलाओ उनको हमको। जीवन सही अर्थ से जीना कलयुग अमिय राम रस पीना। राम अगर हिय धार लिया है तब निज जीवन प्यार किया है। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया             संवाहक ----------------------------------- संवाहक श्री कृष्ण जी , गीता का शुभ सार । बढ़ा प्रीत की रीत को , किए जगत उद्धार। किए जगत उद्धार , मित्रवत् भाव समाए । कहे सुदामा श्रेष्ठ , त्याग का मर्म बताए । कह स्वतंत्र यह बात , भावना होती दाहक । बस दूजे के पास , यही बनते संवाहक ।। संवाहक का कार्य ही , छूता दोनों छोर । माध्यम बनता वह सहज , बन जाता सिरमौर । बन जाता सिरमौर , कभी यह पाए ताना । मौलिक गुण से युक्त , बुने यह ताना बाना । कह स्वतंत्र यह बात , प्रथम यह बनता ग्राहक। ग्रहण करे यह मूल , तभी बनता संवाहक ।। संवाहक की धैर्यता , जीवन का सम्मान । भ्रमर भाव की मधुरता , पुष्प करे गुणगान । पुष्प करे गुणगान  , दूर जब यह उड़ जाता । कहते हैं सब लोग , भ्रमर संदेशा लाता । कह स्वतंत्र यह बात ,  आज यह लगता नाहक । पौराणिक परिवेश , मुख्य होते संवाहक ।। मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सिंधु-वंदना                सिंधु-वंदना हे महाशक्ति!हे महाप्राण!मेरा वंदन स्वीकार करो। कर दो संभव मैं तिलक करूँ,मेरा चंदन स्वीकार करो।।            हे महाशक्ति,हे महाप्राण!.... युगों-युगों से इच्छा थी,कब तेरा दीदार करूँ? नहीं पता चाहत थी कब से तेरा ख़िदमतगार बनूँ? करूँ अर्चना तत्क्षण तेरी,मेरा क्रंदन स्वीकार करो।।            हे महाशक्ति,हे महाप्राण!.... ललित ललाम निनाद तुम्हारा महाघोष परिचायक है। जलनिधि का नीलाभ आवरण चित्त-हर्षक-सुखदायकहै। करो कृपा मैं आसन दे दूँ, मेरा आसन स्वीकार करो।।             हे महाशक्ति,हे महाप्राण!.... पूनम का वो चाँद सलोना जब अंबर पे होता है, तू ले अँगड़ाई ऊपर उठ कर बाहों में भर लेता है। बँधू प्रेम-धागे से तुझ सँग, मेरा बंधन स्वीकार करो।।            हे महाशक्ति,हे महाप्राण!.... तू पयोधि-उदधि-रत्नाकर,जल-थल-नभ-चर पालक है। प्रकृति-कोष. के निर्माता तू,जीवन-ज्योति-विधायक है। चरण पखारूँ मैं भी तेरा,मेरा सिंचन स्वीकार करो।।         हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....।।               © डॉ0हरि नाथ मिश्र                9919446372

नंदिनी लहेजा

तुलसी विधा-कविता घर के आंगन में तेरे रहती हूँ, नाम मेरा है तुलसी। कहते हैं सब कृष्णप्रिया मुझे, में तो हूँ उनकी दासी। क्यारी में जल डाल, कोई मुझको सींचे। और भोर संध्या को दीप जलाकर, कोई  देवसम पूजे। किसी के लिए मैं, केवल इक पौधा साधारण। तो किसी के लिए, मेरे पत्ते हैं औषधि। किसी के लिए, शुभता का प्रतीक मैं। तो किसी के लिए मैं, इक अध्यात्मिक निधि। वृंदा रूप में सतीत्व गवां, दिया था श्राप विष्णुजी को। बन गए पाषाण भगवन,और वृंदा चली अग्नि को। हुई राख इक पौधा पनपा, नाम दिया विष्णुजी ने तुलसी। पाषाणरूप में कहलाये सालिग्राम, और तुलसी उनकी प्रियसी। नंदिनी लहेजा रायपुर(छत्तीसगढ़) स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

रवि रश्मि अनुभूति

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '     🙏🙏 महफिल-ए-ग़ज़ल मिसरा ---- *आप की दिल लगी नहीं जाती*। बह्र ---- 2122   1212   22 क़ाफ़िया   ---    ई स्वर रदीफ़      ---    नहीं जाती *क़फ़िया के उदाहरण ली , दिल - लगी , बेकसी , कही , सुनी ,  पी , दी , की, सही , बे - खुदी , बेबसी ,  ही , दीवानगी , खुशी , जली, हँसी, बड़ी, मिटी, छिपी , चली , छली , खुली , रही इत्यादि ।*      ग़ज़ल   ÷÷÷÷÷÷÷ बात ऐसी कही नहीं जाती ..... बेवफ़ाई सही नहीं जाती ..... ये कहानी बनी हुई देखो  ..... ये बनायी कभी नहीं जाती .....  ये बेकसी लगी अभी भारी ..... आज लेकिन छली नहीं जाती ..... साथ वो जो चले बने साथी ..... आज भी वो खुशी नहीं जाती ..... प्यार करके मुकर न जाना तुम  ..... बेवफ़ाई सही नहीं जाती .... आज धड़के अभी सुनो दिल भी ..... ( आपकी दिल लगी नहीं जाती ..... ) दिल लगे ही नही कहीं अब तो ..... दिल से दीवानगी नहीं  जाती ..... ###################### (C) रवि रश्मि'अनुभूति ' मुंबई   ( महाराष्ट्र ) ₩2₩0₩₩1₩2₩₩₩2₩0₩2₩1₩1₩1₩1₩1₩₩P₩₩C. 2122   1212   22

अमरनाथ सोनी अमर

कुण्डलिया- परिवर्तन!  परिवर्तन जग का नियम, प्रकृति परा भगवान!  ठंडी़, गर्मी, शीत ॠतु, तीनों काल महान!!  तीनों काल महान, इन्हें जरूर है आना!  तब तो होय विकास, बस्तु का मिले खजाना!!  कहत अमर कविराय, प्रकृति  के बल अपवर्तन!  बदल जाय भी स्वास्थ्य, यही जग का परिवर्तन!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

डाॅ० निधि त्रिपाठी

*यामिनी ने करवट में काटी*  यामिनी ने करवट में काटी,  अम्बर तल पर निशा सगरी,  झुरमुट तारों के बीच बैठ,  रही देखती विरहा बदरी । स्निग्ध चन्द्र धुधला सा गया,  हिय पीर समा पराई गई।  अति कौतुक भौरा चूम गया,  प्रसून कली शरमाई गई। झन झन झींगुर झनकार रहे,  तट तरनी किरनें नाच रहीं।  इठलाय चली धारा नद की,  पिय राह मिलन की आस वहीं। शशि भाल सुशोभित हैं नभ के,  तारागण बिखरे स्वागत में।  पिय योग वियोग,सुयोग नहीं,  यामिनी जलती चाँदनी में। यामिनी सजी शशि किरनों से,  दिन सज्जित हुआ रवि रश्मि से, दिन-रैन मिलन बस पल भर है, हिय टीस मिटे न दोउ मन से। स्वरचित-  डाॅ०निधि त्रिपाठी , अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर ।

अमरनाथ सोनी अमर

कविता- अटल सम्मान! देश सियासत  नये मोड़ में, अटल ने बीडा़  खाये थे!  दीन दयाल के  सिद्धात पर,चलकर उन्हें   दिखाये थे !!  जनता की सरकार चुनी जो, जन के लिये बताये थे !  जनता की गाढी कमाई, जनता लिये लगाये थे!!  पोखरण परमाणु बमों का, सफल परिक्षा करवाये!  ताल ठोक दुश्मन देशों को, हम मजबूत बता पाये!!  कारगिल के युद्ध में उसने, दुश्मन मजा चखाये थे!  नया सबेरा हुआ देश में, तिरंगा फहराये थे!!  अपने सभी सियासत गर को, मंत्र दिया वह भारी है!  सेना हाथ हमेशा खोलो, भारत पहरे दारी हैं!!  नदी जोडकर बांध बनाये, हरियाली भी लाये हैं!  कावेरी जल का विवाद ,दशकों से सुलझायें हैं!!  टेलीकाम की नई व्यवस्था, जन जन तक पहुचाये हैं!  छोटे बड़े अमीर सभी जन, हाथ उन्ही पहुंचाये हैं!!  स्वच्छ पेय पर बडी़ समस्या, नयी योजना लायें हैं!  जलधारा का नियम बनाकर, जन जन तक पहुंचायें हैं!!  अपराधों पर देख समस्या, अटल बहुत हैरान हुये!  पोटा सा कानून बनाकर, अपराधी को सजा दिये!!  जनता के धन का घोटाला, उन पर नजर गडा़ये थे!  करके वही व्यवस्था उसने, सौ प्रतिशत पहुंचाये थे!!  हर गाँवों के उन्नति के हित, पी यम सडक बनाये थे!  आवागमन दे

डॉ. कवि कुमार निर्मल

नेहरु कैलाश खोया पर बेटी ने बंगला देश बनाया। लाल बहादुर और अटल ने सीमाओं को बचाया। लाखों शहीद हुए फौजी अब तक ऑपरेशनों में, अब तो गब्बर मोदी पुलवामा पार धुस के आया।। नेहरु परिवार बार बार बस दिल्ली दौड़ा। अटल ने सिलचर को गुजरात से जोड़ा। मोदी नोटबंदी कर काला धन सामने लाया, जमुना गंगा राजमार्ग, बुलेट से गति मोड़ा। डॉ. कवि कुमार निर्मल___ ✍️

डॉ.अमित कुमार दवे

विषय : अटल  बिहारी वाजपेयी विशेष ©शब्द - स्वप्न - संवेदन को जीवन राष्ट्र का करना होगा    जननायक को अब अटल-सा फिर से बनना होगा ।।                  डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा, राजस्थान अटल के अटल आदर्शों को आचरण बनाना होगा, राष्ट्रीय राजनीति को पुनराभा से युक्त से करना होगा।। एकनिष्ठ राष्ट्र का निर्माण अब हर जन को करना होगा, स्वप्न अटल का मिलकर हमको नूनं पूर्ण करना होगा।। गिरती गरिमा से फिर  राजनीति को ऊपर लाना होगा, सूत्र 'रामो द्वि वारं नाभिरभते' का स्थापित करना होगा।। सम्पूर्ण विश्व को राष्ट्रीय गरिमा का पाठ समझाना होगा, राष्ट्रीय अस्मिता ध्यान में रख हर व्यवहार करना होगा।। बिखरे अन्तरभारत को अब सूत्र एक में पिरोना होगा, स्वप्न अटल का मिलकर हमको शीघ्र पूर्ण करना होगा।। बन रत्न राष्ट्र का हर जन को नव निर्माण करना होगा, भारतवर्ष के खातिर संक्षिप्त स्वार्थों को छोड़ना होगा।। सहृदयी - सहज कविमन - तटस्थ विपक्षी ढूँढना होगा, शब्द - स्वप्न - संवेदन को जीवन राष्ट्र का करना होगा।। जननायक राष्ट्र का अब अटल-सा फिर से बनाना होगा, अनुभवी-संवेदी हाथों को ही नेतृत्व राष्ट्र का देना होगा।। गिरते

चेतना चितेरी

एक किसान के हृदय का मर्म _____________________ दिन— रात वे खेतों पर ,कितना काम करते, उनकी मेहनत को हम क्यों नहीं देखते? खुद भूखा रहकर दूसरों के लिए अन्न उगाते, क्या! हम उनको सही मूल्य दे पाते । उनसे सस्ते भाव में सौदा करते, बाजारों में मनमानी भाव बेचते। लेना है तो लो !नहीं तो जाओ, समझेगा कौन उनके हृदय का मर्म ? बच्चे भी ! उनके पढ़ना चाहते, नामी स्कूलों की फीस है कितनी महंगी, जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ, यह सोच दिन—रात खेतों पर काम करते। खरीफ की फसल अभी कुछ राहत देगी, लग जाते रबी की बुवाई में, आंखों में चमक लिए बारहों महीना करते हैं  कितना काम, हम और आप क्यों उनसे मोलभाव करते? किसानों का दर्द एक किसान ही जाने, खेती में कितना लागत लगता है, उनका मुनाफा कौन सोचे! ताउम्र  जोड़ते —घटाते  बीत जाती जिंदगी! यह कहकर _‘आराम हराम है’ लग जाते खेतों पर। दिन-रात खेतों पर वे कितना काम करते  उनकी मेहनत को हम क्यों नहीं देखते? आप सभी को किसान दिवस की हार्दिक बधाई। (मौलिक ) चेतना चितेरी , प्रयागराज

मार्कण्डेय त्रिपाठी

ओमिक्रान ओमिक्रान के रूप में देखो , फिर से कोरोना फैल रहा है । हाहाकार मचा पश्चिम में , हमने भी यह मैल सहा है ।। भयाक्रांत है जन मानस फिर, पता नहीं हे प्रभु क्या होगा । दो डोज वैक्सीन लगवाए हम, बहुत कष्ट हम सबने भोगा ।। दो वर्षों के बाद किसी विधि, दौड़ रही जीवन की गाड़ी । फिर से पटरी से गर उतरी , बन जाएंगे सभी कबाड़ी ।। लापरवाही बरत रहे हम , मास्क लगाना भी हैं भूले । कहते घुटन होती है इसमें , कब तक यूं मुंह ढककर झूलें ।। दो गज दूरी विस्मृत है अब, बाजारों में भीड़ बढ़ी है । सेनेटाइजर कौन लगाए , सबकी भृकुटी आज चढ़ी है ।। जनता पर ही सभी नियम हैं, नेताओं पर असर न होता । बदस्तूर करते हैं रैली , सभी लगाते इसमें गोता ।। भीड़ जुटती लाखों की है , जिम्मेदार कौन है इसका । किसे फिक्र है कोरोना की , भला नाम लेंगे हम किसका ।। चुनावी प्रक्रिया शुरू है , लोकतंत्र उत्सव आया है । भंग पड़ी कुएं में देखो , गजब कोरोना की माया है ।। बिना मास्क के नेता घूमें , असर नहीं उन पर कुछ होता । केवल जनता ही पिसती है , भला कौन नियमों को ढोता ।। यही हाल सारी दुनियां की , कोरोना की अद्भुत माया । भेदभाव कर रही बिमारी , ब

नूतन लाल साहू

क्रिकेट का खेल क्रिकेट का संसार भी होता है बड़ा अजीब खेल अमीरों का है मगर रहते है मस्त,गरीब भी। खेल के दौरान काम धाम सब भूलें भूलें चिंता सारी कितना है स्कोर,यह जानने को पूछते रहते है,हर पल। देश के बूढ़े,बालक युवा और देश के सब नर नारी जब भी होता है मैंच तो एकता दिखती है भारी। क्रिकेट का संसार भी होता है बड़ा अजीब। अगर आपको जाड़ा गर्मी सताएं तो क्रिकेट कमंटरी सुनें,ध्यान से सारी चिंताओं को भुलने के लिए मैंच का नुस्खा है पक्का। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई नही बन सके, हमेशा के लिए भाई भाई क्रिकेट मैच सदा सुखदाई बंद कर देता है,सारी लड़ाई। जब लगता है,चौका छक्का इतना आनंद आता है जैसे कि हम है,काशी मक्का में क्रिकेट का संसार भी होता है बड़ा अजीब खेल अमीरों का है मगर रहते हैं मस्त गरीब भी। नूतन लाल साहू

विजय कल्याणी तिवारी

/ नेह मयी बरसात करूँ / -------------------------------- नेह मयी बरसात करूँ खुल कर तुमसे बात करूँ। इतना ओछा कभी नही था जो पीछे से घात करूँ । दिन को दिन ही रहने दूं बोलो कब कैसे रात करूँ। जिनके जीवन अंधकार मे उनके जीवन प्रात करूँ । जो है पास तुम्हारे बांटो मैं नेह जगत से तात करूँ। जिस बंधन में सुख दुख दोनों वह बंधन बांध प्रभात करूँ । बहुत चैन से नींद आ जाए यद्यपि या अर्थात करूँ । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधुशंंखधर स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया             घमंडी रहे घमंडी जब मनुज , होता साथ विनाश । भ्रम में सोचे जीव यह , छू लेगा आकाश । छू लेगा आकाश , स्वयं को ऊँचा माने । बाकी सारे निम्न , किसी को क्यूँ पहचाने । कह स्वतंत्र यह बात , बने जीवन पाखंडी । खुले पतन का द्वार , जहाँ पर रहे घमंडी ।।  हुआ घमंडी शत्रु जब   , पाया वह परिणाम । समझ न पाया वो कभी , प्रभु ही  हैं श्री राम । प्रभु ही हैं श्री राम , भूल सीता हर लाया । धरे शत्रु का भाव , राम को शत्रु बनाया । कह स्वतंत्र यह बात , अगन बन जले प्रचंडी । रावण का यह पाप , सदा वह रहा घमंडी ।। भाव घमंडी जब बढ़े , बिगड़े घर अरु द्वार । चहूँ दिशा आतंक हो , फैले बस व्यभिचार । फैले बस व्यभिचार , लूट अरु मार कराए । अहम् स्वयं का वास , पतन का मार्ग दिखाए । कह स्वतंत्र यह बात , बने मन भाव शिखंडी । बुद्धि भाव का फेर  , कराता युद्ध घमंडी  ।। मधुशंंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहा गीत           दोहा गीत(चीन के लिए चेतावनी) भारत की प्रभुता अमिट, नहीं किसी आधीन। हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।। करो नहीं तुम मूढ़ता,सीमा को मत तोड़। चाल तुम्हारी अति घृणित,अब ज़िद अपनी छोड़।। पुनः किया गतिरोध तो, सत्ता  लेंगे  छीन। हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।। तेरी शोषण-नीति अब,नहीं करेगी काम। तेरी झूठी शान का,होगा काम तमाम।। सुनो खोल के कान तुम,नहीं हिंद है हीन। हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।। अब तो तेरी चीन सुन,नहीं गलेगी दाल। समझ गया यह हिंद अब,तेरी टेढ़ी चाल।। सीमा-रेखा लाँघ कर,कर न पाप संगीन। हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।। एक-एक को खींचकर, मारेंगे ये वीर। समर-कला में निपुण अति, सब सैनिक गंभीर।। विविध आयुधी-ज्ञान में,सेना सभी प्रवीन। हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।। तुम लोलुप,अति कुटिल तुम,यह तेरी पहचान। मानवता को त्याग कर,मिथ्या धन-अभिमान।। मानवता-उपकार ही, हिंद-मूल्य  -प्राचीन । हिंद-सैन्यबल अति सबल,बचकर रहना चीन।।                © डॉ0हरि नाथ मिश्र                    9919446372

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ----                ------ भोर ----- चल शुभ भोर हुई अब । जाग साधना पर लग जा ।। चहलपहल हर ओर हुई अब ।   मन केंद्रित हो आराध्य जहाँ । भटकेगा ये क्यों कहाँ कहाँ ।। बीते जग से शोर हुई अब । ब्रह्म तेज से मन को भर ले । अंतस के तम तट को हर ले ।। क्रिया शक्ति की डोर हुई अब । चंचल वृत्तियाँ शाँति के पथ । मंगलनाथ मिलन का अथ कर ।। विमल भावना जोर हुई अब । दृष्टिकोण परिवर्तन संभव । अनुभव होता निज में अभिनव ।। अंत्य भक्ति चहुँ छोर हुई अब । सार सुसंस्कृत सुदूर सुगीत । परम ज्योति आभासित पुनीत ।। चित्त तूर्य मति मोर हुई अब ।                    -------- रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह ( छ. ग. )

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

दिनांक 24/12/2021       'जीता है संघर्ष सदा'                   क्या हुआ न मिले अगर जो पहली बार सफलता ज़िद पर अड़े रहो जीत का यही है उपाय सस्ता।। कोशिश करे गर कोई तो क्या हो नहीं सकता मंज़िल तो तय है कैसा भी    हो कठिन रस्ता।। है कौन दुनिया में जिसे सब कुछ मिला यूँ ही ये सफ़र ज़िंदगी का इतना भी नहीं सस्ता।। नाउम्मीद जो बैठे हैं अब कोई क्या करे उनका हौंसलों ने उम्मीदों से खुद ही जोड़ लिया रिश्ता।। मिलकर चले जिस पर उस राह के हमराही  कुछ पहुँचे मंज़िल पर, कुछ भूल गए रस्ता।। मैंने भी स्वीकार ऐसे ही  नहीं की चुनौतियाँ मैं वो काम करती हूँ जो कोई कर नहीं सकता।।                    इसीलिए संघर्ष करने से कभी मत घबरा जाना इतनी भी आसानी से  नहीं मिलती सफलता।। चंचल हरेंद्र वशिष्ट, आर के पुरम,नई दिल्ली भारत

अमरनाथ सोनी अमर

मिल न पाओ तुम अगर!  2122,2122,2122,212. मिल न पाओ तुम अगर नुकसान क्या होगा हमें!  सोचती हो क्यों तु मन में जान मन जाओ तुम्ही!  रोज करती रार तुमतो धमकियाँ देती हमें!  जो पडे़ मन में करो तुम जल्द बतलाओ तुम्हीं!!  रोज क्यों धमकी तु देती है भरोषा तुम नहीं!  कल नहीं तुम आज कर के  आज बतलाओ तुम्हीं!!  रोज का झंझट खतम कर अब तु फुरसत कर हमें!  अब तु रिश्ता तोड़ के तुम आज तो जाओ  तुम्हीं!!  जब तुम्हें मिल जाय कोई हम मिले मानों कहीं!  रोज के तकरार से अब मुक्ति दिलवाओ तुम्ही!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

मार्कण्डेय त्रिपाठी

बुढ़ापा और वरिष्ठता बुढ़ापा और वरिष्ठता में अंतर है, बुढ़ापे का नाम न लो,छू मंतर है । हम वरिष्ठ हैं, बूढ़े नहीं,यह ध्यान रहे, सचमुच यह जीवन पड़ाव मध्यांतर है ।। बुढ़ापा आधार चाहती , वरिष्ठता देती आधार । जीवन का अद्भुत रस इसमें, इसकी महिमा अपरम्पार ।। लोग छिपाते निज बुढ़ापा , वरिष्ठता को दिखलाते । वरिष्ठता आदर पाती है , समझ रहे हो क्या भ्राते ।। अहंकार होता बूढ़ों को , और वरिष्ठ अनुभव सम्पन्न । वरिष्ठता में संयम होती , कभी न वह होती विपन्न ।। वैचारिक मतभेद बुढ़ापा , युवा सोच से है बेमेल । वरिष्ठता में तालमेल है , सच में यह जीवन का खेल ।। हमारे जमाने में ऐसा था, रटती रहती बुढ़ापा । वरिष्ठता को सब स्वीकार है, कभी नहीं खोती आपा ।। बुढ़ापा निज राय थोपती , इसीलिए होता मतभेद । तरुण पीढ़ी को सदा समझती, यह वरिष्ठता का मनभेद ।। बुढ़ापा जीवन का अंत है , और वरिष्ठता सुबह तलाश । युवा शक्ति को प्रेरित करती, और जगाती रहती आस ।। दोनों में अंतर है सचमुच , सदा रखो इसका तुम ध्यान । चिंतन मनन करो निशि वासर, कभी न करना मन को म्लान ।। उम्र कोई भी हो, जाने दो , रखो सदा मन में उत्साह । सदा फूल की तरह हंसो तुम

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,,,,बाजार मत कीजे,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  चलाकर तीर नज़रों से ज़िगर पे वार मत कीजे  इबादत की ज़गह है दिल, इसे बाजार मत कीजे  .................................................   तबस्सुम बाँटिये जीवन में फूलों की तरह हर सूँ  वफा खुशबू है गुलशन की, इसे बेज़ार मत कीजे  ..............................................   धड़कने दीजिये साँसों में सरगम की तरह इसको  किसी टूटे तंबूरे की  ,इसे झंकार  मत  कीजे   ...............................................   छुपा रख्खे हैं सीने में मिले जो ज़ख्म जो तुमसे   हमारी इल्तज़ा है अब इसे, अखबार मत कीजे  ..............................................   चले तुम तोड़कर वादे कसम इसका नहीं है ग़म  मोहब्बत में किसी से अब नया, इकरार मत कीजे   ..............................................   ज़माना छोड़कर आये यहाँ चाहत में हम जिनके   वो कहते हैं, ज़माने में किसी से  प्यार मत कीजे   ..............................................   शिवशंकर  तिवारी  । छत्तीसगढ़  । ..............................................

डॉ0 निर्मला शर्मा

ये रिश्वतखोर मन के काले ईमान से दाग वाले समाज के दोषी ये रिश्वतखोर विकृत मानसिकता वाले खोलें हर फाइल के ताले करें न काम बिना रिश्वत बिगाड़ें ईमान शत प्रतिशत मोटी रकम की चाहत वाले  लोभी ये रिश्वत पाने वाले रग-रग में बसी रिश्वतखोरी हराम का लेते पैसा करके जोरी मजबूरी का उठाते हैं ये फ़ायदा इनके जीवन का नहीं है कोई कायदा हर जगह मिल ही जाते हैं ऐसे इंसान हमने ही तो बनाया है उन्हें रिश्वतखोर देकर उन्हें सुविधा पाने रिश्वत का दान डॉ0 निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

अनूप दीक्षित राही

ज़िन्दगी ने अजब से मंजर दे दिए। काँटों भरे न जाने कितने सफर दे दिए।। * खता जो न की उसकी सजा मिल गई। इल्जाम सारे के सारे हमारे सिर दे दिए।। * जमाने की दुश्वारियों मे हम जाते बिखर। शुक्रिया रब ने हमे चारागर दे दिए।। * मायूसियाँ सदा हम पर हावी रहीं। रंज-ओ-गम हमे इस कदर दे दिए।। * ज़िन्दगी की उलझनो से फुर्सत कहाँ थी। दुनिया की सारी फिकर दे दिए।। * खामोश लबों ने पूछा जो सवाल। मुनासिब सा उसका उत्तर दे दिए।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

ऊषा जैन कोलकाता

*मेरे कान्हा* मैं मन के भाव  सुनाती हूँ कृष्ण के गीत गाती हूँ।  तड़के तड़के उठ जाती हूँ नाम कृष्ण का लेती हूँ।  नैनों में कान्हा मूरत है मैं मन के भाव सुनाती हूँ।  कृष्ण के गीत गाती हूँ। ।  धड़कन में बसते हैं कान्हा साँसो की लय है कान्हा।  सुन के पुकार कभी तो मेरी आएँगे मेरे कान्हा। मै मन ही मन हर्षाती हूँ मैं मन के भाव सुनाती हूँ।  कृष्ण के गीत गाती हूँ। ।  हँसती है तो हँसले दुनिया परवाह नहीं मैं करती ।  मेरे ह्रदय के सिंहासन पर कान्हा ही तो रहते हैं।  मैं रोज उन्हें पुकारती हूँ मैं मन के भाव सुनाती हूँ।  कृष्ण के गीत गाती हूँ।।  🙏🌹 *सुप्रभात*🌹🙏 * ऊषा जैन कोलकाता *

एस के कपूर श्री हंस

तुलसी पूजन दिवस(25 दिसंबर)।।* *।। तुलसी माता को शत शत प्रणाम।।* 1 तुलसी बस इक पौधा ही  नहीं औषध       भंडार है। प्रत्येक पूजन प्रसाद में  महिमा इसकी       अपार है।। आंगन में तुलसी के वास से दूर होती है     हर बाधा। तुलसी के जप  तप  से   मिलता सुखी      संसार   है।। 2 तुलसी पर नियमित   दीप   जल देना    तपस्या  समान है। तुसली सामीप्य सेवन से  जीवन में दूर रहता व्यवधान है।। भूत,प्रेत,पिशाच   आदि    निकट आते नहीं     मनुष्य   के। गृह शान्ति के लिए तुलसी  रोपण मानो कि    राम वाण है।। एस के कपूर श्री हंस भारत रत्न  श्री  अटल     बिहारी बाजपेयीजी के जन्मदिन पर, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व  को,  श्रद्धांजलि अर्पित।।* 1 अटल व्यक्तित्वऔरअनूठा कृतित्व, भारत का सच्चा लाल था। कवित्व  की संवेदना  लिये  उनका, ह्रदय   भी     विशाल   था।। भारत रत्न  प्रधानमंत्री सदियों तक, नाम रहेगा तेरा         रोशन। श्रीअटल बिहारी बाजपेयी  जी  का, काम तो बस     कमाल  था।। 2 संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भाषण  दिया, अपनी    मातृ    भाषा     में। भारत को सशक्त स्वाबलंबी      इक, गणराज्य बनाने कीआशा में।। हिंदी,हिन्द के गौरव

विजय कल्याणी तिवारी

/  सांसें मेरी  / ------------------------ सांसें मेरी टिकी आस मे आँखें अब तेरी तलाश मे। तुम तो निष्ठुर निकले पगले पता नही क्यों इतना बदले। अनायास तुम विदा हो गए प्रिय, अनंत आकाश खो गए। देकर नयन अश्रु की धारा ढूंढ़ लिए तुम सहज किनारा। हम अपना दुख किसे बताएं तन चुभती हैं आज हवाएं । सुख शैशव मे मरा पड़ा है बुद्धि भ्रांत है कील जड़ा है । इन नयनों मे तुम ही तुम हो पर यथार्थ मे केवल गुम हो । नयन देखने तरस रहे हैं सावन भादो बरस रहे हैं । दुख का भार उठाएं कैसे तुम विहीन सुख लाएं कैसे। नियति नटी बन नाच रहा है रेख माथ के बांच रहा है । तुम जा पहुंचे चिर समाधि मे अपना जीवन विकट व्याधि मे। इस व्याधि से कौन निकालें किसको अपना मीत बनालें । मुक्ति मांगता मन कलेश है आश अंत हरि चरण शेष है । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 25/12/2021                ------ महाकाल ----- महाकाल का दरबार सजा है ।  जीव जगत की अंतः बातें, मिलनातुर यह संसार सजा है ।। ज्योतिर्मय आभास बिंदु कण , ले अपना अब आभार खड़ा है । पावनता के लक्षण पथ पग हर मूरत में साकार सजा है ।। हर जिव्हा निराकार पूजित , है त्रिपुंड पर सुखसार सजा है । दिव्य अक्ष उज्जैन नगर यह , सकल विश्व का ले भार सजा है ।। प्रवाहिनी पविता क्षिप्रा का प्रक्षालित नित पद प्यार सजा है । आज कृपाकांक्षी बन जीवन , विल्वपत्र धर हार सजा है ।। आर्तनाद गूँजित प्रण पूजित , मन वीणा का शुभ तार सजा है । विश्व कृपा कटाक्ष को तरसे , अंतर्मन पर रसधार सजा है ।।              -------- रामनाथ साहू " ननकी "                         मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!