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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *शिक्षा* ----------------------------  शिक्षा सहज विस्तार दे ,  यह ज्ञान को आधार दे । जीवन शुचित परिकल्पना,  संसार शोभित अल्पना ।। आओ चलें शिक्षित करें , समता बसाएँ शुभ वरें । लाए नया शुचि ज्ञान वो ,  जिसमें बसा शुभ ध्यान हो।। चलते चलो आगे बढ़ो ,  संघर्ष कर अक्षर गढ़ो । विश्वास मन में हो अटल ,  उत्कर्ष शोभित हो प्रबल ।। झंकृत बजे वीणा सुखद , शिक्षा सदा ही हो वरद।  माँ भारती आराधना ,  हिय में बसे संकल्पना ।। अक्षर शुभग बन वंदिता  ,  रच ग्रंथ तुलसी शब्दिता। लालित्य ग्रंथों शोभिता ,  उत्कृष्ट आभा रक्षिता ।। अन्तर समाहित ज्ञान हो  , शिक्षा नवल विस्तार हो। जन- जन बने शिक्षित जहाँ ,  शिक्षा मधुर रक्षित तहाँ ।।  * मधु शंखधर 'स्वतंत्र* *प्रयागराज* *31/03/2022*

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

मधुर मिलन (स्वर्णमुखी) जब भी मधुर मिलन होता है। तन-मन के दुख कट जाते हैं। रोग दोष सब मिट जाते हैं। जब भी भाव मृदुल होता है। सुख-दुख हैं तेरी मुट्ठी में। परहित वाचन जो करता है। सुखी बना चलता रहता है। दुख को चलो झोंक भट्ठी में। चलो सीखने नित निसर्ग से। काया-माया को जो त्यागे। मिथ्या भ्रम में कभी न जागे। बात करो प्रत्यक्ष स्वर्ग से। मधुर मिलन को सहज बनाओ। उर मंदिर में पर्व मनाओ।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 31/03/2022                ------ मधुबाला  ----- माधव मेरा है रखवाला । कर दिया हवाले ये जीवन , अब मन हुआ महा मतवाला ।। हर क्षण प्रिय उन्माद भरा है , सांसारिकता भी लगती हाला । उनसे मानस पटल सुशोभित , तन मन में अमिट रंग डाला ।। सारे सुख मेरे इस जग के , कुंजी पाई खुलता ताला । पिया मिले हैं परम सनेही , लगे छकी सी नव मधुबाला ।। हर कदम ताल से पड़ते हैं , माधव नाम जपूँ शुभ माला । भेद मिटे सारे संसारी , सब प्रिय हैं क्या गोरा काला ।। लक्ष्य मिले भटकाव मिटा , राह सुझाया  देखाभाला । अंतर्मन से गर्वित ननकी , पाकर अपना प्यारा ग्वाला ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

नूतन लाल साहू

सदाचरण सप्ताह व्यक्ति आदर परोसते है सबको लेकिन होता है अपने अपने तरीके गजब का जादू कर जाता है यदि मधुर वाणी के स्वर निकलता है किसी व्यक्ति के श्रीमुख से। सदाचरण सप्ताह के इंप्रेशन से एकदम खासमखास कोई भी बन सकता है नियमित आयोजन कर आजमां लें। यह एक अच्छी प्रथा है जिससे मिलती है, वाह इससे सीख मिलती है अच्छे आचरण का प्रदर्शन करो सबको आदर सूचक शब्दों में संबोधित करो सामने वाला,चाहे वह बड़ा व्यक्ति हो या हो कोई आम नागरिक। आदर सूचक शब्दों का प्रयोग जो करते है रोज वही अधिकारी होता है माता पिता और गुरु के आशीर्वाद का। महात्मा गांधी जी ने कहा है अपराध से घृणा करो अपराधी से नही सदाचरण के लिए प्रेरित करो आगे चलकर यही फार्मुला कामयाबी दिलवाएगी जीवन में सदाचरण सप्ताह का इंप्रेशन  अवश्य ही होता है आचरण में। नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे(दया) दया-धर्म वंचित मनुज,होता हृदय विहीन। हैं महान वे जगत में,जिनके प्रिय हैं दीन।। दया-भाव देवत्व है,अति पवित्र यह भाव। दयावान का तो रहे,सबसे सघन  लगाव।। पत्थर-दिल इंसान तो,हो अधर्म-आधार। ऐसे जन का जगत में,करें नहीं सत्कार।। मानवता का मूल है,दया-क्षमा अरु दान। मात्र एक ही से जगत,होता पुरुष महान।। दयालुता है श्रेष्ठ जग,कहते वेद-पुराण। मात्र दया का भाव ही,करता जग-कल्याण।।             © डॉ0हरि नाथ मिश्र            9919447372

मार्कण्डेय त्रिपाठी

हिन्दू नववर्षाभिनन्दन नव वर्ष का प्रारंभ है, प्रकृति हमारे संग है । हिन्दू हृदय अति मगन है, आनंद ही आनंद है ।। षट् उत्सवों में प्रमुख यह , संस्कृति की यह पहचान है । ब्रह्मा ने सृष्टि थी रची, इस पर्व का अति मान है । उल्लसित है हर हृदय, मुखरित आज कवि का छंद है ।। हिन्दू हृदय अति मगन है निकली हैं स्वागत यात्राएं, है निराली यह छटा । सजधजकर सब शामिल हुए,हर भेद बंधन है कटा । हम एक हैं, इस भाव से,बिखरा हुआ मकरंद है ।। हिन्दू हृदय अति मगन है अद्भुत है गुडी पाड़़वा का पर्व यह कहते सभी । भगवामयी शुचि सोच ऐसी, हम नहीं देखे कभी । जाग्रत हुआ हिन्दू हृदय, झांकी का अनुपम रंग है ।। हिन्दू हृदय अति मगन है आबाल वृद्ध , तरुण सभी, गाते सुरीले गीत हैं । है वाद्य यंत्रों की मधुरता,हर हृदय की जीत है । भाषण ओजस्वी हो रहे, सबसे सफल सम्बन्ध है ।। हिन्दू हृदय अति मगन है शोभित हैं स्वयं सेवक हमारे, पूर्ण शुचि गणवेश में । पद संचलन वे कर रहे, कटिबद्ध गुरु आदेश में । बंटती मिठाई आज है, पुष्पित हृदय बहुरंग है ।। हिन्दू हृदय अति मगन है जयकार भारत मां का है, राष्ट्र नायकों का गान है । यह राष्ट्रवादी सोच है, जो हर हृदय

मन्शा शुक्ला

सुप्रभात 🙏🙏🙏🙏 मधुर नम्र व्यवहार से, मिटता मन का शोक| दिव्य ईश के रूप का, फैला हैआलोक|| करें निवेदन ईश के, चरणों में चित्त लाय| पूरन हो मनकामना, बिगड़ी सब बन जाय|| मातु पिता गुरुदेव का, करती हूँ आभार| अलख जगा मन ज्ञान का,जीवन दिया सँवार| मन्शा शुक्ला

विजय कल्याणी तिवारी

// तेरा पुण्य प्रसाद // --------------------------- जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद। जब से शरण सहज गया उतरा सकल प्रमाद। नयनन में छवि धारकर उतर गया भव धार डूबूं या हो जाउं मैं  सहज रूप जग पार केवल तुम अंतर हृदय तनिक नही अवसाद जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद । उस पर कर विश्वास तो सब शंका निर्मूल तन मन में वह ही रहे अंतिम यही उसूल गहन आस्था से बढ़े प्रभु चरणों अनुराग जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद । रीत सनातन पर जिन्हें अंतस तक अनुबंध उसके जीवन का सरल होने लगा प्रबंध जो कुछ मुंह में जा रहा उसका अनुपम स्वाद जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद । देख कभी मत तोड़ना बांधा हरि से डोर भगति भाव में राखना निज मन सदा विभोर इस जग मे उनसे बड़ा  नहि कोइ जायदाद जो कुछ गढ़ पाया सखा। तेरा पुण्य प्रसाद । विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

मृदु भाव (स्वर्णमुखी) मृदु भाषा में अपनापन है। मृदु भाषा में अति सम्मोहन। अति सशक्त यह संकटमोचन। मीठी बोली में शुभ घन है। मृदु भावों में उत्तम जग है। परम शांति का स्थापन होता। विकृति का विस्थापन होता। मृदुल भाव सर्वोत्तम नग है। मृदु भावों में प्रेम समंदर। एकत्रित होती सब जगती। समरस बनती सारी धरती। मिट जाता अज्ञान -असुंदर। मृदुल भाव का वृक्ष उगाओ। दुनिया को मिष्ठान्न खिलाओ।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

छत्र छाजेड़ फक्कड़

सुप्रभात संग आज की सोच:- अस्तित्व  बोध *********** छत्र छाजेड़ “फक्कड़ ” तपते उष्ण लौह पिंड पर अनवरत गिरती फुहारें एक छन्नाक आवाज़ के साथ खो देती है अपना अस्तित्व ..... वैसे ही क्रोध के प्रबल आवेग में दिया गया उपदेश मार्ग दर्शन एवं सुझाव - संबोधि कहाँ करा पाता है बोध अपने अस्तित्व का और बूँद और बोधि एक आवाज़ के साथ खो देते हैं अपना अपना अस्तित्व ...... पटल को नमन

ऊषा जैन कोलकाता

*कान्हा नहीं आए* कान्हा काहे को इतना सताए।  बाट निहारें है कब से राधा रो रो नैन गये  पथराये।  कान्हा अजहूँ  न वापस आये कान्हा काहे को इतना सताए।  मात यशोदा की ममता रोये नंद बाबा सुख नींद न सोये।  सूना है नंद बाबा का आँगन कान्हा  तुझे  याद ना आए।  कान्हा काहे को इतना सताए। ।  गोपियाँ  मटकी लिए खड़ी है मटकी पर कंकड़ी नहीं पड़ी है।  कान्हा काहे को मटकी न फोड़े गोपियाँ  बैठी है आस लगाए।  कान्हा काहे को इतना सताए।।  🙏🌹 सुप्रभात जी 🌹🙏     * ऊषा जैन कोलकाता *

सुधीर श्रीवास्तव

व्यंग्य हंगामा ******* फुर्सत ही फुर्सत है यार, तो कुछ करते हैं, और कुछ नहीं तो, हंगामा ही करते हैं। बैठे डालें रहने से भला क्या फायदा शांत तालाब में पत्थर ही उछालते हैं। या फिर झूठी अफवाह ही फैलाते हैं अपरा तफरी का आनंद ही उठाते हैं। अच्छा नहीं लगता ये भाई चारा यारों आइए भाई को भाई से ही लड़ाते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव की जड़ें जम जायें, उससे पहले उसमें मट्ठा ही डालते हैं। अमनों चैन का एकाधिकार हो जाये इससे पहले कुछ गुल ही खिलाते हैं। दिमाग में हो रही खुजली बहुत मेरे खुजली मिटाने का उपाय अपनाते हैं। हर ओर शान्ति है अच्छा भी नहीं लगता आइए कुछ हंगामा कर खुजली मिटाते हैं। हंगामे को कहीं जंग ने लग जाये यारों इसलिए हंगामे को कसरत कराते हैं। हंगामा करना मेरा मकसद तो नहीं बस हंगामे की पूंछ में पलीता लगाते हैं। बाकी सब हंगामा कर ही लेगा प्यारे हम सब दूर दूर बैठ तालियां बजाते हैं।  सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश 8115285921 © मौलिक, स्वरचित

डा. नीलम

* प्रकृति * मुस्कराने लगी प्रकृति देखो पेड़ो पर बहार आई है टेसू फूले,पलाश महके भर दुपहरी आक खिल गए लताएं फलफूल लिपट  वृक्षों से रहीं ,ज्यों पहली बार कोई कमसिन नई नवेली माँ बन पिया से हो लिपटी बाग-बगीचों में डालियों पर फूल यों झूला झूल रहे जैसे सावन में रंग-बिरंगे  परिधान सजे सुंदर नार झुले हवाओं के पग भी नशे में डूबे कभी इस डाली ,कभी उस डाली बेशर्मी से फूलों के मुख चूम जर्रा-जर्रा महका रहे।             डा.नीलम *अज्ञातवास* माँ-बाप की जिद के आगे अधपकी उम्र में ही जबबेटियां जबरन बियाह दी जाती हैं अनजाने अनदेखे परिवार में बचपन की अल्हड़ कल्पनाएँ वयसंधि के कोमल स्वप्न अनजाने, अनचाहे,अनबोले ही/चले जाते हैं अज्ञातवास में सास की चिड़चिड़ाहट,ननद की स्वार्थ प्रकति,देवर के लालच संग जब पति भी पियक्कड़ निकल आए तो इक बंगला हो सुंदर सा जिसमें खुशहाल परिवार होगा चाँद-सितारे से नन्हें बच्चों की मासूम कल्पना चली जाती है अज्ञातवास में।          डा. नीलम

अमरनाथ सोनी अमर

विधा-साधना छंद!  बिषय- हिन्दू वर्ष!  मात्रिक भार-22. हिन्दू वासी हिन्दी को अब, अपनाओ!  यही सभ्यता मूल हमारी, अपनाओ!!  नये वर्ष जनवरी नही है ,तुम जानो!  चैत्र मास प्रतिपदा हमारी, तुम मानो!!  नया वर्ष खुशियाँ बहु लेकर ,आता है!  नवल प्रकृति का रूप धरा पर, लाता है!!  धरा करे श्रृंगार शीत को, भगवाये!  धरे नवल वह रूप पीत ,सारी पाये!!  कुहुके कोयल डाल मोर वन, नाच करे!  भौंर करे गुंजार पुष्प का, कान भरे!  आम बौर से लदा धरा को, नमन्   करे !  महुआ कूँची फूल धरा को, दान करे!!  होली का त्योहार गुलाबी, रस भरता!  सप्त ऱंग का रंग गाल में, सब मलता!!  घर- घर में हो फाग गीत सब ,हैं गाते़ं भाई चारा प्रेम बधाई , सब  पातें!!  अमरनाथ सोनी "अमर " 9302340662

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

इबादत इबादत यही एक तुम से हमारी। काटो सकल कष्ट हरदम हमारी।। नहीं तुम उतारो कभी दिल से हम को। रहो साथ सुन लो इबादत हमारी।। इबादत के काबिल तुम्हीं इक हमारे। चले जिंदगी यह तुम्हारे सहारे।। तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा। तुम्हीं मेरे जीवन की आँखों के तारे।। इबादत स्वीकारो बनो प्रिय रहमदिल। बनो एक नौका चलाओ बसो दिल।। कभी मत नकारो बनो प्रेम मूरत। चलो संग लेकर दयामय रहे दिल।। यही है इबादत सदा मुस्कराओ। उर में सजा प्रेम-दीपक जलाओ।। मिला करके नयनों से बातें किया कर। इबादत की महफ़िल को दिल से लगाओ।। रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,किनारे चूम  लेंगे हम ,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  न रंजो ग़म का मंज़र हो, न अश्कों की रवानी हो. । सुकूँ दिल में, तबस्सुम होंठ पर, चेहरा नूरानी हो ।। दुआ  माँगूँ  यही तुमसे , मेरे  दाता , मेरे  मौला   । न भूखा हो यहाँ बचपन, न अब प्यासी जवानी  हो।। बहे सद्भाव  की दरिया, ढहे दीवार नफरत की  । ग़ज़ल, गीतों,रुबाई में, मोहब्बत  की कहानी हो   न झुलसे मज़हबी शोलों से, ये गुलशन गुलाबों के । हसीं वादी में केसर की  ,वही  पुरवा सुहानी हो  ।। रखें महफूज़ गर्दिश के कहर से मुल्क की अस्मत  । फना हो जायें हम, लेकिन तिरंगे  की  निशानी  हो ।। भँवर सैलाब तूफाँ आँधियों का जोर है फिर भी । किनारे  चूम लेंगे हम ,भले   कश्ती   पुरानी   हो ।। .................................................. शिवशंकर  तिवारी   । छत्तीसगढ़  । .................................................

नित्यानन्द वाजपेयी उपमन्यु

ग़ज़ल ज़िंदगी बनके मुझे प्यार सिखाने आई। छोड़कर सबको मेरा साथ निभाने आई।। इतने दुख-दर्द सहे तूने सृजन की ख़ातिर। ख़ुद सिमट कर मेरा विस्तार बढ़ाने आई। अपने पंखों की उड़ानों को मुझे सौंप दिया। आसमानों की मुझे सैर कराने आई।। मेरी हमदम तू मेरी नशीन बनकर के। मुझको हैवान से इंसान बनाने आई।। तू न होती तो फ़िज़ाओं में न रंगत होती। तू ही मरुथल को गुलिस्तां सा सजाने आई।। ख़ुद तो शीशे सी कई बार है टूटी बिखरी। फिर भी पत्थर को तू भगवान बनाने आई।। मेरी हम-नफ़्स मेरी जाने तमन्ना है जो। 'नित्य' वो मुझमें सिमट करके समाने आई।। नित्यानन्द वाजपेयी 'उपमन्यु' मुक्तक ज़िंदगी बनके मुझे प्यार सिखाने आई। छोड़कर सबको मेरा साथ निभाने आई।। इतने दुख-दर्द सहे तूने सृजन की ख़ातिर। खुद सिमटकर मेरा विस्तार बढ़ाने आई।। नित्यानन्द वाजपेयी 'उपमन्यु'

श्याम कुंवर भारती

भोजपुरी गजल * प्यार के फूल दिल के बदले यार ना मिलल । थक गईली फूल प्यार ना खीलल। मुस्कान पर तोहरे मर गइली हम। लूट गइली पर यार ना मानल। रुपवा तोहार जईसे चान के अंजोरिया। दिल देके भईल मुश्किल बा जियल। बरछी कतार तोहार तिरछी नजरिया।  नजर के नशा लगे शराब के पियल। हीया से लगाके बना ला मोहे सजना। सजा बड़ा बा दिल के लिह्lल ओरी दिहल। श्याम कुंवर भारती बोकारो झारखंड

नूतन लाल साहू

चिंतित है भारत माता महिलाओं का अपमान हो रहा है अपहरण और बलात्कार हो रहा है भारत मां के वीर सपूतों का चरित्र न जाने कहां खो गया है चिंतित है भारत माता।  भारत मां के बचपन को पं जवाहर लाल नेहरु जी ने संवारा था बड़े प्यार से अपनी गोद में लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाला था लोकनायक जयप्रकाश जी  भारत मां का रखवाला था क्या यही दिन देखने के लिए सुभाष चंद्र बोस जी ने अंतिम दम तक, अंग्रेजो से लड़ा था चिंतित है भारत माता। सत्य अहिंसा के पुजारी राष्ट्र पिता महात्मा गांधी भारत मां के लिए दे दिया अपने प्राणों की आहुति सच्चा सपूत भगत सिंह जी हंसते हंसते चढ़ गया फांसी पर प्राणों से भी अधिक प्यारा है मेरा भारत माता फिर भी इतना नैतिक पतन क्यों हो रहा है चिंतित है भारत माता। नूतन लाल साहू

विजय कल्याणी तिवारी

// थाम लेना // ----------------------- जब गिरूं तब थाम लेना सीख रे मन नाम लेना । फंस गया जब जाल जिव्हा तब कठिन विश्राम लेना । मैं थका जीवन सफर से अब शरण में राम लेना । कब से भटकन है तुम्हारी धैर्य से तुम काम लेना । राम छूटे तब समस्या नाम सुबहो - शाम लेना। अब सजगता अंक भर ले क्षणिक मत आराम लेना । कम नही ज्यादा भी नही जो उचित हो दाम लेना । खुश रहो आषीश बांटो ले सको तो प्रणाम लेना । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 30/03/2022                ------ अचल ----- सोचा तो आँसू निकल पड़े । बीता जीवन पिछली यादें , मुझे सताने को मचल पड़े ।। वो किरदार अजूबे थे या , हम ही कुछ ज्यादा बदल पड़े । कई रूप में आसपास ही , वो छंद गीत या गजल पड़े ।। ये पता नहीं कब हम कैसे , गिर गिर कर खुद ही सँभल पड़े । जाने कितने मिले सफर में , कहीं झोपड़ी कुछ महल पड़े ।। बहुत शुक्र है उस आका का , थामा जब भी हम फिसल पड़े । नजर उठी तो सबसे पहले , मेरी नजरों पर कँवल पड़े । मेरी कोशिश सदा रही है , उनको न कभी भी खलल पड़े । अब तो ये आलम है यारों , एक जगह पर हम अचल पड़े ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*प्रकृति सुंदरी*(16/14) खिले-खिले फूलों की घाटी, चित्ताकर्षक-मोहक है। हिमाच्छादित शैल-श्रृंखला- देव-लोक की द्योतक है।। जी कहता जा वहीं बसूँ अब, तज कर यह माया-नगरी। माया-नगरी घटक धूलि की, फूटे कब जा यह गगरी। चंचल मन को अमर ठौर दे- नाद-लोक-शुचि ढोलक है।।    चित्ताकर्षक-मोहक है।। दे सुगंध वह सदा महकती, बिना दाम दे जग महके। हिम की शोभा परम अनूठी- कभी न चंचल मन बहके। देव-लोक की अनुपम शोभा- सुंदरता अनमोलक है।।      चित्ताकर्षक-मोहक है।। आसमान पर छाए बादल, लगते प्यारे-प्यारे हैं। करते हैं हिम-कण की वर्षा- लगते शोभन-न्यारे हैं। प्रकृति मनोरमा सजी हुई है- लगे अमिय-रस-घोलक है।।      चित्ताकर्षक-मोहक है।। स्वर्ग-लोक आ बसा अवनि पर, लोचन को सुख देता है। रुग्ण हृदय का संकट-मोचन, दाम नहीं कुछ लेता है। दृश्य कुदरती लगे समूचा- परम धाम-सुख गोलक है।।     खिले-खिले फूलों की घाटी-     चित्ताकर्षक-मोहक है।।            © डॉ0हरि नाथ मिश्र                9919446372

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

न्याय प्रणाली गली-गली में न्याय विकत है। हर क्षण मानवता सिसकत है।। कोई नहीं बचानेवाला। अच्छी राह बनानेवाला।  सभी जगह पर यही शोर है। अन्यायी का बहुत जोर  है।। बाहुबली का आज जमाना। गलत काम से खूब कमाना।। न्याय नहीं है न्यायालय में। सिद्ध नहीं हैं देवालय में।। नहीं सरस्वति विद्यालय में। नहीं स्वच्छता उर-आलय में।। पारदर्शिता लुप्त हो चुकी। मर्यादा अब सुप्त हो चुकी।। कोसों दूर खड़ी नैतिकता। अन्यायी दिखती भौतिकता।। जग के मन में पाप भरा है। अन्यायी का हृदय हरा है।। न्याय चाटता धूल सड़क पर। बोल रहा अन्याय कड़क कर।। रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

संजय जैन बीना

*हमें दे दो..* विधा : गीत तुम अपना रंज-ओ-ग़म,  अपनी परेशानी मुझे दे दो  करो तुम देव दर्शन जाके जिनयालय में नित्य दिन।  तुम अपना रंज-ओ-ग़म,  अपनी परेशानी मुझे दे दो।।  ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ  दुनियां की निगाहों में-२ बुरा क्या है अगर,  ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो  तुम अपना ...।।  मैं देखूँ तो सही,  दुनिया तुम्हें कैसे सताती है - २  कोई दिन के लिये,  अपनी निगहबानी मुझे दे दो  तुम अपना ...।।  वो सब जो मैने मांगा था  मगर गैरों ने पाया - २  बड़ी शै है अगर,  उसकी पशेमानी मुझे दे दो  तुम अपना ...।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 30/03/2022

छत्र छाजेड़ फक्कड़

सुप्रभात संग आज की पंक्तियाँ :- मौत  की  अमानत ++++++++++ छत्र छाजेड़ “ फक्कड़” ज़िंदगी तो अमानत है मौत की फिर क्यूँ और काहे का डर.... जहाँ जीवन है तहाँ इच्छा है पर क्यों इच्छा हेतु ललचाना सब दौड़ रहे इच्छा के पीछे किसने जीवन को पहचाना पल पल जीवन रीत रहा अगले पल की है किसे ख़बर.... ज़िंदगी तो अमानत है मौत की फिर क्यूँ और काहे का डर.... मन करता है उन्मुक्त हँसूँ पर घिरा हूँ निज के अभिमान से इंसान से तो पाखी अच्छे हैं स्वच्छंद विचरते आसमान में सब मंदिर मस्जिद में डोल रहे कौन झाँकता है अपने अंदर..... ज़िंदगी तो अमानत है मौत की फिर क्यूँ और काहे का डर...... सूखी रेत कब टिकती मुठ्ठी में जाने कब फिसल ही जाती है क्यों मोहित करती ये ज़िंदगी  जो हर पल घटती जाती है जग दौड़े मृग-तृष्णा के पीछे कैसे मिलेगी मोक्ष की डगर..... ज़िंदगी तो अमानत है मौत की फिर क्यूँ और काहे का डर..... जो आया है वो इक दिन जायेगा यही ब्रह्म सत्य कहलाता है मगर सत्य जानने वाला खुद ही सदैव  मौत से घबराता  है मन जाने कहाँ कहाँ फिरे डोलता कैसे हो प्रवचन का असर.... ज़िंदगी तो अमानत है मौत की फिर क्यूँ और काहे का डर..... प्रबुद्

डॉ. कवि कुमार निर्मल

होलिका दहन किया, परसों होली खेलो। भक्त प्रहलाद की सब जय जय जय बोलो।। हिरण्यकस्यप अचंभित, लाचार बेचारा। धर्म भी कहीं अधर्म से युगों में कभी हारा।। दानव दंभी को नरसिंह ने अंतत: तारा, माना हमने यह एक पौराणिक कथा है। हर पल यह बध अन्दर बाहर चलता है। मन का राम, पापी रावण का वध करता है।। रावण अष्टपाश-सट् ऋपुओ पर हुआ हावी। पाप-पुण्य का खेल सबकी आती है बारी।। महापातकी के पाप को मरना हीं होता है। धर्मनिष्ठ का बाल नहीं बाँका कभी होता है।। पँच तत्वों में सतरंगी गुण धुला रहता है। उपर से हीं नहीं कुछ दिख सकता है।। रंगोली-अल्पना, होली में रंगों से पुतना। प्रकृति की ताल से है ताल मिलाना।। पिया के घर जा, रंग में पूरा रंग है जाना। उत्तम सात्विक आहार जम कर है खाना।। दुस्मन को दोस्त बना गले लगाना। हर पल होली के रंगों में रंग जाना।। भक्ती भाव में मिल-जुल कर बह जाना। ध्रिणा-द्वेश-क्रोध की अगन से मुक्त हो जाना।। धर्म ध्वजा चहुदिशी है हमको फहराना। सात रंग हैं प्रभु के, उनके रंग में रंग जाना।। डॉ. कवि कुमार निर्मल___ ✍️ @DrKavi Kumar Nirmal

विजय कल्याणी तिवारी

// लिख दे // -------------------------------- साथ निभाता है लिख दे जो कुछ आता है लिख दे । कुछ भूखे हैं उनका हिस्सा कौन कौन खाता है लिख दे। मना किया उस पथ जाने से तब क्यों जाता है लिख दे । उनके आँसू देख देख कर क्या सुख पाता है लिख दे। कुत्सित बड़ा आचरण तेरा नित कीर्तन गाता है लिख दे। खुद की समझ अधूरी है सबको समझाता है लिख दे। जन मन के आँखों में आंसू खुद को भाता है लिख दे । बौने लोग सभी सम्मुख के बस तू ज्ञाता है लिख दे । ईश कौन है तेरा प्रिय वर किसको ध्याता है लिख दे। सबके हिस्से का खाकर भी नही आघात है लिख दे । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 28/03/2022              ------  पूँजी ---- सुरभित है मन का हर कोना । सुखद मधुर स्मृतियों की पूँजी , हर क्षण जिसका चाँदी सोना ।। आनंदातिरेक प्रिय बंधन , स्नेहिल भावों का वह दोना । आजीवन सहेजता रहता , नहीं चाहता इन सबको खोना ।। सदा प्रफुल्लित रहे वृत्तियाँ विस्मृत हैं वो रोना धोना । प्रस्तुत प्रिय पदावली पर है , सूक्ष्म उपस्थिति का नित होना ।। समय समझ सब सुलझे निखरे , बसा हृदय वह रूप सलोना । सपनों के साकार लोकहित ताने -बाने खूब पिरोना ।। रही कल्पना सफल यज्ञ की बस उनको ही आज सँजोना । खिले सदा मुस्कान अधर पर , नहीं कभी पथ पर तू खोना ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

नूतन लाल साहू

विचारणीय प्रश्न शरीर नष्ट हो जाता है पर आत्मा नही मरती जीवन में आगे बढ़ना हम सब का लक्ष्य है मैं खड़ा खड़ा यह सोच रहा था यदि अभिलासा अधूरा रहा तो अगले जन्म में,पूरा होगा या नही हमें क्या पता है यह विचारणीय प्रश्न है। आज का इंसान ओवर टाइम में काम करने का दे रहा है तर्क जनता के बीच डबल रोल कर रहा है अभिनेता। पुर्व और वर्तमान में क्या फर्क है किसको है पता जब नया जमाना आता है तो क्या मानव जीवन का परिभाषा बदल जाता है यह विचारणीय प्रश्न है। इस कलियुग में बहुत से लोगों ने, मां का नही डिब्बा का दूध पिया है द्वेष और दानवता क्या इसी का उपज है आडंबर ने सत्य को ढंक रहा है दुष्प्रचार का सब शिकार है क्या इसी का नाम परिवर्तन है यह विचारणीय प्रश्न है। नूतन लाल साहू

अनूप दीक्षित राही

मुहब्बत के तीखे सवालात से गुजरे। हाय! इश्क के बदनुमा ख्यालात से गुजरे।। * अकेले रहे हरदम खुशियां रहीं। अपनों के बीच बुरे हालात से गुजरे।। * ज़िन्दगी ने दिखाया हर कदम पर आईना। सच और झूठ की बरसात से गुजरे।। * जमाने ने हर बार उठाई ही अंगुलियां। ज़िन्दगी के तमाम हैहात से गुजरे।। * ये इश्क का जुनून था सिर से उतरता ही नहीं था। तमाम उम्र हम इस्बात से गुजरे।। * खुद को साबित करने में इक अरसा गुजर गया। उजालों को खोजने हम दिन-रात से गुजरे।। * अनूप दीक्षित"राही उन्नाव उ0प्र0

सीमा मिश्रा बिन्दकी

दोहे  तापमान भू का बढ़ा,व्याकुल है हर प्राण। वसुधा फिर भी कर रही,जीवन का संत्राण।।  नेत्र तीसरा खोलकर, क्रोधित है दिनमान। मानव ने निशदिन किया,वसुधा काअपमान।।  समय पूर्व फसलें पके, गरम सुबह औ शाम। चैत मास में है दिखे , जेठ मास का घाम।।  समयधारअविरल बहे ,रोक न पाए कोय। इसमें बाँधा बाँध तो , ध्वंस सदा ही होय।।  प्रतिक्षण मानव पढ़ रहा,कटुता का है पाठ। हरियर विष का बीज है , सूखा नेहिल ठाठ।  स्रोत  नीर  के  सूखते, जीव जगत बेहाल। धरती  बँजर  हो रही, सिमट  रहे हैं  ताल।।  धरम करम से हट रहा, मूढ़ मनुज का ध्यान। अन्धकार की राह का, पथिक बना है ज्ञान।।  सीमा  अपनी  लांघ  के, चूम  रहा  आकाश। द्रोह  द्वेष  से  तोड़ता एक दूजे का विश्वास।। सीमा मिश्रा, बिन्दकी , फतेहपुर स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित

छत्र छाजेड़ फक्कड़

सुपरभात सागै आज री ओळयां :- जीव  घणो  घबरावै  =========== छत्र छाजेड़ “फक्कड़” म्हारो जीव घणो घबरावै क्यू गया मनै छोड अेकली कांई काई म्हारै मन में आवै..... म्हारो जीव घणो घबरावै...... जद सेजां मांय छणकती पायल थे कहता बैरण आ क्यूं गरळावै लौ प्रीत री जग रही है सेजां में क्यूं निगोड़ी आ बीच में आवै थां बिना कहो पिया कुण नै ओ सिणगार सुहावै.... म्हारो जीव घणो घबरावै...... तन कामगंधी महकै केसर सो बैवे बायरो जद मांझळ रातां कूक कोयली मन हूक जगावै करूं चेतै जद बै मीठी बातां दूर पिया भरी जवानी धर कळाई कुण बिलमावै..... म्हारो जीव घणो घबरावै..... छू अधरां स्यूं अधरां नै थे लिख्या करता छंद तन रा कळियां बावळी ढळै मस्ती में उडज्याता पी मकरंद भंवरा परभात्या पाखी री गूटरगूं सपना में म्हानै भरमावै...... म्हारो जीव घणो घबरावै... क्यूं गया मनै छोड अेकली  कांई कांई म्हारै मन में आवै.... म्हारो जीव घणो घबरावै.... पटळ नै नींवण

ऊषा जैन कोलकाता

कान्हा मेरी धड़कनों में तुम बने रहना मेरे मन मंदिर में कान्हा तुम बसे रहना।  कान्हा तेरा रूप सलोना है मुझे भाये घुंघर वाले बाल तेरे जिया में लहराए।।  तेरी मीठी प्रीत का तो पहन लिया गहना।।  मोर मुकुट माथे पे सोहे गले वैजयंती माल बांकी -बांकीतेरी चितवन करती है कमाल।  अधरों पर धरी है मुरलिया क्या तेरा कहना तेरी मीठी प्रीत का तो पहन लिया गहना।।  दुनिया के प्रभंजनों से  अब न घबराऊँ नाम तेरा लेकर कान्हा चलती ही जाऊँ।  डोरी तेरे हाथ  देदी  अब  छोड़ नहीं देना तेरी मीठी प्रीत का तो पहन लिया गहना। ।  बंसी की धुन  सुनने तेरी मन बड़ा व्याकुल दर्शन तेरा पाने को  मन रहता है आकुल।  अवगुण मेरे भूल कर सब चरण में रख लेना तेरी मीठी प्रीत का तो पहन लिया गहना।।  🙏🌹 *सुप्रभात जी* 🌹🙏 * ऊषा जैन कोलकाता *

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 29/03/2022                ------ चंचलता  ----- अब क्यों निश्छलता नहीं ।  जो तुममें बात लखी मैंने , वो कहीं सरलता नहीं । सिद्ध वाकचातुर्य सहजता , शुचि विशद् विमलता नहीं । उन्मादित होकर गीत गढ़े , दिल कहीं मचलता नहीं ।। पावनता सधी सादगी पर , जो कभी बदलता नहीं । वह सौन्दर्य सहज ही प्राकृत , अब कहीं बहलता नहीं । थे शुभस्य शीघ्रं अनुमोदक , त्वरित कार्य निकलता नहीं । कब शैथिल्य पनपता चित पर क्यों सतत् मचलता नहीं ।। वह व्यक्तित्व न दूजा आया , पूर्व सी चपलता नहीं । परिसीमा पर आकुलता है , चित्त पर धवलता नहीं ।।              ---- * रामनाथ साहू* *" ननकी "*                        *मुरलीडीह*  *( छ. ग. )*  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

// अहम से // ------------------------ आच्छादित जो भरम से हारता वह निज वहम से। जीत पाएगा कभी क्या बोल तो अंतस अहम से । दूर जाने सब लगे अब मीत जीवन के धरम से । बात कोई क्यों बने प्रिय जब अलग होता है श्रम से। एक से दुनिया में आते सुखदुख नही आता जनम से। फेर कर मुंह चल दिए क्यों आस टूटी आज हमसे ? वह पिघल कर रह गया है नयन दिखते आज नम से । लक्ष्य तक वे क्यों पहुंचते जो चले आधे कदम से । बात समझो तब कहूं मैं मुक्ति मिलना है करम से । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

श्याम कुँवर भारती

भोजपुरी देवी गीत – हरतू ये माई हरतू | हरतू ये माई हरतू जगवा के दुखवा हरतू | करतू ये माई करतू गरुर दुखवा चूर करतू | काली कराल विकराल तोहार रूपवा | दानी दयालु विशाल तोहार दिलवा | मारतू ये मै मारतू जगवा कोरोरनवा के मारतू |  हरतू ये माई हरतू जगवा के दुखवा हरतू | हहरात लहरात आवा माई हाली | झण्डा फहरात घहरात माई काली | जरतू ये माई जरतू लोगवा के रोगवा जरतू | हरतू ये माई हरतू जगवा के दुखवा हरतू | लहर लहर लहराए माई तोर केसिया | कारी कजरारी प्यारी तोर अँखियाँ | भरतू ये माई भरतू खाली भारती के घरवा भरतू | हरतू ये माई हरतू जगवा के दुखवा हरतू | सोनवा के सिंहासन फूल अलहूड़वा के डासन | कलकत्तावाली काली दखिनेश्वर हउवे वासन | अइतू ये माई अइतू भगता के अंगनवा अइतू | हरतू ये माई हरतू जगवा के दुखवा हरतू | श्याम कुँवर भारती (राजभर ) गीतकार /कवि /लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड -मोब . 9955509286

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत तुम बिन साजन दिवस नुकीले, सुई-चुभन सी रातें हैं। मधुर बोल कोई भी बोले, खट्टी लगतीं बातें हैं।। नहीं बहारें अच्छी लगतीं, बिन सुगंध के पुष्प लगें। बूँदें जल की जलें अनल सम, रूखी-सूखी शष्प लगें। कोमल छुवन वज्र सम लागे, कोयल-गीत न भाते हैं।     सुई-चुभन सी रातें हैं।। दुनिया लगती उजड़ी-उजड़ी, गुलशन भी वीरान लगें। हरियाली से वंचित मुझको, सावन की सीवान लगें। उल्टी-पुलटी अब तो लगतीं, कुदरत की सौगातें हैं।।      सुई-चुभन सी रातें हैं।। जब-जब बहे पवन पुरवाई, तेरी याद सताती है। लाख यत्न सोने का करती, नींद नहीं तब आती है। बरसें भले गगन से बादल, तृष्णा नहीं बुझाते हैं।।      सुई-चुभन सी रातें हैं।। दिवस-महीने-वर्षों गुजरे, अब तो साजन आ जाओ। बाट जोहती द्वार खड़ी मैं, आकर प्यार जता जाओ। प्यार भाग्य से मिलता जग में, योगी-संत बताते हैं।।      सुई-चुभन सी रातें हैं।।               © डॉ0हरि नाथ मिश्र                   991944637

प्रखर दीक्षित

चंचल नैना मद भरे, ता पर कारी रेख।  श्वेत श्याम रतनार दृग, पढ़ैं प्रेम के लेख।  *दोहा* *चंचल* केहरि कटि खंजन नयन, कच कारे कुच भार।  कनक छरी विधु आननी, चंचल बांकी नार।।  चंचल मन पिय संग गयो, सुधि आवत उर पेख।  रात सुरति दिन चैन कंह, उलट भाग के लेख।। चंचल चितवन मन हरै, कौन सुनै मन पीर।  जब सैं लखी सुहावनी, तब सैं मनस अधीर।।  भई विलोमित गति सखी, हेरे चंचल नैन।  कोरी आंखिन भोर नित, प्रखर मौन भये बैन।।  प्रखर दीक्षित

संजय जैन बीना

*क्या है ये दुनियाँ* विधा : कविता ये दुनियाँ बहुत सुंदर है मुझे रहना नहीं आया।  ये जिंदगी बहुत खूबसूरत है मुझे इसे जीना नहीं आया।  दिया क्या कुछ प्रकृति ने इसे भोगने के लिए।  मगर मेरी मन में तो कुछ और चल रहा था। इसलिए छोड़कर राजपाठ निकल गया मैं वन को।।  बड़े ही भाग्यशाली होते है जो इस दुनियाँ में रहते है।  और खुशी से जीते है इस खूबसूरत दुनियाँ को। भले ही समझे न लोग मुझे इस दुनियाँ में।  मगर मुझे तो ये दुनियाँ बहुत ही सुंदर लगती है।  इसलिए तन्हा रहकर भी मैं जिंदगी को जीता हूँ।।  मुझे तो बस चिंता है  दुनियाँ को बनाने वाले की।  जिसने कितनी श्रृध्दा और मेहनत से इसे बनाया था।  और इसमें पशु-पक्षी के संग इंसानो को बसाया था।  पशु-पक्षी तो स्नेह प्यार से इसमें रहने लगे।  मगर इंसान ही इंसान को इसमें समझ न सका।।  सच कहे तो ये दुनियाँ बहुत सुंदर है।  इसमें जीना मरना  हर किसी को नहीं मिलता।  जिसे भी इसमें जन्म मिला है वो बहुत ही भाग्यशाली है।  बस उसे समयानुसार जीना  और काम करना आना चाहिए।  तभी वो इस दुनियाँ को  मौज मस्ती से जी पायेगा।।  जय जिनेंद्र  संजय जैन "बीना" मुंबई 29/03/2022

डॉ० रामबली मिश्र

श्री सरस्वती अर्चनामृतम (स्वर्णमुखी) भारतवर्ष परम प्रिय पावन। जहाँ सरस्वति माँ रहती हैं। सबका मन निर्मल करती हैं। हंसवाहिनी परम लुभावन। दिव्य मनोहर पुस्तक बन कर। माँ सरस्वती चलती रहतीं। शुद्ध वायुमण्डल को करतीं। वीणा ले कर गातीं घर-घर। नीरक्षीर की ज्ञान-प्रदाता। पारदर्शिता का संचालन। प्रिय मानवता का अनुशासन। मात शारदा भाव-विधाता। अंतःकरण शुद्ध करतीं माँ। हम सब गायें माँ की महिमा।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801 नारी सम्मान  –स्वर्णमुखी छंद– नारी ही सच्ची मानवता।  इस प्रतिमा को मत विकृत कर। इसकी गरिमा को स्वीकृत कर। नारी नैसर्गिक नैतिकता। नारी पावन उच्च प्रकृति है। लेती नहीं सदा देती है। लालन-पालन की खेती है। नारी स्वयं सृष्टि संस्कृति है। नारी के हैं रूप अनेका। अतिशय मृदुल भव्य शिव गीता। विश्वमोहिनी प्रेम पुनीता। माया-जीव-ब्रह्म अति नेका। नारी का सम्मान जहाँ है। प्रिय लक्ष्मी का वास वहाँ है।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

मेधा जोशी

१ हाथी घोड़े साथ में, नाचें हर बारात। ब्याह खिलौना समझ के, दूल्हा दे आघात ।। २ भक्त खिलौना इष्ट का, हर पल गाए नाम। मन मन्दिर की ज्योति से, बनते बिगड़े काम।। ३ देश खिलौना हो गया,  नेता जब गद्दार । जनमन तड़पे आज भी, हर पल हो तकरार।। ४ पैसें की दुनिया सभी,  कचरे का हैं ढेर। बिकते नेता वोट में, संग खिलौना सेर। ५ बने खिलौना प्राण तो, सब बनते अंजान । सही कौन पूछे सभी, नवयुग की संतान ।। मेधा जोशी 🙏🏻

रामकेश एम.यादव

इंसान नहीं बन पाया!  झूठ  का  बाज़ार  खूब  सजाया  आदमी, लोभ   की   दरिया   में   नहाया  आदमी। नष्ट  कर  डाला  अपने  सद्गुणों को वो, देखो,एटमबम से हाथ मिलाया आदमी। मरने  पर  जमींन  नसीब  होगी या  नहीं, सूरज –चाँद  को आँख  दिखाया आदमी। मंगल- चाँद पर मानव  बसायेगा बस्तियां, दौलत के पहाड़  से  घर  सजाया आदमी। तमाम  उम्र   वो  लड़ता  है  एक  दूसरे से, कभी   इंसान   नहीं   बन   पाया  आदमी। गांव   को  अब    देखो   बना   रहा   शहर, उसकी    भी   सादगी   मिटाया   आदमी। शुद्ध  सांस  लेना  देखो   हुआ है  मुश्किल , पर्यावरण  में   आग    सुलगाया   आदमी। जल, जंगल, जमींन, पर्वत  सभी हैं  खफ़ा, अपने आप  को वो  मुर्दा  बनाया  आदमी। बहुत  ही   कीमती   है   देख   मानव - तन, माया  की दुनिया में खुद  भुलाया  आदमी। छुपती   है   कहाँ    दाग,   छुपाने   से  कभी, खुद    को    आज   खुदा   बनाया   आदमी। रामकेश एम.यादव (कवि,साहत्यिकार)मुंबई,

विजय कल्याणी तिवारी

// कहाँ सहारा // -------------------------- कहाँ सहारा ढूंढ रहा है प्रश्न यहाँ यह गूढ़ रहा है। इन प्रश्नों के मकड़ जाल मे फंसे लोग आहत होते जितना जोर लगाते फंसते अंतिम परिणति रोते शरणागति दो गज जमीन के अंत न समझा मूढ़ रहा प्रश्न यहां यह गूढ़ रहा । अभिलाषा उत्तर की लेकर पथिक चला जो डगर दिखा और अंततः हार गया वह मान लिया सब भाग्य लिखा अबसे पहले नयन बंद थे भ्रमित भाव आरूढ़ रहा प्रश्न यहां यह गूढ़ रहा । सांसो ने संदेश दे दिया स्पंदन का पत्र मिला स्वजन सनेही हाथ लिए तुलसी हाथों पत्र खिला शैय्या के कांटे चुभते हैं मन ही मन अब कूढ़ रहा प्रश्न यहां यह गूढ़ रहा । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *धड़कन* ------------------------- धड़कन ह्रदय की गति सहज । यह प्राण का द्योतक महज ।। जीवन का यह उपनाम है । गतिमय सुबह अरु शाम है ।। यह जीव की पहचान है । सबके ह्रदय का मान है ।। धकधक करे शुचि गान है । सत्यम् शिवम का भान है ।। धड़कन चले जीवन मिले। ज्यूँ पुष्प बगिया में खिले।। जीवन मरण का ध्यान है। यह ईश का वरदान है।। यह प्रेम शाश्वत शोभितम्। है हिय बसा यह शाश्वतम्।। जब तक चले जीवन चले। जब यह रुके जीवन छले।। धड़कन बसे मनमीत जब । प्रियतम  बढ़ाए प्रीत तब ।। यह जिन्दगी यह जान है । धड़कन मनुज अभिमान है।। आओ सहेजें दिल सभी । दिल मत दुखाओ तुम कभी ।।  धड़कन बसे सद्भावना । यह मधु ह्रदय की कामना ।। मधु शंखधर स्वतंत्र *प्रयागराज* *20/03/2022*

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

उड़त अबीर गुलाल  उड़त अबीर गुलाल  लाल हो उड़त अबीर गुलाल बाग बगीचा फुलवा फुलायल  आम मंजर गेल चना गदरायल गेहुऑ के पक  गेल बाल लाल हो उड़त अबीर गुलाल गंधराज  हे सुरभि लुटइले बेला चमेली धूम मचइले अब अइतय नयका साल लाल हो उड़त अबीर गुलाल ढोल मंजीरा गली-गली बजे  होलवइया सब गीत सुनाबे गलियन में मचत खूब धमाल लाल हो उड़त अबीर गुलाल पुआ पूरी भभरा बजका बड़ी फूलउड़ी बनत पकौड़ी सब मिल खात बाल गोपाल लाल हो उड़त अबीर गुलाल फगुआ में मद मातल मनवां कामदेव के खुलल खजानवां सजनी संग करब खूब धमाल लाल हो उड़त अबीर गुलाल ✍️ आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला ( बरबीघा वाले)

ऊषा जैन कोलकाता

🙏🙏🙏🙏🙏 मन में पलती आस है एक अटल विश्वास है।  दर्शन दोगे तुम मुझे जब आए अंतिम श्वास है।।  अपने मन की हर व्यथा रही अधूरी मेरी कथा।  कान्हा किसको बतलाऊँ तुमसा न कोई है तथा।।  उलझने मेरे जीवन की वेदना ये मेरे मन की।  कौन सुने तुम बिन इसे तड़पना ये रात दिन की।।  लेकर तेरा ही नाम  कान्हा हो सुबह और शाम कान्हा।  धड़कन में तेरा नाम कान्हा नेहा तुझी से लागा कान्हा।  दे दो चरण में ठौर कान्हा एक यही है आस कान्हा।।  🙏🌹 सुप्रभात जी 🌹🙏   ऊषा जैन कोलकाता

विजय कल्याणी तिवारी

// सच्चा धन // ------------------------ गंगा जैसा निर्मल मन एक यही है, सच्चा धन। सोच समझ कर पग धरना दाग नही धुलता जीवन। बहुत दूर हैं दोनों फिर भी हाथ न छोड़े धरा गगन । सच्चे सुख की जो तलाश है बांध जरा अंतस बंधन । उनको इनको टोका टाकी देखो खुद का चाल चलन । जो विष भरा हृदय के अंदर होगा फिर कम कहाँ जलन। यह जीवन है भेंट उसी की कर दे यह उनको अर्पन । जो अभाव का जीवन जीते रख उन पर संवेदना गहन । आर्तनाद है कुछ कंठों का मूढ़ , नही सुनता क्रंदन । इस माटी मे उपजा बाढ़ा भूल नही इसका वंदन । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 19/03/2022                ------ रे मन  ----- रे मन ये पागलपन छोड़ ।  व्यर्थ भटकता मृगतृष्णा पथ , चल अब अपनी धारा मोड़ ।। ये  तेरा  दुर्भाग्य  रहा  है , कुछ भी न मिला सरस निचोड़ । व्यथित भाव रख कष्ट सहे सब , ये दुखदायी बंधन तोड़ ।। गया समय स्वर्णिम होने का , नहीं कमाया लाख करोड़ । जो पाया बस तू ही जाना , चल हट , तज सारे अब होड़ ।। गहन निराशा प्रेरित करते , खुद की अभी गर्दन मरोड़ । इतने पर भी समझ न आया , बनता रहा सदैव हँसोड़ ।। पागल पंछी जहाज का है , अब तक नहीं सका तू छोड़ । मूल केन्द्र को त्याग सका कब रहा ढ़ूँढ़ता वह गठजोड़ ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन-_ 19/03/ 2022_ विधा-मनहरण घनाक्षरी सृजन शब्द-होली रंगो का त्यौहार आया, खुशियाँ अनंत लाया , उड़ता गुलाल जहाँ , होली तो मनाइए । प्रीत पगे प्यारे रंग, हमजोली खेले संग , राग-द्वेष भूले सभी, प्रीत तो लुटाइए ।। झूमें नाचे बन टोली, फाग गाए गीत होली,  भरते उमंग हिय , रंग बरसाइए । प्रकृति ले अंगड़ाई, मदमस्ती मन छाई, सुंदर पावन पर्व, खुशी तो जताइए ।। ---- योगिता चौरसिया 'प्रेमा' ---मंडला म.प्र.

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *उत्सव* --------------------- उत्सव मनाए रंग का। शैली सहेजे ढ़ंग का ।। यह नेह शाश्वत धर्म रुचि। सद्भावना यह कर्म शुचि।। खुशियाँ  शुचित शुभ आगमन। रंगो निहित होता चमन।। उत्सव अनेकों रूप में । कुछ छाँव में कुछ धूप में।। होली दिवाली वर्ष में। सब प्रीत के उत्कर्ष में।। अपनो निहित शुभ भावना। उत्सव धरे शुभ कामना ।। उत्सव लिए संदेश है । यह एकता परिवेश है।। बस नेह अन्तर्मन धरे। शुचिता ह्रदय से यह वरे।। उत्सव मनाए मित्रता । भूले मनुज हिय शत्रुता।। यह धर्म बंधन से परे। शोभा अलौकिक यह वरे।। भूलो नहीं सब एकता  । निज भावना शुचि रूपता।। मधु हाथ डाले हाथ में । उत्सव मनाएँ साथ में ।। मधु शंखधर स्वतंत्र *प्रयागराज* *19/03/2022*

संजय जैन बीना

*रंगो से प्रेम करके देखो* विधा: कविता प्रेम मोहब्बत से भरा, ये रंगों त्यौहार है। जिसमें राधा कृष्ण का जिक्र बेसुमार है। तभी तो आज तक अपनो में स्नेह प्यार है। इसलिए रंगों के त्यौहार को, हर मजहब के लोग मनाते है।।  होली आपसी भाईचारे और प्रेमभाव को दर्शाती है। और सात रंगों की फुहार से, 7-फेरो का रिश्ता निभाती है। साथ ही ऊँच नीच का भेद मिटाती है। और हृदय में सभी के  भाईचारे का रंग चढ़ती है।। सात रंगो के ये रबिरंगे रंग सभी को भाते है।  और अपनो के दिलो से  कड़वाहट मिटाते है।  रंगो में रंग मिलकर नये रंग बन जाते है।  आपस में रंग लगाकर  नये नये दोस्त बनाते है। और नये भारत का निर्माण  मिल जुलकर करते है।।  जय जिनेन्द्र  संजय जैन बीना मुम्बई 19/03/2022

अहो! ग़रीबी तेरे कारण, आज होलिका बिसर रही।रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।। - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

अहो! ग़रीबी तेरे कारण, आज होलिका बिसर रही। रंग  भरे  दिवानों  की,  टोली  यहां  से  गुजर  रही।। सबने रंगी है गाल हथेली, देखो  खेल  रहे  हैं  होली; सबने मुझको  बहलाई है, मेरी  रोटी  की  लड़ाई  है..... दु:ख के कितने किस्से सुनाऊं, आंख से आंसू निकल रही। रंग  भरे  दिवानों  की,  टोली  यहां  से  गुजर  रही।। प्रश्न खड़े हैं  नित नये हमारे, अंधकार  में   जीवन   सारे; रंग बदल रही राजनीति की, रिक्त  उदर  की  आरती  की..... मन मेरा पाषाण हो रहा, माई मेरी खाट  पकड़ रही। रंग  भरे  दिवानों  की,  टोली  यहां  से  गुजर  रही।। मज़हबी झगड़ा फैलाने वाले, दे  रहे   विवादित   गुरुवाणी; चले  विकल   हम  धीरे-धीरे, कुम्हला  रहा   प्रसून  सुहानी.... सबके पीछे रहकर देखी, अब  इंसानियत  मर  रही। रंग  भरे  दिवानों  की,  टोली  यहां  से  गुजर  रही।। नभ में उड़ने का  मन करता, दम्भ और अपमान मैं सहता; सुन  लो  करुण  कहानी  में, जैसे  घुले  बताशा  पानी  में.... व्याकुल थाली रंग हाथ में, बुझी सुबह और शाम हो रही। रंग  भरे  दिवानों  की,  टोली  यहां  से  गुजर  रही।।              दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

अवनीश त्रिवेदी अभय

*चादर उजली रहने दो* घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। तपते घोर मृगसिरा नभ में, कुछ तो बदली रहने दो। जीवन  के  कितने  ही  देखो, आयाम अनोखे होते। रूप  बदलती इस दुनिया में, विश्वासी  धोखे   होते। लेकिन इक ऐसा जन इसमें, जो सुख-दुःख साथ गुजारे। हार-जीत  सब  साथ सहे वो, अपना सब  मुझ पर वारे। चतुर  बनी  तो  खो जाएगी, उसको पगली रहने दो। घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। मंजिल अभी नहीं तय कोई, पथ केवल चलना जाने। तम कितना गहरा या कम है, वो केवल जलना जाने। कर्तव्यों  की झड़ी लगी है, अधिकारों  का  शोषण है। सुमनों  का  कोई  मूल्य नहीं, नागफ़नी का पोषण है। सरगम-साज नहीं है फिर भी, कर में ढफली रहने दो। घोर  तिमिर  है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। आगे  बढ़ने  की  जल्दी  में, पीछे सब कुछ छोड़ रहें। आभासी  दुनिया  अपनाकर, अपनों से मुँह मोड़ रहें। केवल लक्ष्य बड़े बनने का, कुछ भी हो पर बन जाएं। देखा  देखी  के  चक्कर में, बच्चों  के  बचपन  जाएं। औऱ कहो कितना बदलोगे? कुछ तो असली रहने दो। घोर  तिमिर  है  सम्बन्धों  की, चादर  उजली रहने दो। नई व्यवस्था नया चलन है, किसी एक का दोष नही

शिवशंकर तिवारी

हुए रुसवा कभी वादे कसम इकरार होली में। किसी की बेवफाई से है दिल  बेज़ार होली में।। दुआएँ, मन्नतें माँगी, झुकाये सर भी सज़दे में । हुआ मुश्किल से उनका तब, कहीं दीदार होली में।। हुई बरसात रंगों की, लगी रंगीन ये दुनियाँ  । बदन, गेसू, के सँग भीगे, कभी रुख़सार होली में।। ढही दीवार बंदिश की, कटे ज़ंजीर कदमों के । हुई आँगन में पायल की, कभी झंकार होली में ।। खिले टेसू उमंगों के ,तबस्सुम ने ली अँगड़ाई  । मेरी गलियों से गुजरे जब कभी, सरकार होली में।। न हो रंज़िश का अब मौसम, न नफरत की बयारें हों । बहे सद्भाव के गंगा की, पावन धार होली में ।। ............................................... शिवशंकर तिवारी । छत्तीसगढ़ । ................................................

मंजु तॅंवर

*हे ! प्रिय फागुन आया*       हे!  प्रियवर  फागुन आया  उरपुर तिमिर फिर क्यों छाया,  उठी मर्म पीर झंझानिल बनकर   यह  अंतर्नभ क्यों अकुलाया   हे !  प्रियवर फागुन  आया।  उस कल्पित कुंज मे विचरण‌ कर फिर  प्रबल  उत्कंठा  जाग  उठी,    तरल  तरगें  व्योम  प्रवाही    रोम - रोम  में  भाग  उठी,   उत्कंठा ने अवसाद मिटाया   हे ! प्रियवर  फागुन  आया।   सराबोर सभी रंग में सांवरिया   क्यों ना मोरी रंगों चुनरिया  ?   तन  भीगा  मन प्यासा सा है  अविरल  धार  निराशा  सा है ,   एकाकी   मन  की  वीणा  ने   फिर सुर कोई नया सजाया,   हे  ! प्रियवर  फागुन आया।     विरह वेदना को बिसरा कर    प्रणय प्रीत रसधार बहा दूं  प्रतिबिंबित हो जाओ प्रियतम,   आज   नेह  का  रंग  लगा  दूं   तुम तो रूप धरो श्यामल सा,   और मैं  राधा  सी बन जाऊं   ये देख समा फिर मन हर्षाया    हे !  प्रियवर  फागुन  आया।  स्वरचित कविता     * मंजु तॅंवर * ✒️✒️✒️✒️✒️🙏🏻🙏🏻💐

गौरव शुक्ल

होली की अनंत हार्दिक शुभकामनाएं एक रचना के साथ सादर- यह अनास्था पर आस्था का विजय पर्व है,  इसीलिए तो निज   होली पर   हमें गर्व है।  यह ईश्वर की सत्ता का    विश्वास दिलाती,  है हम सबमें आस्तिकता का भाव जगाती।  त्योहारों का देश हमारा प्यारा भारत,  सब देशों में देश हमारा न्यारा भारत।  भाँति भाँति के उत्सव यहाँ मनाए जाते,  उन्हें मना कर हर दुख दर्द भुलाए जाते।  उत्सव मात्र नहीं हैं, जीवन दर्शन हैं ये,  जीवन जीने की विधि के उदाहरण हैं ये।  अपने हर उत्सव में एक विचार निहित है,  इनमें आनंदित जीवन का सार निहित है।  इसीलिए तो नहीं मृत्यु से भय खाते हम,  इसी शक्ति पर युद्ध काल से लड़ जाते हम।  दीपावली मनाकर हृदय जीत लेते हैं,  होली पर संदेश मित्रता का देते हैं।  दुश्मन को भी गले लगा लेते हैं हँस कर,  यही हमारी संस्कृति है विशिष्ट, अजरामर।  आओ इस होली पर भी सब द्वेष भुला दें,  साथ मित्र के, दुश्मन को भी गले लगा लें।  परिचय दें अपनी उदारता, सहिष्णुता का,  परिचय दें अपनी शीलता और गुरुता का।  आओ हृदय जीतने को उपलब्धि बनाएँ,  आओ अपनी होली कुछ इस तरह मनाएँ।                    --------------- - गौरव शु

ऊषा जैन कोलकाता

*मनहरण घनाक्षरी* आजा कान्हा होली आई,  खेलेंगे रंग कन्हाई,  राधे जी को साथ ले,  रंग बरसा रहे।।  ग्वाल बाल साथ  आए,  गोपियाँ भी दौड़ी आए,  कान्हा जी को मिलकर रंग सब लगा रहे।।  भरकर पिचकारी,  कान्हा ने राधा को मारी,  राधे रानी दौड़ी पीछे,  श्याम  क्यूँ बचा रहे।।  उड़े अबीर गुलाल,  धरा भी हुई है लाल,  केसरिया लाल हुआ,  अंबर रंगा रहे। ।  🙏🌹 *सुप्रभात जी* 🌹🙏 * ऊषा जैन कोलकाता *

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 18/03/2022                ------ प्रेम रंग  ----- प्रेम रंग में डूब चलो अब । नववर्ष हमारा हो मंगलमय , पथ पर बन नवदीप जलो अब ।। करो संकलित सारे दुर्गुण क्षय , सद्गुरु सद्गुण बीच पलो अब । विश्व प्रेम मानवता के हित में , शनैः शनेः बन मोम गलो अब ।। जो हितकर सुकर्म कर पाओ तो , साँचे नवीन विमल ढलो अब । वैमनस्यता की जले होलिका , सद्भावों के पंथ चलो अब ।। महा मलिनता मार्जन करके मन , ईश कृपा के केन्द्र पलो अब । समय सफल सुनियोजित ही रखना , तज रोना ,मत हाथ मलो अब ।। और अभी करना श्रेष्ठ कार्य है , निज को ज्यादा नहीं छलो अब । प्रणी बनो हे सतकर्म पुरोधा , किये बहाना कभी टलो मत ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विजय कल्याणी तिवारी

// अंतर हिय आनंद // ---------------------------- अंतर हिय आनंद का नही मीत कुछ मोल। शेष गांठ नही राखना बहुत जतन से खोल।। रंगों के त्यौहार से  क्या सीखा है बोल । व्यर्थ नापता है फिरे  दुनिया का भूगोल।। बाहर भीतर एक सा नही रख सका यार। बोल तुझे क्यों कर करे  कुछ दुलार संसार।। बाहर भीतर एक सा  रखता वही सुजान। सहज वृत्ति से ही मिले  इस जग में सम्मान।। होली के आनंद का  मन से रख संबंध। प्रिय मनुष्य सद् कर्म से  बिखरे सुरभित गंध।। इन रंगों संग हो उदय  पूरब नया प्रभात। अबकी इस त्योहार हो  खुशियों की बरसात।। विजय कल्याणी तिवारी , बिलासपुर छ.ग.

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय/विधा।।गद्य( आलेख)।।* *।।रचना शीर्षक।।* *।।होलिका दहन।।केवल पर्व ही नहीं।।संबधों की प्रगाढ़ता सुदृढ़ करने का स्वर्णिम   सुअवसर।।* मुख्यतया होली ,एवं दीवाली, दशहरा व अन्य  पर्व केवल रंगों ।गुलाल के खेलने व आतिशबाजी के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें  परमआवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही, मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है।और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।कहा  गया है कि,अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धिविवेक , तर्कशक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है  ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में  यदि  जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में  असफलता का कारण बनता है। होली,दीपावली व अन्य त्योहार वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व क

मेधा जोशी

कान्हा होली खेलते, गोपी ग्वालों संग। श्री राधे की प्रीत में,  नव पुलकन के रंग।। गली-गली हुल्लड़ मची,   नाचें ग्वाले संग। पर्व नंद दरबार में, हरपल नई उमंग।।   घोल प्रेम को भांग में, सभी हुए निष्काम। हरि गुण गाए हर्ष से, चरण परम पद धाम।। पिचकारी केसर भरी, भीगे सारे  संग। ग्वाल बाल सब मस्त है, सारे खेलें रंग।। रंगों के त्योहार में, देखों उड़े गुलाल। बुरे भाव सब भस्म हो, कान्हा संग धमाल  ।। मेधा जोशी। 🙏🏻🌻

नूतन लाल साहू

सावधान होली त्यौहार है आ गया होली का त्यौहार बहुत खुश है, बच्चें बूढ़े और जवान पर सावधान रहना क्योंकि साधु के वेश में,शैतान भी है। झांझ मंजीरा मांदर के संग फाग गीत में नाच रहे है सब उड़ रही है अबीर और गुलाल रंग में भींग रही है,गोरी के कंचन काया हंसी और उमंग लेकर आया है होली का त्यौहार। महर महर महक रहा है आमा के मौर कोयल कुहक रही है आम के डाल में बसंत ऋतु के पावन बेला पर बहुत आनंद आता है,चुटकी भर गुलाल में। चिड़िया भी पुलकित है मन में चार तेंदू का फल लग गया है वन में चारों तरफ खुशी का वातावरण लेकर आ गया होली का त्यौहार। जै जै श्री कृष्ण कन्हैया मथुरा में जन्में खेले गोकुल में गोप गोपी के संग रास लीला रचाकर जग को दिया संदेश, प्रेम का बहुत खुश है बच्चें बूढ़े और जवान आ गया होली का त्यौहार पर सावधान रहना क्योंकि साधु के वेश में शैतान भी है। नूतन लाल साहू

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

*शीर्षक -  होली* होली आई होली आई! राधा गुलाल मोहन पर डाले,भर भर मारे रंग पिचकारी नंदलाल हो रहे लाल गुलाबी,लाल लाल हो रही बृषभानुसुता बृज नारी अधरों पर मुरली मधुर धर के, मधुरिम मनोरम तान सुनावत गोवर्धनधारी यमुना तट पर तरु कदम तर,रास रचावत श्री मुरली मनोहर कुंज बिहारी मधुर तान तन राग जगावत,खिंची चली आवत सतरंगी चूनर पहने राधा प्यारी निरख बदन मनमोहन का बाहें गले में डालीं,तन मन सुधि सकल बिसारी खनक रही है पायल रुनझुन राधा की, मिला रही सुर कृष्ण की बांसुरी प्यारी घन- घनश्याम बीच मानो चमक- चमक जा रही हो चंचल चपला न्यारी प्रकृति सृष्टि मिल कर मानो धूम मचा रहे हों,दिख रही है रम्य मनोरम जोरी गोकुल की गली गली में,बृज की कुंज गलिन में, नर-नारी खेल रहे अद्भुत अलौकिक होरी गिरिराज मंद मंद मुस्कुरा रहे,देख राधा कृष्ण को,रवि तनया अठखेली कर रही अति न्यारी मानो बृजभूमि का कण- कण गोपी ग्वाल बाल,सब नाच रहे,संग राधा कृष्ण मुरारी होली आई होली आई! राधा गुलाल मोहन पर डाले,भर भर मारे रंग पिचकारी नंदलाल हो रहे लाल गुलाबी,लाल लाल हो रही बृषभानुसुता बृज नारी       जय जय श्री राधे कृष्णा           चंद्रप्रकाश गुप्त

संजय जैन बीना

*होली का रंग* विधा : कविता तुम्हें कैसे रंग लगाएं, और कैसे होली मनाएं ? दिल कहता है होली, एक-दूजे के दिलों में खेलो क्योंकि बहार का रंग तो, पानी से धुल जाता है पर दिल का रंग दिल पर, सदा के लिए चढ़ा जाता है॥ प्रेम-मोहब्बत से भरा, ये रंगों का त्यौहार है। जिसमें राधा कृष्ण का, स्नेह प्यार बेशुमार है। जिन्होंने स्नेह प्यार की, अनोखी मिसाल दी है। और रंग लगा कर, दिलों की कड़वाहट मिटाते हैं॥ होली आपसी भाईचारे, और प्रेमभाव को दर्शाती है। और सात रंगों की फुहार से, सात फेरों का रिश्ता निभाती है। साथ ही ऊँच-नीच का, भेदभाव मिटाती है। और लोगों के हृदय में, भाईचारे का रंग चढ़ाती है॥ आप सभी को होली की मंगल शुभ कामनाएं और बधाई।  जय जिनेंद्र संजय जैन "बीना" मुंबई 18/03/2022

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल

बैर भुलावत प्रीति बढ़ावत हिय कर पाप नसावत होली।। सत्य कै जीत असत्यनु हार औ हरि कर जाप बतावत होली।। पंथ कै कीचनु नास करावत पंथ सुपंथ रचावत होली।। अभिमान पिता जेहि तोड़ दिया अस चंचल पूत रटावत होली।।1।। होरी गयी जौ कोरी हमारी तौ रंग गुलाल उड़ाने न दूँगी।। मंजीर को बाँध रखूँ मैं जंजीरनु ढोल पै थाप लगाने न दूँगी।। माघ को रोंकि रखूँगी सेंवारन फागुन गाँवनु आने न दूँगी।। फाग को चंचल भंग करूँ अरू भंग को घोंटि चढ़ाने न दूँगी।।2।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल , उलरा, चन्दौकी, अमेठी।।पिनकोड..227813।।

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

#दिनांकः १८-०३-२०२२ #वारः शुक्रवार #विधाः छन्दमुक्त कविता (गीत)  #विषयः 🌈 होली आई रे🌈 #शीर्षकः होली आयी रे रंग    बरसे   होली  फाल्गुनी   बयार    आयी   रे,  सब   खुशियों     रंगों   की  थाल    सजायी    रे।  शान्ति प्रेम सौहार्द्र आपसी भेंट सजाकर लायी रे , अपनापन  मानवता  का  संदेश  सुनाने आयी  रे।  होली आयी रे .... जाति पाति और ऊँच नीच का भेद मिटाने आयी  रे, घृणा ,द्वेष छल कपट होलिका आग जलाने आयी रे। अंधापन कट्टर  धार्मिकता  सद्भाव जगाने  आयी  रे, सद्गुरू या भगवान कहो या गॉड ख़ुदा रंग लायी  रे। होली आयी रे .... रहें सभी सुख  चैन  प्रेम से  अलख जगाने आयी रे, होली हूँ हर सभी गमों को मुस्कान अधर पे लायी रे। रोग शोक मद लालच सबको आग जलाने  आयी रे, दीन धनी का भेद भुलाकर    रंगोली  बन  छायी रे। होली आयी रे .... होली  में  सब  भेद  भुलाकर  गले  मिलाने आयी  रे, पीला लाल गुलाबी हरितिम सतरंग बनी  मैं आयी रे। शान्ति वतन जन मन सुरभित प्रेम चमन बनआयी रे,  सद्भावन समरस मनभावन रिपुदलन कराने आयी रे।  होली आयी रे .... हिंसा दंगा रोष विनाशक  मन घाव मिटाने  आयी रे , त्याग शील गुण कर्म  मधुरतम रंग लगाने आ

डा. नीलम

*होली आई* बहुत हुआ अब छोड़ो लड़ाई गले मिलो छोड़ो रिसाई क्यों हो इकदूजे से खफा भाई देखो मिलन की होली आई चले फागुनी हवाओं ओ' खिले गेंदा ,टेसू पलाश रंगों से भर गए सभी कानन,कुँज,और बाग भौंरों की गुनगुन सुन नाच रहे पुष्प गुच्छ आज थाप पड़ी मृदंग पर तो नाचने लगे गोप-ग्वाल चंग उठाओ,ढोल बजाओ भीतर अपने कुछ तरंग जगाओ लाल,गुलाबी, नीले,पीले रंगों में रंग जाओ यार, होली है भई आई।           डा. नीलम *होली* नीले पीले लाल गुलाबी रंगों की बरसात हुई शोरगुल ,हुड़दंगियों की मौज मस्ती होती रही निकल पड़ी टोलियां घरों से अपनी-अपनी उम्र की किसी के भाल टीका,किसी के पग पर गुलाल धरे हमउम्र की बात न पूछो भर अंजुरी इकदूजे को रंगे धौलधप्प,हँसी -ठिठोली कहीं बरजोरी से खेले होली कहीं निकल पड़ी वानर टोली भर पिचकारी, भरे गुब्बारों से खेलें होली/धरपकड़ करउठाए लें ,दे छपाक पानी में डालें घर,आँगन,गली मौहल्ले सब रंगों में भीग रहे /धरा उड़ाय गुलाल,अबीर /हवाएं ले रंग अंबर के मुख को रंग आए।        डा.नीलम

सौरभ प्रभात "भानू"

आपको एवं आपके पूरे परिवार को होलिका दहन एवं रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐🙏🏻💐🙏🏻❤️ फागुनी पूर्णिमा आई         रास रंग पुरवाई                 सज धज जलने को                         होलिका तैयार है। उड़ते गुलाल रंग         घोंट रहे लोग भंग                 ढ़ोलकों के थाप संग                         नाचती बहार है। कढ़ी-बड़ी दही-बड़े         ठंडई के मीठे घड़े                 खुशियों के रथ पर                         यौवन सवार है। मीट पुआ भोग लगे         सुखद संयोग लगे                 देवरों की मस्ती देख                         भाभियाँ निसार है।। ©️®️✍🏻 सौरभ प्रभात "भानू" मुजफ्फरपुर, बिहार

भास्कर सिंह माणिक

मंच को नमन साहित्य धरा स्नेहिल विषय - हिंदू संस्कृति में होली का महत्व              होली  ------------------------------- भारतीय संस्कृति की पहचान है होली। हिंदू  और  हिंदुस्तान की शान है होली। प्रेम सौहार्द सिखलाए जनमानस को। माणिक सद्भाव सत्य की ज्ञान है होली।             निडर पहलाद का अडिग विश्वास ही जीता। हर   काल  में  प्रेम  कर्म  विवेक  ही जीता। स्वच्छ  परंपराओं  की  उद्यान है  होली। हिंदू  और  हिंदुस्तान की शान है होली। दुर्भाव   के  मनोरथ  पूर्ण   होते नहीं। आत्मबल  संयम  कभी  विफल होते नहीं। तप त्याग सत्य कर्म की ज्ञान है होली। हिंदू  और  हिंदुस्तान की शान है होली। होली  ऊंच-नीच  धर्म  का भेद मिटाती। हमें एकता  अखंडता  का भान कराती। भारती  के  भाल की  सम्मान है होली। हिंदू  और  हिंदुस्तान की शान है होली।               ---------------- मैं घोषणा करता हूं कि यह मुक्तक मौलिक स्वरचित है।    ‌      भास्कर सिंह माणिक ,कोंच

डॉ. कवि कुमार निर्मल

होलिका दहन किया, परसों होली खेलो। भक्त प्रहलाद की सब जय जय जय बोलो।। हिरण्यकस्यप अचंभित, लाचार बेचारा। धर्म भी कहीं अधर्म से युगों में कभी हारा।। दानव दंभी को नरसिंह ने अंतत: तारा, माना हमने यह एक पौराणिक कथा है। हर पल यह बध अन्दर बाहर चलता है। मन में बैठा राम, रावण को अवसान करता है।। रावण अष्टपाश-सट् ऋपुओ पर हुआ हावी। पाप-पुण्य का खेल सबकी आती है बारी।। महापातकी के पाप को मरना हीं होता है। धर्मनिष्ठ का बाल नहीं बाँका कभी होता है।। पँच तत्वों में सतरंगी गुण धुला रहता है। उपर से हीं नहीं कुछ दिख सकता है।। रंगोली-अल्पना, होली में रंगों से पुतना। प्रकृति की ताल से है ताल मिलाना।। पिया के घर जा, रंग में पूरा रंग है जाना। उत्तम सात्विक आहार जम कर है खाना।। दुस्मन को दोस्त बना गले लगाना। हर पल होली के रंगों में रंग जाना।। भक्ती भाव में मिल-जुल कर बह जाना। ध्रिणा-द्वेश-क्रोध की अगन से मुक्त हो जाना।। धर्म ध्वजा चहुदिशी है हमको फहराना। सात रंग हैं प्रभु के, उनके रंग में रंग जाना।। डॉ. कवि कुमार निर्मल___ ✍️ बेतिया, बिहार

डॉ0 निर्मला शर्मा

* होली आई रे * होली आई रे फागण री मस्ती  मन में छाई रे--- होली आई रे। अबिर गुलाल बरस रहे ऐसे, सावन की बारिश हो जैसे। हिलमिल सखियाँ खेले होली , कान्हा के रंग रँगी रँगीली। इन्द्रधनुष से रंग है बिखरे, फागुन में हर रंग हैं निखरे। होली आई रे-------------। छम छम पायल बाज रही है, अधर मुरलिया साज रही है। मोहन भागे फिरें गलिन में, राधा गोपी घेरे गलिन में। रंग प्रीत का डारा पक्का, जीवन गया न उतरे तन से। होली आई रे------------। डॉ0निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान रंगों के त्योहार होली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏🙏💐💐

विजय कल्याणी तिवारी

// भरमाना छोड़ // -------------------------- अब मन को भरमाना छोड़ आँसू अधिक बहाना छोड़। कहाँ भटकता भ्रमित भाव ले सुख का यहाँ खजाना छोड़। सीधी सच्ची बात किया कर मारा मत कर,ताना छोड़ । क्यों बदले मन भाव तुम्हारे कैसा चलन,जमाना छोड़ । देख तुम्हारे हिस्से क्या है उनका हिस्सा खाना छोड़ । रीत नीत का ध्यान रखा कर करना अब मनमाना छोड़ । खुद समझे तो बड़ी बात है अन्यों को , समझाना छोड. । मर्यादाएं टूट रही हैं अब तो नग्न नहाना छोड़। वह निरीह कोने में बैठा उसको व्यर्थ सताना छोड़। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

नूतन लाल साहू

होली है मंद मंद चल रे पवन कलिया तू फूल खिल जा सबका मनभावन त्यौहार होली आ गया। हंसी और उमंग लेकर आया है खेल होली परिवार के संग में छोटे बड़े का भेद भुलकर उड़ा ले अबीर और गुलाल मंद मंद चल रे पवन कलिया तू फूल खिल जा। कितना आनंद आता है यदि प्रेम से खेलें होली हम रिश्तों में मिठास और बढ़े ऐसे खेलें होली हम मंद मंद चल रे पवन कलिया तू फूल खिल जा। बसंत ऋतु का मौसम है है बहारों की समां फाग गीत जुरमिल गा लें उड़ा लें रंग और गुलाल मंद मंद चल रे पवन कलिया तू फूल खिल जा सबका मनभावन त्यौहार होली आ गया। नूतन लाल साहू

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 17/03/2022                ------ प्रणेता बनें  ----- आओ सभी उर्ध्वरेता बनें ।  दिव्य शिखरता उच्चासन हित , मन चित से अनन्य चेता बनें ।। विद्यार्जन की रख जिज्ञासा , श्रेष्ठ सफलतम अध्येता बनें । गुरु ज्ञानी का सानिध्य रहे , ब्रह्म भाव से नचिकेता बनें ।। काल कर्म की कड़ियाँ सुलझे , हर भाव जगत के त्रेता बनें । सूक्त युक्ति सिद्धांत सिद्धता , ऋषि परंपरा के प्रणेता बनें । संयम नियम धर्म से निःश्रृत , जीवन प्रण युद्ध विजेता बने । मानवता के प्रखर पुरोहित , जन गण मन सतत चहेता बनें ।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

चेतना चितेरी

होली प्रेम का पर्व  _________________ ये प्रेम का पर्व है, खुशियों का पर्व है, हम मिलजुल कर मनाएंगे होली का पर्व, फागुन के गीत गाएंगे, ढोल नगाड़ा भी बजाएंगे, अम्मा के हाथ की बनी गुझिया भी! खाएंगे, चाचा –चाची के साथ होली का पर्व मनाएंगे, ये प्रेम का पर्व है खुशियों का पर्व है गांव में परिवार के साथ  होली का पर्व मनाएंगे, हम मिलजुल कर होली का पर्व मनाएंगे। मित्रों के साथ नाचेंगे भी !,झूमेंगे भी! सारे रिश्तेदारों से मिलकर भी!आएंगे, प्रेम के रंग से  सबको रंग कर आयेंगे, ये होली का पर्व है, खुशियों का पर्व है, अबकी सबके उपालंभ दूर करके आएंगे, हम मिलजुल कर होली का पर्व मनाएंगे। (मौलिक रचना) चेतना चितेरी , प्रयागराज 15/3/2022,6:39p.m.

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

मन के मैल जलावऽ भुला गेल हम्मर सभ्यता संस्कृति  ढूंढ के ओकरा अब कोय लावऽ  कब तक छूछे गाल बजइ वऽ  कुछ करतब अप्पन देखलावऽ हो सके तो अबकी होली में पगड़ी धोती कुर्ता सिलबावऽ फटल जींस के छोड़ऽ पहिराना लइकन के नुंगा नया सिलावऽ मेहरारू के सूती साड़ी पियरिया पांव पइजनियां बिछिया पहिरावऽ कान में झुमका नाक नथुनियाँ माथे टीका चूड़ी कंगना खनकावऽ चहुओर चौपदा दोपदा गूंजे पुरानका होली फेर सुनावऽ पसरे आनंद फेर मंगल बाजे घर-आंगना में मधुर गीत गावऽ आजाद अकेला मगन मन घूमे खूब रंग गुलाल सब मिल उड़ावऽ अबकी अप्पन दिल के दूरी दूर करऽ  होलिका में सब मन के मैल जलावऽ             ✍️ आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला (बरबीघा वाले)

चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक-     होली (समस्त देशवासियों को होली दहन की हार्दिक शुभकामनाएं) होली में हिरण्यकश्यप से कर्म जलायें,कथा प्रहलाद की घर घर पहुंचायें होली में होलिकाओं के भी मंसूबे खाक करें,निष्ठा विश्वास का संदेश जन-जन तक पहुंचाएं होली में द्वेष, ईर्ष्या-कुंठा,कलुष जलायें,धरती पर नया उजाला लायें हम भारत के गुण गायें, मानवता के ज्ञान प्रकाश की ज्योति अखंड जलायें ले कर मशाल देशभक्ति की, देशहित मर मिटने की अलख जगायें जाति धर्म वंश का भेद मिटायें, भारत माता की सेवा में जुट जायें चिर प्रेम, त्याग, सृजन, कर्म, बुद्धि, विवेक, सत्य के, इंद्र धनुष अभिराम बनायें अवनि से अंबर तक देशप्रेम का, अद्भुत गुलाल अबीर उडायें आत्मबल, अनुशासन,संयम से आत्मनिर्भरता की गुजियां खूब बनायें व्यक्ति, परिवार , समाज, राष्ट्र को ऊर्जा, स्फूर्ति की ठंडाई खूब पिलायें जन्म जहां पर हमने पाया, अन्न जहां का हमने खाया,बलि बलि उस पर जायें ज्ञान जहां से हमने सीखा, वस्त्र जहां के हमने पहने, सेवा में उसकी सर्वस्व लुटायें होली के पावन पर्व पर तन मन धो कर भारत को प्रकाश पुंज से भर दें रंगों की उमंग भर,मानव मात्र का सम्मान कर, देवत्व के दिव्य

नूतन लाल साहू

माता पिता का प्रेम बड़े सकुचाते हुए विनम्र भाव से बोला रूठ मत जाना मेरी यही फरियाद है सच कहता हूं माता पिता ही मेरे ब्रम्हा विष्णु और महेश हो। जिसने भी त्यागा,माता पिता का प्रेम दुनिया में सुख साधन की खोज में वो भटकें दिन रात इधर उधर क्योंकि माता पिता का प्रेम ही स्वर्ग का धाम है। याद करें बीते हुए बचपन को माता पिता ने क्या क्या नही किए जब हम रोते थे तो, हमें मनाने के लिए उनके भावों का विश्लेषण,बहुत मुश्किल है। सूरज की गर्मी में,वर्षा की नरमी में मौसम के रंगों में,रंगो के मौसम में हम सब के आंखो की भाषा को बचपन में मन की परिभाषा को समझनें में देर न लगाते थे वो ही तो,माता पिता का प्रेम था। रूप तुम्हें सुंदर मिला,स्वर भी है कमाल का कहां से प्राप्त हुआ है,कौन है निर्माता जिसने भी जाना,माता पिता को उसे कुदरत भी देती है,सुख की सौगात। अपनी करनी की सजा मिलती है सबको नजर अंदाज न कर, मां बाप को सब वस्तु मिल जायेगा,इस जग में पर खोने के बाद,कहां पाओगे मां बाप को। चैन की राह दिखाने वाला माता पिता का प्रेम ही होता है। नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद* *हे कर्ण* ------------------------ हे कर्ण शाश्वत वीर तुम। हो धीरता में धीर तुम।। तुम सत्य सार्थक सत्यता। प्रतिपल निभाए मित्रता ।। तुम दान तन मन धन दिए। निज मान हित जीवन जिए।। मन रोष धर यह प्रण लिए। पांडव विरोधी रण किए ।। कौरव निभाए साथ तुम । भूले स्वयं का हाथ तुम।। माँ को दिए तुम जब वचन । बस पाँच पांडव कर चयन।। कुंडल कवच शोभा वरद। दे इंद्र को डाले विशद।। अपमान जीवन भर सहे। पीड़ा नहीं यह तुम कहे ।। सारंग शर जब तुम धरे। तब जीत पांडव की करे।। तुम वीर योद्धा थे परम। रवि ताप धर अतिशय चरम।। बंधन निभाए मित्र से । पालक बने सह चित्र से।। तुम वीरता का गान हो। हे कर्ण मधु सम्मान हो ।। मधु शंखधर स्वतंत्र *प्रयागराज* *15/03/2022*

डा.नीलम

पी की महक छूकर आई  हवा पी तन को मन महका तन बहक गया खुले पेंच अलकों के सारे देने लगा सदाआँचल पवन को दूर बसे परदेस पिया जी भेज हवाओं पर प्रेम संदेश दिया/गुनकर चंचल नयन हुए रतनारे /रख न सके भेद जिया में भोर से सांझ तलक हुआ सारा आलम सिंदुरी-सिंदुरी प्रीत के रंग में भीगा फागन तन बूढ़ा, मन उबर गया जित देखूं पी आए नजर अनबोले गीतों में छम-छम थिरकने लगे अनजाने में पग नाच रही जैसे कोई बावरी  होकर मस्त मलंग।         डा.नीलम

शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,जहाँ शीशे के घर ,,,,,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   ज़मीं पे सितारे,उगाने चले हो । हमें ख्वाब झूठे,दिखाने चले हो।। इधर खेत सूखे ,रूठा है सावन । नदी काग़जों पर, बहाने चले हो।। हरे हैं अभी भी, यहाँ ज़ख्म जिनके। ठोकर उन्हें क्यूँ, लगाने चले हो ।। लड़ा तीरगी से, यहाँ उम्र भर जो । उसी दीप को तुम, बुझाने चले हो ।। हकीकत छुपा फिर मुखौटे लगाकर। सच आईने से ,छिपाने चले हो ।। बड़ी दूर मंज़िल ,कठिन रास्ते हैं । ये कहकर हमें, तुम डराने चले हो ।। फ़ना हो गया जो, तेरी आरज़ू में । उसे ज़िन्दगी से ,भुलाने चले हो ।। वहाँ पत्थरों की हुकूमत है पगले । जहाँ शीशे के घर, बनाने चले हो ।। .................................................. शिवशंकर तिवारी । छत्तीसगढ़ । ..................................................

ऊषा जैन उर्वशी

*मनहरण घनाक्षरी* *प्रदत्त -शब्द होली* होली का धमाल देखो,  रंगों का कमाल देखो,  नीले पीले लाल हरे,  रंगों की फुहार हैं।।  पीकर आज भंग है,  मचाते हुड़दंग है,  मस्ती छाई है सबको,  होली का शुमार है। ।  घोल रहे हैं ठंडाई गुजिया खुशबू छाई,  बच्चे बूढ़े एक हुए,  होली का खुमार है। ।  कान्हा अब तो आजाओ,  प्रेम रंग लगा जाओ,  भक्ति रंग में रंग दो,  करे मन गुहार है। ।  ऊषा जैन उर्वशी

अर्चना सिंह

स्त्रियां ये स्त्रियां न जाने कैसी होती है  कोमल फूल जैसी  लेकिन लोहे से भी मजबूत होती हैं  शीतलता चांद सी  लेकिन सूर्य से भी गर्म होती हैं  स्त्रियां ना जाने कैसी होती हैं  शारीरिक मानसिक यातनाएं सहकर भी संबंधों से सूखे पत्तों जैसी जुड़ी रहती हैं  हृदय में दर्द की टीस को दबाकर  हंसती मुस्कुराती और खिलखिलाती हैं  स्त्रियां ना जाने कैसी होती है  प्रेम की नदियां होकर भी  अतृप्त और प्यासी रहकर भी  जीवन पर्यंत ओस की  केवल दो बूंद का इंतजार करती हैं  स्त्रियां ना जाने कैसी होती है  मां बेटी बहन पत्नी के रूप में  स्नेह आशीर्वाद और प्रेम को लुटाती हैं  वंदनीय पूजनीय होती हैं  झुककर पुत्री जैसी नमन करती  वास्तव में भारत माँ सरीखी होती हैं  यह स्त्रियां न जाने कैसी होती है। अर्चना सिंह

विजय कल्याणी तिवारी

// दुखी हुआ क्यों // ------------------------------ दुखी हुआ क्यों खोने में उमर गंवाया सोने मे । बात हाथ से निकल गई क्या रख्खा है रोने में । मुझको तू आनंदित दिखता पाप की गठरी ढोने में । तेरा मन कातर नही होता देख पड़ा है कोने में । फूलों से बढ गयी वितृष्णा खुश है कांटे बोने में । खुद के लिए थाल चांदी के उसका भोजन दोने में । क्षणिक विलंब नही लगता है तन को माटी होने में । दुख पीड़ा सब सहज मिटेंगे मन रख श्याम सलोने में । विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग. //अवसाद भरा// ------------------------- अंतर हिय अवसाद भरा मन मष्तिष्क प्रमाद भरा है । क्या लेना था क्या लेता है प्रकृति , प्रभु प्रसाद भरा है । तीखा कड़ुआ नही कहीं कुछ कण कण अनुपम स्वाद भरा है। क्यों अनबोला निपट अकेला शामिल हो संवाद भरा है । कैसे मैं भूलूं कह उनको अंतस ढेरों याद भरा है । सीधी सादी सोच नही तो केवल कलह फसाद भरा है। सुन सकता है ध्यान लगाकर इस जग मोहक नाद भरा है। विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छ.ग.

रामनाथ साहू ननकी

प्रीत पदावली  ---- 16/03/2022                ------संभव है  ----- आओ बन जायें विशिष्ट । दुर्गम दुर्जेय पथों का भी , कर पायें सतत विश्लिष्ट ।। तत्परता से ही होता है , ज्ञान संग्रहित जो अदिष्ट । अंतरमन के गहरे तह पर , वह दिव्यता है उपविष्ट ।। बाधक जो भी पथ पर आये , कर दें उन सबको निकृष्ट । हर प्रतिद्वंदी नेह करे अति , आतुरता निकट संश्लिष्ट ।। बन शीर्षस्थ मूल में हो स्थित , दिव्य क्षेत्र संभव कर प्रविष्ट । भान रहे आनंद प्रभासित , थमे सभी दूषित अनिष्ट ।। आध्यात्मिक घटे जागरण , पंथ सभी तजना अरिष्ट । हो पूर्णानंद लक्ष्य संभव , सदा प्राप्त होगा अभिष्ट ।।               ---- रामनाथ साहू " ननकी "                       मुरलीडीह ( छ. ग. ) !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! प्रीत पदावली ---- 15/03/2022                ------ शुभ यति रहे ----- हर पल यही उपस्थिति रहे ।  लय हो धुन हो संयोजन हो , सदा सुनिश्चित शुभ यति रहे ।। हो अनुकूलता युक्त जीवन , नवल सूरज की उदिति रहे । जो एक बार लिख दी जाये , प्रलय घटे तक अक्षिति रहे ।। इस विराट सत्ता के साक्षी , कुछ चिन्ह स्वमेव अदिति